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सरकारी स्कूलों को क्यों बंद करना चाहती है कर्नाटक सरकार ?

कर्नाटक सरकार निजी स्कूलों को बढ़ाने के लिए लगभग 28,847 सरकारी स्कूलों को बंद करना जा रही है, जिसका भारी विरोध हो रहा है |
karnataka schools
Image courtesy : India Today

कर्नाटक राज्य सरकार ने शनिवार को यह घोषणा की है , कि कम प्रवेश दरों वाले 28,847 सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों  पहचान करेगी और उनका विलय 8,530 अन्य स्कूलों के साथ कर देगी। इसका सीधा अर्थ यह है कि सरकार ने सरकारी स्कूलों को बंद करने का निश्चय ले लिया है  | ये कोई पहली सरकार नही है ,जिसने इस तरह का निर्णय लिया हो | इससे पहले देश की कई राज्य सरकारों ने भी सरकारी स्कूलों को बंद करने का फैसला किया है ,ये सब तब हो रहा है जब हमारे देश शिक्षा का अधिकार कानून लागू है और सभी बच्चो को 8वीं तक शिक्षा देना हर सरकार की ज़िम्मेदारी है |

परन्तु ये भी कटु सत्य है कि आज भी हमारे देश के लाखों बच्चे स्कूली शिक्षा से दूर हैं | उदाहरण के लिए देश की राजधानी  दिल्ली में ही एक संस्था के दावे के अनुसार करीब 6 लाख बच्चे स्कूली शिक्षा  के दायरे से बहार हैं , इस बात से ये अंदाज़ा  लगाया जा सकता है कि अन्य राज्यों की हालत  क्या होगी |  यहाँ सरकारों को शिक्षा के लिए नए संस्थान बनाने और  खासतौर पर प्रथमिक शिक्षा में और अधिक निवेश करने की ज़रूरत है | वहीं हमारी सरकारें  इसके उलट  जो स्कूल  पहले से हैं उन्हें भी बंद करने का लगातार प्रयास कर रही है |

छात्र संघठन स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया (SFI) के राष्ट्रीय अध्यक्ष वी०पी० शानु ने कहा  कि इससे पहले भी महाराष्ट्रा ,आंध्रप्रदेश, तेलंगाना ,राजस्थान और मध्यप्रदेश में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही प्रो- प्राइवेट स्कूल  नीति के कारण सरकारी स्कूलों को बंद करना चाहती है | जो कि गरीब और आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगो के साथ अन्याय है क्योंकि उनके पास और शिक्षा के लिए  और कोई संसाधन नही होता है | उन्होंने कहा कि इसीलिए सरकारी स्कूलों को बंद नहीं किया जाना चाहिए |

कर्नाटक की कुमारस्वामी सरकार ने अपना पहला बजट पेश किया जिसमे शिक्षा को लेकर कई ऐसी घोषणाएँ की जिससे वहाँ के छात्रों ,शिक्षाविदो सहित समाज के लोगो में भरी रोष है | सबसे अधिक रोष सरकार के निर्णय से यह है कि  कुमारस्वामी लगभग 28,847 सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों को बंद करने जा रही है |   

सरकार कह रही है कि इन स्कूलों में छात्र प्रवेश नहीं ले रहे हैं ,परन्तु उन्हें ये बताना चाहिए कि छात्र सरकारी स्कूलों में  प्रवेश क्यों नहीं ले रहे ? सरकारी स्कूल  के खस्ता हाल के करण नए छात्र प्रवेश के स्थान पर ,जो पढ़ रहे थे वो भी छोड़ रहे हैं | कर्नाटक के कोलेगल तालुका गांव में एक सरकारी स्कूल का ही  उदहारण लिया जाए । जिस स्कूल में 200 छात्र थे, अब  वहाँ केवल 40 हैं, जिनमें से अधिकतर के माता-पिता दैनिक मज़दूर हैं, परन्तु वो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं। इसलिए उन्हें निजी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं | उन लोगो को सरकारी स्कूल में विश्वास नहीं है |

