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कटाक्ष: अब एक चुनाव, एक उम्मीदवार!

चूंकि डेमोक्रेसी की मम्मी जी का मामला है, एक उम्मीदवार तक पहुंचने के भी कई विकल्प हैं: खजुराहो मॉडल, सूरत मॉडल, इंदौर मॉडल और अब गांधीनगर मॉडल।
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Photo : PTI

मोदी जी ने क्या कुछ गलत कहा थाराहुल गांधी अमेठी से भागे हैं कि नहीं। अमेठी से भागकर बगल में रायबरेली में गए हैंपर भागे तो हैं। भागने के लिए दूर जाना जरूरी थोड़े ही हैबगल में भी भागकर जाया जा सकता है।

 और माना कि राहुल रायबरेली से लड़ेंगेपर अमेठी में लडऩे से तो भागे ही हैं और वह भी स्मृति ईरानी से मुकाबले से। और इंसान भागता तभी हैजब उसे डर लगता है। सच पूछिए तो बड़े-बड़े धावक भी जो जोरों से भागते हैंतो हार के डर से ही भागते हैं। पर इतनी सही बात कहने का भी मोदी जी को क्या सिला मिलाजिसे देखोउल्टे बेचारे मोदी जी को ही सुना रहा है - डरो मतभागो मत!

और तो और मणिपुर जैसे संवेदनशील मामले में भी भाई लोग मोदी जी को ताने मारने से बाज नहीं आ रहे हैं। कहते हैं कि मणिपुर को जलते एक साल हो गयाआपको उसकी तरफ देखने की फुर्सत नहीं हुईकोई बात नहीं। आग ससुरी धधकती ही जा रही हैआपकी वहां चुनाव प्रचार करने की हिम्मत नहीं हुईकोई बात नहीं। पर आप मणिपुर की दो में से एक सीट छोडक़र ही क्यों भाग गए?

 राहुल गांधी की पार्टी तो फिर भी अमेठी और रायबरेलीदोनों से चुनाव मैदान में हैपर आप की पार्टी तो आउटर मणिपुर की सीट ही छोडक़र भाग गयीगांठ की जीती हुई सीट छोडक़र। राहुल गांधी तो अमेठी से हार गए थेपर आप की पार्टी तो आउटर मणिपुर से भी जीती थीफिर भी इस बार भाग गए। साहेब यह कैसा डर है - अपनी ही लगायी आग के नतीजों का!

और जिनकी मणिपुर से भागने पर नजर नहीं पड़ीवे भी कश्मीर से भागने पर तानाकशी करने से बाज नहीं आ रहे हैं। कह रहे हैं कि कश्मीर में अब किस से डर गएकश्मीर को तो अब सच्ची आज़ादी मिल चुकी है - धारा-370 से आज़ादी। वैसे आज़ादी अब तक चुनाव वगैरह से भी मिली हुई है।

 और बाकी हर तरह की आजादियों से भी आज़ादी। शहरी आजादियों से आज़ादी। प्रेस-व्रेस की आज़ादी से आज़ादी। राजनीतिक गतिविधियों से आज़ादी। दिल्ली से राज चलाने वालों कोजम्मू-कश्मीर की पब्लिक से आज़ादी। और कश्मीर की इस आज़ादी का नाम ले-लेकरबाकी सारे देश में चुनाव में वोट बटोरने की भी आज़ादी। फिर कश्मीर में ही चुनाव के मैदान से क्यों भाग गएघाटी की तीन की तीनों सीटों पर उम्मीदवार खड़े करने से ही डर गए।

 कमाल है 2019 के चुनाव मेंजब कश्मीर को धारा-370 से आज़ादी हासिल नहीं हुई थीतब तो आप की पार्टी जम्मू और लद्दाख के साथघाटी की तीनों सीटों पर भी चुनाव लड़ी थी। हार तय मानकर लड़ी थीफिर भी चुनाव लड़ी थी। कश्मीरियों पर इतनी मेहरबानियां करने के बाद कैसे मोदी जी की पार्टी डर गयी और घाटी अपने शिखंडियों के नाम कर के ही भाग गयी।

