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सीबीआई कोर्ट: कुछ लोगों ने चयनित तथ्यों के साथ घोटाला का निर्माण किया, जुर्म के कोई सबूत नहीं

अगर सीबीआई कोर्ट के निर्णय पर विश्वास किया जाए तो राजा संचार तथा आईटी मिनिस्टर के रुप में नासमझ थे या सोए हुए थे।
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जी मामले के सीबीआई जज ओपी सैनी द्वारा किया गया निर्णय अनोखी व्याख्या पेश करता है। ख़जाने के नुकसान का कोई प्रमाण नहीं हैइस मामले में हंगामा केवल "मीडियाके कारण था;और यहां तक कि अगर दूरसंचार विभाग के ग़लत फैसले भी थेतो दूरसंचार मंत्री ए राजा पर आरोप नहीं लगाना था। वह एक नासमझ व्यक्ति थें जिन्हें दूरसंचार विभाग के अधिकारियों ने गुमराह किया थाजो सभी निर्णयों के लिए जिम्मेदार थें। निर्णय के कुछ कथन, " इस प्रकारकुछ लोगों ने कुछ चुनिंदा तथ्यों को व्यवस्थित कर घोटाले को अंजाम दिया और खगोल स्तरीय मान्यताओं से परे चीजों की अतिश्योक्ति कर घोटाले का निर्माण किया।क्या इन लोगों ने कैगसर्वोच्च न्यायलयको शामिल कियाउक्त निर्णय की मदद के बिना एक सवाल जिसे हम विचार करने के लिए छोड़ते हैं।

जैसा कि हम जी मामले को जानते हैं। सीबीआई न्यायालय के फैसले से इतर इस पर एक नज़र डालें।

सबसे पहले जी घोटाले का बुनियादी तत्व जिसे हम सैनी के जी के फैसले के बावजूद एक घोटाला कहने जा रहे हैं। प्रश्न यह है कि हम स्पेक्ट्रम की कीमत कैसे लगाते हैं क्योंकि स्पेक्ट्रम एक दुर्लभ वस्तु है। भारत मेंस्पेक्ट्रम सेल्यूलर ऑपरेटरों के लाइसेंस का एक हिस्सा बन गयाक्योंकि स्पेक्ट्रम की कुछ निश्चित राशि को लाइसेंस के साथ जोड़ा गया था। स्पेक्ट्रम के बिना लाइसेंस का कोई मूल्य नहीं हैक्योंकि कोई भी सेल्यूलर ऑपरेटर सेवाएं प्रदान नहीं कर सकता है।

यह स्पष्ट है कि वर्ष 2001 में स्पेक्ट्रम की कीमत जब चौथे ऑपरेटर का लाइसेंस नीलाम किया गया था तब वह 2008 में बाजार मूल्य से बिल्कुल अलग था। उस वक्त राजा लाइसेंस जारी कर रहे थें। वर्ष 2001 में केवल मिलियन सेल्यूलर ग्राहक थेंवर्ष 2008 में यह क़रीब 350 मिलियन थे। राजा ने स्पेक्ट्रम/लाइसेंस की नीलामी के ख़िलाफ़ तर्क दिया और वर्ष 2001 की कीमतों पर अड़े रहे। उनके विचार में यदि स्पेक्ट्रम/लाइसेंस की कीमत कम रहती है तो सेवा की लागत भी कम होगी और इसलिए उपभोक्ताओं के लिए और अधिक किफ़ायती होगा। यदि यह वास्तव में लाइसेंस की नीलामी नहीं करने का तर्क था तो यह तार्किक कदम तब होता जब नए लाइसेंसधारियों के लिए कम से कम वर्षों की अवधि के लिए लॉक-इन प्रदान किए जाता। इसके बजाए राजा के अधीन दूरसंचार विभाग ने स्पष्ट रूप से ऐसे लॉक-इन की आवश्यकता को आसान कर दिया और विलय की अनुमति दे दी। इससे भी बदतर यह कि इसने उन कंपनियों को जिसके पास लाइसेंस था इन कंपनियों के शेयरों की विशिष्ट मात्र बेचने को संभव बना दिया। इन कंपनियों के पास केवल एकमात्र संपत्ति थी जो स्पेक्ट्रम/लाइसेंस थी। वास्तव मेंलाइसेंस देने की यह पद्धति उन लोगों को अनुमति देने के समान थीजिन्होंने 2001 की कीमतों पर सस्ते लाइसेंस हासिल किए थे। ये प्रक्रिया निजी नीलामी करने और अप्रत्याशित लाभ पाने की अनुमति देने के समान थी।

यूनिटेक ने अपने शेयरों को टेलीनॉर को बेचा: 67.25% शेयर टेलीनॉर एशिया को 6,120 करोड़ रुपए की कीमत में स्थानांतरित कर दिया गया था। इसी तरहस्वान टेलीकॉम ने अपने शेयर का45% हिस्सा वर्ष 2008 की क़ीमत पर 900 मिलियन डॉलर (या 4,113 करोड़ रुपएमें बेच दिया। फिरइसने कुछ महीनों में ही जो कुछ निवेश किया थाउसका ढ़ाई गुना प्राप्त कियाजबकि अपने शेयरों का 50% से अधिक हिस्सा बनाए रखा।

