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रूस ने अपने ऊपर लगाए गए प्रतिबंधों पर जवाबी कार्रवाई की

ईरान के साथ परमाणु समझौते और मॉस्को-तेहरान के द्विपक्षीय संबंधों के बारे में रूस अमेरिका से “बेहद साफ़ शब्दों” में जवाब चाहता है।
Moscow Kremlin
रूस ने ईरान समझौते को जारी रखने के लिए बाइडेन या ब्लिंकेन से प्रतिबंधों में छूट की मांग की है।

रविवार को विएना में अंतरराष्ट्रीय संगठनों में रूस के स्थायी प्रतिनिधि मिखाइल उलयानोव की तरफ से किए गए ट्वीट में बताया गया है कि उन्होंने यूरोपीय संघ के समन्वयक एनरिक मोरा से ईरानी परमाणु मुद्दे पर विएना में हुई बातचीत में मुलाकात की। उलयानोव ने बताया कि उन्होंने "कई सवाल उठाए हैं, जिनका पुख़्ता जवाब दिया जाना जरूरी है, तभी ईरान के साथ नागरिक परमाणु सहयोग निर्बाध ढंग से चल पाएगा।"

दो घंटे बाद उन्होंने फिर से ट्वीट करते हुए कहा, "विएना की बातचीत जारी है। आज मेरी ईरान में आर्थिक कूटनीति के लिए उप विदेश मंत्री मेहदी सफारी से मुलाकात हुई।

कुछ दूसरी रिपोर्टों में बताया गया है कि विएना में रूस ने नई मांग रख दी है कि ईरान के साथ उसके व्यापार, निवेश और सैन्य सहयोग पर अमेरिकी प्रतिबंधों का कोई असर नहीं होना चाहिए। रूस इस बारे में बाइडेन प्रशासन के उच्चतम स्तर से लिखित में गारंटी चाहता है। ऐसा समझ आता है कि रूस ने दो दिन पहले यह मांग रखी है। 

रविवार शाम को विदेश मंत्री सर्जी लावरोव ने इसकी पुष्टि भी की है। मॉस्को में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसके बारे में खुलासा करते हुए लावरोव ने बताया कि हाल में लगाए गए पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते रूस मॉस्को-तेहरान द्विपक्षीय संबंधों और ईरान के परमाणु समझौते के बारे में "बेहद साफ़ जवाब" चाहता है।

लावरोव के शब्दों में "हमें इस बात की गारंटी चाहिए कि यह प्रतिबंध, ईरानी परमाणु कार्यक्रम के लिए तैयार की गई समग्र योजना में उल्लेखित निवेश और व्यापार संबंधों को प्रभावित नहीं करेंगे। हमने अमेरिकी समकक्ष से कहा है कि हमें कम से कम गृह सचिव के स्तर से यह गारंटी दी जाए कि अमेरिका द्वारा जो प्रक्रिया चलाई जा रही है, उससे ईरान के साथ हमारे व्यापारिक, आर्थिक, निवेश, सैन्य और तकनीकी सहयोग के मुक़्त और पूर्ण अधिकारों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।"

इसके अलावा लावरोव ने खुलकर ईरान की मांगों का समर्थन करते हुए कहा कि तेहरान की मांगें बहुत हद तक सही हैं। क्या लावरोव ने तेहरान के साथ सलाह करने के बाद यह बात बोली, इसके बारे में हम नहीं जानते। 

यह घटनाएं तब हुई हैं, जब ईरान के साथ जेसीपीओए (ज्वाइंट कॉम्प्रीहेंसिव प्लान ऑफ़ एक्शन) को फिर से शुरू करने पर बातचीत का 8वां दौर चल रहा है, जबकि इस समझौते में अमेरिका की वापसी लगभग पूरी होने वाली है। बातचीत में अंतिम मसौदे के दस्तावेज़ पर बातचीत चल रही है। ईरान और आईएईए दोनों ने परमाणु कार्यक्रम से संबंधित सभी सवालों को जून के आखिर तक हल करने के लिए आगे के रास्ते पर भी रजामंदी बना ली है। इससे एक बड़ी बाधा पार हो गई है।

लावरोव ने शांति के साथ बताया कि रूस के नज़रिए से, रूस के ऊपर लगाए गए प्रतिबंध समस्या खड़ी कर रहे हैं। उन्होंने व्यंग्य करते हुए कहा, "यह सबकुछ ठीक रहता, लेकिन पश्चिमी की तरफ से प्रतिबंधों का जो भूस्खलन किया गया है, जो अब तक खत्म भी नहीं हुआ है, अब उन्हें समझने के लिए वकीलों को अतिरिक्त काम करने की जरूरत है।"

