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सफ़ेद मुक्तिवाद बनाम ज़ुल्म और हिंसा

31 अक्तूबर 2014 को बुर्किना फासो के निरंकुश शासक, ब्लैसे काम्पोरे को जनता के भारी  विरोध और बगावत ने आज सही 27 साल बाद सत्ता से उखाड़ फेंका । वे 27 वर्ष पहले  15 अक्टूबर 1987 में थॉमस संकरा ”जिन्हें अफ्रीका का चे गुएवेरा” कहा जाता था, के कत्ल के बाद सता में काबिज़ हुए थे। 

बुर्किना फासो सफेद उद्धारक/मुक्तिवादी उद्योग की पनपती या मर रही स्थितियों को समझने के लिए एक उत्कृष्ट अध्ययन प्रदान करता है।

इसे किसी समय अपर वोल्टा गणराज्य (अपर वोल्टा) के रूप में जाना जाता था, जोकि फ्रेंच संघ का हिस्सा था, इसे फ्रांस से 1960 में आज़ादी मिली। यह छोटा सा गरीब देश, मोटे तौर पर अविकसित था , यहाँ निरक्षरता की दर 90% थी, दुनिया की सबसे ऊंची शिशु मृत्यु दर(हर 1,000 बच्चों के जन्म पर 280 की मृत्यु), अपर्याप्त बुनियादी सामाजिक सेवायें, 50,000 लोग प्रति एक डॉक्टर, और प्रति व्यक्ति $ 150 की औसत वार्षिक आय थी, एक ऐसी व्यवस्था जो  अपनी आबादी को खिलाने के लिए असमर्थ थी। अत्यधिक ऋणी, यहाँ के लोग सफ़ेद मुक्तिदाताओं के किले के लिए एक उचित पिक्चर के लिए सही हैं, जिसकी वाल्टर रॉडनी कहते हैं “ एक काला लड़का जिसकी पसलियाँ आर-पार देखी जा सकती हैं, बड़े सर वाला, फुला हुआ पेट, धंसी हुयी आँखें, और हाथ पैर जैसे टहनियाँ हों, ये सब ब्रिटेन के बड़े दानवादी ऑक्सफेम के लिए बेहतर पोस्टर बनाने का प्रयाप्त मसाला है।

                                                                                                                                      

तख्ता पलट और वापस तख्ता पलट की कईं घटनाओं के बाद थॉमस संकरा अपने कामरेड साथियों के साथ 1983 में अंतत: सत्ता में काबिज़ हुए, इसी के साथ असाधारण क्रान्ति का देश में प्रतिपादन हुआ। चार साल के भीतर ही, देश भोजन के मामले में आत्म-निर्भर हो गया, शिशु मृत्यु दर नीचे आ गयी, स्कूलों में हाजिरी डबल हो गयी, बंजर ज़मीन को रोकने के लिए 10 लाख पेड़ लगाए गए, और गेहूं के उत्पादन को डबल कर दिया गया। ज़मीन और खनीज के स्रोतों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया, रेलवे और ढांचागत व्यवस्था का निर्माण किया गया, और दिमागी बुखार, पीले बुखार और खसरे से प्रतिरक्षित करने के लिए 25 लाख लोगों को टीके लगाए गए। सामुदायिक गतिविधियों के जरिए करीब 350 डिस्पेंसरी और स्कूलों का निर्माण किया गया। बलपूर्वक विवाह और बहुविवाह को गैर-कानूनी घोषित किया गया, और हर स्तर महिलाओं को निर्णय लेने के हक दिया गया। यह सब हासिल करने के लिए संकरा ने किसी भी तरह की सहायता नहीं ली – इसके विपरीत, उसने इस तरह की सहायता को धता बता दिया। यही नहीं संकरा ने कहा कि देश के ऊपर जो क़र्ज़ है घिनौना अपराध है और इसलिए इसे वापस नहीं दिया जाएगा। सूत का उत्पादन निर्यात के लिए नहीं बल्कि बुर्किनाबे टेक्सटाइल उद्योग के लिए किया गया जोकि सूत के लिए तड़प रही थी। इस देश को बिना किसी विदेशी सहायता एजंसी या उनके स्थानीय सहयोगी एन.जी.ओ. के बिना वाला देश माना गया।

