सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: 12 साल तक जिसका कब्जा, उसकी संपत्ति!
अक्सर हम कई वजहों से अपनी जमीन या मकान दूसरों को कुछ समय के लिए दे देते हैं या कुछ लोग अपनी जरूरत अनुसार कई बार अवैध अतिक्रमण भी कर लेते हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के नए आदेश के अनुसार अब ये जोखिम भरा हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस संबंध में एक बेहद अहम फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कब्जाधारी व्यक्ति (एडवर्स पजेसर) उस जमीन या संपत्ति का अधिकार लेने का दावा कर सकता है जो 12 वर्ष या उससे अधिक समय से बिना किसी व्यवधान के उसके कब्जे में है।
इतना ही नहीं, शीर्ष अदालत ने यह भी कहा है कि अगर ऐसे व्यक्ति को इस जमीन से बेदखल किया जा रहा है तो वह कानूनी सहायता भी ले सकता है।
इस फैसले से साफ है कि अगर वास्तविक या वैध मालिक अपनी अचल संपत्ति को दूसरे के कब्जे से वापस पाने के लिए 12 साल की तय समयसीमा के अंदर कदम नहीं उठा पाएंगे तो उनका मालिकाना हक समाप्त हो जाएगा और उस अचल संपत्ति पर जिसने 12 साल तक कब्जा कर रखा है, उसी को कानूनी तौर पर मालिकाना हक दे दिया जाएगा।
गौरतलब है कि इससे पूर्व 2014 में उच्चतम न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने फैसला दिया था कि एडवर्स कब्जाधारी व्यक्ति जमीन का अधिकार नहीं ले सकता है। साथ ही कहा था कि अगर मालिक जमीन मांग रहा है तो उसे यह वापस करनी होगी। इसके साथ ही कोर्ट ने इस फैसले में यह भी कहा था कि सरकार एडवर्स पजेशन के कानून की समीक्षा करे और इसे समाप्त करने पर विचार करे।
सुप्रीम कोर्ट के तीन जज जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने इस कानून के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए कहा कि कानून उस व्यक्ति के साथ है जिसने अचल संपत्ति पर 12 वर्षों से अधिक से कब्जा कर रखा है।
अगर 12 वर्ष बाद उसे वहां से हटाया गया तो उसके पास संपत्ति पर दोबारा अधिकार पाने के लिए कानून की शरण में जाने का अधिकार है। हालांकि, उन्होंने इस बारे में विभिन्न उच्च न्यायालय और शीर्ष अदालत की पीठ के अलग-अलग दिए गए फैसलों को देखते हुए इस मुद्दे को अंतिम रूप से निर्णित करने के लिए बड़ी बेंच (संविधान पीठ) को रेफर कर दिया।
तीन सदस्यीय बेंच ने कहा, 'हमारा फैसला है कि संपत्ति पर जिसका कब्जा है, उसे कोई दूसरा व्यक्ति बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के वहां से हटा नहीं सकता है। अगर किसी ने 12 साल से अवैध कब्जा कर रखा है तो कानूनी मालिक के पास भी उसे हटाने का अधिकार भी नहीं रह जाएगा। ऐसी स्थिति में अवैध कब्जे वाले को ही कानूनी अधिकार, मालिकाना हक मिल जाएगा। हमारे विचार से इसका परिणाम यह होगा कि एक बार अधिकार (राइट), मालिकाना हक (टाइटल) या हिस्सा (इंट्रेस्ट) मिल जाने पर उसे वादी कानून के अनुच्छेद 65 के दायरे में तलवार की तरह इस्तेमाल कर सकता है, वहीं प्रतिवादी के लिए यह एक सुरक्षा कवच होगा। अगर किसी व्यक्ति ने कानून के तहत अवैध कब्जे को भी कानूनी कब्जे में तब्दील कर लिया तो जबर्दस्ती हटाए जाने पर वह कानून की मदद ले सकता है।'
पीठ ने लिमिटेशन एक्ट, 1963 की धारा 65 का हवाला देते हुए कहा कि, इसमें यह कहीं नहीं कहा गया है कि एडवर्स कब्जाधारी व्यक्ति अपनी भूमि को बचाने के लिए मुकदमा दायर नहीं कर सकता है। ऐसा व्यक्ति कब्जा बचाने के लिए मुकदमा दायर कर सकता है और एडवर्स कब्जे की भूमि का अधिकार घोषित करने का दावा भी कर सकता है।
बता दें कि, लिमिटेशन ऐक्ट 1963 के तहत निजी अचल संपत्ति पर लिमिटेशन (परिसीमन) की वैधानिक अवधि 12 साल जबकि सरकारी अचल संपत्ति के मामले में 30 वर्ष है। यह मियाद कब्जे के दिन से शुरू होती है।
इसके फैसले के साथ ही कोर्ट ने गुरुद्वारा साहिब बनाम ग्राम पंचायत श्रीथला(2014), उत्तराखंड बनाम मंदिर श्रीलक्षमी सिद्ध महाराज (2017) और धर्मपाल बनाम पंजाब वक्फ बोर्ड (2018) में दिए गए फैसलों को निरस्त कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में स्पष्ट किया गया है कि अगर किसी ने 12 वर्ष तक अवैध कब्जा जारी रखा और उसके बाद उसने कानून के तहत मालिकाना हक प्राप्त कर लिया तो उसे असली मालिक भी नहीं हटा सकता है। अगर उससे जबर्दस्ती कब्जा हटवाया गया तो वह असली मालिक के खिलाफ भी केस कर सकता है और उसे वापस पाने का दावा कर सकता है क्योंकि असली मालिक 12 वर्ष के बाद अपना मालिकाना हक खो चुका होता है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का निश्चित तौर पर व्यापक असर देखने को मिलेगा, साथ ही ये उन लोगों के लिए एक हथिहार बन जाएगा, जिन्होंने दूसरों की जमीन पर वर्षों से कब्जा जमा रखा है।
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