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कटाक्ष: पलटूराम न कहो उनको...

मोदी जी के विरोधी भी यह तो मानते ही हैं कि गंगा पर मोदी जी अगर हिंदू -मुसलमान की बात करने से पलटे थे, तो उसके अगले ही दिन फिर पलट गए। पहली पलटी अगर पलटी थी, तो दूसरी पलटी तो सुलटी हुई।
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भई ये तो मोदी जी के साथ सरासर नाइंसाफी है। बताइए, विपक्ष वाले पहले खुद कह रहे थे कि नहीं कह रहे थे कि मोदी जी हिंदू-मुस्लिम कर रहे हैं। इस बार तो विपक्ष वालों ने पहले चरण के बाद से ही इसकी शिकायत करना शुरू कर दिया था कि मोदी जी हिंदू-मुस्लिम कर रहे थे। बेचारे मोदी जी ने यहां-वहां मंगलसूत्र छीनने, दो में से एक भैंस ले जाने और मुसलमानों में बांटने की जरा सी कहानी क्या सुनाई, सारा विपक्ष इसका शोर मचाने के लिए खड़ा हो गया था कि पीएम होकर, मोदी जी हिंदू-मुस्लिम क्यों कर रहे हैं? जैसे पीएम के ही हिंदू-मुस्लिम करने पर कोई रोक हो! 

चुनाव आयोग के दफ्तर तक में हिंदू-मुस्लिम करने की शिकायतों के ढेर लग गए थे। आयोग तक को कई दिनों कान में तेल डालकर बैठे रहने के बाद, आखिरकार मोदी जी से नहीं तो मोदी जी की पार्टी के एक्सटेंशन पर चल रहे अध्यक्ष जी से, जवाब भी तलब करना पड़ा था। यह दूसरी बात है कि एक्सटेंशन वाले अध्यक्ष जी ने, अपना लाजवाब करने वाला जवाब देने से पहले, चुनाव आयोग से वक्त का एक्सटेंशन पर एक्सटेंशन लिया था।

खैर! मुद्दे की बात यह कि पहले जब तक मोदी जी हिंदू-मुसलमान कर रहे थे, तब तक तो किसी को खास प्रॉब्लम नहीं थी। कम से कम इतनी दिक्कत तो विरोधियों को भी नहीं थी कि मोदी जी का कोई और नाम रखने की कोशिश करते। सारी शिकायतों के बावजूद, विरोधियों के लिए भी मोदी जी, मोदी ही रहे। तब चौथे चरण के बाद जब मोदी जी ने गंगा पर एक इंटरव्यू में एलान किया कि मैं हिंदू-मुसलमान नहीं करता, नहीं किया है और नहीं करने का ‘‘संकल्प’’ भी ले डाला, तो अचानक ऐसा क्या हो गया कि विरोधी, मोदी जी का नाम तक बदलने पर तुल गए । अचानक मोदी जी को पलटूराम, पलटूराम कहने लगे । अगला हिंदू-मुस्लिम करे तो ठीक। अगला हिंदू-मुस्लिम नहीं करने के ‘‘संकल्प’’ का एलान करे, तो पलटूराम; ये कहां का इंसाफ है, भाई!

हम तो कहेंगे कि विपक्ष की इन्हीं नाइंसाफियों की वजह से, मोदी जी का हिंदू-मुस्लिम नहीं करने का संकल्प, पूरे चौबीस घंटे भी नहीं चल पाया। इंटरव्यू के अगले ही दिन, महाराष्ट्र में मोदी जी चुनाव सभा में बोलने के लिए खड़े हुए और संकल्प खुद ब खुद टूट गया; हिंदू-मुसलमान के डॉयलाग उनके मुंह से खुद ब खुद झड़ने लगे। काश! विपक्ष वालों ने हिंदू-मुसलमान करने के खिलाफ, मोदी जी की लड़ाई का साथ दिया होता। काश! विपक्ष वालों ने इस बात की कद्र की होती कि मोदी जी हिंदू-मुसलमान करने के खिलाफ कितनी मुश्किल लड़ाई लड़ रहे थे, बाहर कम और अंदर ज्यादा! 