सरकार को जाँच  करनी चाहिए जिससे ये जाना जा सके कि लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ना चाहते हैं , न कि स्कूलों को इस आधार पर बंद कर दिया जाना चाहिए कि वहाँ प्रवेश दर में कमी आई है |

सभी सरकारी और सरकारी सहायता प्रप्त स्कूलों में ,हमें प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा पर राज्य सरकारों के खर्च की एक ईमानदार और निष्पक्ष लागत और लाभ अध्ययन करने की आवश्यकता है |

छात्र SFI के राष्ट्रीय अध्यक्ष वी०पी० शानु ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि  “शिक्षा और स्वास्थ्य ये दोनों मानव समाज की बुनियादी ज़रूरतें  हैं | ये सभी को मुहैया करना हर सरकार की ज़िम्मेदारी है  | परन्तु वर्तमान राज्य सरकार और केंद्र की भाजपा सरकार दोनों ही निजी शिक्षा माफिया के मदद के लिए इस तरह के कदम उठा रही है ,और लोगो को उनके बुनियादी हकों से दूर कर रही है” | शानु ने कहा की इसको लेकर स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया (SFI) ने हर जगह  विरोध किया है और आगे भी करेगा |

कई शिक्षाविदो का कहना है कि “ये कदम शिक्षा के लिए आत्महत्या जैसा होगा | क्योंकि अगर सरकारी स्कुल बंद हो जाएँगे तो गरीब परिवार के बच्चे कहाँ पढ़ेंगे | इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं दे रहा है।"

आगे उन्होंने कहा कि “ऐसा एक कदम केरला के पूर्व की कांग्रेस के नेतृत्व  यूडीफ के सरकार ने भी लगभग 3000 सरकारी स्कुल को बंद करने  फैसला किया था परन्तु वहाँ स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया (SFI) मज़बूत उपस्थिति है | इस मुद्दे को लेकर हमने संघर्ष किया और फिर जब सीपीएम के नेतृत्व में वामपंथी लोकतान्त्रिक गठबंधन (LDF) की सरकार आई तो उसने इस प्रस्ताव को वापस लिया | ये हमारे छात्र आन्दोलन की जीत था |"

उन्होंने बातचीत के दौरान एक महत्वपूर्ण तथ्य को उजागर करते हुए कहा कि भाजपा हो या कांग्रस दोनों ने ही शिक्षा के बजट को लगातार कम किया है | उन्होंने कहा कि हमारा कहना है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बजट का 10% और जीडीपी का 6% शिक्षा के लिए होना चाहिए | परन्तु अभी भी हमारे यहाँ शिक्षा पर बजट का 3%  ही खर्च किया जाता है | जो कि बहुत ही कम है और जो है भी उसे ये सरकारे अपने बड़े-बड़े उद्योगपति दोस्तों को प्राइवेट पार्टनरशिप के नाम पर दे रही है | इसका ताज़ा उदहारण जिओ इंस्टिट्यूट है |

अंत में उन्होंने कहा कि “स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया (SFI) इन जनविरोधी और छात्र विरोधी नीतियों के खिलाफ लड़ता रहा है और आगे भी लड़ेगा और इन शिक्षा के दलालों को शिक्षा की दलाली नही करने देगा |"

‘कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिये,कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये’| ये लाईन हमारे राजनितिक दलों के लिए उपयुक्त बैठती हैं | क्योंकि  चुनाव के दौरान हर राजनितिक दल वो चाहें भाजपा हो कांग्रेस या फिर जेडीएस जैसा कोई अन्य राजनितिक दल हो, सभी का रैवये या नीति में कोई फर्क नहीं  दिखता है | ये सभी चुनावी भाषणों में तो गरीब और सबको शिक्षा देने की लिए नये संस्थानों के निर्माण की बात करते हैं,परन्तु सत्ता में आने के बाद इनकी प्राथमिकता अपने पूंजीपति मित्रों की मदद करने में बदल जाती है और जो पहले के संस्थान बने हुए हैं उन्हें भी कमजोर या बंद करने का पूर्ण प्रयास करते हैं |

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