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सीएए-एनआरसी : गया का शांति बाग़ बना 'मिनी शाहीन बाग़'

जनवरी की कपकपाती सर्दी में सभी समुदायों के हज़ारों लोग जिनमें ख़ासकर महिलाएं शामिल हैं वे शांति बाग़ में सीएए-एनआरसी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रही हैं। इस दौरान वे राष्ट्रीय गान और कविताएं गा रहे हैं।
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शांति बाग़ (गया/ बिहार): जनवरी की सर्दी में दोपहर के वक़्त दुलारी देवी और शाज़िया परवीन खुले आसमान के नीचे बैठकर राष्ट्रीय गीत गा रही हैं और साथ ही फ़ैज़ अहमद फ़़ैज़़ की कविताएं गा रही हैं। बीच-बीच में वे सीएए-एनआरसी के विरोध में दूसरे लोगों द्वारा लगाए जा रहे नारों में शामिल हो जाती हैं। गया का ये प्रदर्शन स्थल छोटा शाहीन बाग़ में बदल गया है। बता दें कि दिल्ली स्थित शाहीन बाग़ में सीएए-एनआरसी के ख़िलाफ़ पिछले क़रीब 25 दिनों से विरोध प्रदर्शन चल रहा है। इसमें महिलाएं बड़ी संख्या में शामिल हो रही हैं।

गया के शांति बाग़ में 29 दिसंबर से विरोध प्रदर्शन चल रहा है जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हो रहे हैं जिनमें ज़्यादातर महिलाएं और छात्र हैं। लेकिन अब तक शायद ही किसी मीडिया का ध्यान इधर गया है। लेकिन निर्विवाद रूप से गया शहर में आम लोगों के समर्थन से भारी विरोध जारी है। गया को पवित्र स्थल के रुप में जाना जाता है क्योंकि यहां महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था।

शांति बाग़ में नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीजन (एनआरसी) का विरोध बिहार में अपनी तरह का अकेला है और शनिवार को ये 14वें दिन में प्रवेश कर गया है।

जैसा कि शांति बाग़ के नाम से पता चलता है कि प्रदर्शनकारी शांति से अपनी बात रख रहे हैं। विरोध के शांतिपूर्ण मार्ग को अपनाते हुए और महात्मा गांधी के भारत के विचार को मज़बूत करने के लिए सामाजिक सद्भाव के संदेश भेज रहे हैं जो समावेशी है।

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शांति बाग़ से कुछ दूरी पर रहने वाली दुलारी देवी कहती हैं, “मैं सीएए-एनआरसी के ख़िलाफ़ जारी धरने में शामिल होने के लिए पिछले 10 दिनों से रोज़ाना मैं यहां आ रही हूं। सीएए-एनआरसी न केवल असंवैधानिक है बल्कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों के भी ख़िलाफ़ है। मैं तब तक पीछे नहीं हटूंगी जब तक कि केंद्र सरकार द्वारा सीएए को वापस नहीं लिया जाता।”

दुलारी उन सैकड़ों महिलाओं में से एक है जो विरोध के इस धरने में लगातार शामिल हो रही हैं। नुसरत हसन, ममता देवी, नग़मा परवीन, फ़ातिमा ख़ान, करुणा कुमारी, मरियम फ़रहाद, सुमन सौरिया, रोज़ी ख़ातून जैसी अन्य महिलाएं भी हैं जो सीएए-एनआरसी के ख़िलाफ़ अपना विरोध दर्ज करने के लिए घंटों बैठकर विरोध प्रदर्शन कर रही हैं।

इंक़लाब जिंदाबाद, लड़ेंगे जीतेंगे, हिंदुस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगातार लगाए जाते हैं जबकि शांति बाग़ मैदान में स्थापित एक छोटे से मंच पर कुछ युवा नारे लगाते रहते हैं और वक्ता अपने विचार व्यक्त करते हैं। रंगीन तख्तियाँ, पोस्टर और बैनर विरोध स्थल पर फैले हुए हैं।

