ख़बरों के आगे-पीछे: दिल्ली चुनाव, तमिलनाडु और मप्र की राजनीति

निजी हमले भाजपा को भारी पड़ेंगे
दिल्ली में आम आदमी पार्टी के नेताओं पर भाजपा नेताओं के निजी हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। चुनाव से पहले इस तरह के निजी हमलों से भाजपा को नुकसान हो सकता है। अरविंद केजरीवाल के 'शीशमहल’ को लेकर राजनीतिक हमला तो ठीक है लेकिन उनके परिवार को निशाना बनाना, मुख्यमंत्री आतिशी पर निम्न स्तरीय निजी हमले करना भाजपा को महंगा पड़ सकता है।
आतिशी पर पर निजी हमला करके कालकाजी से भाजपा के उम्मीदवार रमेश बिधूड़ी अपने जीतने की संभावना लगभग खत्म कर चुके हैं। भले ही वे कितने भी मजबूत हों और तीन बार सांसद रहे हों लेकिन जिस तरह से उन्होंने आतिशी को अपना उपनाम बदल कर मार्लेना से सिंह करने पर कहा कि उन्होंने अपना पिता बदल लिया, उसका बड़ा नुकसान हुआ है। इसीलिए कांग्रेस की उम्मीदवार अलका लांबा ने कहना शुरू कर दिया है कि कालकाजी सीट पर लड़ाई आतिशी बनाम अलका लांबा है। हालांकि ऐसा नहीं है, आतिशी की लड़ाई बिधूड़ी से ही होगी और उसमें नुकसान में बिधूड़ी रहेंगे। पिता के नाम पर आंसू बहा कर आतिशी ने बढ़त बना ली है।
इस बीच भाजपा के एक अन्य बड़े नेता योगेंद्र चंदोलिया ने भी उनके पिता पर हमला किया और कहा कि उन्होंने अफजल गरू को बचाने की कोशिश की थी। इससे भी आतिशी को फायदा ही होगा। केजरीवाल की राजनीति के कारण अगर कुछ मुस्लिम वोट कांग्रेस की ओर जाने वाले होंगे तो वे भी कालकाजी में आतिशी को ही मिलेंगे।
राज्यपाल की तिकड़मों से स्टालिन को फायदा
तमिलनाडु में मुख्य विपक्षी पार्टी अन्ना डीएमके से सरकार और सत्तारूढ़ दल डीएमके का जितना टकराव नहीं होता है उससे ज्यादा टकराव राज्यपाल से होता है। पूर्व आईपीएस अधिकारी राज्यपाल आरएन रवि की गतिविधियों से डीएमके विरोधी, जो नैरेटिव बन रहा है उससे डीएमके ज्यादा मजबूत हो रही है। तमिल लोगों में यह धारणा बन रही है कि राज्यपाल के जरिए भाजपा उनकी संस्कृति और परंपराओं से छेड़छाड़ कर रही है।
ताजा मामला विधानसभा सत्र में बिना अभिभाषण पढ़े राज्यपाल के निकल जाने का है। छह जनवरी को विधानसभा का सत्र शुरू हुआ तो परंपरा के मुताबिक साल के पहले सत्र को राज्यपाल को संबोधित करना था और सरकार की ओर से दिया गया भाषण पढ़ना था। सदन की कार्यवाही शुरू होने पर तमिलनाडु का राज्यगान गाया गया और उसके बाद अभिभाषण पढ़ना था। लेकिन राज्यपाल ने कहा कि राष्ट्रगान भी होना चाहिए। तमिलनाडु विधानसभा में 1991 से एक परंपरा चली आ रही है कि अभिभाषण से पहले राज्यगान होगा और अभिभाषण के बाद राष्ट्रगान से समापन होगा। लेकिन राज्यपाल इस बार पहले ही राष्ट्रगान के लिए अड़ गए और सदन से बिना अभिभाषण पढ़े ही चले गए।
पहले भी राज्यपाल ने तमिलनाडु का नाम बदल कर तमिझगम करने का सुझाव दिया था, जिस पर काफी विवाद हुआ था। सो, आरएन रवि पता नहीं किस मकसद से कोई भी काम करते हैं लेकिन उससे स्टालिन की तमिल अस्मिता की राजनीति मजबूत होती है, जिसका फायदा उनको 2026 के चुनाव में वैसे ही मिलेगा, जैसा 2021 में राजभवन की गतिविधियों का लाभ पश्चिम बंगाल के चुनाव में ममता बनर्जी को हुआ था।
नाम बदलने का ऐसा जुनून!
