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समावेशी राष्ट्रीयता के पक्षधर थे गांधी

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती वर्ष के प्रसंग में भोपाल के बुद्धिजीवियों के समूह ‘‘हम सब’’ की ओर से गांधी विमर्श श्रृंखला के तहत सीपीएम के पूर्व राज्य सचिव बादल सरोज ने ‘हिंसक समय में गांधी’ विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि हिंसक समय में गांधी बहुत ही ज्यादा प्रासंगिक हैं।
Gandhi's ideology

ऐसे समय में जब हर तरफ हिंसा की बात हो रही हो, तब यह जरूरी है कि हम न केवल गांधी को याद करें, बल्कि उनके विचारों को व्यापक जन मानस तक ले जाने का काम भी करें, ताकि आम लोग भी जान सके कि गांधी जी ने किस तरह के भारत की कल्पना की थी? आज एक ओर देश उनकी 150वीं जयंती मनाने की तैयारी कर रहा है, तो दूसरी ओर उनके हत्यारे को महिमामंडित करने वाले लोग भी सक्रिय हैं। दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़े ऐसे लोग देश और समाज को विघटन की ओर ले जा रहे हैं। गांधी जी ने हमेशा तर्क और सत्य को बढ़ावा दिया, लेकिन आज तर्क का गला घोंटा जा रहा है। गांधी जी ने दुनिया को दिखाया कि अहिंसक तरीके से भी साम्राज्यवाद को हराया जा सकता है। आज गांधी के देश में नफरत और हिंसा बढ़ रही है, ऐसे समय में गांधी बहुत ही ज्यादा प्रासंगिक हैं।

उक्त बातें मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के वरिष्ठ नेता बादल सरोज ने ‘हिंसक समय में गांधी’ विषय पर व्याख्यान देते हुए कहीं। व्याख्यान का आयोजन भोपाल के बुद्धिजीवियों के समूह ‘‘हम सब’’ की ओर से गांधी विमर्श श्रृंखला के तहत किया गया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राकेश दीवान ने बताया कि इसके पहले इस श्रृंखला के तहत वरिष्ठ गांधीवादी राजगोपाल पी.व्ही. एवं अजित झा के व्याख्यान कराए गए थे। गांधी जी को मार्क्सवादी नजरिए से समझने के लिए तीसरी कड़ी में बादल सरोज का व्याख्यान आयोजित किया गया।

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इस अवसर पर वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता रघुराज सिंह ने कहा कि आज देश में चारों ओर हिंसा की नर्सरी दिख रही है। जम्मू-कश्मीर, उत्तर-पूर्व के साथ-साथ देश के अन्य राज्यों में भी हिंसा है। नक्सलवाद, उग्रवाद, आतंकवाद के साथ-साथ राज्य द्वारा की जा रही हिंसा को भी इस श्रेणी में रखा जा सकता है। सवाल करने वाले लोगों को अब अर्बन नक्सल कहा जा रहा है। ऐसे समय में गांधी जी के विचारों को अहिंसा के नजरिए से समझना बहुत जरूरी है। सत्तारूढ़ दल गांधीवादी नजरिए से हिंसा रोकने की बात नहीं करती, बल्कि उन्हें सिर्फ स्वच्छता के प्रतीक बना कर छोड़ दिया है। 

इस मौके पर बादल सरोज ने कहा कि किसी भी व्यक्ति का मूल्यांकन उसको उसकी परिस्थितियों और देशकाल से काट कर नही किया जा सकता। गांधी जी पर बात करते समय उन पर ध्यान देना होगा। बुद्ध ने एक ब्रह्मवाक्य दिया था कि सवाल उठाओ, आंख मूंद कर यकीन न करो। इसे दुनिया के दर्शन में बड़ा योगदान दिया था। लेकिन आज सवाल करने वालों के खिलाफ की विचारधारा हावी है। गांधी जी ने भी तर्क एवं सवाल को स्वीकार किया था।

अंग्रेजों के आने से पहले भारत का जीडीपी 30 प्रतिशत था जिसको अंग्रेजों ने ध्वस्त किया। उन्होंने पूरी की पूरी उत्पादन शक्ति और खेती को बर्बाद किया। उन्होंने तार्किक पूंजीवाद को भारत में नहीं आने दिया। ऐसे समय में जब अंग्रेज भारत को सामाजिक एवं आर्थिक रूप से तोड़ रहे थे, तब गांधी जी ने देश को एक करने का काम किया। वे अपने समय को अच्छी तरह से समझ रहे थे। जब पूरा देश अलग-अलग रजवाड़ों में बंटा था, तब उन सारे रजवाड़ों की जनता के बीच समन्वय करते हुए राष्ट्रवादी चेतना लाने का काम गांधी जी ने किया।