ब्लैसे काम्पोरे के हाथों संकरा के क़त्ल को फ्रांस व उसके साम्राजी सहयोगियों द्वारा खुला  समर्थन मिला, उसे विजय के रूप में मनाया गया, और इस दौरान जो भी तरक्की हुयी उसको पलटने की संभावनाओं पर उत्साह दिखाया गया। ब्लैसे काम्पोरे के तहत देश जल्द ही अपने पुराने प्रारूप अपर वोल्टा गणराज्य में तब्दील हो गया। सूत का उत्पादन निर्यात के लिए जी.डी.पी. का 30% किया जाने लेगा जोकि 1500 डोलर प्रति व्यक्ति आय था और यह दुनिया में सबसे निचले स्तर पर चला गया। आज, बुक्रिना फासो दुनिया में सबसे ज्यादा कर्ज़दार देश है, इस देश में 80% से ज्यादा आबादी 2 डॉलर प्रति व्यक्ति प्रति दिन की आय से भी कम में गुज़ारा करती है, और 50% आबादी एक डॉलर से भी कम आय में गुज़ारा कर रही है। शिशु मृत्यु दर में बढ़ोतरी हो रही है। साक्षरता की दर में 12% की गिरावट है, और 10% से भी कम बच्चे प्राथमिक शिक्षा से उच्चतर शिक्षा में पहुँच रहे हैं। इसके विपरीत “किसानों के लिए भूमि” के कार्यक्रम के तहत जिसकी शुरुवात संकारा ने की थी को पलटकर अब भूमि या तो सांसदों और या राष्ट्रपति के परिवार के सदस्यों को दी जा रही है! भ्रस्टाचार की स्थिति है, खदानों की कंपनियों और सहायता फण्ड से लाखों का घपला किया जा रहा है। अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्से को अंतर्राष्ट्रीय सहायता के आधार पर चलाया जा रहा है। पानी और अन्य जरूरत की सुविधाओं का निजीकरण रोजमर्रा की घटना बन गयी है। बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को देश में सोने और अन्य खनीज निकालने की पूर्ण अनुमति दे दी गयी है। और मौजूदा निजाम हिंसा और क़त्ल की राजनीति के जरिए विरोध की आवाज़ को शांत करने में लगा हुआ है।

यह ऐसी स्थितियां थी जिनकी जरूरत सफ़ेद मुक्तिवाद के एजेंटों को थी। संकारा के समय के विपरीत, काम्पोअरे के शासन में बहुराष्ट्रीय निगमों और उनके एन.जी.ओ. की दखल बड़े स्तर पर बढ़ी है और इस लूट को हज़म करने के लिए उनके साथ बुक्रिना के स्थानीय पूंजीपति भी बड़ी तादाद में जुड़ गए हैं। ऑक्सफेम क्यूबैक का बड़े स्तर पर बुक्रिना फासो में शामिल होना उदहारण के तौर पर काम्पोअरे के 1987 में सत्ता में आने के बाद बढा। बुक्रिना के एन.जी.ओ. जो कि सैकड़ों की तादाद में थे और जोकि सभी विदेशी फंड पर निर्भर थे, वे सभी अफ्रीकन देशो को एक शिकार के रूप में पेश करते रहे हैं, ताकि वे भारी फण्ड इन एजेंसियों से वसूल कर सकें। इस तरह के संगठनों की देश में उस निजाम के तहत बाढ़ आ गयी जिसने सामाजिक सेवाओं से अपना नाता पूरी तरह से तोड़ लिया था, और जिसने अपने ही लोगों को सभी सेवाओं का निजीकरण कर हाशिये पर फेंक दिया। एन.जी.ओ. की इस बढ़ोतरी के चलते जोकि पूरी तरह विदेशी फंड पर आधारित है, मौजूदा निजाम ने बहुमत जनता के प्रति अपनी सभी जिम्मेदारियों से मुक्त कर लिया।

मुक्तिदातों के रहने के लिए मुक्ति पाने वालों का रहना जरूरी है। ज़ुल्म के लिए अन्य मानव को उत्पीड़ित बनाने की प्रक्रिया जारी है – मुक्तिवाद के लिए इसकी बुनियादी जरूरत है। और अगर इसकी परिभाषा के तहत चला जाए तो सफ़ेद मुक्तिवाद के लिए अफ्रीकन को जुल्म का शिकार बनाना जरूरी है जोकि काले लोग है। इसलिए पश्चिम में यह एक सिद्धांत बन चूका है कि अफ्रीकन लोगों को ऐसे परिभाषित करों जो वे नहीं हैं।

वे सभ्य नहीं अराजक विचार के हैं, पारंपरिक हैं लेकिन आधुनिक नहीं हैं, आदिवासी हैं लेकिन जनवादी नहीं हैं, तर्कसंगत नहीं तर्कहीन हैं, पश्चिम के मुकाबले वे हर स्तर पर पीछे हैं, गौरे लोग आज भी “सभ्यता” के झंडाबरदार हैं, विकास के पैरोकार और हिमायती हैं, जबकि काले लोग और उपनिवेशवाद के बाद के युग के ‘अन्य’ लोगों को असभ्य और अज्ञानी माना जाता है, जिनकी किस्मत में विकास का निवाला बनना लिखा है।

