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श्रीराम सेने का सदस्य है कलबुर्गी का हत्यारा

चार वर्षों के लंबे अंतराल के बाद, कन्नड़ विद्वान की हत्या के मामले में कुछ प्रगति देखी जा रही है।
कलबुर्गी

डॉ एम एम कलबुर्गी, जो वचना  साहित्य के अध्येता थे और 30 अगस्त, 2015 को जिनकी गोली मार कर हत्या कर दी गई थी, उनकी पत्नी उमादेवी ने उनके हत्यारे की पहचान कर ली है। वह शूटर जिसने कलबुर्गी को गोली मारी थी गणेश मिस्किन है, जो गौरी लंकेश की हत्या के मामले में पहले से ही न्यायिक हिरासत में है। उच्च न्यायालय के आदेश के बाद, 17 जुलाई, 2019 को धारवाड़ के तहसीलदार के सामने, विशेष जांच दल (एसआईटी) कर्नाटक ने एक पहचान परेड का आयोजन किया था। कलबुर्गी को जहां गोली मारी गई थी, उमादेवी और पीर बाशा उस घर से सटे निर्माण स्थल के पर्यवेक्षक थे और उनसे अपराधी की पहचान करने के लिए कहा गया था। इससे पहले भी एक ऐसी ही परेड हुई थी, जिसमें उमादेवी और बाशा दोनों ने प्रवीण चतुरा की भी पहचान की थी जो मिस्किन के साथ था और कलबुर्गी के घर के बाहर बाइक पर उसका इंतज़ार कर रहा था।

इससे पहले, अगस्त 2018 में, एसआईटी ने शूटर के रूप में एक हिंदूवादी चरमपंथी संगठन श्रीराम सेने के सदस्य गणेश मिस्किन का नाम लिया था। श्रीराम सेने का कहना है कि वे इस मामले में शामिल नहीं हैं, लेकिन उनकी हत्या होने से पहले इस संगठन के कार्यकर्ताओं को कई मौक़ों पर लेखक के ख़िलाफ़ विरोध करते हुए देखा गया था। मिस्किन को जुलाई के महीने में गौरी लंकेश के हत्यारे, परशुराम वाघमारे के साथ मोटरसाइकिल पर सवारी करने वाले व्यक्ति के संदेह में गिरफ़्तार किया गया था। हालाँकि, जैसा कि न्यूज़क्लिक ने पहले बताया था कि इस मामले की जांच के दौरान मिस्किन ने अमोल काले को सभी मामलों में एक महत्वपूर्ण अपराधी के रूप में और कलबुर्गी के शूटर के रूप में बताया था। मिस्किन, वाघमारे और अन्य सभी लोगों जिन्हें कि अब तक गिरफ़्तार किया गया है, उन्हें काले ने संगठन में भर्ती किया था, जो हिंदू जनजागृति संस्थान (एचजेएस) के पूर्व संयोजक भी हैं।

एम एम कलबुर्गी के मामले को शुरू में कर्नाटक की अपराध जांच विभाग (सीआईडी) को सौंप दिया गया था और चार साल के लंबे समय के अंतराल में जांच में कोई प्रगति नहीं देखी गई। सी.आई.डी. ने शंकर नारायण उर्फ़ काका का नाम लिया था जो शूटर के रूप में मारा गया है। तब इस मामले को एसआईटी के सुपुर्द कर दिया गया था।

कलबुर्गी एक बेहतरीन लेखक थे और वचना साहित्य के विशेष शोधकर्ता थे। उनकी विद्वता बसवन्ना के 12वीं शताब्दी के दर्शन और वचना साहित्य से प्रभावित थी जो लिंगायत आंदोलन की रीढ़ बन गयी थी। लिंगायत आंदोलन ने इस बात का तर्क पेश किया था कि लिंगायत समुदाय हिंदू धर्म का हिस्सा नहीं है। वचना, जो लिंगायत विश्वास प्रणाली की रीढ़ है, उसने उस दमनकारी सामाजिक व्यवस्था की आलोचना के बारे में लिखा, जो अभी भी हिंदू धर्म में मौजूद है। इस दौरान वचना और वचनाकारों पर दमनकारी सामाजिक व्यवस्था को चुनौती देने के लिए कई लोगों द्वारा उन पर हमला किया गया। वे भी वचनाकारों की तरह ही थे, जो उस रूढ़िवादी परंपरा के ख़िलाफ़ थे, और जो हिंदुत्व ताक़तों के रास्ते का काँटा बन गए थे, आख़िरकार जिनकी दिन के उजाले में हत्या कर दी गई।