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव के सिर पर इन दिनों छोटे-छोटे गांवों के नाम बदलने का भूत सवार है। वे हर उस गांव का नाम बदल देना चाहते हैं जिसका मौजूदा नाम उर्दू भाषा का है या मुस्लिम पहचान से जुड़ा है। इसी सिलसिले में उन्होंने हाल ही में मौलाना नामक एक गांव का नाम बदल कर नया नाम विक्रम नगर रखा है। इस मौलाना गांव के नाम की कहानी बड़ी दिलचस्प है। यह गांव उज्जैन जिले की बडनगर तहसील के अंतर्गत आता है। करीब 15 हजार की आबादी वाले इस गांव में ट्रैक्टर ट्रॉली बनाने का काम बड़े पैमाने पर होता है। इस गांव का भू-जल बहुत खारा है। मालवी भाषा में किसी वस्तु के खारेपन को मौलापन कहा जाता है। तो गांव का पानी खारा यानी मौला होने की वजह से इस गांव का नाम कई दशकों पहले मौलाना पड़ा था, यानी किसी मौलाना के नाम से इस गांव का नाम का कोई संबंध नहीं था। इसके बावजूद मुख्यमंत्री ने बडनगर में आयोजित एक कार्यक्रम में गांव का नाम बदलने का एलान करते हुए कहा कि मौलाना गांव का नाम लिखने पर कलम अटक जाती है, इसलिए वे इसका नाम बदल रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि यह गांव मुख्यमंत्री के ही गृह जिले में ही आता है, लेकिन न तो उन्हें इस गांव के नाम की पृष्ठभूमि पता है और न ही भाजपा के किसी स्थानीय नेता या जिले में पदस्थ किसी सरकारी अधिकारी ने इस बारे में मुख्यमंत्री को बताने की हिम्मत दिखाई। इसे सांप्रदायिक नफरत की इंतहा ही कहा जा सकता है।
सोरोस को अमेरिका का सर्वोच्च सम्मान
दिलचस्प है कि एक तरफ अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने शपथ समारोह का न्योता नहीं दिया है तो दूसरी ओर निवर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कथित भारत विरोधी जॉर्ज सोरोस को अमेरिका का सर्वोच्च सम्मान दे दिया। भारत में गूगल की सर्च हिस्ट्री में कई अभिनेता या अभिनेत्री के सर्च की खबरें साल के अंत में आई थीं लेकिन पूरी सूची सामने आती तो पता चलता कि कहीं न कहीं अमेरिकी कारोबारी जॉर्ज सोरोस भी उस सूची में हैं। असल में भाजपा ने सोरोस को सबसे बड़ा विलेन बना कर पेश किया। उनके बारे में पार्टी के प्रवक्ताओं से लेकर केंद्रीय मंत्रियों और संसद के अंदर पार्टी के वक्ताओं की ओर से कहा गया कि सोरोस भारत विरोधी व्यक्ति है। भाजपा प्रवक्ताओं ने कहा कि सोरोस दुनिया भर की ऐसी संस्थाओं को मदद करते है, जो भारत विरोधी गतिविधियां चलाती हैं। उन्हें पहले नरेंद्र मोदी का विरोधी कहा गया और फिर भारत विरोधी ठहराया गया। इसके पीछे एक कारण यह था कि ऑर्गेनाइडज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट यानी ओसीसीआरपी नामक संस्था को सोरोस की कंपनी की ओर से फंड मिलता है और इस संस्था ने पेगासस से भारत में जासूसी और शेयर बाजार में अडानी की हेराफेरी का खुलासा किया था।
बहरहाल, जिन जॉर्ज सोरोस को भाजपा और केद्र सरकार के मंत्रियों ने विलेन बनाया उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की ओर से अमेरिका के सर्वोच्च सम्मान 'प्रेजिडेंट मेडल ऑफ फ्रीडम’ के लिए चुना गया है।
दिल्ली में मोदी के निशाने पर सिर्फ़ आप
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा के प्रचार अभियान का आगाज करते हुए तीन जनवरी को जिस तरह का भाषण दिया उससे 10 साल पहले दिए उनके भाषण की याद आ गई। दस साल पहले जनवरी 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा के अभियान की शुरुआत करते हुए मोदी ने रामलीला मैदान में भाषण दिया था और केजरीवाल पर बड़ा हमला बोला था। जिस तरह अभी उन्होंने आम आदमी पार्टी की सरकार को आपदा सरकार कहा उसी तरह 2015 के पहले भाषण में केजरीवाल को नक्सली बताया था। उस चुनाव का नतीजा सबको पता है। भाजपा को 70 सदस्यों की विधानसभा में सिर्फ तीन सीटें मिली थीं, जबकि उससे पहले के चुनाव यानी दिसंबर 2013 के चुनाव में भाजपा 32 सीट जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी और केजरीवाल की पार्टी को 28 और कांग्रेस को आठ सीटें मिली थीं। इस बार भी प्रधानमंत्री का निशाना सिर्फ आम आदमी पार्टी और केजरीवाल पर है। उन्होंने कांग्रेस को किसी गिनती में नहीं रखा, जबकि कांग्रेस 10 साल के बाद लोकसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी बनी है और दिल्ली में बहुत ताकत से लड़ रही है। दिल्ली में भाजपा के लिए तभी कोई अवसर बनेगा, जब कांग्रेस मुकाबले में आएगी। कांग्रेस का वोट प्रतिशत अगर दो अंकों में हुआ तब भाजपा जीत भी सकती है। लेकिन यह तभी होगा, जब लगे कि कांग्रेस भी लड़ रही है। प्रधानमंत्री के पहले भाषण से तो नहीं लगा कि दिल्ली में कांग्रेस लड़ाई में है। आगे देखते हैं कि भाजपा क्या रणनीति अपनाती है।
अब 24, अकबर रोड का क्या होगा?
