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महिलाएँ किसान आंदोलन में सिर्फ़ 'भागीदार' नहीं, बल्कि वे संघर्ष की अगुवाई कर रही हैं: हरिंदर कौर बिंदू

बीकेयू (एकता उग्राहन) की नेता का कहना है कि पंजाब इसलिए बदल गया क्योंकि वहाँ महिलाओं ने संघर्ष किया, और वे कृषि क़ानून के ख़िलाफ़ आंदोलन में हार भी नहीं मानेंगी।
महिलाएँ किसान आंदोलन में सिर्फ़ 'भागीदार' नहीं, बल्कि वे संघर्ष की अगुवाई कर रही हैं: हरिंदर कौर बिंदू

18 जनवरी, यानि सोमवार को संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर दिल्ली की सीमाओं पर महिला किसान दिवस मनाया जाएगा/गया। नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा पारित तीन कृषि-कानूनों के खिलाफ उनका विरोध लगभग दो महीने से चल रहा है। आंदोलन की अगुवाई करने वाले लोगों में हरिंदर कौर बिंदू का भी नाम हैं, जो भारतीय किसान यूनियन (एकता उग्राहन) की महिला मोर्चा की प्रमुख हैं।

9 अप्रैल, 1991, जब बिंदू मात्र 13 वर्ष की थी, तो उसके पिता, मेघराज भगतुआना को पंजाब के फरीदकोट के सिवेवाला गाँव में सशस्त्र आतंकवादियों ने मार डाला था। भगतुआना ने सांप्रदायिकता और राज्य दमन के खिलाफ मोर्चा खोला था, जिसका मुख्य नारा था "ना हिंदू राज ना खालिस्तान, राज करेगा मज़दूर-किसान"। 

बिंदू और उनकी यूनियन के कार्यकर्ता हरियाणा के बहादुरगढ़ के टिकरी बॉर्डर के पास विशाल प्रदर्शन जमाए हुए हैं, इस मौके पर न्यूज़क्लिक ने उनसे महिलाओं की भूमिका के बारे में बात की, और आंदोलन में खालिस्तानियों, अलगाववादियों, देशद्रोहियों के शामिल होने के आरोपों पर भी चर्चा की। यहाँ उसी चर्चा के संपादित अंश पेश हैं:

आपने महिला किसान दिवस के लिए क्या योजना बनाई है?

18 जनवरी हमारे लिए एक बड़ा दिन है। हम उम्मीद कर रहे हैं कि प्रसिद्ध पंजाबी नाटककार गुरचरण सिंह की बेटी नवशरण कौर और मेधा पाटकर सहित कई प्रमुख हस्तियाँ शामिल होंगी। हमने प्रसिद्ध पंजाबी थिएटर कलाकारों, अनीता और शबदीश के थियेटर का नही आयोजन किया है।

आज का दिन महिलाओं के लिए खास है और महत्वपूर्ण भी क्योंकि इस तरह के विरोधों ने लिंग भूमिका को उलट दिया है: पुरुष अब वह काम कर रहे हैं जिसे महिलाओं के काम के रूप में देखा जाता था, और महिलाएं काले [खेत] कानूनों के खिलाफ भाषण दे रही हैं। ऐसा पहली बार हुआ है कि सैकड़ों महिलाएं अपना घर छोड़ विरोध स्थलों पर हफ्तों से जमी हुई है। महिलाओं ने 26 जनवरी की ट्रैक्टर-रैली के लिए अपने नाम देने शुरू कर दिए है।

ऐसी धारणा बनाई जा रही है कि महिलाओं को विरोध स्थलों पर 'लाया' गया है; वे यहां अपनी मर्जी से नहीं आई हैं। आप इस धारणा को कैसे दूर करेंगे? पंजाब में जन आंदोलनों में महिलाओं की क्या भूमिका रही है और खेती से उनका क्या संबंध है?

यह एक बहुत बड़ी घटना है कि बड़ी संख्या में महिलाएं विरोध शामिल हुई है। वे यहां इसलिए आई हैं क्योंकि लंबे समय से वे पंजाब के जन आंदोलनों में शामिल रही हैं। इस खास जगह पर [पकौड़ा चौक, बहादुरगढ़] में महिलाओं की हिस्सेदारी काफी हद तक बीकेयू एकता-उग्राहन की तरफ से हैं। यूनियन का हिस्सा होने का मतलब है कि उन्हें हर मुद्दे को समझने का अवसर मिला है जो उन्हें प्रभावित करता है और विरोध के महत्व को समझते है।

हमारी यूनियन वर्ष 2000 से महिलाओं को संगठित कर रही है और इस प्रयास से आज महिलाएं एक ऐसे मुकाम पर पहुंच गई हैं, जहां वे पिछले साल के अंत में रेल-रोको जैसे महत्वपूर्ण आंदोलन में मुख्य भूमिका निभा रही थी। हम घर-घर जाकर महिलाओं को नए कृषि-कानूनों के बारे में बता रहे हैं कि वे किसानों और कृषि को कैसे नुकसान पहुंचाएंगे। हमारे नारों ने महिलाओं को पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर संघर्ष करने के लिए तैयार किया है। 

लेकिन क्या पंजाब में महिलाओं का इस तरह के संघर्षों में शामिल होना सामान्य बात है?

