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रफ़ाल पर केंद्र को बड़ा झटका : सुप्रीम कोर्ट ने प्रारंभिक आपत्ति ख़ारिज की

सरकार का दावा था कि इस मामले में याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज "विशेषाधिकार प्राप्त" हैं और इसलिए अदालत इन दस्तावेजों पर भरोसा नहीं कर सकती। इसके विपरीत कोर्ट ने कहा कि वो रफ़ाल फैसले पर पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तारीख तय करेगा।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस. के. कौल और जस्टिस के. एम. जोसेफ

रफ़ाल पर दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्ति को खारिज कर दिया है। सरकार का दावा था कि इस मामले में याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज "विशेषाधिकार प्राप्त" हैं और इसलिए अदालत इन दस्तावेजों पर भरोसा नहीं कर सकती। इसके विपरीत कोर्ट ने कहा कि वो रफ़ाल फैसले पर पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तारीख तय करेगा।

यह फैसला चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस. के. कौल और जस्टिस के. एम. जोसेफ की पीठ ने आम सहमति से सुनाया। इससे पहले 14 मार्च को पीठ ने इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था।

अटॉर्नी जनरल की दलील

इस दौरान अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने यह दलील दी थी कि याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज विशेषाधिकार प्राप्त दस्तावेज हैं, जिन्हें भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 123 के अनुसार साक्ष्य नहीं माना जा सकता है। इन दस्तावेजों को आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत संरक्षित किया जाता है। AG ने यह भी कहा कि दस्तावेजों के प्रकटीकरण को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत धारा 8 (1) (ए) के अनुसार छूट दी गई है।

न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ की टिप्पणी

न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ ने हालांकि यह कहते हुए जवाब दिया था कि आरटीआई अधिनियम की धारा 22 ने आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम पर एक व्यापक प्रभाव दिया है। उन्होंने आरटीआई कानून की धारा 24 का उल्लेख करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार और मानवाधिकारों के उल्लंघन के संबंध में सुरक्षा प्रतिष्ठानों को भी जानकारी देने से छूट नहीं है।

याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण की दलील

मामले के याचिकाकर्ताओं में से एक प्रशांत भूषण ने AG के दावों को गलत बताते हुए कहा था कि विशेषाधिकार का दावा उन दस्तावेजों पर नहीं किया जा सकता जो पहले से ही सार्वजनिक क्षेत्र में हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 123 केवल "अप्रकाशित दस्तावेजों" की रक्षा करती है। उन्होंने कहा था कि स्रोतों की रक्षा करने के लिए पत्रकारों के विशेषाधिकार को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया एक्ट की धारा 15 के अनुसार द्वारा मान्यता प्राप्त है। उन्होंने 2 जी और कोल ब्लॉक मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेशों का भी उल्लेख किया था जिसके तहत आगंतुक सीबीआई के पूर्व निदेशक रंजीत सिन्हा के घर की विजिटर डायरी को यह बताने पर जोर दिए बिना सबूतों में स्वीकार किया गया कि उसे कैसे प्राप्त किया गया। उन्होंने "पेंटागन पेपर्स केस" का भी उल्लेख किया था और कहा कि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने वियतनाम युद्ध से संबंधित दस्तावेजों के प्रकाशन की अनुमति दी थी। उन्होंने कहा, "सरकार की चिंता राष्ट्रीय सुरक्षा की नहीं है बल्कि उन सरकारी अधिकारियों की रक्षा करना है जिन्होंने सौदे की वार्ता में हस्तक्षेप किया है।"

मामले में एक अन्य याचिकाकर्ता अरुण शौरी ने टिप्पणी की कि वह यह स्वीकार करने के लिए AG के आभारी हैं क्योंकि उन्होंने माना है कि प्रस्तुत दस्तावेज वास्तविक हैं और संलग्न दस्तावेज की फोटोकॉपी हैं। दरअसल सुप्रीम कोर्ट 14 दिसंबर 2018 के फैसले पर प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी व अन्य द्वारा दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। इस याचिका के साथ ही केंद्र सरकार द्वारा दायर की गई संशोधन याचिका और प्रशांत भूषण द्वारा कोर्ट को दिए नोट में गलत जानकारी देने के लिए परजूरी का केस चलाने की याचिका भी सूचीबद्ध है।
 

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