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स्मृति शेष : इतना आसां नहीं कर्नाड होना...

गिरीश कर्नाड के रूप में सिर्फ़ एक रंगमंच का कलाकार, या फ़िल्म कलाकार, या लेखक ही हमने नहीं खोया है, बल्कि समाज के भेदभाव, लगातार हो रही हिंसा के ख़िलाफ़ बोलने वाले एक मुकम्मल इंसान को भी खोया है।
Girish

जब से दुनिया में विभिन्न सभ्यताओं की शुरुआत हुई हैसमाज बना हैबढ़ा हैतब से ही कई तरह के भेदभाव और कुरीतियाँसमय समय पर समाज में बढ़ती ही रही हैं। ऐसे समय में जब  एक वर्ग शोषक हो जाता हैऔर एक वर्ग शोषित और समाज उन सब चीज़ों के इर्द-गिर्द काम करना शुरू कर देता हैजो सिर्फ़ निजी हित के लिए हैंतब हमारे पास कला एक सहारा बन कर आती है। कविताकहानीरंगमंचसंगीतये सब चीज़ें हमें ज़िंदा रखती हैंहमें बेहतर बनाती हैं। इन चीज़ों के साथ हम एक इंसान बने रह सकते हैं। यही वो चीज़ें भी हैंजिनसे हम समाज में होते आ रहे भेदभाव,शोषण पर सवाल उठा सकते हैंउनके ख़िलाफ़ बोल सकते हैं। 

वे कलाकारजो अपने काम को पूरी तरह से अपने क्षेत्र, अपनी कला और अपनी जनता के नाम समर्पित कर देते हैंऐसे कलाकारों की समाज को ज़रूरत होती है। समाज को ज़रूरत होती है उन कलाकारों कीजो अपने काम के साथ-साथ असली ज़िंदगी में भी समाज में हो रहे भेदभावहोती आ रही हिंसा को ले कर मुखर तौर पर बात कर सकें। और साथ ही अपने नाटकोंअपनी कविताकहानियों के ज़रिये इन्सानों की उस नस्ल की बात कर सकें जिनका शोषण होना इस समाज का एक नियम बन चुका है। दुनिया भर की सभी सभ्यताओं को देखेंतो हमें ऐसे कई कलाकार मिल सकते हैं। इसका अगला पहलू ये हैकि जब ये कलाकार इस दुनिया से चले जाते हैंतो हमें एक लंबे समय तक की ख़ामोशी का एहसास होता है। एक ख़ालीपन महसूस होता हैजिसे भरना बहुत मुश्किल होता है। ऐसे कलाकार और ऐसे इंसानजो समाज का एक अहम हिस्सा रहे हैंउनकी मौत इस समाज के सामने एक बड़ा सा खुला आसमान छोड़ जाती हैजिस आसमान का इस्तेमाल करने की ज़िम्मेदारी इस समाज की होती है। ये वो कलाकार होते हैं,जिनके जाने के बादउनके क्षेत्र में एक चुप्पी छा जाती है। रंगमंचसिनेमालेखन की दुनिया आज ऐसी ही चुप्पी छाई है। जिसकी वजह है गिरीश कर्नाड का जाना। गिरीश कर्नाडजो कि एक मशहूर रंगमंच कलाकारनाटककारफ़िल्म अभिनेता और निर्देशक थेउनका सोमवार की सुबह बंगलुरु में निधन हो गया। 

आज़ादी के फ़ौरन बाद भारत में रंगमंच को स्थापित करने में जो शुरुआती नाटककार शामिल थेउनमें मोहन राकेशविजय तेंदुलकरबादल सरकार,हबीब तनवीर के साथ गिरीश कर्नाड उनमें सबसे युवा और एक अहम नाम थे। गिरीश कर्नाड ने अपना पहला नाटक ययाति 1961 में लिखा था। गिरीश भारत के आधुनिक रंगमंच के पुरोधा के तौर पर याद किए जाएंगे।  गिरीश कर्नाड की कलात्मक ज़िंदगी विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी थी। नाटक लिखने के अलावानाटक बनानेफ़िल्मों में काम करनेफ़िल्में बनानेहर क्षेत्र में उन्हें ख्याति प्राप्त हैऔर समय समय पर कई पुरस्कार भी मिले हैं। अपने नाटकों के माध्यम से जिन कुरीतियोंजिस भेदभाव को गिरीश ने उजागर किया थाऔर क्यों उनके नाटक आज भी दिल्ली के साथ-साथ कई हिस्सों में खेले जाते हैंइस पर बात करना ज़रूरी है। 

गिरीश कर्नाड की बात करें तो हमें ययाति याद आता हैजिसमें महाभारत को एक अलग नज़र से देखा गया है।  गिरीश कर्नाड की ये आदत थीऔर ये उनका एक तरीक़ा था कि उन्होंने अपने नाटकों में पौराणिक कथाओं का इस्तेमाल आज के दौर में करते हुएसमाज की कुरीतियों पर प्रहार किया। 