लावरोव ने आगे कहा, "हमें जवाब चाहिए, एक बेहद साफ़ जवाब, हमें गारंटी चाहिए कि यह अमेरिकी प्रतिबंध किसी भी तरीके से जेसीपीओए में उल्लेखित व्यापार-आर्थिक और निवेश संबंधों को प्रभावित नहीं करेंगे।

ईरान की तरफ से विदेश मंत्री हुसैन अमीर-अब्दुल्ला ने यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल से शनिवार को कहा, "जब पश्चिमी देश हमारी बची हुई अहम मांगे मान लेंगे, तो मैं विएना के लिए उड़ान भरने को तैयार हूं। हम तुरंत एक अच्छा समझौता करने के लिए तैयार हैं। ईरान की ज़्यादातर मांगों को मान लिया गया है।”

लेकिन आज की स्थिति में विएना में इस समझौते पर हस्ताक्षर करने में सबसे ज़्यादा झिझक जो बाइडेन को खुद को हो रही होगी। रूस-यूरोप के ऊर्जा संबंधों को खराब करने के बाद बाइडेन देख रहे हैं कि यूरोप में गैस की कीमतें आसमान छू रही हैं, जिसके समाधान के लिए अमेरिका के पास कोई हल नहीं है।

जर्मनी को रूस जिस कीमत पर गैस उपलब्ध करवा रहा था, उसकी तुलना में आज गैस की बाज़ार कीमत आठ गुनी हो चुकी है। (रूस ने गुरुवार को ऐलान करते हुए कहा है कि उसने यमल-यूरोप गैस पाइपलाइन को बंद कर दिया है, जिससे जर्मन बाज़ारों में गैस पहुंचती थी।)

कुलमिलाकर ऊर्जा बाज़ार में स्थित बहुत जटिल बनती जा रही है। क्योंकि जिन पश्चिमी कंपनियों ने रूस में निवेश किया था, उन्हें प्रतिबंधों के चलते अपना काम बंद करना पड़ा है। इसमें बीपी जैसे बड़े खिलाड़ी भी शामिल हैं, जिसकी रूस की बड़ी ईंधन कंपनी रोसनेफ्ट में 20 फ़ीसदी हिस्सेदारी है, जबकि शेल की साखालिन-दो एलएनजी संयंत्र में 27.5 फ़ीसदी हिस्सेदारी है। जबकि सालयम पेट्रोलियम डिवेल्पमेंट की एक्सॉनमोबिल (साखालिन-एक) में 50 फ़ीसदी हिस्सेदारी है। ऐसी कई कंपनिया हैं।

कंपनियों को इस अलगाव से कई अरब डॉलर का नुकसान होगा, लेकिन यहां रूस की बड़ी मात्रा में उत्पादन की क्षमता भी ख़तरे में आ जाएगी और उसे ओपेक समझौते के तहत की गई प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में मुश्किल होगी। पहले ही क्रूड तेल का वैश्विक बाज़ार बेहद कठिन स्थिति में चल रहा है जहां कच्चे क्रूड की कीमत गुरुवार सुबह 115 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई, ऐसे में रूस के खिलाफ़ लगाए गए प्रतिबंधों से पड़ने वाले बुरे असर को सहने की इसकी क्षमता बेहद कमज़ोर है। यह साफ़ है कि आगे भी कच्चे तेल की कीमतें बढ़ेंगी। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कच्चे तेल की कीमतें 125 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गईं, तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी की तरफ बढ़ने लगेगी। 

रूस ने अभी तक ऐसे कोई संकेत नहीं दिए हैं कि वो ऊर्जा निर्यात को रोकने के बारे में सोच रहा है, हालांकि इस संबंध में भाषणबाजी तेज होने लगी है। उप प्रधानमंत्री एंड्रयू बेलूसोव ने शुक्रवार को रूस को धोखा देने वाली पश्चिमी कंपनियों को चेतावनी देते हुए कहा कि रूस इन कंपनियों की सहायक कंपनियों को “जानबूझकर दिवालिया” होने वाली सूची में डालने पर विचार कर रहा है, जिसके लिए रूसी कानून में आपराधिक सजा का प्रबंध है।  