और हद तो यह है कि बृजभूषण शरण सिंह के मामले में मोदी जी के मास्टर स्ट्रोक को भी विरोधी डरने और भागने का मामला बनाने की कोशिश कर रहे हैं। बताइएमोदी जी ने बृजभूषण का टिकट काटकर नारी का सम्मान किया है कि नहींरही बात महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न वगैरह के आरोपों की तोउन पर अदालत में कार्रवाई चल तो रही है। और क्या मोदी जी मनमाने तरीके से अगले को फांसी चढ़ा देते या योगी जी उसके घर पर बुलडोजर भिजवा देते?

 न भाई नकानून का राज भी एक चीज होती है। और जब कानून अपना काम कर रहा हैबृजभूषण भी अपना काम कर रहा हैतो आधुनिक चाणक्यों को भी अपना काम करना ही था। बृजभूषण का टिकट काटकरउसके खिलाफ शिकायत करने वालों का मुंह बंद करा दिया और बेटे करण भूषण को टिकट थमाकरबृजभूषण को भी खुश कर दिया। कम से कम इसमें डरने और भागने वाली तो दूर-दूर तक कोई बात ही नहीं है। न तो महिला पहलवानों वगैरह के शोर के डर से बृजभूषण का टिकट काटा गया है और न बृजभूषण के डर से करण भूषण के लिए टिकट बांटा गया है। यह किसी डर का नहींप्राकृतिक उत्तराधिकार का मामला है - बाप का टिकट बेटे को नहीं मिलेगा तो क्या पड़ोसियों को मिलेगाऔर रही भागने की बाततो अब बाप-बेटा मिलकरजाहिर है कि मोदी जी की कृपा सेभारतीय कुश्ती पर अपने दबदबे के विरोधियों को भगाएंगे।

और कुछ लोग जबर्दस्ती सूरत से लेकर इंदौर तक के मामलों कोमोदी जी के डरने और भागने का मामला साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। यह सरासर ज्यादती है। खजुराहोसूरतइंदौर और सुना है अब गांधीनगर भीकिसी डर के नहींकिसी भागने के नहींमोदी जी की मजबूती के नाम हैं। और जो मजबूत होता हैवह डरता नहीं हैउल्टे दूसरों को डराता है। कमाल की बात हैविरोधी एक तरफ कह रहे हैं कि खरीदकरनहीं तो डरा-धमकाकरविरोधी उम्मीदवारों को जबर्दस्ती बैठाया जा रहा हैबिना मुकाबले के खुद को जीता घोषित कराया जा रहा है। दूसरी तरफ कहते हैं कि मोदी डर रहा हैमुकाबले से भाग रहा है। भाइयो तय कर लोमोदी डर रहा है या डरा रहा हैमोदी मुकाबले से भाग रहा है या भगा रहा है! और रही बात डेमोक्रेसी की तो उम्मीदवार खड़े हो जाएंमुकाबला हो जाएहार-जीत हो जाएयह तो मामूली से मामूली डेमोक्रेसी में भी हो जाता है। डेमोक्रेसी की मम्मी क्या इतने पर ही रुक जाएगीहर्गिज नहीं। हम एक देशअनेक चुनाव सेपहले एक देशएक चुनाव और फिर वन नेशननो इलेक्शन की ओर जाएंगे। एक चुनावएक उम्मीदवारइसी दिशा में एक बड़ा कदम है। और चूंकि डेमोक्रेसी की मम्मी जी का मामला हैएक उम्मीदवार तक पहुंचने के भी कई विकल्प हैं: खजुराहो मॉडलसूरत मॉडलइंदौर मॉडल और अब गांधीनगर मॉडल। एक उम्मीदवार तक पहुंचने के मॉडल ही मॉडलचुन तो लें। चुनाव आयोगअदालत वगैरह से बस इतनी सी अर्ज है - मम्मी की लोरियां सुनो और सोते रहो!

 (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं।)

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