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आर्थिक मंदी की आड़ में श्रमिकों के खिलाफ साज़िश!

उत्तराखंड के रुद्रपुर में 2 अक्टूबर को इंटरार्क मजदूर संगठन और इंकलाबी मजदूर केंद्र के आह्वान पर स्थानीय आंबेडकर पार्क में मजदूर प्रतिरोध सभा का आयोजन हुआ। इस दौरान छंटनी, बंदी, यूनियनों को मान्यता देने, मांग पत्रों पर सुनवाई करने और ठेका प्रथा खत्म करने जैसे मुद्दों को उठाया गया।  
labour protest

सरकार जहां सार्वजनिक कंपनियों को निजी क्षेत्रों को सौंप रही है तो वहीं इसके उल्ट श्रमिक वर्ग मांग कर रहा है कि घाटे में चल रही निजी क्षेत्र की कंपनियों को सरकार को अपने अधीन ले लेना चाहिए। उत्तराखंड के रुद्रपुर में 2 अक्टूबर बुधवार को इंटरार्क मजदूर संगठन और इंकलाबी मजदूर केंद्र के आह्वान पर स्थानीय आंबेडकर पार्क में मजदूर प्रतिरोध सभा का आयोजन हुआ। इस दौरान छंटनी, बंदी, यूनियनों को मान्यता देने, मांग पत्रों पर सुनवाई करने, ठेका प्रथा खत्म करने जैसे मुद्दों को उठाया गया।  

सभा को इंकलाबी मजदूर केंद्र के कैलाश भट्ट ने कहा कि आज मंदी के बहाने पूंजीपतियों द्वारा मजदूरों को नौकरी से निकाल कर बेरोजगार किया जा रहा है। सिडकुल समेत पूरे देश भर में मालिकों द्वारा गैरकानूनी रूप से कंपनियां बंद कर छंटनी, बंदी, लेऑफ कर मजदूरों को नौकरियों से निकाला जा रहा है।

इसके साथ ही मजदूरों ने यह भी आरोप लगाया कि मंदी का हौवा खड़ा करके स्थाई मजदूरों पर हमला किया जा रहा है और ट्रेड यूनियनों का दमन किया जा रहा है। मजदूरों के मांग पत्र पर सुनवाई नहीं की जा रही है।
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वक्ताओं ने कहा कि आज नित्य प्रतिदिन रिलायंस, टाटा, बिरला, मारुति, गोदरेज, जिंदल समेत सभी कंपनियों में प्रबंधकों व सीईओ के वेतन भत्ते लगातार बढ़ते जा रहे हैं। नवीन जिंदल का वेतन ₹74 करोड़ से ज्यादा है, वही मजदूरों का वेतन वृद्धि नहीं के बराबर हो रहा है।

आज प्रबंधकों व मजदूरों के वेतन में गैप काफी बढ़ गया है। आज टाटा मोटर्स के सीईओ का वेतन कर्मचारियों के औसत वेतन का 450 गुना हो चुकी है। परंतु मालिकों द्वारा मजदूरों की सम्मानजनक वेतन वृद्धि नहीं की जा रही है। मज़दूरों का सवाल है ये इतना अंतर क्यों?

इसके साथ मज़दूर यूनियनों ने केंद्र सरकार द्वारा पूंजीपतियों के ऋण माफ किए जाने, टैक्सों में निरंतर छूटे दिए जाने  और मजदूरों के खिलाफ कानून बनाए जाने का भी विरोध किया और कहा इन सभी को भटकाने के लिए गैर जरूरी मुद्दे उछाले जा रहे हैं।

सभा में मजदूर विरोधी सभी कदमों को वापस लेने की मांग की गई और जीएसटी सहित सभी अप्रत्यक्ष करों को वापस लेने की मांग की गई। वक्ताओं ने कहा कि बढ़ती छंटनी का सर्वाधिक शिकार ठेका मजदूर हो रहे हैं। सिडकुल पंतनगर में एरा व माइक्रोमैक्स तथा सिडकुल सितारगंज में एमकोर फ्लैक्सिबल समेत कई कंपनियां गैरकानूनी रूप से बंद कर दी गई हैं और मजदूरों व उनके परिजनों का भविष्य बर्बाद कर दिया गया है।

शिरडी, टाटा मोटर्स, अशोक लीलैंड समेत कई कंपनियों में लेऑफ के नाम पर मजदूरों का रोजगार छीना जा रहा है। बजाज मोटर्स, इंटरार्क सहित कई कंपनियों में मालिकों द्वारा यूनियनों पर हमले, नेताओं का उत्पीड़न कर नौकरी से निकाला जा रहा है।

इंटरार्क, गुजरात अंबुजा, पारले, एलजीबी, लुकास टीवीएस समेत कई कंपनियों की यूनियनों के मांग पत्र पर सुनवाई नहीं की जा रही है।
 
सभा मे स्थाई काम स्थाई रोजगार, बेरोजगार मज़दूरों को 25,000 रुपये मासिक भत्ता देने, मांगपत्रों पर सुनवाई करने, यूनियनों को मान्यता देने आदि मांग को लेकर श्रमिकों ने सरकार को घेरा। इसके साथ ही सभी मज़दूर यूनियनों ने आपने संघर्षों को और तेज करने के लिए एक साथ आकर साझा संघर्ष करने का प्रस्ताव को भी पारित किया।

सभा को ठेका मजदूर कल्याण समिति के अभिलाख, श्रमिक संयुक्त मोर्चा के महामंत्री व ब्रिटानिया श्रमिक संघ के अध्यक्ष गणेश मेहरा, इंट्रार्क मजदूर संगठन पंतनगर के अध्यक्ष दलजीत सिंह, इंट्रार्क मजदूर संगठन किच्छा के अध्यक्ष राकेश कुमार, पारले मजदूर संघ पंतनगर के अध्यक्ष प्रमोद तिवारी, सिडकुल संयुक्त मोर्चा सितारगंज के अध्यक्ष व रैकेट इंप्लाइज संघ सितारगंज के सुरेंद्र सिंह देउपा, गुजरात अंबुजा यूनियन सितारगंज के अध्यक्ष कैलाश पांडे, श्रमिक संयुक्त मोर्चा अध्यक्ष व राने मद्रास यूनियन के महामंत्री दिनेश तिवारी, बजाज मोटर्स कर्मकार यूनियन के महामंत्री कृपाल सिंह, शिरडी श्रमिक संगठन के महामंत्री आनंद सिंह नेगी, यजाकी वर्कर्स यूनियन के महामंत्री राजेंद्र सिंह, देना इंडिया मजदूर संघ के विशाल, एडिएंट कर्मकार यूनियन के अध्यक्ष गंगा सिंह, पारले मज़दूर संघ सितारगंज के मोनू, डेल्टा पावर, एमकोर, नेस्ले कर्मचारी संगठन, भगवती श्रमिक संगठन, एलजीबी वर्कर्स यूनियन, मज़दूर सहयोग केंद्र आदि के प्रतिनिधियों ने संबोधित किया। इन कंपनियों के मज़दूर प्रतिरोध सभा में शामिल हुए।

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