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विशेष राज्य के दर्जे को लेकर, उबल रहा है आंध्र प्रदेश

जबकि आंध्र प्रदेश में कई बुनियादी ढांचा परियोजनाएं लंबित हैं, वहीं एनडीए के सहयोगी होने के बावजूद टीडीपी राज्य सरकार सिर्फ सहायता के लिए केंद्र सरकार से अपील कर रही है।
Andhra pradesh

जैसा कि हम जानते है  कि संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण 5 मार्च को शुरू हुआ है , आंध्र प्रदेश के सांसदों ने लोकसभा और राज्य सभा दोनों सदनो में अपने राज्य के  विशेष राज्य के दर्जे या श्रेणी की  मांग की । 2014 से पूर्व आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद से ही , आंध्र प्रदेश के के लिए 'विशेष दर्जे या  श्रेणी ' का मुद्दा राज्य की  जनता और राजनीतिक दलों दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय रहा है। हालांकि सत्ताधारी तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा है, जो केंद्र में शासन कर रही  है, इसके बाबजूद भी   इसके नेता केंद्र सरकार पर 'आंध्र प्रदेश की उपेक्षा'  का आरोप लगते  रहे है ,इसके  खिलाफ ही वो केन्द्र का विरोध कर रहे हैं।

फरवरी में, मुख्यमंत्री एन चन्द्र बाबू नायडू ने भी "'आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के प्रावधान" को लागू नहीं करने पर केंद्र सरकार को धमकी दी थी कि  वो उनके  खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकती है । यह अधिनियम केंद्र को राज्य के बंदरगाहों, औद्योगिक परिसरों, नई राजधानी शहर, सिंचाई परियोजनाओं, रेलवे क्षेत्र और शैक्षिक संस्थानों के लिए बुनियादी ढांचे की स्थापना में राज्य का सहयोग करने के लिए बाध्य करती है |


कथित तौर पर, पहले के आंध्र प्रदेश की संपत्ति का लगभग 95% हिस्सा हैदराबाद में स्थित था , जो की अब आंध्र प्रदेश राज्य के विभाजन  के बाद से  तेलंगाना राज्य का हिस्सा है और ये आंध्र प्रदेश लिए भारी राजस्व घाटे का कारण बना हुआ है। नवगठित आंध्र प्रदेश सरकार के अनुमान के मुताबिक जून 2014 से मार्च 2015 तक राज्य को कुल  16078 करोड़ रुपये राजस्व घाटा हुआ  है । इसमे  से केंद्र सरकार ने 4117 करोड़ रुपये का भुगतान करने का आश्वासन दिया था ,लेकिन अब तक उसने 3979.5 करोड़ रुपये ही जारी किया हैं।

जब विभाजन प्रक्रिया चल रही थी, तो तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नवगठित आंध्र प्रदेश राज्य को विशेष राज्य का दर्जा या श्रेणी प्रदान करने का फैसला किया था । हालांकि, बाद में, 14 वें वित्त आयोग ने राज्यों को विशेषराज्य के दर्जे या श्रेणी को देने के लिए कुछ नये प्रावधानो को शामिल किया  था। इसे ही कारण बताते हुए, केंद्र सरकार ने आंध्र प्रदेश को विशेष श्रेणी का दर्जा देने से इनकार किया और इसके बदले केंद्र सरकार ने राज्य को 2016 से 2020 तक 'विशेष पैकेज'देने का वादा किया |

तदनुसार, केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच16447 करोड़ रुपये की राशि पर  परस्पर सहमति हो गई थी, जो कि केंद्र सरकार द्वरा संचलित योजनाओं के घटक थे  । चूंकि अब तक समझौते के तहत कोई निधि जारी नहीं की गई है और जैसा कि 2018-2019  के केंद्रीय बजट में आंध्र प्रदेश को विशेष पैकेज के तहत  निधि जारी करने का कोई जिक्र नहीं है, आंध्र प्रदेश की राजनीतिक आम राय ये  है की राज्य की पूरी राजनीती राज्य को   विशेष दर्जा या  श्रेणी को दिलाने पर पूरी तरह से  केंद्रित हो गई है।


केन्द्रीय और राज्य सरकारों के बीच स्पष्ट दरार दिखाई दे रहा है  इसके साथ ही, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, कांग्रेस और सीपीआई (एम) सहित राज्य में अन्य  विपक्षी दलों ने भी  विशेष राज्य के दर्जे या श्रेणी की मांग को  लेकर  आंदोलन, रैलियों आदि का आयोजन कर रही है|

वर्तमान में, ग्यारह राज्य - जम्मू और कश्मीर, अरुणाचप्रदेश, असम, नागालैंड, हिमाचलप्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, त्रिपुरा और उत्तराखंड विशेष राज्य का दर्जे या श्रेणी दिया हैं ।उनके अनुसार , इन राज्यों द्वारा बताए गए लाभों में उन्हें  केन्द्र प्रायोजित योजनाओं और अतिरिक्त  रूप से सहायता प्राप्त परियोजनाओं (ईएपी90:10 (केंद्र: राज्य) निधि साझाकरण आधार अर्थात् राज्य के परियोजनाओ में  90 %धन केंद्र सरकार का और राज्य का 10 % राज्य सरकार का होता है  , राजकोषीय प्रोत्साहन, बुनियादी ढांचे के निर्माण में सहायता करती है  और अन्य ऐसी रियायतों के तहत वित्तीय सहायता देती हैं।

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