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श्रीलंका की मौजूदा स्थिति ख़तरे से भरी

यहां ख़तरा इस बात को लेकर है कि जिस तरह के राजनीतिक परिदृश्य सामने आ रहे हैं, उनसे आर्थिक बहाली की संभावनाएं कमज़ोर होंगी।
Sri Lanka
13 मई, 2022 को कोलंबो के प्रधानमंत्री के रूप में अपनी हालिया नियुक्ति के बाद एक बौद्ध मंदिर में रानिल विक्रमसिंघे।

भारत श्रीलंका के इस संकट को लेकर अपने नज़रिये में ख़ुद को मुश्किलों के बीच फंसा हुआ पाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि सरकार श्रीलंका को एक नियमित लोकतंत्र के तौर पर अहमियत देती है। लेकिन, उस देश में जो स्थिति लगातार बनती जा रही है,वह खेल ख़त्म होने तक बदलती रहने वाली है और हर स्थिति एक दुविधा से भरी हुई है।

चीज़ें अलग-अलग मोड़ ले सकती हैं। हालांकि, इन बदल रहे हालात के बीच जो सबसे अच्छी बात है,वह यह है कि राजनीतिक तबक़ा पूरी तरह से बदनाम हो चुका है और विधायी कार्य निष्क्रिय स्थिति में है, इसके बावजूद लोकतांत्रिक भावना बनी हुई है। यक़ीनन, चल रहा यह विरोध,यानी निर्वाचित सरकार की ओर से राजनीतिक जवाबदेही पूरी नहीं किये जाने के ख़िलाफ़ एक शुरुआती विद्रोह ही इस भावना की अभिव्यक्ति है। इस देश की लोकतांत्रिक बुनियाद को उस तरह का नुक़सान नहीं पहुंचा है,जिसकी भरपाई नहीं की जा सकती हो।

राजनीतिक बदलाव प्रदर्शन कर रहे लोगों की मुख्य मांग बन गयी है और यह मांग उस अपरिवर्तनीय पूर्व शर्त के भीतर अंतर्निहित है कि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को अपना पद छोड़ देना चाहिए। हालांकि, चेतावनी के साथ ही सही,मगर इस मांग को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया गया है, लेकिन राष्ट्रपति के पद से बेदखल किये जाने की पूर्व शर्त अब भी हवा में लटकी हुई है। मगर, यह किसी को नहीं पता कि बिल्ली के गले में घंटी कैसे बांधनी है।

राजपक्षे ने अच्छे अनुभव वाले वरिष्ठ राजनेता रानिल विक्रमसिंघे को अंतरिम प्रधान मंत्री के रूप में नियुक्त करके चतुराई से काम लिया है, लेकिन सचाई यही है कि रानिल विक्रमसिंघे को लेकर लोगों की आम धारणा तो यही है कि वह राष्ट्रपति के परिवार के क़रीबी हैं, और जिन पर राष्ट्रपति संकट के समय अपने परिवार की हिफ़ाज़त और हित को लेकर भरोसा कर सकते हैं। सीधे-सीधे शब्दों में कहा  जाये, तो यह स्थिति नयी बोतल में पुरानी शराब परोसने की तरह है।  

दूसरी तरफ़ फ़ायदेमंद स्थिति यह है कि विक्रमसिंघे हालांकि प्रधान मंत्री का पद छठी बार संभाल रहे हैं और उन्हें दिल्ली और पश्चिमी देशों में एक ऐसे शांत विचारक और काम करने वाले के रूप में स्वीकार्यता हासिल है, जिस पर इस लिहाज़ से भरोसा किया जा सकता है कि वह जल्दबाज़ी में फ़ैसलों नहीं लेते।इस समय श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था को संकट से बाहर निकालने के लिए विदेशी सहायता की तत्काल ज़रूरत है और इस हिसाब से विक्रमसिंघे मुफ़ीद बैठते हैं।

