वेस्टइंडीज़ का इंग्लैंड दौरा : कोरोना में प्रतिरोध का साहसिक क़दम|आउटसाइड ऐज

''इतिहास...'' यह वो लफ़्ज है, जिसे हम खेल की दुनिया में अक्सर इस्तेमाल करते हैं। नहीं करते क्या? यह वह शब्द है, जिसका सही और गलत, दोनों तरीके से खूब इस्तेमाल किया गया। उत्साह के जहाज पर सवार होकर भवसागर की समुद्री लहरों में ऊपर-नीचे गोते लगा रहे कमेंटेटर इस शब्द से बेइंतहां लगाव रखते हैं। खेल लिक्खाड़ों में किसी चीज को बढ़ा-चढ़ाकर बताने के लिए भी यह शब्द जबरदस्त तरीके से लोकप्रिय है। किसी स्क्रीन या खेल के मैदान में स्टेंड पर मौजूद प्रशंसक भी अपनी उपस्थिति को बल देने के लिए ''इतिहास'' शब्द को पसंद करता है। यह बेहद सामान्य हो चुका है। आखिर हम उन पलों की चाहत में रहते हैं, जो किसी एक वक़्त पर हमारे अस्तित्व को ज़्यादा प्रासंगिक बना सकें। यह किसी इंस्टाग्राम स्टोरी की तरह क्षणिक और मामूली भी हो सकता है, या 20 साल बाद अपने पोते को मौखिक इतिहास सुनाने की तरह जरूरी भी।
इतिहास तब तक नहीं बनता, जब तक उस पल से हमारी दुनिया में बदलाव ना आ जाए। हमारे खेल में कुछ फेरबदल न हो जाए। वह खेल जिस पर हम बेहद शिद्दत से नज़र रखते हैं। इतिहास वर्तमान में कभी ''इतिहास'' नहीं बनता। हम कितने भी बड़े प्रशंसक क्यों न हों, चाहे कितनी भी बड़ी जीत या उपलब्धि क्यों न हो, हमें हर चीज को ''इतिहास बनने का यकीन'' करने की प्रवृत्ति छोड़नी होगी।
लेकिन आज मैं एक अपवाद लेकर एक अवधारणा बना रहा हूं। मैं आज ''इतिहास'' शब्द का बारम्बार इस्तेमाल करूंगा।
दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड BCCI, खुद के स्वार्थ से ऊपर उठकर क्रिकेट की भलाई के लिए काम करना अबतक शुरू नहीं किया है, अगर ऐसा हो जाता तो निश्चित ही यह ''ऐतिहासिक'' होता।
भारतीय क्रिकेट के भीतरी लोग फिलहाल ''राष्ट्रवाद'' पर सवार हैं, वो कोशिश में हैं कि कैसे भी लोकप्रिय और अव्यवहारिक अवधारणा पर सवार होकर खुद को कैसे चीनी प्रायोजकों से दूर कर सकें। लेकिन इस दौरान उनकी कोशिश है कि पैसा ज्यों का त्यों बना रहे। मौजूदा दौर की बीसीसीआई निश्चित ही ऐतिहासिक है।
बीसीसीआई, इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (ICC) में T20 वर्ल्ड कप के बदले IPL को करवाने के लिए अपना शक्ति प्रदर्शन कर रही है।
जैसे-जैसे इस तरह की घटनाओं के साथ ऐतिहासिक द्वंद ऊपज रहा है, वेस्टइंडीज़ जैसे छोटे क्रिकेट बोर्ड वह फ़ैसले कर रहे हैं, जो किए जाने सही हैं। वह लोग इतिहास बना रहे हैं।
शायद यह एक आदत है। वेस्टइंडीज़ के खिलाड़ियों ने क्रिकेट के इतिहास में कभी न मिटने वाली छाप छोड़ी है। यह छाप सिर्फ़ रिकॉर्ड के पन्नों में नहीं है। हमारे कई हीरो, जिन्हें इतनी लोकप्रियता मिली कि कई लोग उन्हें भगवान मानने लगे, वह लोग वहां सांसद भी बने। कैरिबियाई देशों की एक टीम ने उन पर राज करने वाले नस्लभेदी और साम्राज्यवादी लोगों के इस खेल को समता, स्वतंत्रता और इंसानियत के विचारों को फैलाने के लिए इस्तेमाल किया।
