ईरान पर विएना वार्ता गंभीर मोड़ पर

संयोग से, यह 5 मार्च की तारीख थी जब रूस ने ईरान के साथ अपनी महत्वाकांक्षी आर्थिक, वैज्ञानिक-तकनीकी और सैन्य सहयोग की योजना को लेकर राष्ट्रपति जोए बाइडेन से "कम से कम" या गृह सचिव एंटनी ब्लिंकन से बहुत कम लिखित गारंटी के ज़रिए प्रतिबंधों में छूट की अपनी नवीनतम मांग को दोहराया था। 5 मार्च को ही परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) की वर्षगांठ भी होती है।
एनपीटी का भविष्य अब अमेरिका की प्रतिक्रिया पर निर्भर हो सकता है। क्योंकि, यदि बाइडेन प्रशासन बड़ी उम्मीद लगता है, तो यह निश्चित रूप से 2015 के ईरान परमाणु समझौते (JCPOA) में अमेरिका की वापसी होगी और वियना में वर्तमान वार्ता में एक सौदा तय करने वाला होगा।
दूसरी ओर, ईरान के लिए भी अपनी शेष मांगों पर कड़ा रुख अपनाने का एक सुनहरा अवसर अब हाथ में है - यानी, कुलीन इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) को अमेरिकी द्वारा दिए गए पदनाम एक आतंकवादी संगठन को हटाने की मांग; इस बात की पक्की गारंटी की मांग कि भविष्य की अमेरिकी सरकार परमाणु समझौते से (फिर से) पीछे नहीं हटेगी; और, तेहरान के परमाणु कार्यक्रम के बारे में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी से संबंधित फाइल को निर्णायक रूप से बंद कर दिया जाएगा। रूस, ईरान की मांगों का पुरजोर समर्थन करता है।
मॉस्को को प्रतिबंधों में छूट के मामले में बाध्य करने की संभावना शून्य है, क्योंकि यह अमेरिका की प्रतिष्ठा को घातक रूप से नुकसान पहुंचाएगा और खुद के डॉलर के हथियार का पूरा मजाक बना देगा (जो कि प्रतिबंधों के बारे में है।) प्रतिबंधों को हथियार के रूप में इस्तेमाल किए बिना, अमेरिका तेजी से अन्य देशों पर अपनी इच्छा थोपने में असमर्थ साबित हो रहा है।
हाल ही में रूस पर लगाए गए "नरक रूपी प्रतिबंध" भी एक नया हमला दिखा रहे हैं। इनमें रूस के केंद्रीय बैंक के भंडार को फ्रीज करना शामिल है। यह चरम कदम एक सनकी कदम है। हो सकता है कि अमेरिका ने चीन को भी एक शक्तिशाली संदेश भेजा हो, जिसके पास यूएस ट्रेजरी बांड के रूप में चीन का 2-3 ट्रिलियन डॉलर जैसा कुछ है।
लेकिन 5 मार्च को अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने अपने चीनी समकक्ष वांग यी को फोन किया - उसी दिन रूस ने प्रतिबंध में छूट की अपनी मांग को दोहराया - यह बताता है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि बीजिंग घटनाक्रम को करीब से देख रहा है।
वांग ने ब्लिंकन को स्पष्ट रूप से बताया कि बीजिंग को "अमेरिकी के शब्दों और काम को लेकर गंभीर चिंता है," विशेष रूप से ताइवान के संबंध में और इसलिए अमेरिकियों से "ठोस कार्रवाई" कर संबंधों को मजबूत करने की अपेक्षा की जाती है।
