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उर्जित पटेल के इस्तीफे का मतलब.

अब सवाल यह उठता है कि उर्जित पटेल के इस्तीफे के बाद क्या होगा? क्या धारा 7 के तहत सरकार के इशारे पर अरबीआई चलेगा? आर्थिक मामलों के जानकार एम के वेणु कहते हैं कि अब से लेकर 2019 के चुनाव तक आरबीआई सरकार के इशारे पर ही चलेगा।
उर्जित पटेल
साभार क्विंट

लोकतंत्र में जितनी अहमियत सरकार की होती है उससे कहीं ज्यादा अहमियत संस्थाओं की होती है सरकारें आती और जाती रहती हैं लेकिन संस्थाओं की बदौलत लोकतंत्र चलता रहता है। इसलिए आज का दिन अगर पांच राज्यों के चुनाव के नतीजों के लिए अहमियत रखता है तो उर्जित पटेल का आरबीआई गवर्नर के पद से इस्तीफा देना भी एक अहम खबर है।

साल 1990 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि अरबीआई गवर्नर को अपने कार्यकाल के बीच में इस्तीफा देना पड़ा है। उर्जित पटेल ने अपने त्यागपत्र में कहा कि निजी कारणों की वजह से तुरंत ही मैंने इस्तीफ़ा लेने का फैसला किया है लेकिन सच्चाई सिर्फ़ इतनी ही नहीं है जितनी उर्जित पटेल द्वारा बताई जा रही है। इस सच्चाई के धागे पकड़ने हैं तो आज से तकरीबन एक महीने पीछे जाना होगा, जब देश के इतिहास में पहली बार सरकार द्वारा आरबीआई के खिलाफ आरबीआई की धारा 7 का इस्तेमाल किया गया था। धारा 7 का मतलब है कि आरबीआई को अपनी स्वायत्तता को सरकार के अधीन गिरवी रखना होगा और जिस तरह से सरकार सलाह देगी उस तरह से अरबीआई को काम करना पड़ेगा।

सरकार ने धारा 7 का इस्तेमाल अचानक नहीं किया था। धारा 7 का इस्तेमाल सरकार ने तब किया जब सरकार को यह लगा कि आरबीआई सरकार की बातें नहीं मान रहा है। वही आरबीआई जिसने नोटबंदी जैसे कदम पर चुप्पी साध ली थी, वही आरबीआई जिसने नोटबंदी से जुड़ी संसदीय रिपोर्ट पर बहुत दिनों तक  कुछ नहीं कहा था, वही आरबीआई जिसने मुख्य सुचना आयुक्त द्वारा आदेश दिए जाने के बाद भी उन लोगों का नाम जनता के सामने प्रस्तुत नहीं किया, जिनके नाम पर बैंकों के सबसे अधिक कर्जे बकाये थे। इन सारे मामलों के समय उर्जित पटेल ही आरबीआई के अध्यक्ष थे और इन सारे मामलों में चुप रहकर सरकार का सहयोग दे रहे थे। इसलिए कहने वाले यह भी कह रहे हैं कि उर्जित पटेल आरबीआई को बचाने के नाम पर शहीद नहीं हो रहे हैं बल्कि इसलिए अपने पद से इस्तीफ़ा दे रहे हैं क्योंकि मूल तौर पर एक अर्थशास्त्री के नाते उन्हें पता है कि जब सरकार के रहमों करम पर आरबीआई मौद्रिक नीति और बैंकों के रेगुलेशन का काम करेगी तो अर्थव्यवस्था की लुटिया डूब जायेगी और लुटिया डूबने की सारी जिम्मेदारी आरबीआई अध्यक्ष होने के नाते उर्जित पटेल पर आएगी। इसी वजह से सरकार के दबाव को कम करने के लिए उर्जित पटेल के इशारे पर आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विमल आचार्य ने एक लेक्चर में वह सारी बातें कह डाली, जिसमें सरकार के अडंगा डालने की वजह से आरबीआई को परेशानी होने लगी थी, जैसे पब्लिक बैंकों की बढ़ते हुए डूबत कर्ज की जिम्मेदारी आरबीआई पर डालना जबकि सरकारी बैंकों का मालिकाना हक सरकार के पास होता है, बीमार बैंकों को बचाने के लिए आरबीआई, बीमार बैंकों के कामकाज पर कुछ प्रतिबन्ध लगाती है ताकि बीमार बैंकों को डूबने से बचाया जा सके जबकि सरकार चाहती है कि आरबीआई बैंकों से इन प्रतिबंधों को हटाये, इसके साथ सरकार आरबीआई पर दबाव डाल रही है कि आरबीआई अपने पास जमा नकद राशि (रिजर्व कैश) का इस्तेमाल करने का हक सरकार को दे। ऐसे बहुत सारी बातें थी, जिसपर विमल आचार्य ने खुलकर अपनी राय रखी।  

