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रूस-यूरोपीय संघ रिश्तों पर बेलारूस, नवलनी प्रकरण का साया

ये दोनों घटनायें एक-दूसरे से जुड़े हुए तो नहीं दिखते, लेकिन ये दोनों घटनायें रूस पर पश्चिम की तरफ़ से दोहरा दबाव बनाते हैं।
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6 सितंबर, 2020 को मिन्स्क स्थित राष्ट्रपति भवन की ओर मार्च करते हुए बेलारूस के विपक्षी प्रदर्शनकारी

रूसी रक्षा मंत्री,सर्गेई शोइगू ने 6 सितंबर को सरकारी टेलीविज़न पर इस बात का ख़ुलासा किया कि पिछले साल के मुक़ाबले अगस्त में नाटो जेट की तरफ़ से देश की सीमाओं पर होने वाली हवाई निगरानी में तीस प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। अतीत के उलट, जब यह निगरानी जासूसी विमानों द्वारा की जाती थी, हाल में यह निगरानी नियमित रूप से प्रशिक्षण उड़ानों द्वारा की जा रही हैं,जिसके दौरान नक़ली मिसाइल हमले भी किये जा रहे हैं।

शोइगू ने यह भी कहा कि नाटो की योजना है कि वह भविष्य में रूस को "रणनीतिक रूप से मजबूर" करने के लिए एक दबाव की जरूरत के बहाने निकट भविष्य में एक अन्य अमेरिकी सैन्य दल को पोलैंड में फिर से तैनात करने की योजना बनाये। उन्होंने कहा कि अमेरिकी और ब्रिटिश विमान काला सागर क्षेत्र में भी रूस की दक्षिणी सीमाओं पर सक्रिय हैं।

जिस समय यह सब चल रहा है,उसी दौरान पिछले चार हफ़्ते में घटनाक्रम के दो अन्य मोड़ भी सामने आये हैं-पहला,9 अगस्त के राष्ट्रपति चुनाव के बाद बेलारूस में उप्रद्रव और दूसरा, रूसी राजनीतिक कार्यकर्ता एलेक्सी नवलनी को ज़हर दिये जाने का अजीब मामला।

ये दोनों घटनायें एक-दूसरे से जुड़े हुए तो नहीं दिखते, लेकिन ये दोनों घटनायें पश्चिम का रूस पर दोहरा दबाव बनाने वाले मामले हैं। बेलारूस में राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंका के चुनाव को लेकर हो रहे उपद्रव में कमी का का कोई संकेत नहीं है, पश्चिमी देशों के मीडिया संस्थाओं ने इन विरोध प्रदर्शनों को हवा दी है और वस्तुत: वहां के लोगों को बहकाया भी है।

इसे लेकर रूस उतावलापन बिल्कुल नहीं दिख रहा। हालांकि इस हालत में उसकी दिलचस्पी वाजिब हैं, मॉस्को भी बेलारूस के लोकतांत्रिक परिवर्तन के विचार को लेकर खुला-खुला है, लेकिन वह ऐसा संवैधानिक आधारों वाली एक व्यवस्थित राजनीतिक प्रक्रिया के तहत चाहता है। इस पूरे मामले में मॉस्को का तुरूप का पत्ता यही है कि बेलारूस रूसी आर्थिक सहायता, ख़ास तौर पर ऊर्जा आपूर्ति पर बहुत ज़्यादा निर्भर है।

जिस समय पश्चिमी अर्थव्यवस्थायें अलग-अलग स्तर पर डगमगायी हुई हैं, ऐसे समय में न तो यूरोपीय संघ और न ही अमेरिका रूस की जगह बेलारूस को सहायता देने  का इच्छुक है। इसलिए, " रेड लइन" पर रूस और पश्चिम देशों के बीच एक मौन समझ मददगार हो सकती है। रूसी पक्ष ने मॉस्को में 24 अगस्त को अमेरिकी डिप्टी सेक्रेटरी,स्टीफ़न बेजगुन के साथ इन "रेड लाइन" पर साफ़ तौर पर परामर्श को लेकर चर्चा करने की उम्मीद की थी, लेकिन स्टीफ़न इसके लिए तैयार नहीं थे। हो सकता है कि यह महज़ एक विलंब की रणनीति हो।  