चीन लगातार अमेरिकी प्रतिबंधों का विरोध करता रहा है। यूक्रेन के आसपास की स्थिति पर, वांग यी ने वाशिंगटन को आगे की कार्रवाई करने से आगाह किया है कि "आग में ईंधन झोंकने" (लड़ाई में शामिल होने के लिए भाड़े के सैनिकों को भेजने की रिपोर्ट और योजनाओं की ओर इशारा करते हुए), का काम न करे, और महत्वपूर्ण रूप से कहा है कि अमरीका, "रूस के साथ समान बातचीत में शामिल हो, वर्षों से चल रहे संघर्षों और समस्याओं के हल के लिए कम करे, रूस की सुरक्षा पर नाटो के निरंतर पूर्व की ओर विस्तार के नकारात्मक प्रभाव पर ध्यान दें, और "सुरक्षा की अविभाज्यता" सिद्धांत के अनुसार एक संतुलित, प्रभावी और टिकाऊ यूरोपीय सुरक्षा तंत्र के निर्माण के लिए काम करे।
यह कहना पर्याप्त है कि यदि चीन आगे नहीं बढ़ेगा तो इस बात की प्रबल संभावना है कि वियना में वार्ता जल्द ही पटरी से उतर सकती है। नवीनतम रूसी मांग एक सौदे में भूमिका निभा सकती है। एक्शन-रिएक्शन सिंड्रोम महाशक्ति परमाणु प्रतियोगिता का एक मुख्य बिन्दु हुआ करता था। लेकिन ऐसा लगता है कि रूसियों ने अब परमाणु अप्रसार प्रश्न के प्रतिवाद का विस्तार करके अमेरिका के डॉलर के हथियारकरण का मुकाबला करने के लिए एक नया नया आयाम खोज लिया है।
ऐसा करके, रूस ने उसके केंद्रीय बैंकों के डॉलर के भंडार (जो कि सीधी राजमार्ग डकैती है) की जब्ती की कच्चे धन की शर्तों से परे अमेरिकी प्रतिबंध शासन को "परमाणु के हथियार" के एक बिल्कुल नए स्तर तक बढ़ा दिया है।
अमेरिका के डॉलर के हथियारीकरण से ईरान को काफी नुकसान हुआ है। अपनी 1979 की क्रांति के बाद से, ईरान की तरक्की और विकास को रोकने के उद्देश्य से पश्चिमी प्रतिबंध लगाए गए हैं। अमेरिका ने ईरान के खिलाफ हर तरह के अपमानजनक क्रूर प्रतिबंध लगाए हैं। चीजें उस समय चरमरा गई जब कोविड-19 महामारी के चरम पर, अमेरिका ने ईरान के लोगों के लिए दवाएं खरीदने के लिए उसके रास्ते को भी अवरुद्ध कर दिया था।
अमेरिका के "डॉलर के शस्त्रीकरण" के शिकार के रूप में पिछले चार दशकों के ईरान के दर्दनाक इतिहास से इस तरह के कई भयानक एपिसोड निकाले जा सकते हैं, जिससे संसाधनों में एक बेहद समृद्ध देश अपनी वास्तविक क्षमता से बहुत नीचे रहने के लिए मजबूर हो गया था, और इनमें से एक इतिहास में दुनिया की महान सभ्यताओं को लगभग 246 वर्षों के इतिहास वाले एक संपन्न देश के हाथों अपमान सहना पड़ा।
यह वह दासता है जिसमें ईरान उन देशों में से एक है जिसमें अमेरिका के "डॉलर के हथियारकरण" का मुकाबला करने के लिए "परमाणु के हथियार" का सहारा लेने की अपार क्षमता है। ऐसा होगा या नहीं यह एक विवादास्पद मुद्दा है। निश्चित रूप से, ईरान की घोषित प्राथमिकता परमाणु हथियारों के बिना रहना है। इसलिए वह वियना में होने वाली वार्ता में सौदा करने के लिए उत्सुक है। ईरान के विदेश मंत्री होसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन ने शुक्रवार को यूरोपीय संघ की विदेश नीति के प्रमुख जोसेप बोरेल से भी कहा कि वह सोमवार को परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए "वियना के लिए उड़ान भरने के लिए तैयार" हैं।
