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जंगल पर हक़ और पुनर्वास के बीच फंसे वन गुज्जरों के सवाल

राज्य में एफआरए के तहत गांव स्तर, ब्लॉक स्तर, जिला स्तर और मुख्य सचिव के अधीन कमेटियां बनी हैं। तरुण कहते हैं कि हमें खतरा ये दिखाई दे रहा है कि अभी तक सारी लड़ाइयां एफआरए के तहत चल रही थीं। अब सरकार और वन विभाग के पास आधार आ गया है कि वे एफआरए को दरकिनार करके इस कमेटी के नज़रिये से चीजों को देख सकते हैं।
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वन गुज्जरों का वन विभाग और सरकार पर भरोसा नहीं जम पाता। जंगल के बाहर पुनर्वास की बात एक बार मन में आ भी जाए। लेकिन वन विभाग पुनर्वास में ईमानदारी बरतेगा। उन्हें उनके हक के तहत प्लॉट, खेती की ज़मीन या वित्तीय मदद देगा। इस पर उन्हें गहरा संदेह है। हरिद्वार में कुनाऊं गांव के गुज्जर परिवार गंगा किनारे पड़े 180 परिवारों का हवाला देते हैं। इन्हें करीब चार साल पहले प्लॉट और दस लाख रुपये देने का वादा किया गया था। न प्लॉट मिला, न ज़मीन, जंगल भी छूटा।

नैनीताल हाईकोर्ट का फैसला

वन गुज्जरों के मामले में 18 अगस्त को हरियाणा में रजिस्टर्ड संस्था थिंक एक्ट राइज़ फाउंडेशन के अर्जुन कसाना की जनहित याचिका पर नैनीताल हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया। अदालत ने वन पर वन गुज्जरों के हक को माना। अदालत ने कहा कि याचिका कर्ता ने राज्य और उनकी एजेंसी पर वन गुज्जरों के मामले में कई आरोप लगाए हैं। वन गुज्जरों के हक की सुरक्षा और उनकी मदद के लिए राज्य सरकार से 6 हफ्ते के भीतर कमेटी गठित करे। वन विभाग ने कोर्ट से इसके लिए अधिक समय मांगा तो अदालत ने कहा कि वन गुज्जर अपने अधिकार से एक लंबे समय से वंचित हैं और इस पर अब तत्काल कार्य करना होगा। गैंडी खत्ता क्षेत्र समेत वन गुज्जरों के पुनर्वास से जुड़े अन्य मामलों को लेकर ये याचिका दाखिल की गई थी।  

 सरकार की कमेटी पर वन गुज्जरों को संशय

उत्तराखंड में जंगल पर अपने अधिकार को लेकर वन गुज्जर और वन विभाग के बीच राज्य बनने के पहले से ही तनातनी की स्थिति बनी हुई है। 2006 में आए फॉरेस्ट राइट एक्ट (एफआरए) ने वनों पर वनवासियों के अधिकारों को कानूनी रूप दिया। इससे पहले वे पारंपरिक तौर पर जंगल में रहते आए थे। उन्हें जंगल में जानवरों की चराई के लिए परमिट मिलते थे। जंगल में बनी उनकी झोपड़ियों को वन विभाग अतिक्रमण के दायरे में रखता था। एफआरए से वन गुज्जरों को जंगल पर अधिकार मिला। अब वे जंगल से बाहर पुनर्वास भी इसी कानून के तहत चाहते हैं।

हरिद्वार के राजाजी पार्क के कुनाऊ गांव के वन गुज्जर मीर हम्जा को नैनीताल हाईकोर्ट के ताजा आदेश से उम्मीद तो है लेकिन कुछ संशय भी उनके मन में रह ही जाता है। संशय ये है कि अदालत ने अपने फैसले में फॉरेस्ट राइट एक्ट का ज़िक्र नहीं किया है। इनका कहना है कि गुज्जर परिवार एफआरए के तहत ही सेटलमेंट चाहते हैं। वन्य जीव एक्ट या सरकार की बनाई किसी कमेटी या आदेश के तहत नहीं।

पुनर्वास को लेकर लिखा गया रेंजर का पत्र.jpeg

क्या गुज्जर परिवार पुनर्वास चाहते हैं

गुज्जर परिवारों के भीतर पुनर्वास और जंगल को लेकर भी संशय की स्थिति है। वे जंगल नहीं छोड़ना चाहते हैं। साथ ही जंगल के अंदर बदल रहे हालात को लेकर थोड़े चिंतित भी हैं। मीर हम्जा एक बार को स्पष्ट तौर पर कहते हैं कि हम जंगल में ही रहना चाहते हैं। हम यहां अपने पशु चराते हैं। पशुपालन ही हमारा हुनर है। वह बताते हैं कि जो गुज्जर पुनर्वास के बाद जंगल से बाहर गए, वे अब मजदूरी या बिजली बनाने जैसे काम कर रहे हैं। उन्हें खेती के लिए ज़मीन दी गई लेकिन खेती करना नहीं सिखाया गया। हमारे पशुओं को जंगल के जीवन की आदत थी। चलने-फिरने की आदत थी। पुनर्वास के बाद पशु भी एक जगह नहीं रह पाए।

इसके साथ ही जंगल में वन्यजीवों के साथ अब होने लगी मुश्किलें भी उन्हें पुनर्वास के बारे में सोचने पर मजबूर कर रही हैं। मीर हम्जा कहते हैं कि हम जंगल के भीतर रहते आए हैं। हमारे घर बिलकुल खुले हैं। हमारे बच्चे आंगन में सोते हैं। बाघ हमारे सामने से गुज़र जाता लेकिन हमला नहीं करता था। लेकिन अब राजाजी से सटे श्यामपुर, रायवाला में गुलदार के हमले जिस तरह से बढ़ रहे हैं, हमें ये डर लग रहा है कि शहरों की ओर बढ़ते जीव कहीं अब बदली स्थितियों में हम पर भी हमला न करें। हमारे पशुओं पर हमला न करें।