फ्रैंक वॉरेल, सर गारफील्ड सोबर्स, क्लाइव लॉयड, विवियन रिचर्ड्स, माइकल होल्डिंग- इन सब लोगों ने इतिहास बनाया। इसलिए नहीं कि इनके दौर में खेल लेखकों ने इनके बारे में अच्छी बातें लिखीं। बल्कि इतिहास इनके व्यवहार-आचरण और इन खिलाड़ियों द्वारा उठाए कदमों से बना। यह क्रिकेट की वही विरासत है, जिसे हम खेल और इंसानियत दोनों में तभी से देखते आ रहे हैं। जेशन होल्डर, जो इस वक़्त इंग्लैंड में हैं, जल्द ही इस इतिहास बनाने वाले पक्ष का हिस्सा बनेंगे।
होल्डर और वेस्टइंडीज़ की टीम अपने टूर के लिए पिछले हफ़्ते की शुरुआत में कोरोना के दौर में मुश्किलों को पार कर इंग्लैंड पहुंचे थे। उनके साथ चलने के लिए खेल ने भी अपने आप में फेरबदल किए हैं। मैच के दौरान अब प्रशंसकों की गड़गड़ाहट वाली तालियां नहीं होंगी। लेकिन मौजूदा सीरीज़ में पुरानी सीरीज़ की तरह बहुत सारी पृष्ठभूमि होगी।
इंग्लैंड बनाम् वेस्टइंडीज़ ऐतिहासिक टेस्ट सीरीज़
यह सीरीज़ इंसानियत के सबसे कठिन दौर में हो रही है। एक ऐसा दौर जहां एक महामारी ने सारी विषमताओं को सामने रख दिया है, जो संस्थागत नस्लभेद के खिलाफ़ खड़ी हुई दुनिया के आंचल में कहीं छुप गई थीं। महामारी ने छुपी सहूलियतों को भी उधेड़कर सामने ला दिया है, यह कुछ ऐसी सहूलियतें हैं, जिनके बारे में हमें पहले नहीं पता था।
संघर्ष कर रहे वेस्टइंडीज़ क्रिकेट बोर्ड (WCB) और इसके खिलाड़ियों को अपने स्वास्थ्य और जिंदगी को दांव पर लगाकर इस क्रिकेट टूर करने की अपनी मजबूरियां हो सकती हैं। कोरोना वायरस के दौर में खिलाड़ियों को दिए जाने वाला पैसा भी आधा कर दिया गया है। चाहे किस भी वजह से, वह लोग उस क्रिकेट सीरीज़ का हिस्सा बनने जा रहे हैं, जो चीजें शांत होने तक इस खेल को बरकरार रखेंगी।
ऐसा नहीं है कि दुनिया की तीन बड़े क्रिकेट बोर्ड में से एक इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ECB) यह सीरीज़ आयोजित कर WICB पर कोई अहसान कर रहा है। इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए। बल्कि इस सीरीज़ से इंग्लैंड को एक फौरी नग़दी की कमी से उभरने में मदद मिलेगी। उनकी गर्मी अच्छी कटेगी।
यह भी दिलचस्प है कि अपनी इतिहास, विरासत और प्रतिभा में संपन्न पर क्रिकेट के दूसरे आर्थिक पैमानों में कमजोर वेस्टइंडीज़ आज इंग्लैंड को जिंदा रहने में मदद कर रहा है। बहुत पुरानी बात नहीं है, जब ऑस्ट्रेलिया और भारत के साथ मिलकर इंग्लैंड ने उस सफलता के साथ ICC को ऐसा राजस्व मॉडल अपनाने पर मजबूर किया था, जो इन बड़े तीन बोर्ड के फायदे वाला था। क्रिकेट ने बचे हुए सभी बोर्ड (16 या इससे ज़्यादा) को ''आत्मनिर्भर'' होने पर मजबूर कर दिया।
