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उत्तराखंड: जिस दलित को मारा गया उसी पर मुक़दमा.. वाह रे प्रशासन!

कुछ दिनों पहले एक दलित युवक को मंदिर में घुसने के कारण कुछ सवर्णों ने अधमरा कर दिया था। अब उसी पीड़ित के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कर लिया गया है।
utterkashi

वैसे तो समूचे भारत वर्ष में पुलिसिया कार्रवाई से कौन वाकिफ़ नहीं है, कभी थाने के भीतर आरोपी की मौत हो जाती है, तो कभी मेज़ के नीचे से नोटों की गड्डी पकड़े हाथों की तस्वीरें सामने आ जाती है।

इन्हीं सब के बीच अब पुलिस प्रशासन की एक और नई करतूत देखने को मिली है, जिसे जानने से पहले आप उत्तराखंड के उत्तरकाशी की वो घटना याद कर लीजिए... जिसमें आयुष नाम के दलित युवक को सिर्फ इसलिए पीटा गया था, क्योंकि उसने मंदिर में प्रार्थना के लिए प्रवेश किया था।

वैसे पीटा शब्द तो छोटा है, दरअसल आयुष के कपड़े उतारकर जलती लकड़ी से इतना मारा गया था, कि वो बेहोश हो गया था, अधमरी हालत में उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

अब मंदिर की सीढ़ियों पर या मंदिर के भीतर लगी भगवान की मूर्ति पर किसी का नाम तो लिखा नहीं है, या किसी का बैनामा तो होता नहीं है, लेकिन विडंबना है कि हमारे देश के कुछ तथाकथित सवर्ण समाज के लोग ख़ुद को भगवान का ठेकेदार समझ बैठे हैं, या यूं कहिए रक्षक समझ बैठे हैं, ऐसे भी कह सकते हैं कि वो ख़ुद को सबसे बड़ा मान बैठे हैं।

यही कारण है कि वो दलित समाज और भगवान की मूर्तियों के बीच एक चौड़ी खाई बनाने पर उतारू रहते हैं।

ख़ैर... पिटाई करने वाले सभी आरोपी जेल में हैं, और पीड़ित युवक अस्पताल में भर्ती है।

इस पूरी घटना से शासन और पुलिस प्रशासन पर तो सवाल खड़े होते ही हैं, लेकिन जो काम पुलिस ने अब किया है, वो किसी तरह के दवाब का भी एक नज़राना पेश करता है।

दरअसल अब पीड़ित युवक आयुष के ख़िलाफ ही धार्मिक भावनाएं आहत करने का मामला दर्ज कर लिया गया है। कहा जा रहा है कि पीड़ित परिवार पर समझौते का दबाव बनाने के मकसद से दर्ज कराए गए इस मुकदमें में कोर्ट का सहारा लिया गया है। पीड़ित युवक के ख़िलाफ मुकदमा दर्ज किए जाने से राज्य के तमाम दलित संगठनों में उबाल आ गया है। इस मामले में दलित संगठन प्रभावी कार्रवाई के लिए रणनीति बनाने में जुट रहे हैं।

इस पूरे मामले की जानकारी और पुष्टि के लिए जब हमने उत्तरकाशी के एसपी अर्पण यदुवंशी से बात की, तब उन्होंने बताया कि कोर्ट की ओर से पीड़ित आयुष पर मुकदमा दर्ज करवाया गया है, जिसमें उस पर धार्मिक भावनाएं आहत करने, मारपीट करने और नुकसान पहुंचाने का इल्ज़ाम लगाते हुए धारा 295ए के तहत मामला दर्ज किया गया है।

आपको बता दें कि बीते 21 जनवरी को उत्तरकाशी में सालरा गांव का रहने वाले करतार सिंह ने इस मामले में न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। करतार सिंह ने पुलिस पर उनकी शिकायत पर मुकदमा दर्ज न करने का आरोप लगाते हुए कोर्ट में कहा था कि बैनोल गांव का रहने वाला आयुष, बीती 9 जनवरी को कौल महाराज के मंदिर में आकर सीधे यहां जल रही धूनी में कूदा था, इस दौरान जब मंदिर की देखरेख करने वाले रामदयाल ने आयुष को रोकने की कोशिश की, तब उसने उनके साथ मारपीट की। इसके अलावा करतार सिंह ने पत्र में ये भी लिखा कि आयुष ने मंदिर में रखी प्रतिमाएं, धार्मिक प्रतीक और अन्य सामग्री मंदिर से बाहर फेंक दिया। इसके बाद आयुष मंदिर के गर्भगृह में गया और दरवाजा बंद कर लिया।

