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सरकारों के लिए न्यूनतम मज़दूरी बस कागज़ी बातें हैं

सत्य यह है की इस न्यूनतम वेतन का लाभ कामगारों के बहुत बड़े तबके को नहीं मिलता है | सरकारें अपने इन फैसलों से केवल औपचारिकता पूरी करती है |
न्यूनतम वेतन
Image Courtesy:navodaytimes

बीते 4 अप्रेल को दिल्ली सरकार ने कामगारों के महँगाई भत्तों में बढ़ोतरी की जिससे कामगारों के न्यूनतम वेतन में बढ़ोतरी होगीI लेकिन सच यह है कि इस न्यूनतम वेतन का लाभ कामगारों के बहुत बड़े तबके को नहीं मिलता है | सरकारें अपने इन फैसलों से केवल  औपचारिकता  पूरी करती है | वो कभी भी इसे गम्भीरता से लागू नहीं करतींI इसी करण इसका लाभ गरीब कामगारों को नहीं मिलता |  दिल्ली के असंगठित क्षेत्र में न्यूनतम मज़दूरी देने के नियम का पालन न के बराबर ही होता है |

न्यूनतम वेतन

न्यूनतम मज़दूरी  अधिनियम 1948 के तहत सरकारें 5वर्ष में न्यूनतम वेतन में बढ़ोतरी करने के लिए बाध्यकारी है | इसलिए सरकारें समय-समय पर न्यूनतम मज़दूरी  की दरें तय कर जारी करती हैं परन्तु कभी भी इसे लागू करने की इच्छाशक्ति  ज़ाहिर नहीं करती हैं | इस पर दिल्ली हाईकोर्ट ने भी कई बार कड़ी टिप्पणी की है, एक सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था की जो उद्योग मजदूरों को उनका न्यूनतम वेतन नहीं दे रही उन्हें चालू रहने का कोई हक नही है | इसके साथ ही कोर्ट ने  दिल्ली सरकार जब न्यूनतम वेतन को लागु करने में जानबूझकर देरी कर रही थी तो उसे कोर्ट ने नोटिस भेजा था,तब जा करके सरकार ने न्यूनतम मज़दूरी  को लागु किया था |

इसके बाबजूद भी  हम देखते हैं कि दिल्ली के अधिकतम उद्योग मालिक अपने मज़दूरों को न्यूनतम मज़दूरी नहीं देते और उनके खिलाफ कोई कार्यवाही भी नहीं की जाती | इसका सबसे बड़ा कारण शासन और प्रशासन का ढीला रवैया है| इसके साथ ही, मज़दूरों में इस नियम की जानकारी का अभाव होना भी एक बहुत बड़ी समस्या हैI वे अपने ज़्यादातर अधिकारों से अनभिज्ञ हैंI  

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए मज़दूरों ने कई तरह की दिक्कतें बताई गाँधी नगर के कपड़े मार्किट में काम करने वाले विजय ने बताया की वो एक दुकान पर 12 साल से कम रहे है और उनकी तनख्वाह अभी भी 9,000 रु है | जब हमने उन्हें बताया कि उन्हें न्यूनतम मज़दूरी भी नहीं मिल रही है| तो उनका जबाब था की ये क्या होता है?

इसके बाद एक और मज़दूर जो कि सदर बाज़ार में काम करते हैं उन्होंने बताया कि मालिक उनसे 12-12 घन्टे काम करवाता है परन्तु ना तो ओवरटाइम और न ही न्यूनतम वेतन ही देता है | उन्होंने कहा की उनकी मजबूरी है की वो कुछ बोल नहीं सकते है| कुछ बोलेंगे तो मालिक उन्हें हटा कर किसी नये व्यक्ति को रख लेगा| नौकरी जाने के डर से वो चुपचाप  काम करने को मजबूर हैं |

इसी तरह से एक इंशोरेंस कम्पनी में डेटा एंट्री का कम करने वाली महिला ने बताया कि उनका मैनेजर उनसे साइन तो कई वाउचर और अधिक सैलरी पर करता है, परन्तु उन्हें वो देता नहीं है | इसी प्रकार से अन्य जगह भी ऐसा ही होता उन्होंने बतया |

परन्तु जब हमने इन सबसे पूछा की वो इसकी शिकायत क्यों नहीं करते है तो सभी ने एक जबाब था की नौकरी चली जाएगी | कई को तो प्रक्रिया का ही नहीं पता था ,जिसे पता है भी वो अपने नौकरी चले जाने के डरे से चुप है |

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए दिल्ली भरतीय केन्द्रीय ट्रेड यूनियन (सीटू) के प्रदेश सचिव अनुराग सक्सेना कहा की  सरकार नवउदारवादी नीतियों के करण मजदूरों को नयूनतम वेतन नहीं देना चाहती है |

 “उन्होंने कहा की इसे लागु करने का ज़िम्मा उपश्रमायुक्तो का होता है | उपश्रमायुक्त श्रम दरोगा  (लेबर इंस्पेक्टर) के माध्यम से इसे लागु करना होता है | परन्तु सरकारे जानबूझकर इनकी स्टाफ की भर्ती नहीं करती है ,अभी पूरी दिल्ली में केवल 11 से 12 श्रम दरोगा ( लेबर इंस्पेक्टर) है” | जबकी इनकी संख्या इससे कही ज़्यदा है |

सरकारे न्यूनतम मज़दूरी  को केवल कागजों में लागु कर देती है परन्तु ज़मीनी स्तर पर इसका कोई असर नहीं दिखता है ,क्योकि सरकारो को  मजदूरों से अधिक उद्योग मालिको के चिंता होती है | सरकार किसी भी दल की हो वो हमेशा ही मज़ुदुरो के सवाल पे एक ही रुख रहता है और उनपर व्यपारियो  के पक्ष में नीति निर्माण और संरक्षण का दबाब होता है | 

 

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