Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

विधानसभा चुनाव और भाजपा: मोदी लहर या कुछ और?

हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को महाराष्ट्र में बढ़त मिली है तो हरियाणा में बहुमत के साथ वे दोंनो ही राज्यों में सरकार बनाने के कगार पर हैं। यह प्रदर्शन उपचुनावों के नतीजों के विपरीत है जहाँ भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था। इनके साथ आज कई सवाल हमारे सामने खड़े हैं कि क्या मोदी लहर अब भी जीवित है? क्या भाजपा अन्य राज्यों में इस प्रदर्शन को दोहरा पायेगी? इस जीत के पीछे वजह क्या है?क्या क्षेत्रीय पार्टियों का असर खत्म हो गया है?  इन सभी सवालों का जवाब जानने के लिए न्यूज़क्लिक ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एसोसिएट एडिटर शंकर रघुरमन से बात की।

                                                                                                                              

महेश कुमार- नमस्कार, न्यूज़क्लिक में आपका स्वागत है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एसोसिएट एडिटर, शंकर रघुरमन हमारे साथ हैं। उनसे हम हरियाणा और महाराष्ट्र में हाल ही में हुए चुनाव पर चर्चा करेंगे। हैलो शंकर। शंकर जी यह बताइये महाराष्ट्र और हरियाणा में हाल ही में जो अभी विधान सभा चुनाव हुए हैं, उसके जो नतीजे आये हैं , कहीं न कहीं यह लग रहा था कि उस चुनाव में भाजपा की जो हार हुई थी, उस से यह लग रहा था कि वे पीछे की तरफ जाएगी।  लेकिन हाल ही में हुए चुनाव के जो नतीजे हैं, उसमें भाजपा ने जीत दर्ज की है, उस से यह लग रहा है कि भाजपा दोबारा से लोक सभा चुनाव के दौरान वो वापस उभार की तरफ पहुँच गयी है। तो इस से पूरे देश में क्या संकेत मिलते हैं?

शंकर रघुरमन- देखिए, पहली बात तो यह है कि उपचुनाव और आम चुनाव में बहुत फ़र्क होता है। उपचुनाव में कही न कहीं मतदाता का यह मन बन जाता है कि उपचुनाव से सरकार तो नहीं बदलने वाली, तो जो सरकार बनी हुई है, उसको और मज़बूत बनाया जाए, उसको कमज़ोर करने से कोई फायदा नहीं तो इसलिए उपचुनाव में आम तौर पर यह देखा गया है कि सरकार में जो पार्टी बनी हुई है, उसको फायदा रहता है। तो जहाँ जहां उपचुनाव हुए हैं, यह ट्रेंड मोर ऑर लैस, बरकरार रहा। एक नतीजा भाजपा के ख़िलाफ़ भी गया, राजस्थान में भी गया लेकिन आम तौर पे उपचुनाव को बहुत ज़्यादा तूल नही देनी चाहिए । उससे बहुत ज़्यादा संकेत नहीं मिलते हैं की राजनैतिक स्थिति कैसी रहेगी। रही बात महाराष्ट्र और हरियाणा की, तो इससे यह बिलकुल स्पष्ट हो गया है की जो मौजूदा कांग्रेस या कांग्रेस के गठबंधन वाली सरकार थी, उनके ख़िलाफ़ जनता का आक्रोश अभी भी बना हुआ है। और उसी का नतीजा था जो लोक सभा में हमने देखा की जिस तरह से बहुमत के साथ भाजपा सरकार में आई है, वो लोग मोदी लहर की बात करते हैं मोदी के अपने करिश्मे की बात करते हैं वो सब है, ऐसा नही है कि वे बिलकुल बेमतलब है लेकिन साथ में, मेरे ख्याल से, सबसे बड़ा मुद्दा जो रहा है वो यह  है की कांग्रेस के खिलाफ आक्रोश है जनता के बीच । वो इन दोनों चुनाव में भी देखा गया है, अब इसका संकेत क्या जाता है, देश की राजनीती में? तो कहीं न कहीं लोगों को यह तो लगेगा कि भाजपा अभी एक उभरती हुई  शक्ति है और कांग्रेस कही न कही ढलती हुई शक्ति है । यह बात फ़िलहाल के लिए कन्फर्म है। और भाजपा के लिए यह बहुत बड़ा अचीवमेंट है क्योंकि न तो महाराष्ट्र में न तो हरियाणा में पहले कभी इन्हो ने अपने दम पर सरकार बनाई थी। महाराष्ट्र में तो अब भी अपने दम पे बनाने की हालत में नहीं लेकिन ये तय है की जो भी सरकार बनेगी उसका नेतृत्व भाजपा के हाथ में होगा। तो यह ज़ाहिर है कि भाजपा के लिए ये बहुत अच्छा संकेत है।