बाद में बेजगुन ने मिन्स्क में हो रहे विरोध प्रदर्शनों के लिए सार्वजनिक रूप से मज़बूत समर्थन दिया और बेलारूस में सीधे-सीधे हस्तक्षेप के ख़िलाफ़ रूस को चेतावनी दी। अगर बेलारूस के शासन में बदलाव होता है,तो वाशिंगटन ख़ुश होगा। इस बात की सबसे ज़्यादा संभावना है कि अमेरिका और उन तीन क्षेत्रीय देशों-पोलैंड, लिथुआनिया और यूक्रेन के बीच एक उच्च स्तर का समन्वय हो, जो सक्रिय रूप से बेलारूस में हस्तक्षेप कर रहे हैं।

इन परिस्थितियों में मॉस्को की कोशिश 1998 के केंद्रीय राज्य समझौते के ढांचे के भीतर रूस के साथ बेलारूस के गहरे एकीकरण को बढ़ावा देना होगा। इस प्रकार, मॉस्को और मिन्स्क ने बेलारूस को रूसी ऊर्जा आपूर्ति को फिर से शुरू करने पर कथित रूप से सहमति व्यक्त की है, जो इन दोनों देशों के बीच के रिश्तों का एक प्रमुख बिंदु रहा है। लुकाशेंका और पुतिन के बीच मॉस्को में होने वाली आगामी वार्ता के एजेंडे में सुरक्षा मुद्दे के सबसे ऊपर होने की उम्मीद है। रक्षा मंत्री एक रोड मैप तैयार कर रहे हैं, जिसमें बेलारूस में रूसी सैन्य सुविधायें शामिल हो सकती हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं कि हो रहे विरोध प्रदर्शनों ने राजनीतिक रूप से लुकाशेंको को कमज़ोर कर दिया है और वह इस समय पश्चिम के ख़िलाफ़ रूस को दरकिनार करने की स्थिति में नहीं है। उसके पास क्रेमलिन की शर्तों के अनुरूप कम विकल्प हो सकता है। लेकिन,रूस द्वारा बेलारूस पर उन शर्तों को थोपना एक तरह से आत्मघाती ही है,जिसकी सार्वजनिक स्वीकार्यता बेलारूस में कम हो। मूल रूप से लुकाशेंका एक "ज्वलंत मामला" बन गया है और रूस का बेलारूस में स्थायी हित है। 

नवलनी के ज़हर दिये जाने वाले मामले में एक तयशुदा पैटर्न दोहराया जाता दिख रहा है। रूसी जटिलता को लेकर पश्चिमी देशों का यह आरोप बिना सबूतों के अनुमानों और मान्यताओं के आधार पर एकाएक बड़े पैमाने पर लगाया जा रहा है। समस्या को जो कुछ जटिल बनाता है,वह यह है कि नोविचोक समूह के रासायनिक तंत्रिका एजेंट नाटो के सदस्य देशों सहित कई देशों के सैनिकों के साथ भी हैं।

नवलनी तक पहुंच बनाने को लेकर रूस के अनुरोध को जर्मनी ने अभीतक नहीं माना है। इसलिए,इस मामले में रूस ने जर्मनी के पास इसकी जांच के लिए एक संयुक्त चिकित्सा दल भेजने का एक प्रस्ताव दिया है। हालांकि, जर्मनी ने पहले ही "अपने यूरोपीय संघ और नाटो भागीदारों के साथ चर्चा शुरू कर दी है और जल्द ही यूरोपीय भागीदारों के साथ इस बात को लेकर चर्चा करेगा कि किस प्रतिक्रिया का पालन करना है और इसके संभावित प्रभावों का क्या होगा।" प्रतिबंध लगाने के ख़तरे अभी अनिश्चित है।

कहा गया है कि यूरोपीय संघ और नाटो किसी भी उचित जांच-पड़ताल से पहले रूस के ख़िलाफ़ दंडात्मक क़दम नहीं उठा सकते हैं। यूरोपीय संघ अपने आप में एक विभाजित समूह है, जिसमें जर्मनी, फ़्रांस और इटली का प्रतिनिधित्व एक ऐसे मज़बूत निकाय का निर्माण करता है, जो यूरोप के सामने आने वाली समस्याओं का हल करने को लेकर रूस के साथ एक अच्छा व्यावहारिक रिश्ता बनाये रखने की अनिवार्यता को रेखांकित करता है, जबकि पोलैंड और लिथुआनिया ने बना "न्यू यूरोपियन" समूह मुख्य रूप से  रूस पर दबाव बनाने के लिए बेचैन दिख रहा है, और इसे यूके की तरफ़ से उकसाया जा रहा, जिसका रूस को अलग-थलग करने में ख़ुद का हित है।