यूरोप में ऊंची कीमतों की समस्या को कम करने के लिए हाल में बाइडेन ने अपने घमंड को किनारे रखते हुए ईरान से सस्ता कच्चा तेल खरीदने के विकल्प का जिक्र किया था। पश्चिमी विशेषज्ञों का मानना है कि बाइडेन विएना में ईरान के प्रतिनिधियों को खुश करने के मूड में हैं। मतलब अमेरिका को विएना में ईरानी सहयोग और एक उम्दा फायदेमंद ऊर्जा समझौते की व्याकुलता से चाह है। इज़रायली विशेषज्ञों चिंता जताते हुए कह रहे हैं कि बाइडेन प्रशासन विएना समझौते पर हस्ताक्षर किए बिना ही ईरान के तेल निर्यात पर लगे प्रतिबंधों को खत्म या कमज़ोर करने का फ़ैसला ले सकता है।

इस व्याकुलता के पीछे की अहम वज़ह यह है कि हाल में बाइडेन प्रशासन अमेरिका में मोटर गाड़ियों के ईंधन की कीमत में हो रही वृद्धि से बहुत परेशान रहा है। लेकिन दूसरी तरफ, इस अहम मोड़ पर ईरान का किसी भी तरह का तुष्टिकरण कमज़ोरी की निशानी होगी, बाइडेन को इसके लिए अमेरिका में कड़ी आलोचना का शिकार भी होना पड़ सकता है। 

बल्कि लावरोव ने ब्लिंकेन से जब लिखित में गारंटी की मांग की, तो उन्होंने इन सारे आयामों पर सोचा होगा। ब्लिकेंन के उतावलेपन पर अब मॉस्को जवाब दे रहा है। निश्चित तौर पर यहां बाइडेन की छवि को बहुत नुकसान होगा। इससे ना केवल आगे के लिए एक नया रास्ता खुलेगा, बल्कि इससे अमेरिका द्वारा डॉलर का शस्त्रीकृत किए गए डॉलर का माखौल उड़ेगा।

यूरोपीय लोग भी सोच रहे होंगे कि चल क्या रहा है। उन्होने बाइडेन की मांग पर, रूस की तरह ही अपने हितों का त्याग किया है। आखिरकार नॉर्ड-2 स्ट्रीम का काम ठप पड़ा है। 

यह बेहद जटिल स्थिति बनने वाली है। जेसीपीओए समझौते को होने के लिए रूस की हरी झंडी जरूरी है, क्योंकि ईरान के लिए बनाए गए संयुक्त आयोग में इस बात का प्रबंध था। इसके अलावा ईरान भी किसी भी तरह के समझौते पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से अनुमति की उम्मीग रखेगा, जहां रूस एक स्थायी सदस्य है। 

दूसरी तरफ अगर विएना में बातचीत लंबी होती है, तो ईरान द्वारा अपनी परमाणु गतिविधियों को तेजी से जारी रखा जाएगा और जल्द ही एक ऐसे बिंदु पर पहुंचने की संभावना होगी, जहां से वापसी मुश्किल होगी। अगले कुछ हफ़्तों में बाइडेन प्रशासन के लिए बहुत समस्या खड़ी होने वाली है, जब परमाणु अस्त्र से सुसज्जित ईरान की तस्वीर पश्चिमी एशिया और यूरोप को डराएगी। 

अब निश्चित तौर पर अमेरिकी प्रतिबंधों के प्रतिक्रियावादी परिणाम आने लगे हैं। यह तो बस शुरुआत है। विश्वास मानिए कि रूस अब टकराव को बढ़ाता ही जाएगा। रूस के पास अमेरिका के साथ सहयोग करने की अबसे कोई वज़ह नहीं बची है। (1 मार्च, 2022 को लिखा मेरा ब्लॉग पढ़ें)।

लेकिन अगर रूस-अमेरिका के संबंधों का इतिहास देखें, तो लगता है कि बाइडेन पीछे के दरवाजे से मॉस्को के साथ कोई समझौता कर सकते हैं।

असल में रविवार शाम को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक सवाल पर रूस के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव द्वारा दिए गए जवाब पर भी ध्यान देना जरूरी है। जब उनके यूक्रेन में हालिया घटनाक्रमों और प्रतिबंधों के दबाव की पृष्ठभूमि में रूस-अमेरिका के मौजूदा संबंधों पर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हमने अमेरिका के साथ बातचीत के कुछ माध्यम बरकरार रखे हैं। हालांकि उन्होंने इसकी व्याख्या नहीं की।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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