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विश्लेषण : 4 फीसद वोट इधर से उधर होने पर बदल सकती है मध्य प्रदेश की स्थिति

न्यूज़क्लिक द्वारा तैयार किए डेटा टूल का उपयोग करने से, और जमीन की खबरों का विश्लेषण करने से, ऐसा लगता है कि बीजेपी मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव हारने के कगार पर है।
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न्यूजक्लिक द्वारा डिज़ाइन किए गए डेटा टूल का अनुमान है कि यदि 4 प्रतिशत मतदाता भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से कांग्रेस की तरफ जाते हैं, तो भगवा पार्टी 230 सदस्यीय विधानसभा में 61 सीटों को खो देगी, जबकि कांग्रेस 115 के आधे रास्ते को पार कर जाएगी, और 118 सीटें ले जाएगी। 

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इस साल 5.03 करोड़ मतदाताओं के साथ, और अगर मतदान का प्रतिशत 72 माने  - तो पिछली बार की तरह – 4 प्रतिशत मतदान के झुकाव का मतलब लगभग 15 लाख मतदाता होगा। यह प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में केवल 6,300 मतदाताओ की संख्या बैठती है, ऐसा नहीं है कि यह समान रूप से सब सीटों पर बंट जाएगा।
किसानों, कृषि मजदूरों, औद्योगिक श्रमिकों, दलितों और आदिवासियों के अलगाव ने और साथ ही व्यापारियों के बीच गहरे असंतोष के मेल ने विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश में 15 वर्षीय बीजेपी सरकार को पराजित करने के अवसर पैदा कर दिए हैं।
इन शक्तिशाली कारकों के साथ भाजपा के आधार को लगातार झटका लग रहा है, ऐसा लगता है कि जिन लोगों ने पिछली बार इसका समर्थन किया था उन लोगों के एक वर्ग के अपना समर्थन विपक्ष को देने की संभावना अधिक वास्तविक हो गई हैं।
2016 में प्रदर्शन, और पिछले साल वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के लागू करने से आजीविका और छोटे व्यापार के ढहने से काफी नुकसान हुआ है। व्यापारी तभी से जीएसटी की भूलभुलैया में गुम हो गए और उसकी बढ़ती माँगों को पूरा करने की कोशिश से जद्दोजहद करते रहे थे, तब से व्यापारियों में गुस्सा है।
हालांकि, यह एक बड़ा संकट है जो शिवराज सिंह चौहान की अगुआई वाली बीजेपी सरकार के समर्थन में सबसे बड़ा कटाव पैदा कर रहा है। खाद्यान्न का ख़जाना कम हो रहा है, एम.एस.पी. कम है और सरकारी योजनाओं जैसे के भावंतर भुगतान योजना विफल हो रही हैं, इसने कृषि समुदाय में गहरी अशांति पैदा की है, जो मतदाता के तौर पर राज्य में प्रमुख हिस्सा है।
अन्य योजनाएं, जो केंद्रीय सरकार की तरफ संचालित होती हैं जैसे ग्रामीण नौकरी गारंटी योजना (एमजीएनआरईजीएस) और ग्रामीण आवास योजना (प्रधानमंत्री आवास योजना) को व्यवस्थित ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है कुछ हद तक इसके लिए आंशिक रूप से नए इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर सिस्टम से भी परेशानी हो रही है।
ग्रामीण क्षेत्रों में बीजेपी से कांग्रेस की तरफ 5 प्रतिशत की स्विंग - इन परिस्थितियों में असंभव बात नहीं है – यह  बीजेपी को खत्म कर देगी, जिसने 2013 में 181 ग्रामीण सीटों में से 127 जीती थी। इस तरह की स्विंग के साथ भाजपा ग्रामीण इलाकों में सिर्फ 67 सीटों पर सिमट जाएगी, जबकि कांग्रेस का आँकड़ा 114 तक बढ़ जाएगा, न्यूजक्लिक ने ऐसा अंदाज़ा लगाया है।

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(संबंधित नक्शा देखने के लिए यहां क्लिक करें)

यहां तक कि यदि शहरी और अर्ध शहरी (कस्बे) सीटें स्विंग से ज्यादा हद तक प्रभावित नही रहती हैं या फिर वे भाजपा से कांग्रेस की तरफ केवल 1-2 प्रतिशत का झुकाव दिखाती हैं, तो ग्रामीण इलाकों का झुकाव कांग्रेस को सुरक्षित रूप से सत्ता सौंप देगा। हाल के किए गए सर्वेक्षण, वास्तव में, सुझाते हैं कि अर्ध शहरी क्षेत्रों में भी, भाजपा तेजी से अपनी जमीन खो रही है। इसका स्थानीय निकाय के चुनावों में भी संकेत मिला था। 22 अर्ध शहरी सीटों में बीजेपी के मतों के इस कटाव के पीछे के कारणों को ढूंढना मुश्किल बात नहीं है। इन क्षेत्रों में ज्यादातर गरीब वर्ग निवास करते है, जो विशाल अनौपचारिक क्षेत्र में मजदूरों और श्रमिकों के रूप में काम करते हैं, खासकर इंदौर, सागर, सतना, रीवा, जबलपुर और राजधानी भोपाल जैसे बड़े औद्योगिक और व्यापार केंद्रों के आसपास। उच्च बेरोजगारी, कम मजदूरी और नौकरियों की असुरक्षा में वृद्धि के साथ, आबादी के इन वर्गों ने हाल के वर्षों में गंभीर आर्थिक कठिनाई का सामना किया है, और नोटबंदी और जीएसटी से इनकी आपदाओं इज़ाफा हुआ है। वे बीजेपी सरकार के लिए एक विकल्प की तलाश कर रहे हैं।
यद्यपि प्रधानमंत्री ने राज्य में लगभग 10 रैलियों को सम्बोधित किया है, लेकिन उनके तथाकथित जादू में भारी गिरावट आई है। यह मुख्य रूप से इसलिए भी है क्योंकि उन्हें लोगों ने अपने पर ढाई जाने वाली कई आपदाओं की उत्पत्ति के रूप में पहचान लिया है – जिसमें नोटबंदी, जीएसटी, एससी/एसटी अधिनियम बेअसर करने और दलितों और आदिवासियों के प्रति सामान्य शत्रुता का व्यवहार, और नौकरियों की गंभीर स्थिति शामिल है। असल में, ऐसे कई लोग हैं जो महसूस करते हैं कि केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली सरकार मुख्य रूप से मध्य प्रदेश में बीजेपी की ऐसी खराब स्थिति के लिए ज़िम्मेदार है।
चुनाव में हार की बढ़ती संभावना को देखते हुए बीजेपी बड़ी तेजी से सांप्रदायिक एजेंडा पर वापस आ रही है। राम मंदिर मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर कृत्रिम रूप से उछाल दिया गया है और पिछले हफ्ते बीजेपी के अभियान में इस पर दबाव बनाया गया है। लेकिन मध्य प्रदेश में, चुनावी राजनीति में सांप्रदायिकता एक प्रमुख कारक नहीं है। और राम मंदिर मुद्दे को अधिक से अधिक लोगों द्वारा सिर्फ एक चुनावी जुए के रूप में माना जाता है – इसलिए यह बेकार साबित हो रहा है।
जहां तक मध्य प्रदेश का सवाल है बीजेपी को अच्छी तरह से और वास्तव में एक कोने में धकेल दिया गया है, और सभी संभावनाए ये हैं कि भाजपा राज्य हार रही है, जो मोदी की 2019 की लोकसभा की जीत की संभावनाओं में सेंध लगाएगी।
 

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