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उत्तराखंड: हिंदुत्व और मुस्लिम विरोधी मुद्दों के सहारे भाजपा ने निकाय चुनावों में जीत दर्ज की

राज्य में बिखरी और सुस्त कांग्रेस के लिए ये निकाय चुनाव नतीजे आखिरी चेतावनी हैं ताकि 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले अपने संगठन को बेहतर किया जा सके।
Dhami ucc
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी रविवार को देहरादून में निकाय चुनाव के विजेता के साथ।

देहरादून: सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा उत्तराखंड में निकाय चुनावों में जीत दर्ज करने के बाद यह साफ हो गया है कि आक्रामक ‘हिंदुत्व’ राज्य में अन्य सभी मुद्दों पर हावी हो रहा है, जिसे संघ परिवार द्वारा समर्थित नई ‘हिंदुत्व’ प्रयोगशाला कहा जाता है।

समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लागू करने, 'लव जिहाद', 'भूमि जिहाद' और 'थूक जिहाद' के खिलाफ 'कड़ी' लड़ाई लड़ने और निकाय चुनाव अभियान में 'देवभूमि' की जनसांख्यिकी को संरक्षित करने के वादों को लेकर, भाजपा नेता और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि उनकी मुस्लिम विरोधी बयानबाजी और आक्रामक 'हिंदुत्व' इस उच्च जाति हिंदू बहुल राज्य में राजनीतिक लाभ दे रहे हैं।

निकाय चुनावों से पहले धामी ने राज्य में 'मदरसों' की गहन जांच की घोषणा की थी, जिसकी घोषणा पिछले आठ वर्षों में भाजपा की राज्य सरकारों ने कई बार की थी। इस शानदार जीत के साथ, भाजपा अब इस पहाड़ी राज्य में "ट्रिपल इंजन" वाली सरकार चलाएगी।

सत्तारूढ़ भाजपा ने शहरी केंद्रों में कुल ग्यारह नगर निगमों में से 10 पर जीत हासिल की। नई श्रीनगर गढ़वाल नगर निगम सीट पर जीतने वाली एकमात्र निर्दलीय उम्मीदवार आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के एक कट्टर कार्यकर्ता की पत्नी हैं। वे पिछले कुछ समय से गढ़वाल की पहाड़ियों में मुस्लिम विरोधी अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं, लेकिन पार्टी द्वारा टिकट न दिए जाने के बाद उन्होंने स्वतंत्र रूप से लड़ने का फैसला किया।

एक और राजनीतिक सबक जो लोगों ने फिर दोहराया है, वह यह है कि उत्तराखंड के पृथक राज्य के लिए लड़ने वालों के लिए कोई विचार नहीं किया गया, जबकि राज्य के राजनीतिक, सामाजिक और शिक्षित वर्ग ने राज्य आंदोलनकारियों के सम्मान के बारे में जोरदार सार्वजनिक घोषणाएं की थीं और छाती ठोंकी थी।

कांग्रेस के टिकट पर निकाय चुनाव लड़ने वाले दो प्रमुख ‘आंदोलनकारियों’ (राज्य के आंदोलनकारियों) को हार का सामना करना पड़ा, ठीक उसी तरह जैसे उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) को, जो एक क्षेत्रीय राजनीतिक संगठन है, जिसने राज्य के आंदोलन का नेतृत्व किया, लेकिन इन चुनावों में राजनीतिक रूप से हार गया।

प्रतिष्ठित देहरादून नगर निगम के महापौर पद के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार वीरेंद्र पोखरियाल भाजपा के सौरभ थपलियाल से एक लाख से ज्यादा मतों के अंतर से हार गए। सौरभ थपलियाल को 2,41,778 वोट मिले, जबकि वीरेंद्र पोखरियाल को केवल 1,36,483 वोट मिले। दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस को मिले वोटों में से आधे अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के थे। इसी तरह, हल्द्वानी के मेयर पद के लिए कांग्रेस के टिकट पर लड़े एक अन्य ‘आंदोलनकारी’ ललित जोशी भाजपा के गजराज सिंह बिष्ट से 3,000 से ज्यादा मतों के अंतर से हार गए।

दिलचस्प बात यह है कि लोकप्रिय और सम्मानित गढ़वाली गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने पोखरियाल और ऋषिकेश से निर्दलीय मेयर उम्मीदवार दिनेश चंद्र उर्फ ‘मास्टरजी’ को अपना आशीर्वाद दिया। लेकिन दोनों हार गए, जिससे फिर साफ हो गया कि गुजरात के बाद दक्षिणपंथ की इस नई प्रयोगशाला में ‘हिंदुत्व’ के अलावा कोई और भावना काम नहीं आई।

इस बीच, उत्तराखंड सरकार देश में भाजपा-संघ परिवार के एजेंडे के मुताबिक समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। मुख्यमंत्री धामी ने विवाह और लिव-इन रिलेशनशिप को पंजीकृत करने के लिए एक आधिकारिक पोर्टल लॉन्च किया। नगर निकाय चुनाव प्रचार के दौरान मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने समान नागरिक संहिता पर कैबिनेट के फैसले का विरोध किया था और इसे चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन बताया था, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ।