महेश कुमार- लेकिन अमित शाह ने अभी यह बयान दिया है कि क्षेत्रीय पार्टियां जो हैं, उनके दिन खत्म हो जाएंगे तो कांग्रेस ख़त्म हो रही है क्षेत्रीय पार्टियां भी उनके हिसाब से खत्म हो रही हैं तो क्या ये भाजपकरण हो रहा है पूरे देश का या इसके खिलाफ कोई प्रतिरोध उभरेगा या नहीं?

शंकर रघुरमन- आज यह जो अमित शाह कह रहे हैं, कि क्षेत्रीय पार्टियां खत्म हो रही हैं, यह आज से नही काम से कम दो दशक से कांग्रेस और भाजपा कहती रही हैं , क्योंकि उनकी अपनी मंशा ये है की राजनीती ऐसी हो जाये जिसमें सीधे सीधे कांग्रेस और भाजपा की टककर हो और दो पार्टी का सिस्टम हो। लेकिन हकीकत यह है कि हो ठीक उल्टा रहा है। अगर आप लॉन्ग टर्म में देखे तो क्षेत्रीय शक्तियां जो हैं वे दरअसल और ताकतवर होती जा रही हैं। ये हाल के जो चुनाव हुए हैं लोक सभा के, उस में भी आपने देखा की अगर कहीं मोदी लहर को रोका गया तो वो सिर्फ क्षेत्रीय पार्टी थे, चाहे वे तमिलनाडु में एडीएमके रहा हो या उड़ीसा में बीजू जनता दाल रहा हो या बंगाल में तृणमूल कांग्रेस रहा हो। क्षेत्रीय पार्टियों ने ही उनको रोका है, जहाँ भी रोका है। और मुझे नही लगता की ऐसी कोई स्थिति बनी है जिससे हमें यह लगे कि खत्म हो रहे हैं क्षेत्रीय पार्टियां, ये हो सकता है की एक क्षेत्रीय पार्टी कमज़ोर हो जाए और उसकी जगह कोई और ताकतवर बन जाए लेकिन कुल मिलाकर अगर आप क्षेत्रीय पार्टियों को देखें तो मुझे नहीं लगता कि उनके स्टिंट में कुछ कमी आएगी।

महेश कुमार- मनमोहन सरकार और मोदी सरकार की नीतियों में कोई फर्क नही है फिर मनमोहन सिंह के मुकाबले क्या मोदी को हम बोलेंगे अच्छा सेल्स मैन है, उसकी वजह से उनकी राजनीति में ज़्यादा उभर आ रहा है या ज़्यादा सीटें मिल रही हैं, इसका क्या कारण है?

शंकर रघुरमन- यह बात सही है कि उनके आर्थिक पॉलिसीस में कुछ अंतर है ही नहीं। दोनों ही निओ लिबरल पॉलिसीस को मानते हैं और दोनों ही उसी पे अमल कर रहे हैं। फर्क ये है कि एक ने इफेक्टिव इम्प्लीमेंटेशन का प्रोमिस किया है, दूसरे ने दस साल में ये साबित कर दिया कि वो इफेक्टिव इम्प्लीमेंटेशन नहीं कर पाया। तो निओ लिबरल पॉलिसीस से आम तोर पर जानता का बुरा ही होता है भला नहीं होता। लेकिन जो बिज़नेस तबका है, जो ट्रेडिंग कम्युनिटी है, या इंडस्ट्रियलिस्ट लोग हैं, उन्हें ऐसा लगता है की उन्हें फायदा होगा इस चीज़ से। तो ज़ाहिर है की वो ये चाहेंगे कि ये नीतियां जो हैं वो और अग्ग्रेस्सिवेली पुश की जाएं तो मोदी का जो अपील है, वो इस बात पर निर्धारित है कि गुजरात में उसने ये सब कर दिखाया। इसलिए इस वक़्त वो अपील उसका बना हुआ है एक पर्टिकुलर तबके में, उन तबको में जिनको निओ लिबरल पॉलिसीस से फायदा हो रहा है। उसमे मिडिल क्लास का भी एक हिसा है क्योंकि मिडिल क्लास के अपने एस्पिरेशन्स होते हैं, तमन्नाएँ होती है कि हमारी आमदनी बढे, हमारा लिविंग स्टैण्डर्ड बढे और ज़ाहिर है की एक तबके का तो बढ़ा ही है पिछले 20 सालों में, तो उसे इस प्रोसेस से बड़ी उमीद रहती है, तो वो तबका अभी  मोदी के पीछे बड़ी लगन से लगा हुआ है।