काश! विपक्ष वालों ने इस लड़ाई में कुछ जिम्मेदारी दिखाई होती। कम से कम उसे मोदी जी को हिंदू-मुस्लिम करते रहने के लिए उकसाने से तो दूर रहना चाहिए था। लेकिन, नहीं वे तो हिंदू-मुस्लिम न करने का संकल्प लेने के लिए  ही  मोदी जी के पीछे पड़ गए। उन्होंने सिर्फ मोदी जी का पलटना देखा, यह तक नहीं देखा कि मोदी जी हिंदू-मुस्लिम करने से पलट रहे थे। फिर क्या, जो होना था, वही हुआ। मोदी जी ने भी गुस्से में कहा कि अच्छा, मुझे पलटूराम कहते हो, तो फिर में वाकई पलट के दिखाता हूं। और एक बार फिर पलट गए; हिंदू-मुस्लिम करने पर! हम विरोधियों से ही पूछते हैं कि क्या आप लोग यही चाहते थे कि मोदी जी, हिंदू-मुसलमान ही करते रहें! पब्लिक का इशारा देखें ही नहीं, बराबर हिंदू-मुसलमान ही करते रहें! मोदी जी से हिंदू-मुस्लिम कराते रहने का ये पाप तो विपक्ष के ही सिर पर है।

खैर! मोदी जी को पलटूराम कहना तो इसलिए भी गलत है कि पलटूराम की पदवी तो खाली ही नहीं है। नीतीश बाबू को पहले ही पलटूराम घोषित किया जा चुका है और पक्ष-विपक्ष, सब की ओर से सर्वसम्मति से पलटूराम घोषित किया जा चुका है। अब जबकि नीतीश बाबू, एक बार फिर मोदी जी के सहयोगी हो चुके हैं, मोदी जी कम से कम यह नहीं चाहेंगे कि उनसे लेकर, पलटूराम की उपाधि उन्हें दे दी जाए। बेशक, कुछ लोगों ने ध्यान दिलाया है कि नीतीश कुमार की उपाधि को तेजस्वी की कृपा से पब्लिक में पलटूराम से ज्यादा पलटू चाचा के रूप में ही याद किया जाता है। अगर, उनके लिए पलटू चाचा की उपाधि को ही औपचारिक रूप दे दिया जाए, तो मोदी जी को पलटूराम नहीं तो, पलटू ताऊ का नाम देने का रास्ता तो खुल ही सकता है। 

लेकिन, हमें नहीं लगता है कि मामला इतना ही सरल है--ये ताऊ, वो चाचा! नीतीश कुमार की पलटी और मोदी जी की पलटी में काफी अंतर है। वास्तव में नीतीश कुमार की पलटी जैसे निर्विवाद पलटी है, वैसे मोदी जी की पलटी निर्विवाद नहीं है। और नीतीश कुमार की पलटी निर्विवाद पलटी क्यों है? क्योंकि नीतीश कुमार ने खुद माना है और एक बार नहीं बार-बार माना है कि वह पलटे हैं। बल्कि उन्होंने तो बार-बार पलटने की बात भी मानी है। हां! उसके साथ यह भी जोड़कर कि  अब फिर नहीं पलटेंगे। अब तक पलटी खाई सो  खाई, आगे खाए राम दुहाई! पर मोदी जी ने क्या एक बार भी माना है कि वो पलटे हैं। उल्टे उन्होंने तो गंगा को साक्ष्य बनाकर यही कहा था कि वह हिंदू-मुसलमान नहीं करते हैं, नहीं करेंगे। 

अब दूसरे सबूत दिखाते रहें कि यहां हिंदू-मुसलमान किया, वहां किया, वहां भी किया, कहां नहीं किया, हर जगह वही तो किया; मोदी जी मानने वाले नहीं हैं। वह तो वीडियो साक्ष्य के सामने भी यही कहेंगे कि विपक्षी सब बैर पड़े हैं, बरबस मुंह से कहलायो! और जब अगले ने  हिंदू-मुसलमान किया ही नहीं, तो न करने के संकल्प में या संकल्प से भी, पलटी कैसी? और संकल्प लेने वाला पलटूराम कैसे?

आखिर में एक बात और। मोदी जी के विरोधी भी यह तो मानते ही हैं कि गंगा पर मोदी जी अगर हिंदू -मुसलमान की बात करने से पलटे थे, तो उसके अगले ही दिन फिर पलट गए। पहली पलटी अगर पलटी थी, तो दूसरी पलटी तो सुलटी हुई। मोदी जी ने सब सुलटा लिया है। पहले भी वह हिंदू-मुसलमान ही कर रहे थे, आगे भी हिंदू-मुसलमान ही करेेंगे। इसमें पलटी की बात कहां से आ गयी। कोई पलटूराम ना कहे उनको...। 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)

 

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