बच्चों की पढ़ाई के बारे में पूछने पर मीर बताते हैं कि आसपास कोई सरकारी स्कूल नहीं। इसलिए समुदाय के लोगों ने खोज एजुकेशन कम्यूनिटी सेंटर शुरू किया है। जिसमें गुज्जर बच्चों को पढ़ाया जाता है।

अदालत के फ़ैसले में एफआरए का ज़िक्र क्यों नहीं

वन गुज्जरों के अधिकारों की कानूनी लड़ाई लड़ रहे वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के तरुण जोशी भी नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले में एफआरए का ज़िक्र न होने पर संशय में हैं। वह कहते हैं कि अदालत के फैसले में एफआरए और उसके तहत बनी चार कमेटियों का कोई जिक्र नहीं है। राज्य में एफआरए के तहत गांव स्तर, ब्लॉक स्तर, जिला स्तर और मुख्य सचिव के अधीन कमेटियां बनी हैं। तरुण कहते हैं कि हमें खतरा ये दिखाई दे रहा है कि अभी तक सारी लड़ाइयां एफआरए के तहत चल रही थीं। अब सरकार और वन विभाग के पास आधार आ गया है कि वे एफआरए को दरकिनार करके इस कमेटी के नज़रिये से चीजों को देख सकते हैं।

 

जंगल केजीवन से जुड़े वन गुज्जर.jpeg

वन गुज्जरों के पुनर्वास का मुद्दा बरसों पुराना

उत्तराखंड के वन गुज्जरों के पुनर्वास का मुद्दा बरसों से लंबित है। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1993 में वन गुज्जरों के विस्थापन का आदेश दिया था। उस समय कुछ परिवारों का पुनर्वास कर हरिद्वार के गैंडीखत्ता और पथरी क्षेत्र में बसाया गया। तरुण जोशी बताते हैं कि बहुत से परिवारों का पुनर्वास नहीं हुआ। समय के साथ इनकी संख्या में इजाफा होता गया। अब यही संख्या पुनर्वास के रास्ते में सबसे बड़ा पेच है। कार्बेट टाइगर रिजर्व में करीब 57 गुज्जर परिवार रह गए हैं। राजाजी टाइगर रिजर्व में 120 से अधिक गुज्जर परिवारों के होने का अनुमान है।

जून महीने में राजाजी में वन विभाग और वन गुज्जरों के बीच मारपीट हुई थी। वन विभाग पर वन गुज्जरों के घर तोड़ने के आरोप लगे थे। इस मामले की अभी जांच चल रही है। इसके बाद जुलाई में राज्य के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक के साथ वन गुज्जरों की बैठकें भी हुईं। उन्होंने भी गुज्जर परिवारों की गणना कराने की बात कही। राजाजी में गुज्जर परिवारों की ठीक-ठीक संख्या का अभी खुलासा नहीं किया गया है। इसके अलावा वे परिवार भी हैं जो जंगल से बाहर कर दिए गए लेकिन उनका पुनर्वास नहीं हुआ।

पुनर्वास की तैयारी

राज्य के प्रमुख मुख्य वन्यजीव संरक्षक जयराज बताते हैं कि वन गुज्जरों के साथ उनकी कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं। ज्यादातर गुज्जर चाहते हैं कि जंगल से बाहर उनका पुनर्वास किया जाए। लेकिन ज़मीन और पुनर्वास की शर्तों को लेकर गुज्जर अभी बातचीत कर रहे हैं। हाईकोर्ट के आदेश पर पीसीसीएफ का कहना है कि विभाग पुनर्वास की तैयारी कर रहा है। इसके लिए केंद्र सरकार से भी वित्तीय मदद मिलती है। वह कहते हैं कि हमारे पास ज़मीन की कोई कमी नहीं। गुज्जर परिवारों की संख्या बढ़ने पर जयराज कहते हैं कि तर्क सम्मत फैसला लिया जाएगा। हम ये नहीं करेंगे कि कुछ लोगों का विस्थापन कर दें और कुछ लोगों को छोड़ दें।

पुनर्वास का तरीका

तरुण जोशी बताते हैं कि इसी वर्ष जुलाई में पुनर्वास को लेकर बैठक हुई। वन विभाग के अधिकारी ने बताया कि हरिद्वार में 13 प्लॉट हैं और 65 गुज्जर परिवार। वे चाहते हैं कि सभी इन 13 प्लॉटों में चले जाएं। इसके लिए वन गुज्जरों की लिखित सहमति मांगी गई। जिस पर वन गुज्जरों की ओर से राजाजी में गुज्जर परिवारों की संख्या के बारे में पूछा गया। ये भी कि किस कानून के तहत पुनर्वास किया जा रहा है। तरुण कहते हैं कि इस पर हरिद्वार के रेंजर का धमकी भरा पत्र आया। जिसमें सहमति-असहमति का जवाब न देने पर इसे असहमति करार दिया।

कभी जंगल के घुमंतु रहे वन गुज्जरों के डेरे अब एक जगह ही जमने लगे हैं। समय के साथ वे जंगल से बाहर जाने को तैयार भी हो गए हैं। बस वे न्यायपूर्ण तरीके से बसना चाहते हैं। फॉरेस्ट राइट एक्ट पर उनका भरोसा है।

 

(वर्षा सिंह, स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

 

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