महेश कुमार- एक और बयांन आया अमित शाह का जिसमे उन्होंने बोला के हमारा अगला  बंगाल और बिहार का है जो राजनैतिक तोर पे जो अनुमान है तो उसके हिसाब से आपको क्या लगता है की भाजपा बंगाल और बिहार में अपनी पकड़ इसी तरह से बना पाएगी या नही बना पाएगी?

शंकर रघुरमन- देखिये ये कहना तो बड़ा मुश्किल है कि इस स्पीड से बनाना उनके लिए शायद दोनों ही राज्यों में थोड़ा मुश्किल रहे, बिहार में खासकर, बिहार में जैसे हमने उपचुनाव में भी देखा अभी, की यह जो गठबंधन बना है फिलहाल, जनता दल यूनाइटेड, राष्ट्रीय जनता दाल और कांग्रेस का, वह काफी मज़बूत है। उसके खिलाफ भाजपा के लिए अकेले या राम विलास पासवान के साथ मिलके बहुत अच्छा परफॉरमेंस देना इतना आसान नहीं रहेगा। वहां उस तरीके का वैक्यूम नहीं बना है अभी, जो हरियाणा या दूसरे राज्यों में बना है, तो इसलिए ऐसा लगता नही है की बिहार में इतनी आसानी से भाजपा अपना वर्चस्व कायम कर पाएगा। रही बात बंगाल की तो बंगाल में यह बात सही है कि भाजपा ने हाल में अपने आप को एक उभरती हुई शक्ति के रूप में पेश किया है और काफी कामयाबी के साथ किया है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इन सब के बावजूद वो लोक सभा चुनाव जिसमें की मोदी लहर माना जा रहा था उसमे उनको दो सीट मिली हैं 42 में से और उसके बाद जो उपचुनाव हुए हैं, उन में उन्ही सीटों पे भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया है, जिनपे उन्होंने लोक सभा चुनाव के दौरान भी किया था तो इसलिए इतना आसान नहीं होगा बंगाल या बिहार में वो परफॉरमेंस दिखाना जो अभी महाराष्ट्र या हरियाणा में दिखा है और यह बात भी हमें नहीं भूलनी चाहिए की ये चुनाव मोदी सरकार बनने के 4-5 महीने के अंदर अंदर होगए हैं तो इस वक़्त मोदी सरकार के प्रति जो जनता की आशा और उम्मीद है वो बनी हुई है लेकिन जैसे जैसे वक़्त बीतता जायेगा, तो वो उम्मीद पे नहीं एक्चुअल परफॉरमेंस पे जनता उसको तोलेगी। कि किस हद तक, आपने जो वादे किये थे, उसको आप किस हद तक अमल में ला पाये है, तो इसलिए मुझे लगता है कि इतना आसान नहीं होगा भाजपा के लिए जितना अमित शाह अभी सोच रहे हैं।

महेश- मेरा आखरी सवाल है कि क्योंकि एक कारण यह भी है भाजपा जिस तरह से चुनाव जीत रही है लगातार, कि राष्ट्रीय स्तर पर कोई विकल्प नहीं है उनके सामने। कांग्रेस के आलावा और कोई बड़ी पार्टी नहीं है जो विकल्प तैयार कर सके। तो क्या ये क्षेत्रीय पार्टियां ऐसा लगता है की कोई बड़ा क्रेडिबल विकल्प जो हैं तैयार कर पाएंगी भाजपा के खिलाफ आने वाले दिनों में 2019 तक या उससे पहले ?