इस लेक्चर के बाद यह बात सार्वजनिक हो गयी आरबीआई और सरकार के बीच सबकुछ सही नहीं चल रहा है। विवाद गहरा हो चला है और इस विवाद के सामाधान के लिए नवम्बर 19 को आरबीआई और सरकार के बीच बातचीत होगी। लेकिन इस बातचीत में कुछ भी निकलकर सामने नहीं आया। जो भी निकलकर सामने आया, वह एक रणनीति के तहत 5 राज्यों के चुनावी नतीजों के एक दिन पहले आया, ताकि सरकार में सत्तारूढ़ दल चुनाव के नतीजों की आड़ में संस्थाओ की बर्बादी के खबर को बचा ले। और इस मुद्दे को जनमत का हिस्सा ना बनने दे।

इस सरकार ने अपनी वर्चस्ववादी राजनीतिक सोच की तरह आर्थिक क्षेत्र को भी चलाने की कोशिश की है, इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि आर्थिक क्षेत्र से जुड़े मुख्य पदों के लोगों ने ऐसे कारण बताकर इस्तीफे दिए है, जिसे पचा पाना मुश्किल है। जैसे मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुब्रह्मण्यम का निजी कारणों की वजह से दिया गया इस्तीफा और अभी सोमवार को ही नीति आयोग के सलाहकार सदस्य सुरजीत भल्ला द्वारा दिया गया इस्तीफ़ा।

अब सवाल यह उठता है कि उर्जित पटेल के इस्तीफे के बाद क्या होगा? क्या धारा 7 के तहत सरकार के इशारे पर अरबीआई चलेगा? आर्थिक मामलों के जानकार एम के वेणु कहते हैं कि अब से लेकर 2019 के चुनाव तक आरबीआई सरकार के इशारे पर ही चलेगा। इस दौरान वैश्विक बाजार का भारतीय अर्थव्यवस्था पर भरोसा कम होगा। ऐसा भी हो सकता विदेशी संस्थानात्मक निवेश (एफआईआई) में कमी आये अथवा ऐसा निवेश भारत से बाहर जाए। सरकार अगर आरबीआई के नकद जमा राशि का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करती है तो भारतीय बैंकों पर किया जाने वाले भरोसा पूरी तरह चरमरा जाएगा। ऐसे में विमल आचर्य की वह बात भी सटीक लगती है कि अर्जेंटीना की सरकार ने अपने रिज़र्व बैंक का पैसा इस्तेमाल किया और अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गयी। ठीक ऐसी ही हालत भारत की भी हो सकती है। वेणु कहते हैं कि आरबीआई भारत की अन्य संस्थाएं जैसे कि सीवीसी, सीबीआई, सीआईसी जैसी संस्थाओं से अलग है। इन संस्थाओं का प्रभाव केवल घरेलू स्तर तक रहता है लेकिन आरबीआई को बर्बाद करने का मतलब है कि विश्व स्तर पर भारतीय बाजार और निवेश की क्षमताओं को कम करना।

 

 

 

 

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