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जेंडर बजट में कटौती, मोदी सरकार के ‘अमृतकाल’ में महिलाओं की नहीं कोई जगह

महामारी के बाद की स्थिति में भी महिलाओं की जिंदगी दोबारा पटरी पर लाने के लिए सरकार कोई खास पहल करती दिखाई नहीं दे रही। वित्तीय वर्ष 2021-22 में जेंडर बजट का हिस्सा कुल बजट का केवल 4.4 प्रतिशत था, जो इस साल 2022-23 में घटाकर 4.3 प्रतिशत कर दिया गया है।
BUDGET 2022
image credit- Social media

देश के उज्ज्वल भविष्य में नारी शक्ति की भूमिका अहम है। अमृत काल के दौरान महिलाओं के विकास के लिए हमारी सरकार ने महिला और बाल विकास मंत्रालय की स्कीमों को नया और व्यापक रूप दिया है।"

अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने महिला सशक्तिकरण और अधिकारों की बड़ी-बड़ी बातें तो कीं मगर उनके बजट में सरकार की वो प्रतिबद्धता महिलाओं के लिए नज़र नहीं आई। इस बजट में महिला एवं बाल विकास विभाग के लिए वित्त वर्ष 2022-23 के लिए 25,172 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। ये राशि पहली नज़र में पिछले वित्त वर्ष के 24,435 करोड़ के मुक़ाबले तीन प्रतिशत ज्यादा नज़र तो आती है लेकिन दूसरे ही पल ये पहले से चल रही प्रमुख योजनाओं पर कुछ खास कमाल करती दिखाई नहीं देती।

लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तिकरण को सुनिश्चित करने वाले जेंडर बजट में भी इस साल कटौती देखी गई है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में जेंडर बजट का हिस्सा कुल बजट का 4.4 प्रतिशत था, जो इस साल 2022- 23 में घटाकर 4.3 प्रतिशत कर दिया गया है, ये जीडीपी के बीते साल 2021-22 के संशोधित अनुमान 0.71% से घटकर 2022-23 में 0.66% रह गया है। यानी महामारी के बाद की स्थिति में भी महिलाओं की जिंदगी दोबारा पटरी पर लाने के लिए सरकार कोई खास पहल करती दिखाई नहीं दे रही।

मोदी सरकार के ‘अमृतकाल’ में महिलाओं की नहीं कोई जगह

इस बजट पर कई महिला संगठनों ने देशभर में विरोध प्रदर्शन करने की चेतावनी भी दी है। अखिल भारतीय जनवादी महिला संगठन ने अपने एक बयान में कहा है कि मोदी सरकार के अमृतकाल में महिलाओं की कोई जगह नहीं है।

एडवा की अध्यक्ष मालिनी भट्टाचार्य और महासचिव मरियम ढवले की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि इस बजट में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के लिए कुल आवंटन अनुमानित व्यय का 0.1 प्रतिशत से भी कम है। वे योजनाएं जिसमें लाभार्थियों की एक बड़ी संख्या महिलाओं की है, जैसे मनरेगा, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम और अन्य कल्याणकारी कार्यक्रम इनकी राशी भी घटा दी गई है। कामकाज़ी महिलाओं को लिए कोई महत्वपूर्ण कर रियायत नहीं दी गई, इसके अलावा महिलाओं की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए भी कोई ठोस आवंटन नहीं किया गया। ये बजट देश की महिलाओं, किसानों, मजदूरों और कर्मचारियों की चिंताओं की पूरी तरह से अवमानना है।

बता दें कि एक फ़रवरी 2021 को पेश बजट में महिला और बाल विकास विभाग के लिए 24,435 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था। यह राशि संशोधित अनुमानों की तुलना में 16% अधिक तो थी लेकिन साल 2020 की बजट घोषणाओं की तुलना में ये 18.5% कम भी थी। वो भी तब जब देश में कोरोनावायरस महामारी अपने चरम पर थी और महिलाओं और बच्चों को सरकारी मदद की ज़्यादा ज़रूरत थी।

इस बार के बजट में महिलाओं के लिए क्या घोषणाएं हुईं?

वित्त मंत्री ने अपने भाषण में कहा कि उनकी सरकार नारी सशक्तिकरण के लिए प्रतिबद्ध है। महिलाओं के लिए निर्मला सीतारमण ने नारी शक्ति की बात की। वित्त मंत्री ने नारी शक्ति के तहत तीन स्कीम की बात कही। इसके तहत महिलाओं को लाभ पहुंचाने के लिए मिशन शक्ति, मिशन वात्सल्य और आंगनवाड़ी पर खासा ज़ोर दिया गया।

मालूम हो कि 8 मार्च 2021 को महिला और बाल विकास मंत्रालय ने महिलाओं और बच्चों के लिए चल रही तमाम योजनाओं और कार्यक्रमों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए तीन मुख्य श्रेणियों मिशन पोषण 2.0, मिशन वात्सल्य और मिशन शक्ति में बांटा था। हालांकि इन योजनाओं के बारे में आम महिलाएं शायद ही कुछ जानती हों लेकिन सरकार के कागज़ों में अब ये स्कीमें खास जरूर बन गई हैं।

