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सोहराबुद्दीन फ़र्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई करने वाले न्यायाधीश की मौत 'हृदय आघात' से नहीं हुई !

क़रीब साल भर लंबी जांच में पत्रकार निरंजन टाकले ने न्यायाधीश लोया की मौत के मामले सररकारी रिपोर्ट में गंभीर विसंगतियां पाई, जो सोहराबुद्दीन शेख़ फ़र्जी मुठभेड़ की सुनवाई कर रहे थे जिसमें अमित शाह मुख्य आरोपी थें।
amit shah

तीन साल पहले अचानक एक न्यायाधीश का निधन हो गया। वह वर्ष 2005 में सोहराबुद्दीन शेख़ की हुई फ़र्जी मुठभेड़ में हत्या मामले की सुनवाई कर रहे थें। इस फ़र्जी मुठभेड़ मामले में "मुख्य आरोपीके रूप में देश के सबसे शक्तिशाली नेता अमित शाह का नाम सामने आया था।

मुंबई में सीबीआई अदालत के विशेष न्यायाधीश जस्टिस बृजगोपाल हरकिशन लोया की मौत के संबंध में मीडिया को जानकारी दी गई थी कि लोया की "हृदय आघातके चलते हुई थी।

लेकिन पत्रकार निरंजन टाकलेजो लोया के परिवार के सदस्यों तथा अन्य स्रोतों से क़रीब साल भर बातचीत करते रहेकी इस लंबी बातचीत में ये बात सामने आई कि लोया की अचानक मौत हृदय आघात के चलते नहीं बल्कि अन्य किसी 'अप्राकृतिक कारणों’ के चलते हुई है।

वास्तव में न्यायमूर्ति लोया की बहन अनुराधा बियानी ने अब आरोप लगाया है कि उनके भाई को 'अनुकूल' (favourable) फैसले के लिए जून 2010 और सितंबर 2015 के बीच बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश मोहित शाह द्वारा 100 करोड़ रुपए की रिश्वत देने की पेशकश की गई थी।

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के अलावा गुजरात के शीर्ष पुलिस अधिकारी भी आरोपियों में शामिल थे। सोहराबुद्दीन शेख़ एक गैंगस्टर था जो संगमरमर उद्योग के व्यापारियों से पैसा वसूलता था। यह आरोप लगा कि गुजरात के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी के माध्यम से राज्य के तत्कालीन गृह राज्य मंत्री अमित शाह का संबंध सोहराबुद्दीन से था।

नवंबर 2005 में शेख और उसकी पत्नी कौसर बी हैदराबाद-सांगली बस में सफर कर रहे थेइस बीच गुजरात आतंकवाद विरोधी दस्ते द्वारा बस को रोक कर दोनों को उतार लिया गयाऔर उन्हें गांधीनगर के पास गोली मार दी गई।

न्यायमूर्ति लोया की मृत्यु के बाद सबूतों की कमी के चलते 30 दिसंबर 2014 को नए पीठासीन न्यायमूर्ति एम.बीगोसावी ने अमित शाह को एक क्लीन चिट दे दी।

न्यायमूर्ति लोया से पहले मामले की सुनवाई करने वाले न्यायाधीश जेटी उत्पत का तबादला अदालत में उपस्थित न होने के चलते अमित शाह को फटकारने के तुरंत बाद कर दिया गया था।

इन सब में सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का उल्लंघन किया गया जिसमें कहा गया था कि मुकदमा एक ही न्यायाधीश द्वारा शुरु से आख़िर तक सुनवाई की जाए। दरअसलवर्ष 2012 में सर्वोच्च न्यायालय ने मुकदमे को गुजरात से महाराष्ट्र में स्थानांतरित करने का आदेश दिया था ताकि "सुनवाई की सत्यनिष्ठा को सुरक्षित रखाजाए।

Caravan पत्रिका द्वारा दो दिनों में प्रकाशित दो खबरों में परिवार ने लोया की मृत्यु के मामले उन्होंने जो देखा थाजो बताया गया था और जो रिपोर्ट दिया गया था उसमें कई "संदिग्ध"परिस्थितियों और विसंगतियों को निर्दिष्ट किया। लोया के परिवार ने शव प्राप्त करते समय उनकी मृत्यु से लेकर पोस्टमार्टम तक शव की स्थितियों को संदिग्ध बताया।

48 वर्षीय लोया का निधन नागपुर में हुआ जहां वह दिसंबर 2014 को साथी न्यायाधीश की बेटी के विवाह समारोह के आयोजन में शामिल होने आए थे।

नागपुर में लोया वीआईपी लोगों के लिए एक सरकारी गेस्ट हाउस रवि भवन में रुके हुए थे। उनके साथ शादी समारोह में शामिल होने आए अन्य न्यायाधीश भी थें।

क़रीब 11 बजे उन्होंने अपनी पत्नी शर्मिला से लगभग 40 मिनट से ज़्यादा देर तक बात की। बाद में परिवार को बताया गया था कि उन्हें छाती में दर्द महसूस हुआ और उन्हें एक ऑटो रिक्शा से नागपुर के एक निजी अस्पताल दाण्डे हॉस्पिटल ले जाया गया। बाद में उन्हें एक अन्य निजी अस्पताल मेदितररिना अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें "पहुंचते ही मृत घोषित किया गया।"

नवंबर 2016 से नवंबर 2017 के बीच अपनी जांच में टाकले ने सिर्फ लोया के रिश्तेदारों के साथ ही बात नहीं की बल्कि अन्य स्रोतों से भी बात की। टाकले ने पोस्टमॉर्टम करने वाले नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज तथा सीताबार्डी पुलिस स्टेशन के श्रोतों से बातचीत की।

लोया की बहन अनुराधा बियानी ने टाकले को डायरी की प्रतियां दीं जिसमें उनके भाई की मौत के समय दर्ज की गई प्रविष्टियां शामिल थीं। लोया के पिता हरकिशन लोया से भी टाकले ने व्यापक बातचीत की।

लोया के परिवार द्वारा बताए गए प्रमुख विसंगतियां इस प्रकार हैं:

1) मृत्यु का समय

लोया के परिवार के सदस्यों ने कहा कि उन्हें दिसंबर 2014 को सुबह-सुबह लोया की मौत की जानकारी के बारे फोन कॉल आने शुरू हो गए थे। लोया की दूसरी बहन सरिता मंधाने को सुबह करीबबजे सबसे पहला फोन आया था। लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृत्यु के समय को 6.15 बजे दर्ज किया गया था।

टाकले कहते हैं कि "लोया के परिवार के सदस्यों के अनुसार रिपोर्ट में दी गई मृत्यु का समय सुबह 6.15 असंगत दिखाई देता है क्योंकि उनकी मृत्यु के बारे में फोन सुबह बजे से आने शुरू हो गए थे।"

नागपुर सरकारी मेडिकल कॉलेज अस्पताल

Caravan रिपोर्ट में आगे कहा गया कि महत्वपूर्ण बात यह है कि, "नागपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज और सीताबार्डी पुलिस स्टेशन में दो सूत्रों ने मुझे बताया कि उन्हें आधी रात को लोया की मौत के बारे में सूचित किया गया थाऔर रात में व्यक्तिगत रूप से मृत शरीर को देखा था। उन्होंने यह भी कहा कि पोस्टमार्टम मध्यरात्रि के तुरंत बाद कर दिया गया था।”

"मेडिकल कॉलेज के स्रोत जो पोस्टमार्टम में शामिल थे उन्होंने मुझे यह भी बताया कि उन्हें पता था कि वरिष्ठों से निर्देश दिए गए थे कि वे 'शरीर को काट दो मानो पोस्टमार्टम किया गया था और इस पर टांका लगा दो।”

2) शव की स्थिति

परिवार द्वारा शव प्राप्त होने के बाद बियानी द्वारा डायरी में लिखे गए विवरणों के अनुसार, "उनके कॉलर पर खून था। उनका बेल्ट विपरीत दिशा में मुड़ा हुआ था और पैंट का क्लिप टूटा हुआ था। यहां तक कि मेरे चाचा का मानना था कि यह संदिग्ध है।"

मंधाने तथा लोया के पिता हरकिशन ने भी टाकले से कहा कि उनके कपड़े पर ख़ून का धब्बा था।

चूंकि बियानी ख़ुद डॉक्टर हैंउन्होंने कहा कि शव की स्थिति "संदिग्धपाई गई क्योंकि "मुझे पता है कि पोस्टमॉर्टम के दौरान ख़ून नहीं निकलता है चूंकि उस दौरान दिल और फेफड़े काम नहीं करते हैं।"

3) पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर हस्ताक्षर

इस पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर "मैयातछा चुलतभाऊके वाक्यांश से किसी के द्वारा हस्ताक्षर किया गयाजिसका मतलब है "मृतक के चचेरे भाई"। इस व्यक्ति ने ज़ाहिर तौर पर पोस्टमार्टम के बाद शव को प्राप्त किया था।

