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वसुंधरा राजे की 'गौरव यात्रा ' के दौरान नागौर के किसान ने की आत्महत्या

"बीजेपी सरकार के अंतर्गत कर्ज़ों के तले करीब 100 किसानों ने आत्माहत्या की है और बैल,ऊँट और बछड़े को बेचने पर रोक ने नागौर के किसानों की कमर तोड़ दी है।"
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image courtesy: indian express

5 अगस्त को राजस्थान के नागौर ज़िले के चारणवास गाँव में एक किसान ने आत्महत्या की थी। यह आत्महत्या तब हुई है जब राजस्थान की मुख़्यमंत्री वसुंधरा राजे प्रदेश भर में चुनावी प्रचार करने के लिए 'गौरव यात्रा ' पर निकली हैं। किसान का नाम मंगलराम मेघवाल था, उनकी उम्र 30 साल थी और उन्होंने परसों रात को अपने घर में पंखे से लटककर आत्महत्या की। मीडिया के मुताबिक वह क़र्ज़ के बोझ के तले दबे हुए थे और बैंक द्वारा उनकी ज़मीन नीलाम करने की बात करने पर उन्होंने तनावग्रस्त होकर यह कदम उठाया। 
 
दरअसल मंगलराम मेघवाल और उनके भाइयों ने अपनी ज़मीन पर 2011 पहले पंजाब नेशनल बैंक से 2 लाख 98 हज़ार का क़र्ज़  लिया था। उन्होंने 1 लाख 75 हज़ार का क़र्ज़ चुका दिया था। लेकिन बाकी का क़र्ज़ न चुकाने की वजह से उन्हें बैंक से बार बार नोटिस आने लगे। 5 अगस्त को वह बैंक गए तो उन्हें बैंक वालों ने बताया कि 1 लाख 75 हज़ार रुपये जमा कराने के बावजूद उनके ऊपर 4 लाख 59 हज़ार रुपये बकाया थे। बैंक मैनेजर ने उनसे बदसलूकी की और 7 तारीख  को उनकी ज़मीन की नीलामी करने की बात की। यह जानकार वह तनाव में घर पहुँचे और रात को अपने कमरे के पंखे से लटककर उन्होंने आत्महत्या कर ली। उन्हें उम्मीद थी कि क़र्ज़ माफ़ जायेगा , लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मंगलराम दलित थे और शरीर से लाचार भी। 
 
इस घटना के बाद अखिल भारतीय किसान सभा ने इस मुद्दे पर गाँव में दो दिनों तक धरना दिया। जिसके दबाव में प्रशासन ने इस कर्ज़े को माफ़ करने , परिवार में से किसी को नौकरी देने ,प्रधानमंत्री जनआवास योजना के तहत पक्का घर देने और बैंक मैनेजर के खिलाफ शिकायत की जांच करने की  माँगों को मान लिया । 
 
इस मुद्दे पर बात करते हुए माकपा के नागौर सचिव भगीरथ यादव ने बताया कि मंगलराम के क़र्ज़ को दो साल में ही NPA खाता बना दिया गया। इस वजह से क़र्ज़ पर ब्याजदर को 28 % से 30 % तक कर दिया गया, यानि उनका ब्याज दुगना हो गया था। इस वजह से क़र्ज़ की कुल रकम इतनी ज़्यादा बढ़ गयी थी। उनका कहना है कि ज़्यादतर मामलों में किसी भी खाते को NPA में चार पाँच सालों में NPA में तब्दील किया जाता है। 
 
सूत्र बताते हैं कि नागौर ज़िले का यह पहला आत्महत्या का मामला है। इससे पहले राजस्थान भर में किसान इसी तरह कर्ज़ों के बोझ तले आत्महत्या करते रहे हैं। पिछले साल नवंबर में सीकर के किसान आंदोलन के बाद सरकार ने किसानों के क़र्ज़ माफ़ी और लागत का डेढ़ गुना देने की माँग को मानने की बात की थी लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयान कर रही है। अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमरा राम का कहना है कि हाल के समय में 100 से ज़्यादा किसानों ने आत्महत्या की है। उन्होंने बताया कि उन्ही किसानों के 50,000 तक के क़र्ज़ माफ़ हुए हैं जिनके कोऑपरेटिव बैंकों में खाते हैं। जिन किसानों के मंगलराम की तरह दूसरे बैंकों में खाते हैं, उनका ऐसा पैसा भी माफ़ नहीं हुआ। 
 
नागौर ज़िले की बात करें तो यहाँ 1700 गाँव हैं और यहाँ की आबादी 37 लाख है। यह राज्य का सबसे बड़ा जिला है। सूत्रों के मुताबिक यह न सिर्फ राजस्थान का बल्कि उत्तर भारत का सबसे उपजाऊ इलाका है। ज़्यादातर लोग खेती करते हैं और सिर्फ दो से तीन हैटेयर ज़मीन के मालिक हैं। खेती के अलावा यहाँ पशुपालन एक मुख्य कमाई का ज़रिया  रहा है। लेकिन विभिन्न बीजेपी सरकारों द्वारा पशुव्यापार पर रोक लगा देने की वजह से लोगों की आमदनी लगातार काम होती जा रही है। नागौर ज़िले का नागौरी बैल विश्व प्रसिद्ध है। यह चावल खेती के काम आता है और विभिन्न राज्यों से लोग इसे यहां से बैल खरीद कर ले जाते थे। सूत्र बताते हैं कि दो बैलों की जोड़ी 1990 में 20,000 से 30,000 रुपये तक की बिकती थी। 1995 में बीजेपी की भैरो सिंह शेखावत की सरकार ने इसे 3 साल की उम्र तक के बैल के बेचने पर रोक लगायी और 2014 तक यह बहुत बड़ा मुद्दा बन गया। वसुंधरा सरकार ने इस कानून में और सख्ती कर दी । सूत्रों के मुताबिक अगर नागौरी बैल के जोड़े को आज के दामों के हिसाब से बेचा जाए तो डेढ़ लाख से दो लाख रुपये तक होगी। 
 
