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कोरोना वायरस के इलाज का कोई तरीक़ा मौजूद नहीं, सिर्फ़ बचाव ही विकल्प

मोदी सरकार को तय करना ही होगा कि एक रात में बंद कर दी गई अर्थव्यवस्था को कैसे और कब दोबारा चालू किया जाए।
कोरोना वायरस
हीरो इमेज कैप्शन- फ़्रांस11 मई को लॉकडाउन ख़त्म करने वाला है, लेकिन इसका मतलब वहां के जनजीवन का सामान्य होना नहीं है। पेरिस में नॉत्रेदम डि पेरिस कैथेड्रल के सामने से मास्क लगाकर गुज़रती एक महिला। 27 अप्रैल, 2020

अब भारत कोरोना महामारी के रास्ते पर तेजी से दौड़ रहा है, मोदी सरकार यहां से टालमटोल भरा रवैया अख़्तियार नहीं कर सकती। अब तक केंद्र सरकार अपने फ़ैसलों को राष्ट्रीय सहमति के नाम रंग देती रही है। बेहद ध्रुवीकृत माहौल में भारतीय संघवाद के बचे-खुचे उत्साह पर खेली गईं राजनीतिक चालों ने अब तक सरकार की मदद की है।

लेकिन अलग-अलग राज्यों के हिसाब से भौतिक स्थितियां भिन्न हैं। सरकार के लिए वह समय नज़दीक आता जा रहा है, जब रातों-रात बंद कर दी गई अर्थव्यवस्था को दोबारा शुरू करने का कठिन फैसला लेना होगा। 

भारत जैसी अर्थव्यवस्था सिर्फ़ सरकार के फ़ैसले से ही चालू नहीं हो जाएगी। अर्थव्यवस्था दोबारा धीरे-धीरे ही रफ़्तार पकड़ेगी। लेकिन यहीं बड़ी समस्याएं छुपी हैं। आखिर किन परिस्थितियों के बीच व्यापार को दोबारा शुरू किया जाएगा? ऐसा समझ आता है कि कुछ क्षेत्रों में व्यापार और उद्योगों को तेजी से आगे बढ़ाया जा सकता है। लघु और मध्यम उद्योग क्षेत्र (MSME), जिसमें सिर्फ 12 मुख्य लोगों की जरूरत होती है, यहां उस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।

लेकिन अर्थव्यवस्था आपूर्ति की एक जटिल श्रंखला होती है, जिसमें चीजें एक-दूसरे से गुंथी हुई रहती हैं। बीबीसी रेडियो के साथ एक इंटरव्यू में 'महिंद्रा एंड महिंद्रा' के मालिक ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि कंपनी मई, 2021 के पहले अपना काम शुरू कर पाएगी। कई दूसरी दिक्कतों के साथ-साथ बड़ी समस्या यह है कि आपूर्तिकर्ताओं और विक्रेताओं के बिना कार बनाने का कोई मतलब नहीं है। सबसे अहम बात ग्राहकों के विश्वास को दोबारा जगाना है।

अर्थव्यवस्था दोबारा चालू करने के लिए सरकार का फ़ैसला या एपिडेमियोलॉजिस्ट का सुझाव ही काफ़ी नहीं होगा। अगर चेन्नई का निर्माता, अहमदाबाद में किसी हिस्से को बनाने वाले पर निर्भर है, जहां अब भी वायरस फैल रहा है, तो सरकार द्वारा उत्पादन शुरू किए जाने के फ़ैसले से उसे कोई लाभ नहीं होगा। सीधे शब्दों में कहें तो जितने कम समय में अर्थव्यवस्था को रोक दिया गया था, पटरी पर लाने में उससे कहीं ज़्यादा वक़्त लगेगा। 

फिर अर्थव्यवस्था को परत-दर-परत खोलने और सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों में भी आपसी संबंध है। अगर लॉकडॉ़उन के बारे में कुछ अच्छा बोलना हो, तो कहा जा सकता है कि इससे वायरस का फैलाव धीमा हुआ है। लेकिन यहां आंकड़ों की उपलब्धता पर भरोसा नहीं किया जा सकता। किसी को इसके लिए ज़िम्मेदार भी नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि लॉकऑउट में बेहद असामान्य स्थितियां हैं।

आज के न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि अमेरिका में मरने वालों का आंकड़ा आधिकारिक संख्या से कहीं ज़्यादा है। द फायनेंशियल टाईम्स के मुताबिक़ ब्रिटेन में मरने वालों का आंकड़ा 41,000 के आसपास हो सकता है, जबकि आधिकारिक पुष्टि 17,337 लोगों की है।

सच्चाई यह है कि वैक्सीन या किसी साबित थेरेपी के आभाव में लॉकडाउन से निकलने की कोई तय संभावना नहीं है। 28 अप्रैल को फ्रांस के प्रधानमंत्री एडोऑर्ड फिलिप ने पेरिस की नेशनल असेंबली में देश को दोबारा खोलने की ऱणनीति पर कहा- हमें इस वायरस के साथ रहना सीखना होगा।

इस भयावह सच्चाई के बाद भारतीय राज्य को अपने मुताबिक़ रणनीति बनानी होगी। क्या राज्य लॉकडाउन जारी रखना चाहता है, या दूसरे तरीकों और अलग-अलग तेजी से इससे निकलना चाहता है। बता दें यह सब कोरोना वायरस की दूसरी लहर के डर के साये में हो रहा है।

महामारियां लहरों में आती हैं। इतिहास की सबसे भयावह महामारी 1918 के स्पैनिश फ्लू के दौरान पहली लहर, दूसरी की तुलना में कुछ नहीं थी। दूसरी लहर ने बहुत तबाही पीछे छोड़ी थी। यह काफ़ी विडंबना की स्थिति है। क्या महामारी की अगली लहर को रोकने के लिए वायरस को दबाया जाए या आर्थिक बोझ कम करने के लिए प्रतिबंधों को हटाया जाए? 