गांधी जी के राष्ट्रवाद में विविधता की जगह है। वे कहते थे कि हमें अलग-अलग वर्गों में बंटा समाज  नहीं चाहिए। उन्होंने अपने समय की जाति एवं सांप्रदायिकता की पीड़ा को संवेदना के साथ देखा था, इसलिए उनके सामने यह चुनौती थी कि एक ओर देश को अंग्रेजों से मुक्त कराया जाए, तो दूसरी ओर समावेशी राष्ट्रीयता को विकसित किया जाए। इस राष्ट्रीय उभार को वे अहिंसक आंदोलन तक सीमित रखने के लिए प्रयास करते रहे। अहिंसक तरीकों को ईजाद कर उन्होंने दुनिया को बताया कि सामाजिक एवं राजनीतिक परिवर्तन इस तरह से भी किया जा सकता है।

महात्मा गांधी ने महिलाओं और दलितों के अधिकारों के लिए भी काम किया। महिलाओं एवं दलितों के अधिकार को उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के साथ जोड़ दिया था। उन्होंने अपने विचारों में भी लगातार संशोधन किया, क्योंकि वे देश-दुनिया की घटनाओं को लगातार देखते रहते थे और उनसे सीखते भी थे। गांधी जी बहुत ही लोकतांत्रिक थे और नागरिक अधिकारों के संरक्षण पर बहुत दृढ़ विश्वास रखते थे। वे एक बहुत बड़े रणनीतिकार थे। खांटी धार्मिक हिंदू होने के बावजूद पक्के धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति थे। उन्होंने कहा राज्य का कोई धर्म नहीं होना चाहिए क्योंकि धर्म व्यक्ति का निजी मामला है। उनकी स्पष्ट सोच थी कि धर्म एवं सांप्रदायिकता एक नहीं है और सांप्रदायिकता देश के लिए जहर है। उनकी कमी यह रही कि वे देश में सांप्रदायिकता की सोच को बढ़ने से न रोक सके। आजाद देश की तत्कालीन नेहरु सरकार उनकी शहादत को आगे रखते हुए हम सांप्रदायिक कीटाणुओं का खात्मा कर सकती थी, जो नहीं हो पाया।

गांधी जी भारतीय संस्कृति को बहुत ही व्यापक नजरिए से देखते थे। उन्होंने कहा था कि भारतीय संस्कृति विविधता की संस्कृति है। हमारी संस्कृति दरवाजे बंद नहीं करती और न ही दीवार खड़ी करती है। इसमें दुनिया की सुगंधी आनी चाहिए। भारत दुनिया के धर्मों एवं संस्कृति की बगिया है। 

बादल सरोज ने कहा कि गांधी जी अपने आप को समाजवादी भी कहते थे। 1925 में यंग इंडिया में लिखे संपादकीय में उन्होंने एम.एन. राय की तारीफ की थी। आज देश में गांधीवादी विचारक हैं, लेकिन गांधीवादी नहीं हैं। गांधी जी अपने विचारों को दूसरे पर थोपते नहीं थे, बल्कि उसे स्वयं के आचरण में उतारते थे। आज अगर देश में कोई गांधी के सबसे नजदीक है, तो वे कम्युनिस्ट हैं। यह धारणा है कि मार्क्सवाद में हिंसक साधनों को महत्व दिया गया है, लेकिन यह धारणा गलत है। गांधीवाद से मार्क्सवाद में सिर्फ इतनी भिन्नता है कि मार्क्सवाद में हिंसक दमन के खिलाफ जनता की एकता से प्रतिवाद को महत्व दिया गया है। शायद आज गांधी जी होते, तो वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए वे भी कहते कि किसी को थप्पड़ मत मारो, अहिंसक तरीके से विरोध करो, लेकिन यदि कोई थप्पड़ मारे, तो तुम भी उसे थप्पड़ मारो।

वर्तमान समय में यह जरूरी है कि फासीवादी ताकतों के विरोध के लिए और बहुलतावादी संस्कृति की रक्षा के लिए गांधी, अंबेडकर, फूले और मार्क्स के विचारों को जोड़कर मोर्चा बनाया जाए। संवैधानिक एवं लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए देश में चल रहे हर छोटे-बड़े आंदोलन को एक साथ लाया जाए।

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