भागीरथ जी ने समझाया कि कोई भी बैल 12 महीने की उम्र तक ही बिकता है और उसके बाद उसे  कोई नहीं ख़रीदता। हुआ यह कि क्योंकि इस बैल को 3 साल की उम्र तक बेचने पर पाबन्दी है, इस वजह से किसानों को आर्थिक नुकसान हुआ है। इसके अलावा गाय , बछड़ा और बैल तीनों न बिकने की वजह से ये पशु हज़ारों   की संख्या में बढ़ गए हैं। इस वजह से इन इलाकों  में कई एक्सीडेंट होते हैं और ये आवारा पशु फसल भी खा जाते हैं। 
 
सूत्रों के मुताबिक बासुनि गाँव में मरी हुई गाय में कुछ मुस्लिम लोग की खाल निकालने क़ाम करते हैं। इसको मुद्दा बनाकर स्थानीय आरएसएस और बीजेपी ने लोगों ने 2014 में यहाँ दंगा कराने का प्रयास किया जिसमें हुसैन नामक एक शख्स की मौत हो गयी। बताया जा रहा है कि नागौर में जो पशु मेला हुआ करता था वह ख़तम होता जा रहा है। इसी तरह 2015 में ऊँट को बेचने , बाँधने और उसकी नाक में तोरण डालने पर पाबन्दी लगा दी गयी। इससे ऊँट से न तो  गाड़ी खींच सकते हैं और न ही उसे बेचा जा सकता  हैं। ऊंट की कीमत भी एक लाख होगी लेकिन उसे बेचा नहीं जा सकता। इससे भी किसानों को भयानक नुकसान हुआ है। 
 
इसके अलावा देश भर के किसानों की तरह ही राजस्थान के किसान भी विकट परिस्थितियों में जी रहे हैं।  न्यूज़क्लिक से बात करते हुए पिछली बार अखिल भारतीय किसान सभा के राजस्थान  महासचिव छगन लाल चौधरी ने कहा था कि "सबसे बड़ी दिक्कत प्रदेश में फसलों के दाम की है। पाँच साल पहले जिन दामों पर हम फसलें बेचते थे उनसे आधे दाम पर हम उन्हें आज बेच रहे हैं। इसका उदहारण है कि पहले जहाँ हम सरसों की फसल को हम 5,000 से 6,000 रुपये प्रति क्विंटल बेचते थे वह भी 3,000 रुपये क्विन्टल बिक रही है। सरकार चने पर सिर्फ  40 क्विंटल और मूंगफली 25 क्विंटल  की खरीद करती है बाकी फसल को बहुत ही काम दामों पर बेचना पड़ता है। इसके अलावा बहुत सी फसलों पर कोई भी न्यूनतम समर्थन मूल्य तय नहीं किया गया। " उदाहारण देते हुए उन्होंने बताया कि उनके खेत में पिछले साल मूंगफली की 200 क्विंटल फसल हुई जिसमें सिर्फ 25 क्विंटल सरकार ने खरीदी। सरकार ने एक क्विंटल का 4,400 रुपये दिया जबकि खुले बाज़ार में 1 क्विंटल का उन्हें  3,400 रुपये मिले। इसका अर्थ है उन्हें पर क्विंटल पर 1 हज़ार का नुकसान हुआ और उनके हिसाब से उन्हें कुल एक लाख पिछत्तर हज़ार रुपयों को नुकसान हुआ।
 
इसका अर्थ है कि कई फसलों पर कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य  मिलता ही नहीं और जहाँ मिलता भी है वहाँ फसल के एक बहुत छोटे से हिस्से पर ही मिलता  है। यही वजह है कि किसान भारी क़र्ज़ के तले दबे हुए हैं। 
 
पिछले साल सितम्बर के आंदोलन के बाद राजस्थान सरकार ने किसानों की ग्यारह सूत्री माँगो को मान लिया था। इन माँगो में किसानों को 5,000 रुपये की पेंशन देने , मनरेगा को ठीक तरीक से लागू किये जाने , हर किसान की 50,000 रुपये की क़र्ज़ माफ़ी, स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों को लागू कराने, मूंगफली, मूंग और उड़द पर सही दाम दिए जाने जैसी माँगे शामिल थीं। इन्ही सब माँगों को लेकर अखिल भारतीय किसान सभा पूरे देश के हर ज़िले में जेल भरो आंदोलन करेगा। राजस्थान के किसान भी इस आंदोलन में लाल झंडे तले लामबंध होंगे। उम्मीद है वसुंधरा जी कि इस 'गौरव यात्रा ' जवाब 9 अगस्त को मिलेगा। 
 

 

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