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विधानसभा चुनाव नतीजे: मनमानी के तरफ बढ़ते कदम.

हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को हरियाणा में बहुमत तो महाराष्ट में बढ़त मिली है. महाराष्ट्र में पिछले 20 सालों से भाजपा की लगातार गिरती स्थिति में लगाम लगने के साथ ही हरियाणा में वे सरकार बनाने के कगार पर हैं। पर इसकी एकमात्र वजह मोदी लहर है, यह मानना सरासर गलत होगा। और अगर यह माने कि यह नई सरकार द्वारा केंद्र में किए गए कार्य का नतीजा है , तो यह भी मिथक होगा। भाजपा सरकार केंद्र में जबसे आई है, झूठे वादों और उद्योगपतियों को मुनाफा पहुँचाने वाली नीतियों को लाने के सिवा उसने कुछ भी नहीं किया है। श्रम कानूनों में बदलाव, शिक्षा के भगवाकरण की तरफ लगातार बढ़ते कदम और मोदी की इन सभी मुद्दों पर चुप्पी अपने आप सभी हकीक़त बयां कर देती है। पर सवाल यह है कि आखिर ये जीत और बढ़त क्यों और आगे का रास्ता क्या होगा ?

हम यह भूल रहे हैं कि इन दोनों ही राज्यों में पिछले कई सालों से कांग्रेस और उनके सहयोगी ही सत्ता में रहे हैं। महाराष्ट में कांग्रेस और एन.सी.पी के गठबंधन द्वारा किए गए भ्रस्टाचार से जनता त्रस्त हो चुकी थी। साथ ही महाराष्ट्र में जातिगत समीकरणों ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि मिडिल क्लास में आने के सपने ने (जिसे भाजपा और मोदी ने अच्छी तरह से बेचा है) दलित वोट बैंक को भाजपा की तरफ खीचने में कामयाबी हासिल की है। यही वजह है कि बहुजन समाज जैसी मुख्य पार्टियाँ जिनका केंद्र हमेशा से दलित रहा है, इन चुनावों में कुछ ख़ास प्रदर्शन नहीं कर पायी हैं। हरियाणा और महाराष्ट्र, दोनों ही जगह बहुजन समाज पार्टी ने पिछले चुनावों से ख़राब प्रदर्शन किया है। दलित वोट का भाजपा की तरफ खिसकना इस बात से भी झलकता है कि ठीक लोकसभा चुनावों से पहले रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया(अठावले) ने भाजपा के साथ जाने का फैसला किया। विधानसभा चुनावों में निश्चित ही भाजपा को इसका फायदा हुआ है। पर अगर इसे मात्र मोदी लहर मानना इसलिए गलत होगा क्योंकि अगर यह लहर होती तो भाजपा को बहुमत मिलती बढ़त नहीं। लहर का नतीजा  लोकसभा चुनावों में देखने को मिला था जब भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 71, राजस्थान में 25, मध्य प्रदेश में 27 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस और एन.सी.पी के गठबंधन टूटने का फायदा भी निश्चित तौर पर भाजपा को मिला । हरियाणा में हुड्डा सरकार द्वारा भ्रस्टाचार में लिप्त होना मोदी के लिए लाभकारी सिद्ध हुआ। हुड्डा सरकार ने औद्योगीकरण के नाम पर जनता के हितो का दोहन किया। इसकी झलक हमें मानेसर में गिरफ्तार हुए मारुती के मजदूरों में साफ़ दिखती है जिन्हें बिना किसी केस के पिछले दो सालों से जेल में रखा गया । जनता सत्तारुद्ध पार्टी से त्रस्त थी और साथ ही कोई विकल्प न होने के कारण उन्हें भाजपा को चुनना पड़ा। पर बड़ा सवाल भाजपा की राजनैतिक समझ पर है. बड़े बड़े डींग हाकने वाले भाजपा नेतृत्व को अब उसी शिव सेना या एन.सी.पी के सामने हाँथ फैलाना पड़ेगा जिसे वे भष्ट और न जाने क्या क्या कह रहे थे।

                                                                                                                

देखने योग्य यह है कि अब इन दो राज्यों में सत्ता पाने के बाद, भाजपा अपने नवउदारवाद और भगवाकरण के एजेंडों को किस हद तक आसानी से लागू कर सकेगी। फिर वह चाहे राज्यों के स्तर पर ही क्यूँ न हो, जैसाकि उन्होंने राजस्थान में श्रम कानूनों में बदलाव और गुजरात में दीनानाथ की किताब को पाठ्यक्रम में लागू करने के साथ किया था। महाराष्ट्र और हरियाणा में सत्ता में आने के बाद, केंद्र का भारत की कुल जी.डी.पी के 37% पर सीधा अधिकार हो गया है । भारत के संघीय ढांचे के कारण केंद्र सरकार को मनमर्जी करने में हमेशा दिक्कत होती रही है, पर अब इन बड़े और मुख्य उद्योगिक राज्यों में भाजपा के लिए श्रम, ज़मीन और वन कानूनों में बदलाव लाने में ज्यादा दिक्कत नहीं होगी। भाजपा का पूंजीपतियों के लिए प्रेम किसी से छुपा नहीं है। सत्ता में आने के बाद ही उन्होंने 234 ऐसे योजनाओं को मंजूरी दी थी जो पर्यावरण नियमों के कारण रुके हुए थे। साथ ही भाजपा सरकार ने यह भी घोषणा की थी कि अब इंडस्ट्री के विकास के लिए पर्यावरण नियमों के मंजूरी की जरुरत नहीं होगी। साथ ही प्रस्तावित दिल्ली मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर भी हरियाणा और महाराष्ट्र से होकर गुजरता है। राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार होने के कारण इस परियोजना में केंद्र मनमानी करने में सफल रहा था और अब इन नतीजों के बाद उसे खुली छुट मिल गई है। इस कोरिडोर के अंतर्गत आने वाली नई उद्योगिक संस्थानों को विशेष आर्थिक जोन के सभी लाभ अभी से मिलने शुरू हो गए हैं जिसमे कम दाम में ज़मीन, न्यूनतम ब्याज और टैक्स भी शामिल है। साथ ही महाराष्ट्र में एन.सी.पी के साथ गठबंधन के आसार से यह भी नजर आता है कि भाजपा राज्य सभा में भी बहुमत की तरफ तेजी से बढ़ रही है। अगर ऐसा होता है तो फिर पूंजीपतियों के पक्ष में आसान नियमों की नवउदारवाद नीति का तेज़ी से प्रसार जरुर देखने को मिलेगा। डीजल को नियंत्रण मुक्त करना तो मात्र इसकी शुरुआत हो सकती है।

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

 

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