लेकिन लोया के पिता हरकिशन ने कहा कि नागपुर में ऐसा कोई रिश्तेदार नहीं था।

हरकिशन ने टाकले से कहा कि "नागपुर में मेरा कोई भाई या चचेरा भाई नहीं हैं।" "जिसने रिपोर्ट पर हस्ताक्षर किया वह एक अन्य अनुत्तरित सवाल है।"

पोस्टमार्टम के लिए परिवार से अनुमति के लिए नहीं पूछा गया थाऔर न ही पोस्टमार्टम किए जाने के बारे में कोई जानकारी दी गई। कोई नहीं जानता कि किसने पोस्टमार्टम का आदेश दिया। कोई पंचनामा तैयार नहीं किया गया थाऔर न ही कोई एमएलसी दर्ज किया गया कि शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया था।

4) आरएसएस कार्यकर्ता ईश्वर बहेती की भूमिका

लोया के पिता को ईश्वर बहेती नामक एक आरएसएस कार्यकर्ता से फोन आयाउन्हें कहा गया कि वह "शव को गैटगंव तक पहुंचाने के लिए वह व्यवस्था कर देगा।"

बियानी ने टाकले से कहा कि "कोई भी नहीं जानता कि क्योंकैसे और कब बृज लोया की मौत के बारे में उसे पता चला।"

मंधाने ने आगे कहा कि बहेती लातूर में एक अस्पताल में आया जहां वह अपने भतीजे से मिलने आईं थी।

उन्होंने टाकले से कहा कि "जैसे ही हम अस्पताल से निकल रहे थे ईश्वर बहेती नाम का यह व्यक्ति वहां आया। मैं अभी भी नहीं जान पाई कि उसे कैसे पता चला कि हम सारदा अस्पताल में थे।"

मंधाने के अनुसारबहेती ने कहा कि वह नागपुर के लोगों से रात भर बात कर रहा था और आग्रह किया कि नागपुर जाने का कोई मतलब नहीं था क्योंकि शव को वहां से एंबुलेंस में गेटगांव भेजा जा रहा था। उन्होंने कहा कि "वह हमें यह कहते हुए अपने घर ले गया कि वह सब कुछ समन्वय कर देगा"। (इस ख़बर के प्रकाशित होने तक बेहेती को भेजे गए सवालों का जवाब नहीं मिला था।) "

वास्तव मेंबहेती ने लोया का मोबाइल फोन भी परिवार को वापस कर दिया।

5) लोया के फोन से डाटा को मिटाना

बियानी का कहना है कि तीन या चार दिन बाद जब बहेती ने फोन परिवार को वापस किया तो फोन में मौजूद सभी डाटा मिटाया हुआ था। उन्होंने टाकले से कहा कि "हमें उनके मोबाइल तीसरे या चौथे दिन मिले।मोबाइल में सभी जानकारियां थी। उसमें सभी एसएमएस थे। घटना से एक या दो दिन पहले एक संदेश आया था जिसमें कहा गया था कि सर ऐसे लोगों से सुरक्षित रहिएगा। ये एसएमएस भी फोन में था लेकिन सभी चीज़ों को मिटा दिया गया था।

6) ध्वनि चिकित्सा इतिहास (Sound medical history)

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में "कोरोनरी धमनी अपर्याप्तताको मौत के संभावित कारण के रूप में बताया गया था। हालांकिबियानी के मुताबिक़लोया बुढ़ापेपारिवारिक वृत्तांतधूम्रपानउच्च कोलेस्ट्रॉलउच्च रक्तचापमोटापामधुमेह जैसे किसी भी ऐसी परिस्थिति से ग्रस्त नहीं थें जो कोरोनरी धमनी अपर्याप्तता का कारण बन सकता है।

"बृज वाज़ 48," लेख में बियानी को उद्धृत करते लिखा गया "हमारे माता-पिता की उम्र 85 तथा 80 वर्ष हैऔर उन्हें हृदय संबंधी कोई रोग नहीं हुई और वे स्वस्थ हैंउन्होंने कभी शराब को हाथ नहीं लगाया और सालों भर प्रतिदिन दो घंटे टेनिस खेलते हैंन उन्हें मधुमेह है और न ही रक्तचाप।वास्तव मेंबियानी ने कहा कि वह अपने भाई की मौत के आधिकारिक चिकित्सा विवरण पर विश्वास नहीं करती थी।

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