अफ्रीकन लोगों की इस तस्वीर को पूरा करने के लिए अफ्रीकी राज्य और अफ्रीकी गैर सरकारी संगठनों की मिलीभगत की जरूरत है, ताकि प्रत्येक अपनी हिंसा अपने हिसाब से थोप सके। पहले जैसा कि बुर्किना फासो के मामले दिखता है, कि अपने आपको तबाह करने के लिए हिंसा का होना जरूरी है, न कि संकरा के नेतृत्व में अल्पकालिक क्रांति की उपलब्धि जोकि आत्मनिर्णय और गरिमा के बल पर हासिल की थी। नए शासकों द्वारा कुछ के लाभ के लिए निर्वासन से निजी संचय के एक स्रोत के रूप में राज्य का उपयोग करने के लिए हिंसा भी आवश्यक है। गैर स्थानीय गैर सरकारी संगठन जिनका अस्तित्व सफेद उद्धारक उद्योग पर आश्रित है, वे देश की छवि को एक अधीन, अयोग्य, आदिम समाज का शिकार बनाने में लगे हैं ताकि यह दावा किया जा सके कि अफ्रीका को बचाने की जरूरत है। अफ़्रीकी नेता और अफ़्रीकी एन.जी.ओ मिलकर अफ्रीकन पहचान को घृणा की दृष्टि से पेश करते हैं, यह वैसा ही है जैसा कि फैनोन के काले खाल, व्हाइट मास्क, की एक आधुनिक अभिव्यक्ति में हिंसा के स्वरुप पर एक दर्दनाक और कई बार अनुत्तरित रूप है।

जहाँ लोगों को अपनी नियति का नियंत्रण फिर से लेना होता है अपनी गरिमा और मानवता के बारे में जोर देते है, जो उत्पादन के लिए संगठित होते हैं और सामूहिक फैंसले लेते हैं, जो अपनी संस्कृति पर गर्व महसूस करते है, और जो न तो कोई सहायता लेते हैं और न ही दान, वहां मुक्तिदाता पनप नहीं सकते हैं। निश्चित तौर पर उक्रिना फासो नामक देश, "ईमानदार लोगों की भूमि", जिसे की संकरा ने 1984 में लागू किया था अब वह सफ़ेद मुक्तिवाद उद्योग का अभिशाप बन गया है।

पिछले 30 सालों में बुक्रिना फासो ने जो अनुभव किया है उसके तहत देश में नव-उदारवादी नीतियों को लागू करना और विभिन्न तरह की हिंसा को जनता पर थोपना शामिल है।इन नीतियों का नतीजा न केवल वैश्विक आर्थिक व वित्तीय संकट है बल्कि आज के शासकों की साख भी दांव पर लग गयी है, जिसे लोगों के बढ़ते असंतोष में देखा जा सकता है। यही कि अगर काम्पोरे(और उसके परिवार ) को अपने शासन को लम्बा करने के लिए उसके प्रयास के खिलाफ बड़े पैमाने पर जन-लामबंदी  के माध्यम से अपदस्थ किया जाता है तो यह कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए; क्योंकि बुक्रिबा में भी वैसी ही स्थिति है जैसी कि बेन अली को  तुनिशिया और होस्नी मुबारक को मिश्र में देखने को मिली। ये केवल अफ्रीका में कई बगावतों में ऐसी पहली बगावत हैं। आज तक की सभी बगावतों में से या आगे भी जो भी बगावतें होंगी उसमें क्या हम ऐसा बैनर देख पायेंगे जिस पर लिखा हो कि ‘हमें न तो सहायता चाहिए’ और न ही गौरे के द्वारा मुक्ति चाहिए’।

ये बगावतें चाहे अफ्रीका में हो या उसके बाहर उन्हें न तो बचाव और न ही सहायता चाहिए, केवल एकजुटता चाहिए। हाल ही में लोकप्रिय आंदोलनों को सम्बोधित करते हुए पोप फ्रांसिस इस प्रकार की एकजुटता के बारे में कहते है:  

यह पैसे के साम्राज्य के विनाशकारी प्रभाव का सामना करने के लिए है: बलपूर्वक विस्थापन, दर्दनाक विस्थापन, व्यक्तियों, दवाओं, युद्ध के यातायात, हिंसा और आप में से कई पीड़ित हैं और हम सभी को बदलने के लिए कहा जाता है कि उन सभी वास्तविकताओं को। अपनी गहरी भावना में एकजुटता का एहसास, इतिहास बनाने का एक तरीका है, और यह लोकप्रिय आंदोलनों का मुख्य काम है। और इसमें हर व्यक्ति किसी भी जगह हिस्सेदारी ले सकता है।

फ़िरोज़ मांजी थॉटवर्क्स में काम करते हैं । 

(अनुवाद- महेश)

 

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

 

 

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