मिशन शक्ति 2001 में बीजू पटनायक सरकार ने उड़ीसा में लागू की थी। इस स्कीम का मुख्य उद्देश्य महिला सशक्तिकरण और महिलाओं की सुरक्षा को बढ़ावा देना है ताकि वर्क फोर्स में उनकी भागीदारी बढ़ सके। मिशन शक्ति के लिए इस साल के बजट में 3,184 करोड़ रुपये दिए गए हैं। 2021-22 के सत्र में इस स्कीम को 3,109 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे।

मिशन वात्सल्य महाराष्ट्र सरकार की योजना है और ये उन महिलाओं के लिए है जिन्होंने कोविड-19 महामारी के कारण अपने पति को खोया था। इस मिशन के अंतर्गत 18 बेनिफिशियरी स्कीम्स हैं। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों के ग़रीब और वंचित वर्गों से आने वाली महिलाओं के सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए लाभ योजनाएं और सेवाएं देने का प्रावधान है।

सरकार ने 18 दिसंबर 2017 को कुपोषण की समस्या पर केंद्रित पोषण अभियान पोषण 2.0 शुरू किया था। इसे पहले राष्ट्रीय पोषण मिशन के नाम से जाना जाता था। स्कीम में सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों को शामिल किया गया था। योजना का मक़सद 6 साल तक के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और ब्रेस्टफीडिंग मांओं के पोषण स्तर में सुधार लाना है। बजट में सक्षम आंगनबाड़ी और पोषण 2.0 के लिए 20,263 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।

सक्षम आंगनवाड़ी का जिक्र करते हुए निर्मला सीतारमण ने कहा कि ये नई पीढ़ी की आंगनवाड़ी है। इसका बुनियादी ढांचा बेहतर है और बच्चों के विकास के लिए सुधरा हुआ माहौल मुहैया कराती है। वित्त मंत्री ने बताया कि योजना के तहत दो लाख आंगनवाड़ी केंद्रों को अपग्रेड किया जाएगा। हालांकि वित्त मंत्री सालों से हड़ताल और प्रदर्शन कर रहीं आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की समस्या पर कुछ नहीं बोलीं।

बजट और महिलाओं की समस्याएं

गौरतलब है कि साल 2020 में कोरोना वायरस महामारी की वजह से लगे लॉकडाउन के दौरान महिलाओं को कई तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ा। ग़ैर सरकारी संगठनों की रिपोर्ट के मुताबिक, लॉकडाउन में महिलाओं पर घरेलू काम का बोझ बढ़ गया था, घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोत्तरी आई, बड़ी संख्या में कामकाजी महिलाओं का रोज़गार छिन गया, उन्हें सेनेटरी नेपकिन जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इसके अलावा देश के कई राज्यों से बच्चों की तस्करी और बाल श्रम के मामले बढ़े। यानी जिस मुश्किल वक्त में महिलाओं और बच्चों को ज़्यादा सरकारी मदद की ज़रूरत है, उस समय सरकार का ध्यान कहीं और है।

लखनऊ के अंकित शर्मा लंबे समय से जेंडर मुद्दों पर काम कर रहे हैं। वो जेंडर बजट के गिरते आंकड़ों को लेकर चिंतित हैं। उनके मुताबिक जेंडर बजट की कटौती सीधा-सीधा महिलाओं के पक्ष की अनदेखी है।

अंकित ने न्यूज़क्लिक को बताया, "जेंडर और महिलाओं के मुद्दे को लेकर सरकार कभी गंभीर नज़र ही नहीं आई। महामारी हो या महिला सुरक्षा सरकार ने इस बार किसी दिशा में कुछ खास नहीं किया। बस कई सारी स्कीमों को एक साथ लाकर खिचड़ी पका दी है। आंगनवाड़ी सेवाओं को पोषण अभियान में मिला कर सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 बना दिया। लेकिन जो इसमें दिक्कतें हैं उसका कोई समाधान नहीं दिया।

यूपी के पूर्वांचल ग्रामीण क्षेत्रों में लंबे समय से औरतों के मुद्दे पर काम कर रहीं बीएचयू की पूर्व छात्रा सरोज बताती हैं कि यूपी में महिला हेल्प लाइन-181 सिर्फ इसलिए बंद हो गयी क्योंकि विभाग के पास बजट नहीं था। जबकि विभाग कुल जारी बजट को खर्च नहीं कर पाया। ये समझने की बात है कि जो बजट जिस विभाग के लिए जारी किया जाता है वो विभाग उस बजट को खर्च नहीं कर पाता इसकी जवाबदेही जब तक तय नहीं होगी तब तक साल दर साल ये बजट घटता रहेगा।

कुल मिलाकर देखें तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण में महिलाओं के लिए कुछ भी नया नहीं था। उनके भाषण में महिला शब्द छह बार जरूर आया, लेकिन महिलाओं के लिए बजट में 6 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी नहीं हो सकी। घरेलू महिलाओं को महंगाई से राहत नहीं मिली, तो कामकाजी महिलाओं को कर से। कोरोना महामारी में जो महिलाएं लेबर फोर्स से ही बाहर हो चुकी हैं, उनका तो कोई जिक्र तक नहीं हुआ। शिक्षा और स्वास्थ्य बजट का हाल पहले ही बेहाल है, ऐसे में ये बजट 25 साल आगे का बजट हो ना हो, आज का तो पक्का दिखाई नहीं पड़ रहा है। वैसे इस बजट की सबसे बड़ी ख़ास बात यही रही कि इसमें कोई ख़ासियत ही नहीं है। इस बजट से ज़्यादातर लोगों को निराशा ही हाथ लगी।

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