लेकिन सवाल यह है कि ईरान चाहे तो वियना में परमाणु समझौते के बिना भी अमेरिका से समान शर्तों पर मिलने की क्षमता रखता है। वास्तव में, यदि बाइडेन रूस को "नरक रूपी प्रतिबंधों" को निलंबित करने के लिए एक (लिखित) गारंटी प्रदान करने से इनकार करते हैं, तो यह सौदा वियना में नहीं हो सकता है, क्योंकि जेसीपीओए के मूल हस्ताक्षरकर्ता होने के नाते रूस को भी इसका हिस्सा होना अनिवार्य है। बेशक, अमेरिकी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि वे ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकने के लिए अपने साझा हित के दायरे में वियना में रूस के साथ काम करना जारी रखेंगे।
दरअसल, ईरान की बाकी तीन मांगें भी बाइडेन के लिए बड़ी चुनौती हैं। आईआरजीसी पर से प्रतिबंध हटाना वाशिंगटन अभिजात वर्ग के लिए एक कड़वी गोली है; फिर से, बाइडेन इस बात की गारंटी देने की स्थिति में है कि वियना में हस्ताक्षरित किसी सौदे में उनके राष्ट्रपति पद से परे भी कोई खास जीवन होगा।
यहीं पकड़ है। जब तक वियना में एक समझौता नहीं हो जाता, तब तक ईरान के सेंट्रीफ्यूज समृद्ध यूरेनियम का उत्पादन करेंगे, जिसका अर्थ होगा कि तथाकथित "ब्रेकआउट टाइम" सिकुड़ता जाएगा और सभी उद्देश्यों के मामले में, किसी बिंदु पर, ईरान खुद को एक आभासी परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र में बदल देगा फिर चाहे वह चाहे या न चाहे - और समझौते का मूल उद्देश्य जो अमेरिका वियना में उन्मादी रूप से चाह रहा है, वह विफल हो जाएगा।
ईरान के सामने भी यह सच्चाई का पल है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हालात ऐसे हो गए हैं कि कई देश, जिन्होंने स्वेच्छा से एनपीटी पर हस्ताक्षर किए थे, शायद अब अपने फैसले पर पछता रहे हैं। भारत, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया ने पहले ही एनपीटी की जंजीर तोड़ दी है। मुद्दा यह है कि अंतिम विश्लेषण में, परमाणु हथियार स्वतंत्र नीतियों को आगे बढ़ाने के लिए देश की रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखने का साधन है।
यह आंतरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप के खिलाफ एक फ़ायरवॉल प्रदान करता है; यह सीआईए के लिए स्थापित सरकार को उखाड़ फेंकने की गुंजाइश को कम करता है; यह अमेरिका को "डॉलर के हथियारीकरण" के माध्यम से अत्यधिक अनैतिक, निंदक बदमाशी को छोड़ने के लिए मजबूर करता है; और, सबसे बढ़कर, यह किसी देश की विकास का रास्ता चुनने की स्वतंत्रता को मजबूत करके विश्व व्यवस्था में बहुलता को बढ़ाता है।
1953 में न्यूयॉर्क शहर में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट आइजनहावर द्वारा दिए गए एक प्रसिद्ध भाषण का शीर्षक "एटम्स फॉर पीस" था। अगर पहले के वक़्त के हिसाब से देखें तो शीत युद्ध के दौरान यह पूर्व सोवियत संघ को रोकने की अमेरिका के प्रचार का घटक था।
आइजनहावर उस वक़्त एक मीडिया अभियान शुरू कर रहे थे जो "भावना प्रबंधन" के उद्देश्य से वर्षों तक चलने वाला था, कि भविष्य के परमाणु रिएक्टरों में यूरेनियम के शांतिपूर्ण उपयोग के वादे के साथ परमाणु आयुध जारी रखने के डर को संतुलित करना। विडंबना यह है कि वह आकर्षक वाक्यांश आज एक बिल्कुल नया अर्थ प्राप्त कर चुका है: कि परमाणु शक्ति एक समान विश्व व्यवस्था के लिए सर्वोत्तम साधन प्रदान कर सकती है।
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