2021 में धामी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही उनके नेतृत्व में ‘लव जिहाद’, ‘भूमि जिहाद’, ‘मजार जिहाद’ और ‘थूक जिहाद’ के तौर पर लगातार मुस्लिम विरोधी अभियान चलाए जा रहे हैं, जिसमें 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले और बाद में मुस्लिम समुदाय को तरह तरह के बहानों से निशाना बनाया जा रहा है। गढ़वाल की पहाड़ियों में कुछ जगहों से कई मुसलमानों को पलायन भी करना पड़ा है।

मुसलमानों के खिलाफ ‘नफरत फैलाने’ के दौरान निकाय चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री धामी और वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने कांग्रेस पर बिना कोई ठोस सबूत पेश किए ‘देवभूमि’ उत्तराखंड में ‘जेहादियों’ को बसने देने का आरोप लगाया।

पूरे राज्य में आक्रामक ‘हिंदुत्व’ एजेंडे का नेतृत्व करने वाले धामी के अलावा मेयर पद के उम्मीदवार ने भी मुस्लिम विरोधी बयानबाजी का सहारा लिया। हल्द्वानी से आरएसएस कार्यकर्ता गजराज सिंह बिष्ट ने सार्वजनिक रूप से कहा कि वह 'सनातन' की रक्षा और प्रचार के लिए चुनाव लड़ रहे हैं और उन्हें 'सनातनी विरोधी' ताकतों से वोट नहीं चाहिए। ध्रुवीकरण को ललित जोशी जैसे मेहनती नेता के मामूली अंतर से हारने का कारण माना जा रहा है।

काशीपुर शहर के मेयर पद के लिए लड़े और जीते भाजपा उम्मीदवार दीपक बाली ने भी इसी तरह की रणनीति अपनाई। वह अपने प्रचार में अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ मुखर रहे, जिसे धामी के दौरे से बढ़ावा मिला।

संयोग से, पिथौरागढ़ नगर निगम के नव निर्मित मेयर पद पर भाजपा ने 17 वोटों से मामूली जीत हासिल की। भाजपा की कल्पना देवलाल ने निर्दलीय और बागी कांग्रेस उम्मीदवार मोनिका महर को हराया, जो पिथौरागढ़ कांग्रेस विधायक मयूख सिंह महर की करीबी रिश्तेदार हैं, जिन्होंने खुले तौर पर अपनी पार्टी के खिलाफ़ विद्रोह किया और उनका समर्थन किया। अजय वर्मा ने अल्मोड़ा से मेयर सीट जीता। भाजपा ने ऋषिकेश, हरिद्वार, रुड़की, रुद्रपुर और कोटद्वार की मेयर सीटों पर भी जीत हासिल की। कांग्रेस छोटे शहरों में कुछ नगरपालिका परिषदों में जीत हासिल करके कुछ सांत्वना हासिल कर सकती है।

विभाजित, खंडित, हतोत्साहित उत्तराखंड कांग्रेस को भाजपा-आरएसएस गठबंधन ने एक और घातक राजनीतिक झटका दिया है। कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षक वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं को दोषी ठहराते हैं, जो धामी की तरह काम नहीं करते दिखे। उत्तराखंड कांग्रेस के नेता भाजपा और संघ परिवार के मुस्लिम विरोधी अभियान पर हमला करने से डरते हैं, जो दिन-ब-दिन और भी ज्यादा सशक्त होता जा रहा है। इसके बजाय, कांग्रेस के नेता जमीनी हकीकत से समझौता कर चुके हैं और 2017 से लगातार चुनावी हार का सामना करने के बाद दूसरे स्थान पर रहने से संतुष्ट हैं।

कांग्रेस पार्टी के उदासीन केंद्रीय नेतृत्व ने दूसरा ही रूख अपनाया। इसने उत्तराखंड इकाई को ऐसे राज्य नेताओं को सौंप दिया गया है जो एक हार से दूसरी हार की ओर बढ़ रहे हैं और पार्टी को और कमजोर कर रहे हैं।

कांग्रेस महासचिव प्रभारी कुमारी शैलजा पिछले साल हुए निकाय चुनावों और इससे पहले हुए तीन विधानसभा उपचुनावों के दौरान गायब थीं। निकाय चुनाव के नतीजे 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले संकटग्रस्त कांग्रेस के लिए आखिरी चेतावनी हैं।

दूसरी ओर, धामी राज्य में भाजपा की चुनावी सफलताओं से उत्साहित हैं और ‘हिंदुत्व’ की राजनीति के नए पीढ़ी के नायक के रूप में उभरे हैं और उनकी पार्टी उन्हें पूरे देश में आगे बढ़ा रही है।

लेखक देहरादून स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं। उनके विचार निजी हैं।

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