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हंगरी: देशभर के स्कूल शिक्षकों ने बड़े विरोध प्रदर्शन के लिए कसी कमर

विक्टर ओरबान की अगुवाई वाली हंगरी की रूढ़िवादी सरकार कोविड-19 संकट का हवाला देते हुए स्कूलों में अनिवार्य शिक्षण सेवाओं को लेकर एक विशेष फ़रमान जारी करते हुए शिक्षकों की हड़ताल को प्रतिबंधित करने की कोशिश कर रही है।
School teachers
फ़ोटो: 31 जनवरी को आयोजित शिक्षकों की हड़ताल (साभार: मासीना)

हंगरी भर के स्कूल शिक्षक 16 मार्च से अनिश्चितकालीन आम हड़ताल सहित बड़े विरोध प्रदर्शनों को लेकर कमर कस रहे हैं। वे बेहतर वेतन, ज़्यादा कर्मचारी, काम के बोझ में कमी और काम करने के बेहतर हालात की मांग कर रहे हैं। बुधवार 2 मार्च को शिक्षक संघ (PSZ) और डेमोक्रेटिक यूनियन ऑफ़ टीचर्स (PDSZ) के प्रतिनिधियों ने मानव संसाधन मंत्रालय के सामने मीडिया को ब्रीफ़ करते हुए 16 मार्च को आम हड़ताल पर जाने के अपने फ़ैसले पर फिर ज़ोर दिया। ऐसा सरकार के प्रतिनिधियों के साथ एक नाकाम बातचीत के बाद किया जा रहा था। 

गुरुवार को सैकड़ों शिक्षकों ने प्रदर्शनकारी शिक्षकों को दी जाने वाली सरकार की धमकी के विरोध में पेक्स शहर में धरना प्रदर्शन किया। शिक्षक संघ ने पहले ही देश भर के विभिन्न स्कूलों में चेतावनी देने वाली हड़ताल का आयोजन किया है।इस हड़ताल में 31 जनवरी को वह बड़ी हड़ताल भी शामिल है, जिसमें सार्वजनिक शिक्षा क्षेत्र के तक़रीबन 20,000 कर्मचारियों ने भाग लिया था।

पीएसज़ेड के अध्यक्ष ज़ुज़ा स्ज़ाबो ने मसीना को बताया कि "शिक्षा में बढ़ रहे प्रशासनिक ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ शिक्षण कर्मचारियों की ख़तरनाक स्तर तक की कमी से काम का बोझ बढ़ जाता है। इस समय शिक्षा प्रणाली में 12,000 लोगों की कमी है।इस संख्या में वे शिक्षक शामिल नहीं हैं, जिनकी जगह कोविड-19 महामारी के चलते सहकर्मियों को लाने की ज़रूरत है।”

विक्टर ओर्बन की अगुवाई वाली हंगरी की रूढ़िवादी सरकार ने शिक्षकों की होने वाली इस हड़ताल को रोकने के लिए डराने-धमकाने की रणनीति का सहारा लिया है। जनवरी में हुई बड़ी हड़ताल के बाद सरकार ने 11 फ़रवरी को कोविड-19 की स्थिति का हवाला देते हुए हड़ताल के दौरान स्कूलों के अनिवार्य कामकाज की मांग करते हुए एक विशेष फ़रमान जारी कर दिया था। मर्स ने बताया कि "इस सरकारी फ़रमान के मुताबिक़, हड़ताल की स्थिति में हड़ताल से प्रभावित सभी कार्य दिवसों के दौरान सुबह 7 बजे से लेकर शाम 4 बजे के बीच सुयोग्य शिक्षकों की ओर से छात्रों की निगरानी की जानी चाहिए। इसके अलावा, हड़ताल से प्रभावित स्कूल अपने 50% पाठों को पूरा करने के लिए बाध्य होंगे, और जो छात्र स्नातक होने वाले हैं, वे इस हड़ताल के चलते अपने अनिवार्य स्नातक विषयों में कोई भी पाठ नहीं छोड़ सकते।इसका मतलब यही है कि सरकार शिक्षकों को हड़ताल के दौरान काम करने के लिए कह रही है।

शिक्षक संघों ने इस ख़ास फरमान को चुनौती देने को लेकर संवैधानिक अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था, लेकिन अदालत ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। संवैधानिक अदालत ने हड़ताल को ग़ैर-क़ानूनी घोषित करने वाली सरकार की याचिका को भी खारिज कर दिया था। ये यूनियन उस सरकारी फ़रमान को अमान्य करने के लिए 22 फ़रवरी को इस मुद्दे को संवैधानिक अदालत ले गये, जिसे वे विरोध करने के अपने मौलिक अधिकार के लिए ख़तरा मानते हैं।

पीएसज़ेड और पीडीएसज़ेड ने 12 फ़रवरी को जारी अपने एक संयुक्त बयान में कहा कि "11 फ़रवरी, 2022 की शाम को घोषित हड़ताल के अधिकार को प्रतिबंधित करने वाला सरकारी फ़रमान मौलिक क़ानून के उलट है। ट्रेड यूनियन यह नहीं मानते कि सरकार अधिकारिता अधिनियम के आधार पर मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित करती है। आपको ऐसा करने का कोई हक़ नहीं है, यह अधिकारों का हनन है।"

साभार : पीपुल्स डिस्पैच

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