बीबीसी,मिन्स्क में प्रदर्शनकारियों का ध्वज वाहक बन गया है। ज़ाहिर है, यूके क्रेमलिन पर एक ऐसी मुस्तैदी के साथ दबाव बना रहा है,जो दबाव माल्टीयाई पत्रकार और कार्यकर्ता, डैफ़ने कारुआना गैलिज़िया (2017), स्लोवाकिया के खोजी पत्रकार,जन कुइसाक और उनकी मंगेतर (2018) की हत्या या इस्तांबुल स्थित सऊदी वाणिज्य दूतावास में जमाल ख़शोगी (2018) की हत्या जैसी घटनाओं के समय नहीं दिखी थी।

पश्चिम में इस बात को लेकर एक बड़ी राय यह है कि जर्मनी नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन परियोजना को स्थगित करके रूस को दंडित करे। लेकिन,चांसलर एंजेला मर्केल इस तरह की किसी भी क़दम को ख़ारिज करती हैं और रूस पर नवेलनी के मामले की पूरी तरह से जांच करने पर ज़ोर देती हैं। बर्लिन ने रूसी जनरल अभियोजक के कार्यालय के लंबित अनुरोध का जल्द ही जवाब देने का भी वादा किया है।

इस मामले की जांच के लिए मॉस्को द्वारा सुझाये गये चिकित्सकों (रूसी और पश्चिमी) के एक अंतर्राष्ट्रीय दल के गठन से तनाव को शांत करने में मदद मिल सकती है। मॉस्को इस बात को लेकर आश्वस्त दिखता है कि उसके पास छुपाने के लिए कुछ भी नहीं है। मगर,मुद्दा तो यह भी है कि नवलनी ने दक्षिणपंथी चरमपंथियों, क्रेमलिन के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाले कुलीन वर्गों और यहां तक कि पश्चिमी ख़ुफ़िया एजेंसियों के विभिन्न लोगों के साथ संपर्क बना रखा था। उन्होंने अपने भ्रष्टाचार विरोधी धर्मयुद्ध की बदौलत कई दुश्मन भी बनाये हैं। शायद उनका अपने किसी संरक्षक के साथ झगड़ा भी हुआ हो।

लेकिन,सच इस "अज्ञात-ज्ञात" से परे है। मॉस्को को वे नाम बताने होंगे और उसके बाद नवलनी की हत्या के इस प्रयास की जांच कराने के लिए आगे बढ़ना होगा। हालांकि, जर्मनी में ही इस पर राय बंटी हुई है कि क्या यह एक ऐसा मुद्दा है,जो जर्मनी के लिए चिंता का विषय हो,क्योंकि यह एक ऐसी घटना है,जो दूसरे देश में हुई थी,जिसमें एक विदेशी शामिल था और जिसे चिकित्सा के लिए जर्मनी लाया गया था। इसके अलावे अहम सवाल यह भी है कि जर्मनी और यूरोपीय संघ को इस मामले में कितनी गंभीरता के साथ प्रतिक्रिया देनी चाहिए ?  

यह कहना पर्याप्त है कि हालांकि बेलारूस में हो रहे विरोध प्रदर्शन पर या नवेलनी को ज़हर दिये जाने पर रूस और पश्चिमी शक्तियों के बीच किसी भी तरह के सहयोग की उम्मीद करना कुछ ज़्यादा है, जरूरी नहीं कि उनके सम्बन्धों के बीच ये दो स्थितियां ज्वलंत बिन्दु बन जाये, मगर इसे छोड़ देने से भी स्थायी नुकसान हो सकता है।

हालांकि, इसमें एक और बात जोड़ी जानी चाहिए कि अमेरिका पुतिन के कार्यकाल के समाप्त होने पर 2024 में होने वाले चुनाव पर नज़र रखते हुए बेलारूस में एक लंबा खेल खेल रहा है। ज़ाहिर है, नवंबर में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों का भी अमेरिकी दृष्टिकोण के भविष्य के अनुमान पर काफ़ी असर पड़ेगा।

इस बीच, पूर्वी यूरोप में अमेरिकी सेना की बढ़ती मौजूदगी ने बेलारूस में मामले को बनाये रखने को लेकर पोलैंड और लिथुआनिया के उत्साह को बढ़ा दिया है। इसके अलावा, नॉर्ड स्ट्रीम 2 परियोजना से हटने के लिए जर्मनी पर दबाव बनाये रखने को लेकर ट्रम्प प्रशासन पर भी भरोसा किया जाना चाहिए। वाशिंगटन का अनुमान है कि मर्केल के अगले साल रिटायर होने के बाद जर्मन-रूसी रिश्ते इसी तरह के नहीं रह जायेंगे।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Belarus, Navalny Cast Shadow on Russia-EU Ties

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