विरोध प्रदर्शन में शामिल शाज़िया कहती हैं, "राष्ट्रीय गान गाना और फ़ैज़ की कविता और अन्य कविताओं को पढ़ना हमें आत्मविश्वास देता है और हम सभी को खुले आसमान के नीचे इस ठंडे मौसम में गर्म रखता है।"

ठंडी हवाओं से ख़ुद को बचाने के लिए नग़मा ने अपने सिर को ढंकते हुए कहा कि शांति बाग़ का विरोध प्रदर्शन सीएए-एनआरसी के ख़िलाफ़ शांति से लड़ने के लिए हिंदू-मुस्लिम एकता का उदाहरण है।

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वे आगे कहती हैं, "कोई भी आ सकता है कि अगर नाग़मा, फ़रज़ाना परवीन, कहकशां और वसीम नैय्यर अंसारी यहां हैं तो ममता देवी, सुमन सौर्या, मुकेश कुमार, मुन्नी देवी, राजेंद्र यादव और मुकेश चौधरी भी हैं।"

करुणा कुमारी कहती हैं, “हम पिछले दिसंबर से हड्डियों में सुराख कर देने वाली ठंड के बावजूद यहां बैठकर विरोध प्रदर्शन में भाग ले रहे हैं और यह अंत तक जारी रहेगा। यह कहना ग़लत है कि केवल मुसलमान ही सीएए-एनआरसी के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। सैकड़ों ग़ैर-मुस्लिम विशेष रूप से हिंदू, ईसाई और सिख भी भाग ले रहे हैं और मैं उनमें से एक हूं।”

संविधान बचाओ मोर्चा के बैनर तले होने वाले धरने के पीछे एक सक्रिय चेहरा सतीश कुमार दास ने कहा कि सभी क्षेत्रों के लोग और समुदाय इसे एक अलग तरह का विरोध बना रहे हैं जो दशकों में गया में कभी नहीं देखा गया। वे आगे कहते हैं, "बड़ी संख्या में लोग संविधान को इस बड़े हमले से बचाने के लिए हर दिन यहां इकट्ठा होते हैं।"

दास ने कहा कि प्रदर्शन में महिलाओं की भागीदारी उम्मीद से ज़्यादा है क्योंकि 1,000 से अधिक महिलाएं औसतन रोज़ाना आ रही हैं।

वे आगे कहते हैं, "एक छोटे शहर के लिए यह एक बड़ी संख्या है।"

अंबेडकर संघर्ष मोर्चा चलाने वाले दास न्यूज़क्लिक से कहते हैं, "शांति बाग़ का विरोध प्रदर्शन दिल्ली के शाहीन बाग़ की तरह हो गया है। इसे अब छोटा शाहीन बाग़ कहा जाने लगा है। दिल्ली स्थित शाहीन बाग़ में होने वाले विरोध प्रदर्शन में ज़्यादातर महिलाएं शामिल हो रही हैं जो दिसंबर महीने से चल रहा है। इन दोनों प्रदर्शन में अंतर बस इतना है कि शाहीन बाग़ का विरोध प्रदर्शन राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय सुर्खी बन गई है जबकि शांति बाग़ का विरोध प्रदर्शन बहुत मुश्किल से समाचार बना है। इसे केवल एक स्थानीय दैनिक हिंदी ने अपने अख़बार में जगह दिया है।"

दास सही कह रहे हैं क्योंकि गया के बाहर बहुत कम लोग शांति बाग के विरोध के बारे में जानते हैं, बावजूद इसके कि यह भारी भीड़ आ रही है और ग़ुस्से, नाख़ुशी और शांतिपूर्ण प्रतिरोध को व्यक्त करने का एक मंच बन गया है।

 

