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स्वच्छता अभियान: प्रधानमंत्री की घोषणा और भारत की हक़ीक़त

अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो 2019 के पहले 6 माह में ही 50 सफाई कर्मचारियों की मौतें हो चुकी हैं। स्वच्छ रहना हर किसी को अच्छा लगता है लेकिन उसकी कीमत कुछ लोग चुकाते हैं।
swachchta abhiyan
Image courtesy: NDTV

भारत में स्वच्छता अभियान को लेकर मीडिया में काफी चर्चा है। 2 अक्टूबर, 2014 को मोदी ने स्वच्छता अभियान यह कहते हुए शुरूआत की थी कि गांधी की 150 वीं जयंती पर भारत को खुले में शौच मुक्त कर गांधी के सपने को पूरा किया जाए।

मोदी सरकार ने इसके लिए 11 करोड़ परिवारों में शौचालय बनाने का दावा किया है और 2 अक्टूबर, 2019 को भारत को प्रधान मंत्री द्वारा खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित कर दिया गया। प्रधानमंत्री ने बताया कि उनकी सरकार ने 60 महीने में 11 करोड़ शौचालय का निर्माण कर 60 करोड़ आबादी को खुले में शौच करने से निजात दिलायी है। इसके कारण लोगों को स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च कम हुआ है।

ग्रामीण अचंलों और आदिवासी इलाकों में रोजगार का अवसर मिला है। वे कहते हैं कि स्वच्छ भारत अभियान जीवन रक्षक होने के साथ-साथ जीवन स्तर को ऊपर भी उठा रहा है। प्रधान मंत्री उदाहरण देते हैं कि यूनिसेफ के अनुमान के अनुसार बीते पांच वर्षों में ‘स्वच्छ भारत’ से भारत की अर्थव्यवस्था पर 20 लाख करोड़ रुपये से अधिक का सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इससे 75 लाख से अधिक लोगों को रोजगार के अवसर बने हैं।

मोदी जी ने स्वच्छता अभियान को लेकर काफी बड़ी-बड़ी बातें कह दीं। अगर उनकी बात को सही मान कर धरातल पर देखा जाए तो 20 लाख करोड़ रुपये के सकारात्मक प्रभाव के बाद भी भारत के जीडीपी की वृद्धि दर घटते-घटते 5 प्रतिशत हो गई है। स्वच्छता अभियान का जो 20 लाख करोड़ रुपये का सकारात्मक प्रभाव पड़ा, उसका लाभ किसको मिला?

दूसरी बात शौचालय बनाने से 75 लाख लोगों को रोजगार मिला है तो बेरोजगारी दर कम होने की जगह बढ़ती क्यों जा रही है? मोदी सरकार जब सत्ता में आई तो भारत की बेरोजगारी दर 5 प्रतिशत के करीब थी, जो आज बढ़कर 8 प्रतिशत से अधिक हो गई है- जो कि 45 साल में सबसे ज्यादा है।

ऐसा तो नहीं कि 11 करोड़ शौचालय के निर्माण के लिए जो सरकार ने पैसा या उसमें से अधिकांश पैसे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गये हों! इन पैसों की ऑडिट होनी चाहिए या नहीं? तीसरी बात प्रधानमंत्री बोल रहे हैं कि ‘लोगों के स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च कम हुआ है’। स्वास्थ्य पर खर्च कम होने से लोगों के पास बचत होगी। बचत होने से लोग खाने-पीने में खर्च करेंगे और सामान खरीदेंगे। अगर लोग खरीदारी कर रहे हैं तो भारत में मंदी क्यों है?

विश्व भूख सूचकांक में भी भारत पिछड़ते जा रहा है और 2018 की रैकिंग में 117 देशों में भारत 102वें स्थान पर है, जो कि पड़ोसी देश बंगलादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका से काफी पीछे हैं। इस सुचकांक में 2016 में 118 देशों में 97वां स्थान पर भारत था और मोदी जी जब सत्ता में आये थे उस समय भारत का 75 देशों में 55 वां स्थान था।

इसी तरह विश्व खुशहाली के आंकड़े में भी भारत लगातार नीचे जा रहा है और वह 2013 में 111, 2015 में 117, 2016 में 118, 2017 में 122, 2018 में 133 और 2019 में 140 वें स्थान पर पहुंच गया है, जो कि पाकिस्तान और बंगलादेश जैसे गरीब मुल्क से भी पीछे है। अगर स्वच्छ भारत से लोगों की बचत हो रही है तो वह पैसा कहां जा रहा है? लोग क्यों बेरोजगार, भूखे, कुपोषित हैं? लोगों की खुशियां किसने छीन लीया है? अगर भारत के प्रधानमंत्री इसका भी जबाब देते तो अच्छा होता।

प्रधानमंत्री ने 2 अक्टूबर, 2019 को भारत को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया, लेकिन उनकी घोषणा से एक दिन बाद ही 3 अक्टूबर को मध्य प्रदेश के सागर जिले में खुले में पेशाब करने से दो पड़ोसियों के बीच झगड़े में एक बच्चे की मृत्यु हो गई।

3 अक्टूबर को ही सहारनपुर में खुले में कुत्ते की शौच करने के विवाद में सरकार में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी के नेता के बेटे की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। 2 अक्टूबर की घोषणा से एक सप्ताह पहले 25 सितम्बर, 2019 को मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में खुले में शौच कर रहे दो बच्चों की पीट कर हत्या कर दी गई।

16 अक्टूबर, 2019 को नोएडा सेक्टर 85, 86 व 124 में खुले में मल-मूत्र करने पर 11 लोगों पर जुर्माना लगाकर 1,200 रुपये वसूला गया। नोएडा प्राधिकरण द्वारा 3-16 अक्टूबर, 2019 तक 66 लोगों पर जुर्माना लगाकर 7,100 रुपये वसूला गया है। इसी तरह पॉलिथीन के प्रयोग करने पर आठ लोगों से 11 हजार रुपये जुर्माना वसूला गया है।

दिल्ली के अन्दर झुग्गी-बस्ती में आबादी के हिसाब से शौचालय की व्यवस्था नहीं है और लोगों को मजबूरन बाहर जाना पड़ता है। दिल्ली चुनाव नजदीक होने के कारण नगर निगम कार्रवाई नहीं कर रही है। आखिर किस मुंह से भारत के प्रधानमंत्री ने भारत को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया? क्या स्वच्छता के नाम पर लोगों की जेब से पैसा निकालकर सरकार अपना खजाना भरना चाहती है?

भारत सरकार ने 11 करोड़ शौचालय बना दिया, लेकिन उसकी सफाई के लिए किस तरह की व्यवस्था नहीं की है। उसके टैंक भरेंगे तो कौन साफ करेगा, कैसे साफ होगा? हम मान लें कि 1,000 शौचालय पर मशीन के साथ एक व्यक्ति भी लगें, तो 11 करोड़ शौचालय की सफाई के लिए एक लाख दस हजार सफाई कर्मचारियों की अवश्यकता पड़ेगी।

सरकार ने कितने सफाई कर्मचारियों की भर्ती की है? टंकी से निकलने वाली गंदगी के लिए सरकार ने क्या व्यवस्था की है? दिल्ली में देखा गया है कि अनियोजित कॉलोनियों में टंकी से मल-मूत्र इकट्ठा कर उसको खुले में ले जाकर छोड़ दिया जाता है।
 
हर साल देश में सैकड़ों सफाई कर्मचारियों की जानें चली जाती हैं। राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 1993 से 5 जुलाई, 2019 तक देश के 20 राज्यों में 814 सफाईकर्मियों की मौतें हुईं हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार तामिलनाडू के बाद प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात में 156 सफाई कर्मियों की जानें गईं हैं। सफाईकर्मियों की मौत के ये आंकड़े और भी ज्यादा हैं।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय को कहना पड़ा- कि 'ऐसा कोई भी देश नहीं है, जहां लोगों को गैस चेम्बर में मरने के लिए भेजा जाता है। हर महीने कम से कम चार-पांच की मौत नालों की सफाई करने से होती है।’

अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो 2019 के पहले 6 माह में ही 50 सफाई कर्मचारियों की मौतें हो चुकी हैं। प्रधानमंत्री जी, अगर आप ‘स्वच्छता’ के असली सिपाहियों पर सहानुभूति दिखाते हैं या पैर भी धोते हैं तो केवल वोट बटोरने के लिए। स्वच्छ रहना हर किसी को अच्छा लगता है लेकिन उसकी कीमत कुछ लोग चुकाते हैं।

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