इन्हीं आरोपों के बाद पीड़ित आयुष पर भी मुकदमा दर्ज कर लिया गया है।

सवर्ण समाज से आने वाले करतार सिंह जिस तरह ये बता रहे हैं कि आयुष मंदिर में घुसा जलती हुई धूनी में कूद गया, तो यहां एक बात ये जान लेनी बेहद ज़रूरी है, कि पीड़ित आयुष अब भी अस्पताल में भर्ती है, और उसकी मानसिक स्थिति बिल्कुल ठीक है।

कहने का मतलब ये कि जब आयुष मानसिक रूप से स्वस्थ्य है तो जलती धूनी में कूदने का क्या मतलब है, और फिर करतार सिंह ये आरोप किस परिपेक्ष में लगा रहे हें।

ख़ैर.. करतार के इन आरोपों का जवाब लेने के लिए हमने पीड़ित आयुष के बड़े भाई विनेश कुमार से बात की...

उन्होंने कहा कि जिन भावनाओं को आहत करने का या तोड़फोड़ और समान मंदिर से बाहर फेंकने का आरोप करतार सिंह या सवर्ण पक्ष लगा रहा है, ये घटना वाले दिन ही क्यों नहीं बताया गया। अगर ये सच्चे होते तो पहले ही बता देते। इतने दिनों बाद बताने का क्या मतलब है। विनेश ने बताया कि, आयुष को बुरी तरह से पीटने के बाद इन लोगों ने दिन के वक्त मंदिर का समान ख़ुद बाहर फेंक दिया, और तोड़फोड़ भी की, बाद में वीडियो बनाकर आरोप आयुष पर मढ़ दिया।

विनेश ने बताया कि घटना रात की थी, लेकिन वीडियो दिन का है, इससे पता चलता है कि ये सब झूठ बोल रहे हैं।

आपको बता दें कि न्यूज़क्लिक ने दलित युवक आयुष के साथ हुई मारपीट की ख़बर को प्रमुखता से दिखाया था, जिसके बाद प्रशासन ने संज्ञान लेते हुए आरोपियों को गिरफ्तार तो किया ही था, साथ ही उत्तराखंड अनुसूचित जाति आयोग की ओर से सर्कुलर नोटिस जारी किया गया है, जिसमें राज्य के सभी ज़िलाधिकारियों और पुलिस प्रशासन को आदेश दिया गया है कि उन मंदिरों को चिन्हित किया जाए, जहां जाति के आधार पर मंदिरों में प्रवेश प्रतिबंधित किया जा रहा है। इसमें कहा गया है कि किसी वर्ग विशेष को मंदिर में प्रवेश से रोका गया तो आरोपियों के ख़िलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

फिलहाल दलितों के ख़िलाफ ये कोई पहला मामला नहीं है, दलितों के ख़िलाफ सिर्फ उत्तराखंड में ही नहीं पूरे देश में मामले बढ़ते जा रहे हैं, चाहे मंदिर में प्रवेश को लेकर हो, शादी के दौरान घोड़ी चढ़ने को लेकर हो, चाहे सवर्णों की सभा में आवाज़ उठाने को लेकर हो।

ये हम नहीं कह रहे बल्कि इस बात की गवाही राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो 2021 के आंकड़े बता हैं। रिपोर्ट के मुताबिक एससी समाज पर होने वाले ज़ुल्मों के ख़िलाफ 50900 मामले दर्ज किए गए हैं, यानी 2020 के मुकाबले ये 1.2 प्रतिशत बढ़ गए हैं। क्योंकि साल 2020 में ये मामले 50291 थे।

वहीं एसटी समाज की बात करें तो इनपर होने वाले ज़ुल्मों के ख़िलाफ 2021 में 8802 मामले दर्ज किए गए हैं, जो साल 2020 की तुलना में 6.4 प्रतिशत ज़्यादा हैं।

इन मामलों में बढ़ोत्तरी देखते हुए दो बातें स्पष्ट कर देना बहुत ज़रूरी है, कि एक तो हमारे देश की राष्ट्रपति भी दलित समाज से आती हैं, दूसरा ये कि सरकार के मुताबिक इन दिनों अमृतकाल चल रहा है।

अब सवाल ये है कि जब देश का सर्वोच्च पद एक दलित शख्स के पास है, फिर भी इस समाज की ऐसी हालत है, तो अमृतकाल के मायने क्या हुए।

इसके अलावा ये भी जानना ज़रूरी है कि जो आंकड़े दिखाए गए हैं, ये वो मामले हैं जो दर्ज किए गए हैं, बाकि न जाने के कितने मामले होंगे जो दूर-दराज गावों में यूं ही दबा दिए जाते होंगे।

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