लेकिन विडंबना यहीं खत्म नहीं होती। इंग्लैंड ने अगली सीरीज़ पाकिस्तान से खेली, जहां का बोर्ड भी आर्थिक दिक्कतों से जूझ रहा है। यह वह बोर्ड है, जो बीसीसीआई के आक्रामक असहयोगात्मक रवैये के कारण बुरे तरीके से प्रभावित हुआ है। इसके बाद इंग्लैंड ने आयरलैंड से सीरीज़ खेली। जबकि आयरलैंड वह देश है, जिसे इंग्लैंड के चलते क्रिकेट के वर्ल्ड कप से बाहर होना पड़ा। क्योंकि इंग्लैंड ने 10 टीमों वाले वर्ल्डकप के लिए सफलतापूर्वक जोर लगाया था। इससे यह पूरी तरह कुलीन टूर्नामेंट बन गया। पर अपनी करनी जब भुगतनी हो, तो कई तरह के तरीके सामने आ जाते हैं। इंग्लैंड के साथ यही हो रहा है।
कोरोना वायरस ने क्रिकेट को यही तोहफा दिया है। प्राथमिकताओं को दोबारा तय किया जा रहा है। अगर क्रिकेट वैश्विक खेल बनने की महत्वकांक्षाएं रखता है, तो एक ऐसे खेल को विकसित करने की जरूरत है, जहां सभी देशों को खेल से फायदा हो। यह चीज प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर होनी चाहिए। इसके लिए इन कथित छोटी टीमों के साथ टूर और द्विपक्षीय सीरीज़ का होना जरूरी है। फिर इस कोरोना के दौर में कौन सी टीम छोटी है, इस बात पर भी विमर्श हो सकता है। हर टीम और हर बोर्ड अब बराबर है, वक़्त इस बात की तस्द़ीक भी कर देगा।
आज बीसीसीआई जहां खड़ी है, वह वक़्त की अनिश्चित्ताओं को भूलती हुई नज़र आती है। अभी तक यह समझना बाकी है कि मौजूदा दौर ने बोर्ड को किस तरीके से नकुसान पहुंचाया है या बोर्ड द्वारा मौजूदा स्थिति बनाए रखने पर वक़्त उसे किस तरीके से नुकसान पहुंचाने में सक्षम है।
भले ही क्रिकेट के निचले पदाधिकारी बड़ा सोचते हों, लेकिन BCCI अब किसी पड़ोसी गुंडे की तरह बर्ताव करती है। हाल में बोर्ड ने एशियन क्रिकेट काउंसिल (ACC) से साफ़ कहा कि एशिया कप के लिए IPL में कोई फेरबदल नहीं किया जाएगा। बोर्ड ने ICC T20 वर्ल्डकप को करवाने में भी कोई रुचि नहीं दिखाई। दिसंबर में भारत की टीम ऑस्ट्रेलिया गई, जो साफ़ तौर भारत देश की रणनीतिक पहल थी। इसके अलावा भारत ने किसी और देश से खेलने में कोई रुचि नहीं दिखाई। एक संकटकाल में जो इस खेल के भविष्य पर बड़ा असर छोड़ेगा, क्रिकेट की सबसे ताकतवर संस्था ने खुद को पूरी तरह बंद कर लिया है, यह बिलकुल भारत में लागू हुए लॉकडाउन जैसा है, जो असफल तरीके देश में लागू किया गया था।
इंग्लैंड पर वापस बात करते हैं, इस सीरीज़ को समझौता, भाईचारा, भटकाव या प्रतिरोध का दौरा, आप कुछ भी कह सकते हैं। वेस्टइंडीज़ का यह दौरा 8 जुलाई से शुरू होगा, पहला मैच साउथम्पटन में खेला जाएगा। इसके बाद मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रेफोर्ड मैदान में दो मैच होंगे। इन जगहों का चयन खिलाड़ियों के लिए सुरक्षित होटलों की व्यवस्था और सुरक्षित खेल क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए किया गया है। लेकिन प्रशंसक नदारद होंगे।
जोफ्रा आर्चर अपनी अंडर-19 के टीम के साथियों को गेंदबाजी कर रहे होंगे। साथ में ''ब्लैक लाइव्स मैटर'' आंदोलन को दोनों टीम के खिलाड़ियों द्वारा समर्थन दिया जाएगा। वाकई यह इतिहास ही बन रहा है।
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