शंकर रघुरमन- अभी तक जहाँ पर चुनाव हुए हैं, महाराष्ट्र और हरियाणा, दोनों ही जगह या तो कांग्रेस सरकार खुद चला रही थी या कांग्रेस नेतृत्व में थी, तो इसलिए अभी तक के ये नतीजे जो हम देख रहे हैं, ये कांग्रेस वर्सेस बीजेपी के नतीजे हैं। और बिहार, बंगाल में वहीं पर वो फ़र्क आ जाता है की वहां पे भाजपा वर्सेस कांग्रेस नहीं है, तो वहां पर टक्कर होगी भाजपा और क्षेत्रीय पार्टियों का। और जैसा की हमने लोक सभा चुनाव में भी देखा की जहां क्षेत्रीय पार्टियों के खिलाफ टक्कर रही वहां भाजपा अच्छा नहीं कर पाई। और खासकर उन राज्यों में जहां पर क्षेत्रीय पार्टियों का बल अभी तक बना हुआ है और भाजपा का कोई एक्सिस्टिंग बेस नहीं है तो तो बंगाल भी उस केटेगरी में आ जाता है और बिहार अलग है क्योंकि बिहार में ऐसा नहीं है की भाजपा का कोई अस्तित्व न हो ,बहुत सालों से  भाजपा का अस्तित्व रहा है लेकिन फिर भी क्षेत्रीय पार्टियों का भी बहुत अच्छा खासा वहां पर स्ट्रेंथ है, इसलिए मुझे लगता है की ये इन दोनों ही राज्यों में और सिर्फ इन दोनों रज्यों में नही जैसे तमिलनाडु  भी भाजपा के टारगेट पे है, इन सभी जगहों पे मुझे लगता है कि वो भाजपा को ये दिक्कतें आएँगी उसके सामने क्योंकि वहां पे टक्कर कांग्रेस के साथ नहीं है क्षेत्रीय पार्टियों के साथ है और इन सभी राज्यों में चाहे वो ओड़िसा हो, तमिलनाडु हो, बंगाल हो, बिहार हो, वहां की सरकारें इतनी बदनाम नहीं हुई हैं जितनी की हरियाणा में या महाराष्ट्र में.

महेश-  उत्तर प्रदेश?

शंकर रघुरमन- उत्तर प्रदेश में यह तो तय है कि वहां जो फ़िलहाल अखिलेश यादव की सरकार चल रही है, उसने जो वादे किये थे जिसके बल पे वो चुनाव जीत के आये थे, उस पे वो खरे नहीं उतरे। ये तो तय है। और यह बात भी तय है कि कांग्रेस वहां पे तकरीबन खत्म हो गयी है। बसपा भी, इस वक़्त ऐसा लगता है, कि उसकी शक्ति भी कुछ कम होती जा रही है। तो फिर अगर ऐसा रहा, तो टक्कर सीधे सीधे समाजवादी पार्टी और भाजपा के आमने सामने का होगा, ऐसे में सरकार के ख़िलाफ़ जो आक्रोश है, उस से भाजपा को फायदा होगा, ज़ाहिर है कि भाजपा की यह कोशिश भी रही है, खासकर उत्तर प्रदेश में, की सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया जाए, कि लव जिहाद का कैंपेन चला है, मुज़फ्फरनगर में दंगे हुए, कई जगह और भी छोटे छोटे दंगे भी कई जगह हुए हैं और भाजपा के नेताओं ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और उस टेंशन को बढ़ाने में। तो इन सब फैक्टर्स की वजह से भाजपा यही उम्मीद कर रही होगी कि उसका प्रदर्शन उत्तर प्रदेश में बहुत अच्छा रहेगा और यह तो ज़ाहिर है कि पिछले जो विधान सभा चुनाव हुए थे, उस से उनकी पोजीशन बेटर होगा। क्या वो लोक सभा के प्रदर्शन को दोहरा पाएंगे,यह कहना मुश्किल है क्योंकि हमे ये नहीं भूलना चाहिए की लोक सभा में एक फैक्टर ये भी था कि मोदी की सरकार बनवाई है । उत्तर प्रदेश के चुनाव में मोदी की सरकार नहीं बनेगी। इसलिए वो मोदी फैक्टर उस हद तक काम नहीं कर पायेगा जिस हद तक वो लोक सभा चुनाव में कर पाया था। लेकिन सबसे बड़ा फैक्टर मेरे ख़याल से ये होगा की मायावती अपनी पार्टी को, फ़िलहाल जो बिलकुल ही कमज़ोर स्थिति में हैं लग रही है, वहां से उभार पाती है या नहीं। अभी 3 साल का वक़्त बाकी है 2017 में वहां के विधान सभा के चुनाव, राजनीती में 3 साल बहुत लंबा अरसा होता है, उसमें बहुत कुछ बदल सकता है आज से 3 साल पहले अगर मैं आपको कहता कि भाजपा हरियाणा और महाराष्ट्र में सरकार बनाएगी तो आप मुझ पे हँसते, इसलिए 3 साल बाद बहुत ज़्यादा कॉन्फिडेंस के साथ कोई कुछ नहीं कह सकता। 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest