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तबरेज़ अंसारी लिंचिंग मामला : धीमी और असफल जांच की कहानी

वही वीडियो रिकॉर्डिंग, जिसे भीड़ की 'बहादुरी' को दिखाने के लिए सोशल मीडिया पर प्रसारित किया गया था, सबूत का एक बड़ा हिस्सा बन गया जिसके कारण 13 में से 10 आरोपियों को इस निर्मम हत्या के लिए दोषी ठहराया गया है।
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फ़ोटो : PTI

नई दिल्ली: 24 वर्षीय तबरेज़ अंसारी अपनी शादी के मौके पर झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले में स्थित अपने घर लौटा था, और शादी 26 अप्रैल, 2019 को हुई थी। लेकिन उसे क्या पता था कि उसका वैवाहिक जीवन इतना छोटा होगा। बाइक चोरी के संदेह में एक भीड़ ने उस पर हमला किया और बाद में गंभीर चोटों के कारण उसकी मौत हो गई थी।

उनकी पत्नी शाइस्ता परवीन, जो अब 23 साल की हैं, ने न केवल अपने पति खोया दिया बल्कि तनाव और कमजोर स्वास्थ्य के कारण अपने पहले बच्चे को भी खो दिया है। इस दोहरी मार से नवविवाहिता की जिंदगी बिखर सी गई है।

वह ईद का मौका तहा जब वह अपने दो दोस्तों के साथ अपने गृहनगर कदमडीह गया था - जहाँ वह कभी-कभी त्योहारों पर अपनी चाची से मिलने जाता था। 19 जुलाई की रात को लौटते समय करीब 10 बजे पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर के धतकीडीह इलाके में भीड़ ने उन्हें रोक लिया और घेर लिया।

भीड़ ने उसे पकड़ लिया जबकि उसके दोस्त किसी तरह भागने में सफल रहे। कथित तौर पर भीड़ ने उस पर बाइक चोरी करने का आरोप लगाते हुए उसे बेरहमी से पीटना शुरू कर दिया।  रिपोर्ट्स के मुताबिक, उसे बिजली के खंभे से बांधा गया और करीब आठ घंटे तक उसके साथ मारपीट की गई। हत्यारी भीड़ ने उनसे 'जय श्री राम' और 'जय हनुमान' के नारे भी लगवाए।

इस खौफनाक कृत्य को कैमरे पर क़ैद किया गया और बाद में इंटरनेट पर वायरल कर दिया गया। वही वीडियो रिकॉर्डिंग, जिसे भीड़ की 'बहादुरी' दिखाने करने के लिए सोशल मीडिया पर डाला गया था, सबूत का एक बड़ा हिस्सा बना जिसके कारण 13 में से 10 आरोपियों को निर्मम हत्या का दोषी पाया गया।

सरायकेला-खरसावां की एक सत्र अदालत ने 27 जून को महेश महली, प्रेम चंद महली, अतुल महली, विक्रम मंडल, प्रकाश मंडल, चामू नायक, मदन नायक, सुनामो प्रधान, कमल महतो और भीम सिंह मुंडा को इस अपराध का दोषी पाया। सज़ा का ऐलान 5 जुलाई को किया जाएगा। 

चार साल तक चली सुनवाई के दौरान बाकी तीन आरोपियों में से एक की मौत हो गई, जबकि दो को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया है।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (प्रथम) अमित शेखर ने उन्हें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 295 (बी) (पूजा स्थल को नष्ट करना और नुकसान पहुंचाना), 304 (1) (गैर इरादतन हत्या), 147 (दंगा करना), 148 (दंगा करना तथा घातक हथियार से लैस होना) धारा 149 (गैरकानूनी सभा) और 325/34 (सामान्य इरादे से जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाना) के तहत दोषी पाया है।

जानकार वकील के रूप में अभियोजन पक्ष की सहायता कर रहे वकील अल्ताफ हुसैन ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "हम अदालत में मांग करेंगे कि उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी जाए।"

यह पूछे जाने पर कि उन्हें हत्या के लिए दोषी क्यों नहीं ठहराया गया, उन्होंने कहा कि आरोपियों को आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी ठहराने के लिए अपराध का इरादा या मकसद किसी भी उचित संदेह से परे स्पष्ट होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि, “विस्तृत निर्णय सुनाए जाने के बाद ही इस पर टिप्पणी की जा सकती है। तो चलिए 5 जुलाई का इंतजार करते हैं।''

जैसे ही हमला शुरू हुआ, एक दर्शक ने कथित तौर पर अपराध स्थल से पुलिस को सूचित किया था। लेकिन पुलिस अगले दिन सुबह करीब 7.30 बजे मौके पर पहुंची थी। 

विडंबना यह है कि पीड़ित को कथित चोरी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और फिर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) ले जाया गया, जहां पीड़ित को केवल प्राथमिक उपचार दिया गया। गंभीर चोटें लगने के बावजूद उन्हें छुट्टी दे दी गई और फिर जेल भेज दिया गया।