दूसरा स्पष्ट मुद्दा लाइसेंस जारी करने की शैली का था। और स पर राजा के एक से अधिक "एकपक्षीयनिर्णय थे। उन्होंने घोषणा की कि आवेदनों के लिए कट-ऑफ तारीख़ अक्टूबर, 2007 के अनुसार पहल आओ पहले पाओ के आधार पर लाइसेंस जारी किए जाएंगे। 10 जनवरी 2008 को डीओटी ने एक नया प्रेस विज्ञप्ति जारी किया जिसमें कहा गया कि आवेदन के लिए कटऑफ तिथि 25 सितंबर, 2007 के अनुसार ली जाएगी। इस प्रेस विज्ञप्ति में कंपनियों से अपने डिमांड ड्राफ्ट - 1,658 करोड़ रूपए तक उसी दिन 3.30 बजे से 4.30 बजे के बीच जमा करने को कहा गया। सीबीआई जज यह नहीं मानते हैं कि ये कंपनियां 45 मिनट के भीतर इन मांगों को इतनी बड़ी राशि का डिमांड ड्राफ्ट जमा कर सकती हैंऐसा केवल तभी हो सकता था जब उनके पास पहले से सूचना थी। अंत में इस प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक़वे जो "पहले आओ पहले पाओके आधार पर लाइसेंस प्राप्त करेंगे उन्हें निश्चित किया जाएगाआवेदन की तारीख़ के अनुसार नहीं बल्कि डिमांड ड्राफ्ट पहले जमा करने वालों को दिया जाएगा। कोर्ट क यह स्पष्ट करने में हैरानी नहीं हुई कि प्रेस विज्ञप्ति जारी करने से पहले ही बैंक गारंटी या डिमांड ड्राफ्ट किस तरह तैयार कि जा सकत थजैसा कि बैंक गारंटी/डिमांड ड्राफ्ट पर तारीख़़ों को देखा जा सकता है। इन सबके बादकोर्ट ने फैसला किया कि उक्त कंपनियों और आरोपीए राजा के बीच साज़िश या मिलीभगत के कोई सबूत नहीं था।

एक अन्य मुद्दा जो लगता है कि फिर कोर्ट ने नजरअंदाज किया वह ये कि स्वान टेलीकॉम और लूप टेलिकम्युनिकेशन्स जैसी कंपनियों ने अनिल अंबानी रिलायंस और एस्सार (रुइयासे भारी मात्रा में राशि लेकर पूंजी की जरूरतों को पूरा कियाजो कि ये अनिल अंबानी और रुईया की बेनामी कंपनियां थ। जाहिर तौर परसहस्राब्दी के भ्रष्टाचार का सबसे महत्वपूर्ण मामला एक प्रकार से अब समाप्त हो गया है। जज ने षड्यंत्र के किसी भी सबूत को स्वीकार करने से इनकार कर दियाजिसे कैग और सुप्रीम कोर्ट ने पाया था और जिस वजह से खजाने का भारी नुकसान हुआ। यदि निर्णय को स्वीकार कर लिया जाए तो क्या संपूर्ण मंत्री वर्ग तत्कालीन संचार तथा आईटी मिनिस्टर ए राजा से लेकर तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदंबरम और प्रधानमंत्री को संचार विभाग के कुछ निम्न श्रेणी के अधिकारियों द्वारा गुमराह किया गया। और ज़ाहिर तौर परभले ही उन्होंने ऐसा किया होयह संबंधित कंपनियों से लाभ और खजाने को लूटने की किसी भी साज़िश के कारण नहींबल्कि वे पूरी तरह अयोग्य थे

भ्रष्टाचार के सभी मामलों में हमें देखना चाहिए कि किसे लाभ हुआ। हांराजा और डीएमके लाभार्थियों का हिस्सा थेजैसा कि हम से देख सकते हैं 200 करोड़ रूपए जो शाहिद बलवा के स्वान टेलीकॉम से करुनानिधि परिवार के कलैगनर टीवी को मिला। लेकिन बड़े लाभार्थी बड़े कॉर्पोरेट घराने थे जैसे अंबानीरूइयाचंद्र(यूनिटेक)। टाटा जैसे और फिर अंबानीजो फिर से 2001 की कीमतों पर क्रॉस-ओवर लाइसेंस से लाभान्वित हुए सीडीएमए लाइसेंस रखने वाली कंपनियों को जीएसएम लाइसेंस खरीदने के लिए अनुमति दी गई। और आख़िर में एयरटेल तथा वोडाफोनजिन्होंने राजा और दूरसंचार विभाग से फिर सस्ता स्पेक्ट्रम प्राप्त किया था। ये भी वर्तमान शासन के लाभार्थी हैं।

अगर हम सोचते हैं कि अदालत हमें मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था के लूट से रक्षा करेगीतो जी निर्णय एक बड़े झटके के रूप में सामने आया है।

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