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वॉर एंड पीस का मराठी में भी अनुवाद हो चुका है

भीमा कोरेगाँव मामले में पुणे पुलिस और बॉम्बे हाई कोर्ट के एक जज ने टॉल्स्टॉय की साहित्यिक कृति 'वॉर एंड पीस' की एक कार्यकर्ता के घर पर मौजूदगी को 'आपत्तिजनक' कहा। जबकि इस पुस्तक का मराठी अनुवाद 1977 में महाराष्ट्र सरकार ने खुद करवाया था। 
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रूसी लेखक लियो टॉल्स्टॉय से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी गहराई से प्रभावित थे। लेकिन मंगलवार को बॉम्बे हाई कोर्ट में टॉल्स्टॉय की किताब पर जो सवाल उठा, वो समझ के परे था। 2018 के भीमा कोरेगांव दंगों के मामले में आरोपी वर्नोन गोंसाल्वेस द्वारा दायर जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान पुणे पुलिस के वकील अरुणा पई ने वर्नोन के घर से मिली किताब वॉर एंड पीस पर आपत्ति जताई। 'वॉर एंड पीस' के लेखक लियो टॉलस्टॉय थे। इस उपन्यास को विश्व साहित्य की सबसे मशूहर उपन्यासों में से एक माना जाता है। इस उपन्यास के साथ कई और किताबें और कबीर कला मंच से रिलीज़ की गई 'राज्य दमन विरोधी' नामक सीडी भी वर्नोन के घर पर पाई गई। घर से ये सब मिलने की वजह से  सरकार के वकील ने वर्नोन की जमानत याचिका का विरोध किया।  

न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के मुताबिक न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल ने कहा:  ‘‘सीडी ‘राज्य दमन विरोधी’ का नाम ही अपने आप में कहता है कि इसमें राज्य के खिलाफ कुछ है, वहीं ‘वार एंड पीस’ दूसरे देश में युद्ध के बारे में है। आपके (गोन्जाल्विस) पास घर पर ये किताबें और सीडी क्यों हैं? आपको अदालत को यह स्पष्ट करना होगा।’’

वॉर एंड पीस, पहली बार 1869 में रूसी भाषा में लिखी गई और बाद में 1899 में अंग्रेजी में अनुवाद की गई। इसे विश्व कृति के रूप में जाना जाता है। टॉल्स्टॉय की इस उपन्यास ने पूरे  विश्व को प्रभावित किया है।  किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि इस पुस्तक को कभी भी कहीं भी 'राज्य विरोधी' सामाग्री भी कहा जाएगा। लेकिन पुणे पुलिस ने ऐसा कर दिया है।

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दिलचस्प बात यह है कि पुणे पुलिस इस तथ्य से बिलकुल अनजान है कि इस विश्व कृति का मराठी में भी अनुवाद किया गया था और साल 1871 में महाराष्ट्र सरकार ने इसे प्रकाशित भी किया था। 

न्यूज़क्लिक के पास 'महाराष्ट्र राज्य साहित्य संस्कृत मंडल' द्वारा प्रकाशित इस अनुवाद की एक प्रति है। इस पुस्तक का अनुवाद A.N पेडनेकर द्वारा 1977 में किया गया था। पुस्तक की प्रतिलिपि में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि इसे उक्त मंच के 'सचिव' द्वारा प्रकाशित किया गया था और राज्य के प्रशासनिक मुख्यालय यानी मुंबई के 'मंत्रालय' में प्रकाशित किया गया था।

इस पुस्तक का परिचय किसी और ने नहीं बल्कि लक्ष्मणशास्त्री जोशी ने लिखा है। जो महाराष्ट्र के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के मशहूर विद्वानों में से एक है और महाराष्ट्र राज्य से निकले सबसे प्रभावशाली विचारकों में से एक हैं। 

जोशी को खुद महात्मा गांधी द्वारा अस्पृश्यता के खिलाफ सलाहकार के रूप में चुना गया था। जब गांधी पुणे में यरवदा जेल में कैद थे, तो जोशी उन्हें अस्पृश्यता के खिलाफ वेद और स्मृति (हिंदू साहित्य) से संदर्भ और इनपुट देते थे। 16 जून, 1977 को अनूदित पुस्तक, युधा अनी शांति, के परिचय में जोशी ने लिखा है  "मराठी भाषा को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ साहित्य से समृद्ध बनाने के लिए साहित्य संस्कृति मंच ने दुनिया की 300 सबसे जरूरी पुस्तकों को चुना है। टॉल्स्टॉय का वॉर एन्ड पीस उनमें से एक है। 

इस पुस्तक को रखने पर आपत्ति जताने से पहले पुणे पुलिस को कम से कम इस पुस्तक के बारें में जानकारी  इकठ्ठा कर लेनी चाहिए थी। जान लेना चाहिए था कि यह विश्व साहित्य की सबसे महत्वपूर्ण कृतियों में से एक है। जिसे मराठी में भी सम्मान हासिल है।  

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