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संविधान बचाओ मोर्चा के संयोजक उमैर ख़ान उर्फ़ टिक्का ख़ान ने कहा कि ये विरोध प्रदर्शन चौबीस घंटे चल रहा था। उन्होंने कहा, “यहां रोज़ाना 4,000-5,000 से कम लोग नहीं होते हैं। शनिवार और रविवार को ये संख्या बढ़ जाती है। 200 से अधिक प्रदर्शनकारी मुख्य रूप से युवा विभिन्न कार्यक्रमों के समाप्त होने के बाद रात में यहां रहते हैं। हम राष्ट्रीय गान गाते हैं, कविताएं सुनाते हैं और बातचीत करते हैं। गया के लिए यह कुछ नया है। लोग संविधान को बचाने के लिए खुद ही जुड़ रहे हैं।"

लेकिन दिल्ली में शाहीन बाग़ के विपरीत यहां कई विपक्षी पार्टी के नेताओं ने यहां प्रदर्शनकारियों को संबोधित किया है जिनमें केरल के पूर्व राज्यपाल और वरिष्ठ कांग्रेस नेता निखिल कुमार, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी, पूर्व मंत्री और कांग्रेस विधायक अवधेश सिंह, राजद विधायक सुरेंद्र यादव और समता देवी, जेएनयूएसयू के पूर्व अध्यक्ष शकील अहमद खान जो कि कांग्रेस के विधायक हैं और पूर्व सांसद पप्पू यादव शामिल हैं। लेफ़्ट पार्टी के नेता और सदस्य भी धरने में शामिल हुए हैं।

कार्यकर्ता और इसके समन्वयक शमशीर खान ने कहा कि उन्होंने जेएनयूएसयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार और पूर्व आईएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन से अनुरोध किया था कि वे आने वाले दिनों में प्रदर्शनकारियों में शामिल हों और उन्हें संबोधित करें।

गया स्थित मिर्ज़ा ग़ालिब कॉलेज में भौतिकी पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर मशरूर अहमद ने कहा कि शांति बाग़ का विरोध प्रदर्शन हिंदू-मुस्लिम का एक संयुक्त प्रयास था जो एक बड़े राष्ट्रीय मामलों के लिए लड़ने के लिए एक साथ आए हैं। उन्होंने कहा, "यहां से संदेश स्पष्ट है कि सभी समुदायों के युवाओं, छात्रों, महिलाओं और बुजुर्ग संविधान को बचाने के लिए एक साथ आए हैं।"

दानिश अहमद ख़ान और शोएब अख़्तर जो नियमित रूप से इस विरोध स्थल पर आते रहे हैं उन्होंने कहा कि वे सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ खड़े लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए राष्ट्रीय और क्रांतिकारी गीत और कविताएं गाने वाले लोगों के साथ शामिल होते हैं।

दास ने कहा कि जब तक केंद्र सरकार सीएए-एनआरसी को वापस नहीं लेती है तब तक धरना यहां जारी रहेगा। "हम जानते हैं कि ज़िला प्रशासन ने हमें शांति बाग़ में धरने पर बैठने की अनुमति नहीं दी है लेकिन हम प्रदर्शन कररहे हैं और लोगों के समर्थन के लिए धन्यवाद दे रहे हैं।"

गया में पुलिस ने 67 लोगों के ख़िलाफ़ मामले दर्ज किए हैं और 16 दिसंबर को सीएए के विरोध के दौरान हुए हिंसा के आरोप में चार लोगों को गिरफ़्तार किया है।

दास ने कहा, "एफ़आईआर में निर्दोष लोगों को नामज़द किया गया था और गिरफ़्तार किए गए लोग ग़रीब थे। वे सब्ज़ी बेचकर अपनी आजीविका चला रहे थे।"

इस बीच पटना विश्वविद्यालय में छात्रों सहित सीएए-एनआरसी के ख़िलाफ़ शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन बिहार भर में जारी है।

इसको लेकर राज्य में अब तक दो बार बंद हुए हैं। पहली बार वामपंथी दलों द्वारा दूसरे विपक्षी दलों के समर्थन के बाद 19 दिसंबर को और दूसरी बार 21 दिसंबर को राष्ट्रीय जनता दल द्वारा जिसका सभी विपक्षी दलों और वाम दलों ने समर्थन किया था।

 

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