दो दिनों के बाद, अंसारी ने सिरदर्द सहित पूरे शरीर में गंभीर दर्द की शिकायत की। उन्हें जेल से सरकारी अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वहां कथित तौर पर डॉक्टरों ने उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। यहाँ तक कि उन्हें जीवित रहते हुए भी मृत घोषित कर दिया गया। जब उसे दूसरे डॉक्टर के पास ले जाया गया तब तक बहुत देर हो चुकी थी। नतीजतन, अंसारी की 22 जून को मौत हो गई। 

लापरवाही और ख़राब जांच

प्रारंभिक शव की जांच की रिपोर्ट स पता चला कि मौत का तत्काल कारण दिल का दौरा पड़ना था, पुलिस ने आरोप पत्र से हत्या के आरोप को हटा दिया और इसे गैर इरादतन हत्या का मामला बना दिया।

परिणामस्वरूप, इस पर पूरी दुनिया में पुलिस की आलोचना हुई। बढ़ते आक्रोश के बाद, बाद में शव परीक्षण रिपोर्ट की समीक्षा के लिए डॉक्टरों का एक पैनल गठित किया गया। प्रारंभिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट को खारिज करते हुए विशेषज्ञों ने निष्कर्ष निकाला कि मृतक की खोपड़ी में फ्रैक्चर हुआ था। उन्हें उनके दिल में खून के थक्के भी मिले।

इस रिपोर्ट के बाद, जांचकर्ताओं ने पूरक आरोप पत्र दाखिल करते हुए आईपीसी की धारा 302 को जोड़ दिया।

इस तथ्य के बावजूद कि उन्हें हमले के बारे में सूचित किया गया था, पुलिस को मौके पर पहुंचने में लगभग साढ़े नौ घंटे लग गए थे। अगर उन्होंने समय रहते हस्तक्षेप किया होता तो अंसारी आज जिंदा होता।

ऐसा लगता है कि पुलिस ने अपनी जान बचाने के लिए पुलिस पार्टी पर माओवादियों के हमले का हवाला देकर देरी से पहुंचने का बहना बना दिया था। एक घात लगाकर किया गया हमला - जिसमें पांच पुलिसकर्मी मारे गए थे – जो घटना से तीन दिन पहले हुआ था। 

माओवादियों के हमले के बाद, झारखंड पुलिस निदेशालय ने पुलिस कर्मियों को निर्देश दिया था कि जब तक दी गई जानकारी की पुष्टि नहीं हो जाती, तब तक रात में "बेपरवाह” मूवमेंट से बचें।

अंसारी को सदर अस्पताल या किसी अन्य मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पताल में ले जाने के बजाय पीएचसी ले जाया गया, जहां डॉक्टर ने प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें जाने दिया।

गंभीर रूप से घायल अंसारी को जेल भेज दिया गया। न तो पीएचसी में उसका इलाज करने वाले डॉक्टर और न ही पुलिस ने पीड़ित की जान बचाने का कोई प्रयास किया। तत्कालीन सरायकेला पुलिस अधीक्षक के स्थानांतरित होने और एस कार्तिक के पदभार संभालने के बाद ही जांच में तेजी आई थी।

उन्होंने गाँव में डेरा डाला और सिलसिलेवार छापे मारे। नतीजतन 11 आरोपियों को हिरासत में ले लिया गया। हमले का वीडियो फुटेज जब्त कर लिया गया और विश्लेषण के लिए केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला में भेज दिया गया था।

सरायकेला पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी सहित दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की गई। अंसारी का इलाज करने वाले चिकित्सा अधिकारी को उनके इलाज में लापरवाही के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था।

'हत्यारों का हश्र वैसा ही होना चाहिए जैसा कि मेरे पति का हुआ था' 

इस बीच, अंसारी की विधवा परवीन चाहती हैं हत्यारों को मौत की सजा से कम कुछ भी नहीं मिलना चाहिए। “मैं तब तक शांत नहीं बैठूँगी जब तक उन्हें फाँसी नहीं हो जाती। उन्होंने मेरा जीवन छीन लिया; वे जीने लायक नहीं हैं। मैं उन्हें वैसे ही पीड़ित होते देखना चाहती हूं जैसे मैं पिछले चार सालों से झेल रही हूं।'' उक्त बातें उन्होंने न्यूज़क्लिक को फोन पर बताई।

उन्होंने कहा कि, यदि इस बात को मान भी लिया जाए कि उसने (अंसारी ने) कोई अपराध किया था,  तो भी वे उसे पकड़कर पुलिस को सौंप सकते थे।

परवीन ने कहा कि, “लेकिन वे खुद ही न्यायाधीश, जूरी और जल्लाद बन गए। वह अकेला था। उसने जान की भीख मांगी, लेकिन हमलावरों ने उसकी एक न सुनी। खंभे से बंधा होने के कारण वह अपना बचाव करने में असमर्थ था। वे उसे घंटों तक पीटते रहे जैसे कि वह कोई इंसान नहीं था, ” यह बातें बताते हुए परवीन की आवाज़ रुंध गई थी। 

मरने से ठीक दो महीने पहले परवीन की अंसारी से शादी हुई थी। गुस्से में परवीन ने कहा, "उनके चेहरे पर वही डर होना चाहिए, जो मैंने अपने पति के चेहरे पर देखा था तब-जब मैं उनसे जेल में मिलने गई थी।"

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें : 

Tabrez Ansari’s Lynching in Jharkhand: A Case of Flip Flops and Botched-up Probe

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