दाभोलकर, पानसरे, कलबुर्गी और लंकेश की हत्या के पीछे सनातन संस्था और उसके कई स्प्लिंटर्स समुह के नाम सामने आए हैं। सनातन संस्था ने खुले तौर पर अन्य तीन विद्वानों के ख़िलाफ़ हिंदुत्व विरोधी होने के लिए हमला किया था, उन्होंने कलबुर्गी के ख़िलाफ़ एक अभियान भी चलाया था। सनातन संस्था के संजय झा, जो कि वकील हैं ने अपने एक बयान में कलबुर्गी को संदर्भित करते हुए और सनातन संस्था के बचाव में बयान दिया था और अन्य सभी को दोषी ठहराया था, जिन्होंने एसएस पर हत्या का आरोप लगाया था। अपने बयान में, उन्होंने कहा था, “सनातन संस्था हिंदुओं के देवताओं को बदनाम करने से रोकने का काम करती है। प्रोफ़ेसर कलबुर्गी ने 'शिव-लिंग' पर पेशाब करने के बारे में बात की थी। उन्होने हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत किया था। आज, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं लगातार आहत हो रही हैं। क्या आप दूसरों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने से सहमत हो सकते हैं? अब तय करने का समय आ गया है कि अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। वास्तव में, ’अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ शब्द को फिर से परिभाषित करना आवश्यक हो गया है।”

जैसा कि न्यूज़क्लिक ने पहले भी रिपोर्ट किया था, कि जून 2014 में, कलबुर्गी अंधविश्वास पर एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे, और इस आयोजन में, उन्होंने ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता यूआर अनंतमूर्ति द्वारा बेतले पूजे येक कुडडू नामक निबंधों के संग्रह में मूर्ति पूजा के बारे में टिप्पणी की थी। पुस्तक में एक निबंध में, अनंतमूर्ति अपने बचपन के अनुभव को याद करते हैं जिसमें वह गांव के इस विशेष देवता की मुर्ति पर पेशाब करते हैं, और उनकी उस पारंपरिक विश्वास को चुनौती देते हैं जिसमें कहा गया है कि सब कुछ पवित्र है। इस प्रकरण को कलबुर्गी ने उस समय संदर्भित किया था जब उन्होंने इस बारे में कार्यक्रम में भाषण दिया था।

झा इसी प्रकरण का जिक्र अपने बयान में कर रहे थे। कलबुर्गी के भाषण और अनंतमूर्ति के उपाख्यान को पूरी तरह से संदर्भ से बाहर निकाल कर पेश करते हुए, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और उनके जैसे अन्य संगठनों ने इसके ख़िलाफ़ विरोध किया था, और दोनों लेखकों को हिंदू विरोधी क़रार दिया गया था। उदाहरण के लिए वाघमारे ने जांच के दौरान जब गौरी लंकेश को गोली मारने की बात क़बूल की और साथ ही बताया कि उन्हें लंकेश के हिंदुत्व विरोधी भाषणों को देखने के लिए बैठाया जाता था और यह विश्वास दिलाया जाता था कि गौरी लंकेश की हत्या हिंदुत्ववाद को बचाने के लिए ज़रूरी है। यह वास्तव में वह तथ्य है जिसे मिस्किन ने भी अपनी बातों में स्वीकार किया है और जांचकर्ताओं को बताया कि अमोल काले द्वारा कैसे उन्हे भर्ती किया गया था - यह उनके लिए हिंदू धर्म को बचाने का एक मिशन था।

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