दूसरी ओर, विक्रमसिंघे ख़ुद भी एक बदनाम राजनेता रहे हैं, जिन्होंने कभी भी बतौर प्रधान मंत्री अपना एक भी कार्यकाल पूरा नहीं किया है, और वह संसद में एक-व्यक्ति वाली पार्टी (स्वयं) की नुमाइंदगी करते हैं और राजनीतिक रूप से एक चुकी हुई ताक़त हैं। जैसा कि कोलंबो के आर्कबिशप कार्डिनल मैल्कम रंजीथ कहते हैं, "लोग सत्यनिष्ठा वाला व्यक्ति चाहते हैं, न कि ऐसा व्यक्ति, जो राजनीति में चुका हुआ हो।"

कोलंबो में इस बात को लेकर संदेह बना हुआ है कि राजपक्षे ने विक्रमसिंघे को मुख्य रूप से प्रदर्शनकारियों की ख़ुद के बाहर किये जाने की मांग से ध्यान हटाने के लिए चुना है। बीबीसी ने बताया कि विक्रमसिंघे की नियुक्ति की यह ख़बर को श्रीलंका में "काफ़ी हद तक निराशा और अविश्वास के साथ देखा गया है।"  

यह आने वाले दिनों और हफ़्तों में अहम हो जाता है, क्योंकि राजनीतिक परिवर्तन को शांति के साथ नये चुनाव कराने और नयी सरकार के गठन आदि की मुश्किल ज़िम्मेदारी विक्रमसिंघे के कंधों पर आ गयी है। लेकिन,बड़ा सवाल यही है कि क्या वह राजपक्षे को इस्तीफ़ा देने के लिए राज़ी कर पायेंगे ?

इस बात की संभावना कहीं ज़्यादा है कि राजपक्षे इसके बजाय विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए विक्रमसिंघे का इस्तेमाल सुरक्षा दीवार की तरह करने की कोशिश करें, जिसका असली मक़सद प्रदर्शनकारियों की ओर से उनके गद्दी छोड़ने की मांग को टालना है। यह कहना पर्याप्त होगा कि विक्रमसिंघे सरकार का भविष्य अंधकारमय है।

यहां ख़तरा इस बात का है कि जो राजनीतिक परिदृश्य सामने आ रहे हैं,उससे आर्थिक बहाली की संभावनायें कमज़ोर होंगी। समानांतर रूप से कार्यकारी राष्ट्रपति की शक्तियों पर पकड़ बनाये रखते हुए और राजपक्षे को इस्तीफ़ा देने को लेकर एक तारीख़ मुकर्रर करते हुए और साथ ही कार्यकारी राष्ट्रपति के पद को ख़त्म करते हुए विक्रमसिंघे के लिए पूरक वित्त और आईएमएफ के साथ समझौते पर बातचीत कर पाना तक़रीबन असंभव होने जा रहा है। आर्थिक एजेंडे पर काम करना अपने आप में बहुत मुश्किल काम है।

लंबी अवधि के ढांचागत सुधारों के ब्योरों पर आईएमएफ़ के साथ बातचीत करने के अलावा सरकार को अल्पकालिक तरलता को अर्थव्यवस्था में लाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों से तत्काल पूरक वित्त" की व्यवस्था करने, लेनदारों को ऋण भुगतान में थोड़े समय देने की इजाज़त दिये जाने के लिए मनाने, करों को बढ़ाने और ग़ैर-जरूरी सार्वजनिक खर्च में कटौती के लिए कई क़ानून तैयार करने की ज़रूरत होगी।

बिना किसी संदेह के आईएमएफ़ ने पहले से ही अपनी वित्तीय मदद पाने के लिए ज़रूरी सुधारों के ब्योरे को रख दिया है, जिसमें बजट में कटौती से लेकर आयकर और वैट में बढ़ोत्तरी, केंद्रीय बैंक की ओर से की जाने वाली मुद्रा की छपाई से पैदा होने वाली मुद्रास्फीति को ख़त्म करने,आयात प्रतिबंधों को समाप्त करनो, रुपये को स्थिर करने के मक़सद से सरकारी हस्तक्षेप को रोकने, और सरकार के स्वामित्व वाली कंपनियों की बिक्री या आंशिक निजीकरण करने, भारी पड़ने वाले सामाजिक सब्सिडी को हटाने, और "विकास को बढ़ावा देने वाले ढांचागत सुधार" जैसे चरणबद्ध उपायों की एक लंबी श्रृंखला शामिल है।  