इसके अलावा उनके नाटकों में जातिवादलिंगभेदजैसे मुद्दों पर भी सीधी बात होती नज़र आती है। उनके अलग-अलग नाटकों  में जिस तरह से महिलाओं के पात्र मुखर तौर पर बात करते हैंऔर अपनी आवाज़ को बुलंद करते हुए दिखते हैंये समाज के लिए एक ज़रूरी संदेश की तरह सामने आता है। 

उनकी मौत के बाद देश के विभिन्न कलाकारों ने इसे एक युग का अंत माना है। अभिषेक मजूमदारजो मुक्तिधामकौमुदी जैसे नाटकों के लेखक हैं,ने फेसबुक पर लिखा है, “ एक महान व्यक्ति गुज़र गया है। भारतीय थियेटर  गिरीश कर्नाड के बिना अधूरा है।" 

अभिषेक मजूमदार ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, “गिरीश के नाटकों ने पौराणिक कथाओं को एक ज़रिया बना कर समकालीन मुद्दों की बात की है। उनके ये नाटक इसलिए ज़रूरी हैं क्योंकि पौराणिक कथाओं को ऐसा ही होना चाहिए।" 

रंगमंच के अभिनेता-निर्देशक जन नाट्य मंच के सुधन्वा देशपांडे ने कहा, “गिरीश कर्नाड एक नाटककार होने के साथ-साथ एक बड़े अभिनेता भी थे। और उन्होंने अपने नाटकों में महिलाओं की आकांक्षाओं कोउनकी चाहतों को बहुत मज़बूती से उजागर किया है।" 

यहाँ ये बात करनी ज़रूरी है कि गिरीश कर्नाड का रंगमंचसिनेमा और साहित्य में योगदान के साथ-साथ देश में लंबे समय से चल रही अभिव्यक्ति की आज़ादी की बहस में भी बड़ी हिस्सेदारी थी। 

उन्होंने समय समय पर देश में चल रहे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमलों के ख़िलाफ़ बोलने में कोई कमी नहीं की। चाहे वो गौरी लंकेश की हत्या होया फिर 'अर्बन नक्सलविवादगिरीश कर्नाड हमेशा उस पक्ष के साथ खड़े थे जो सत्ता से सवाल उठा रहा था। गिरीश कर्नाड के रूप में सिर्फ़ एक रंगमंच का कलाकारया फ़िल्म कलाकारया लेखक ही हमने नहीं खोया हैबल्कि समाज के भेदभावलगातार हो रही हिंसा के ख़िलाफ़ बोलने वाले एक मुकम्मल इंसान को भी खोया है। 

गिरीश कर्नाड के लिए मुश्ताक़ अहमद मुश्ताक़ का एक शेर याद आता है: 

"लिए हर्फ़-हर्फ़ का बोझ वो कई मुद्दतों से सफ़र में था 

ये ख़बर दे कोई किताब कोउसे आज मिट्टी निगल गई" 

गिरीश कर्नाड के जाने के बाद तमाम रंगप्रेमियों और रंग कलाकारों ने यही कहा है कि नाटक जारी रहेयही उनके लिए उचित श्रद्धांजलि होगी। दिल्ली में स्थापित जन नाट्य मंच ने गिरीश कर्नाड के जाने पर लिखा है

"भारतीय रंगमंच के आदिपुरुषगिरीश कर्नाड का निधन हो गया। रंगमंच और फ़िल्म जगत के लिए तो ये भारी क्षति है हीसाथ ही भारतीय जनमानस ने एक उत्कृष्ट सामाजिक विचारक को भी खो दिया जो अपने विचारों को निडरता से सार्वजनिक रूप से प्रकट करता था। गिरीश कर्नाड दृढ़तापूर्वक बोलने की आज़ादीविवेक और तर्कशीलता के हक़ में खड़े थे। भारतीय मिथकों और लोक कथाओं मे रचा-बसा उनका नाट्य कृतित्व मानवीय जीवन और समाज के  आधुनिक प्रश्नों को उकेरता था। कन्नड़ मे लिखे उनके नाटकों की पहुँच अखिल भारत ही नहीं बल्कि कुल दुनिया तक थी। उनके नाटकों का मंचन देश की अनेक छोटी-बड़ी मंडलियों ने अनेक बार किया। ये नाटक न सिर्फ़ एक पीढ़ीबल्कि भविष्य के तमाम नाट्य कर्मियों और विद्यार्थियों के अध्ययन की सामग्री हैं।  

अंतरराष्ट्रीय थियेटर दिवस के मौक़े पर अपने संदेश में नाटयशास्त्र के पहले सर्ग मे आये भरत मुनि के पहले नाट्य प्रदशन में व्यवधान   की कहानी को रखते हुए गिरीश कर्नाड ने कहा था,

"नाटक यदि बच के चलेगा तो अपनी मौत को बुलावा देगा। हालांकि उसका भविष्य संकट मे दीखता है। नाटक ज़िंदा रहेगा और उकसायेगा।"

नैतिक और सामाजिक मूल्यों पर हमलों के अंधेरे दौर में मानवीय और सामाजिक सरोकारों से जूझते हुए नाटक करना गिरीश कर्नाड को हमारी श्रद्धाजंलि होगी। जन नाट्य मंच आधुनिक नाट्य जगत के भरत मुनि गिरीश कर्नाड को नमन करता है।"

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