लॉकडाउन पर जर्मनी द्वारा दी गई चेतावनी काफ़ी निराश करने वाली है। जर्मनी में हफ़्ते भर ही लॉकडॉ़उन में छूट देकर दुकानों को दोबारा खोलने की अनुमति दी गई थी। इस दौरान सभी तरह की सावधानियां बरतने की कोशिश भी की गई। लेकिन अब वहां वायरस दोबारा तेजी से फैल रहा है, ऐसा लगता है कि बर्लिन दोबारा लॉकडाउन में कड़ाई करेगा।

एक संक्रमित व्यक्ति द्वारा जितने लोगों में संक्रमण फैलाया जाता है, उसे 'वायरस उत्पादक दर' कहते हैं। अगर यह 1.0 से ज़्यादा हो जाती है, तो संक्रमण कई गुना तेजी से फैलता है। जर्मनी में यह दर 1.0 पहुंच चुकी है। चांसलर एंजेली मार्केल ने आधिकारिक तौर पर कहा था कि अगर यह दर 1.2 पहुंचती है, तो जुलाई में अस्पताल अपने संकट बिंदु पर पहुंच जाएंगे। उन्होंने कहा, ''अगर संक्रमण 1.2 लोगों को फैलता है, तो हर आदमी 20 फ़ीसदी ज़्यादा संक्रमण फैला रहा होगा। पांच लोगों में एक शख़्स दो लोगों को संक्रमित करेगा और दूसरे सभी लोग एक-एक व्यक्ति को। इस हिसाब से हम जुलाई में अपने हेल्थकेयर सिस्टम की अधिकतम क्षमता पर पहुंच जाएंगे।''

याद रहे जर्मनी दुनिया के सबसे अमीर देशों में से एक है, जो सामाजिक लोकतंत्र है, जहां बहुत विकसित स्वास्थ्य ढांचा है। यह चिंताजनक है। यह जरूर है कि संक्रमण में कई मोड़ होंगे।  एपिडेमियोलॉजी एक जटिल विज्ञान है।

अब जब कोई वैक्सीन या इलाज़ की संभावना फौरी तौर पर नहीं दिख रही है। ऐसे में सरकार को तय करना होगा कि कितनी मौतें अर्थव्यवस्था को दोबारा खोलने के लिए पर्याप्त हैं। अगर तीन मई को लॉकडाउन खोलने के बाद भारत में वायरस उत्पाद दर/RE बढ़ती है, तो हमें उलटे कदम पीछे हटाने होंगे। इससे आर्थिक नुकसान भी बढ़ेगा, ऊपर से जनता का साहस भी गिरेगा। 

दुनियाभर में लक्षणविहीन लोगों की बड़े स्तर पर टेस्टिंग वायरस रोकने की एक प्रभावकारी रणनीति रही है। लेकिन भारत में इसके लिए जरूरी ढांचा नहीं है। वक़्त और जांच ही इस रणनीति का अहम हिस्सा हैं, जितना ज्यादा क्वारंटाइन से वक़्त मिलेगा, उतनी ज़्यादा जांच हो पाएंगी। इससे ठीक तरीके से दोबारा चीजें खोलने और महामारी पर प्रतिक्रिया के लिए वक़्त मिलेगा। इसलिए कहां संक्रमण फैला है, उसके लिए बड़े स्तर पर जांच तक इंतजार करना ही बेहतर विकल्प है।

एडिनबर्ग मेडिकल स्कूल में 'ग्लोबल पब्लिक हेल्थ' के अध्यक्ष और ग्लोबल हेल्थ गवर्नेंस प्रोग्राम के डायरेक्टर  देवी श्रीधर ने हाल में ट्वीट करते हुए बताया, ''यहां कम वक़्त के कुछ विकल्प हैं: 1- वायरस को जारी रहने दिया जाए और हजारों लोगों को मरने छो़ड़ दिया जाए। 2- लॉकडाउन और रिलीज़ सायकिल, जिससे अर्थव्यवस्था और समाज की तबाही होगी। 3- आक्रामक तरीके से टेस्टिंग, ट्रेसिंग और आईसोलेशन की ऱणनीति अपनाई जाए, जिसमें फिजिकल डिस्टेंसिंग भी शामिल हो।''

कुलमिलाकर भयावह सच्चाई यह है कि लॉकडाउन खुलने का मतलब चीजों को सामान्य होना नहीं होगा। ऊपर से एक दूसरी लहर की संभावना भी होगी, जिससे बचा नहीं जा सकता। साथ में संक्रमण को रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग अब हमारे जीवन में 'सामान्य' हो जाएगा।

इन स्थितियों में लोगों की आंकाक्षांओं को गिरने देना राजनीति में बेहतर विकल्प नहीं होगा। पारदर्शी तरीके से वास्तिविक बातचीत करने से जनता का मनोबल बना रहेगा। यह एक लंबी लड़ाई है। एक सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन और दवाईयों के आभाव में इस संक्रमण को काबू करने के लिए अब हमारे पास भारतीय परिस्थितियों के मुताबिक़ संक्रमण-रोकथाम ही सबसे बेहतर विकल्प है। लेकिन इसे किसी भी हालत में वायरस से छुटकारे की रणनीति (एक़्जिट स्ट्रैटजी) नहीं माना जा सकता।

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख आप नीचे लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

There is no Exit from Coronavirus, Only Containment

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