जहां तक राजपक्षे का सवाल है, तो ख़ासकर तब भी वह सत्ता में बने रहने के लिए दृढ़संकल्प हैं, जब जनता ने उन्हें और उनके परिवार को कथित भ्रष्टाचार और दूसरे अपराधों के लिए जवाबदेह ठहराने की मांग की है। उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देने का कोई इरादा नहीं जताया है और इसके बजाय उन्होंने अपनी कार्यकारी शक्तियों को अस्पष्ट रूप से कम किये जाने का विचार रखा है। स्थिति बेहद अस्थिर है। और अगर इस राजनीतिक गतिरोध को जल्दी से सुलझा नहीं लिया जाता है,तो आर्थिक तबाही और भी गहरी हो सकती है या पहले से कहीं ज़्यादा सामाजिक उपद्रव की संभावना बन जाती है।

राष्ट्रपति राजपक्षे को हटाने या दरकिनार करने की प्रक्रिया में किसी तरह महीनों नहीं, तो हफ़्ते तो लग ही सकते हैं और संभव है कि यह क़वायद ही पूरी तरह से नाकाम हो जाये। यही वह स्थिति हो सकती है,जब राजपक्षे हिंसक दमन (अपने पिछले रिकॉर्ड के अनुरूप) का सहारा लेकर या हुक़ूमत में सेना को एक बड़ी भूमिका देकर  इस उथल-पुथल को अपने मक़सद में बदलने के लिहाज़  से इस पल का अपने पक्ष में इस्तेमाल कर सकते हैं।

शीर्ष सैन्य कमांडरों,ख़ासकर सेना प्रमुख, मेजर जनरल शैवेंद्र सिल्वा और रक्षा सचिव, सेवानिवृत्त जनरल कमल गुणरत्ने को राष्ट्रपति के क़रीबी के रूप में जाना जाता है। श्रीलंका के सैन्य कर्मी सुविधाओं और विशेषाधिकारों वाला जीवन जीते हैं और प्रभावित होने वाले के रूप में उन्हें इस हुक़ूमत की हिफ़ाज़त के लिए अपनी बंदूकों की नाल प्रदर्शनकारियों की तरफ़ करने में कोई दिक़्क़त नहीं होगी।

बेशक, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भूमिका प्रासंगिक तो है, लेकिन इसे बढ़ा-चढ़ाकर भी पेश नहीं किया जाना चाहिए। सैन्य नेतृत्व को राजनीति में हस्तक्षेप करने या हुक़ूमत के समर्थन में चल रहे विरोध प्रदर्शनों के क्रूर दमन से रोकने की संभावना तो नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि मौजूदा सेना प्रमुख पहले से ही कथित युद्ध अपराधों (गृहयुद्ध के दौरान बतौर रक्षा सचिव गोटाबाया राजपक्षे की निगरानी में किये गये अपराधों) के लिए अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना कर रहे हैं।

विरोधाभासी रूप से औसत श्रीलंकाई लोगों की आर्थिक कठिनाइयों को कम करने और राजनीतिक बदलाव के लिए चल रहे उपद्रव की तीव्रता को कम करने के लिहाज़ से आईएमएफ़ अगर कोई क़दम उठाता है, तो इससे राजपक्षे को सांस लेने की भी जगह मिल सकती है, जिससे उन्हें और उनके परिवार को ख़ुद के बहाल करने की स्थिति बन सकती है। इस परिवार का ख़ाक़ से भी उठ खड़ा होने का इतिहास रहा है।

इस समय श्रीलंका महज़ उन 35 विकासशील देशों में से एक देश है, जो महामारी के बाद आर्थिक बहाली से जूझ रहे हैं। बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की प्रसव पीड़ा के बीच बड़ी शक्तियों के पास श्रीलंका के लिए बहुत कम समय बचा है। इसलिए, इस बात की संभावना है कि सत्ता का बेरहमी से इस्तेमाल करने वाले गोटबाया राजपक्षे अपने नेतृत्व को पेश आने वाली चुनौती से बचने के लिए किसी भी तरह प्रदर्शनकारियों को धीरे-धीरे कमज़ोर करने की कोशिश करेंगे।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Sri Lankan Situation is Fraught with Danger

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