कांग्रेस का मुख्यालय चार दशक के बाद बदल रहा है। बरसों के इंतजार के बाद 9ए, कोटला रोड पर कांग्रेस मुख्यालय का उद्घाटन होने जा रहा है। 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उस समय की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसकी नींव रखी थी। अब 16 साल के बाद कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे इसका उद्घाटन करेंगे। इस इमारत को लेकर कई कहानियां कही जाती रही हैं और भाजपा मुख्यालय के निर्माण से इसकी तुलना की जाती है। दोनों पार्टियों का मुख्यालय अब एक ही रोड पर है लेकिन कांग्रेस ने अपने मुख्यालय का पता दीनदयाल उपाध्याय रोड नहीं रखा है, बल्कि दूसरी तरफ के कोटला रोड का रखा है। सवाल है कि जब कांग्रेस का मुख्यालय कोटला रोड पर शिफ्ट हो जाएगा तब 24, अकबर रोड का क्या होगा? कांग्रेस पार्टी क्या 24, अकबर रोड अपने पास रख पाएगी? यह सवाल इसलिए है क्योंकि भाजपा का मुख्यालय जब 11, अशोक रोड से छह, दीनदयाल उपाध्याय रोड पर शिफ्ट हुआ तो भाजपा ने 11, अशोक रोड अपने ही पास रखा। उसके साथ लगा बंगला, जो कभी अरूण जेटली को आवंटित हुआ करता था और वहां से भी पार्टी के ही कार्यालय चलते थे। अब भी 11 और नौ नंबर बंगले से भाजपा का बैक ऑफिस काम करता है। क्या इसी तरह कांग्रेस का कार्यालय भी उसके पास रह सकता है? यह सरकार के सद्भाव पर निर्भर करेगा कि कांग्रेस के पास उसके दोनों बंगले बचते हैं या सरकार वापस ले लेती है।
ट्रूडो की विदाई मोदी के कारण!
सोशल मीडिया में चल रही चर्चाओं पर यकीन किया जाए तो कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की विदाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कारण हुई है। सोशल मीडिया में नारा लग रहा है, 'जो मोदी से टकराएगा चूर-चूर हो जाएगा।’ कूटनीतिक जानकार भी मान रहे हैं कि भारत के खिलाफ खालिस्तानी अलगाववादियों को समर्थन देने की वजह से पार्टी में उनकी पकड़ कमजोर हुई है। लेकिन हकीकत यह भी है कि खालिस्तान समर्थक जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ने ट्रूडो सरकार से समर्थन वापस लिया तो वे कमजोर हुए। जगमीत सिंह की पार्टी के 25 सांसद हैं। ऊपर से अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव जीतने के बाद ट्रूडो की विदाई साफ दिखने लगी थी। सबको पता है कि ट्रंप के पहले कार्यकाल में ट्रूडो के साथ उनके संबंध कितने खराब थे। चुनाव जीतने के तुरंत बाद ट्रंप के करीबी और दुनिया के सबसे अमीर कारोबारी एलन मस्क ने कह दिया था कि ट्रूडो की विदाई होगी।
सो, जस्टिन ट्रूडो के इस्तीफा देने के पीछे कई फैक्टर हैं लेकिन भारत में इस बात का प्रचार है कि मोदी की वजह से उनकी विदाई हुई है। असल में मोदी विरोधी कुछ समय पहले तक अभियान चलाते थे, जिस भी वैश्विक नेता से मोदी गले मिले वह चुनाव हार गया। नवाज शरीफ से लेकर ट्रंप तक के नाम गिनाए जाते थे। लेकिन अब पाकिस्तान में शरीफ की पार्टी और अमेरिका मे ट्रंप भी जीत गए। नेतन्याहू तो हारने के बाद भी जैसे-तैसे जोड़तोड़ करके सत्ता में बने ही रहते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
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