हाँ यह सामान्य बात है। क्योंकि महिलाएं पंजाब में न सिर्फ खेती से संबंधित मुद्दों पर संघर्षों में भाग लेती हैं, जैसे कि किसानों की आत्महत्या, भूमि अधिग्रहण और कपास के मुआवजे के लिए होने वाले संघर्षों में भी भाग लेती हैं। वे निजीकरण के खिलाफ और कई अन्य मुद्दों पर  बिजली बोर्ड से भी लड़ती हैं। यह आज शुरू नहीं हुआ है; इसे ऐसा बनाने में कई दशक लगे है। उदाहरण के लिए, 2013 में, महिलाओं ने एक व्यावसायिक घराने (ट्रिडेंट) द्वारा खेत की जमीन के अधिग्रहण के खिलाफ कड़ी लड़ाई लड़ी थी। वे सिर्फ एक विरोध स्थल पर जाने के मामले में उसमें भाग लेने नहीं जाती हैं। जब पुलिस हमला करती है, तो महिलाओं को भी मार झेलनी पड़ती है। 2005 में, महिला प्रदर्शनकारियों पर पुलिस हमला करने के लिए घोड़ों का इस्तेमाल किया गया था।

इस आंदोलन में आपका सबसे बड़ा सहयोगी हरियाणा का किसान है, लेकिन उस राज्य में अभी भी कई महिलाएं परदा या घूँघट करती हैं।

पंजाब में भी, परदा था, लेकिन इसके खिलाफ हुए संघर्षों से स्थिति बदल गईं। प्रगतिशील आंदोलनों ने लोगों की चेतना को जागृत किया है और जागरूकता फैलाई है। शुरू में, जो लोग इन आंदोलनों से जुड़े थे, उनके घरों के भीतर परदे से छुटकारा मिला। तब इन परिवारों की महिलाओं को इन आंदोलनों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया गया था। पंजाबी समाज में हुए सुधार में महिलाओं के संघर्ष का बड़ा योगदान था।

खेती में महिलाओं की भागीदारी और उनके द्वारा घर पर किए जाने वाले कामों के बारे में आप क्या कहना चाहेंगी?

खेती से जुड़े घरों में महिलाओं की पूरी भागीदारी है। उनका योगदान खेती के लिए महत्वपूर्ण है। वे खेती से जुड़े जानवरों की देखभाल करती हैं, चारा काटती हैं और चारा लाती हैं... उनका बहुत सा काम अदृश्य रहता है। खेतों में भोजन ले जाना या घर में काम करना भी एक काम है, लेकिन उनके इस काम को मान्यता या उसका कोई भुगतान नहीं किया जाता है।

आप यहाँ हैं तो अब ये काम कौन कर रहा है?

कुछ परिवारों में, जब आदमी घर पर होता है, तो वह घर और खेती के सभी कामों का ध्यान रखता है। और जब महिलाएं घर पर होती हैं, तो पुरुष विरोध प्रदर्शनों में भाग लेते हैं। अगर पूरे के पूरे परिवार विरोध करने दिल्ली आ जाते हैं, तो उनके रिश्तेदार उनकी जमीन और जानवरों की देखभाल करते हैं। इस संघर्ष के दौरान, पुरुषों ने वह काम करना शुरू कर दिया है जो सिर्फ महिलाएं करती थीं। कई परिवारों में अभी भी पुरुष केवल खेतों पर काम करते हैं और रसोई या घरेलू काम नहीं करते हैं। लेकिन अब सब बदल रहा है और आदमी भी रसोई के काम कर रहे हैं। हमने आदमियों को आटा गूंथते, चपातियां बेलते, सब्जियां पकाते हुए देखा है और यह सब देख हम दंग रह गए।

तो, इस आंदोलन ने पंजाब में पारिवारिक जीवन में बदलाव का एक और आयाम जोड़ दिया है?

जी हाँ। 

महिलाओं के शेयर के बारे में क्या खयाल है, न केवल उनकी समान भागीदारी के बारे में बल्कि कार्यभार के बारे में? उदाहरण के लिए, खेतों में उनका स्वामित्व, पुरुषों की तुलना में बहुत कम है। आपकी यूनियन इस सवाल को कैसे संबोधित कर रही है?

असली मुद्दा यह है कि महिलाओं को पुरुषों और समाज ने गुलाम बनाया हुआ है। वह दोनों तरह की गुलामी का खामियाजा भुगतती है। हम इसके खिलाफ संघर्ष करते हैं; यह महिलाओं का उत्पीड़न समाप्त करने का लंबा संघर्ष है। यूनियन ने उत्पीड़ित महिलाओं को संगठित करने में मदद की है, उन्हें अपने साथ लिया है... इसकी बहुत जरूरत है, और इसीलिए हम पुरुष भागीदारों के साथ यहां आए हैं। हालाँकि, वर्तमान आंदोलन इस बारे में नहीं है। अभी, हम कानूनों को निरस्त करने और महिलाओं के समान शेयर की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं।

लेकिन दिल्ली के मीडिया को बहुत अचरज है कि महिलाएं विरोध कर रही हैं। क्या आपको लगता है कि यह बहुत बड़ी बात है कि महिलाएं यहां हैं?

यकीन है कि ये एक बड़ी बात है। इस अर्थ में कि महिलाएं अक्सर घर तक ही सीमित रहती हैं और इस आंदोलन में वे पूर्ण भागीदार के रूप में और भारी संख्या में घर के बाहर आ गई हैं। वे सिर्फ भगिदार नहीं हैं बल्कि वे इस आंदोलन की अगुवाई कर रही हैं। 

क्या महिलाएं तब तक विरोध में शामिल रहेंगी जब तक कि पुरुष?

हाँ-हाँ वे अंत तक शामिल रहेंगी।  

यदि केंद्र सरकार महिला प्रदर्शनकारियों से अनुरोध करता है कि वे आंदोलन की मांगों के अनुसार नए कानूनों में कुछ बदलाव कर देंगे तो क्या महिलाओं इससे सहमत होंगी? 

नहीं, हम कोई समझौता नहीं करेंगे। आंदोलन में भाग लेने के लिए आने वाली महिलाएं ऐसी हरकतें नहीं करेंगी। 

क्यों नहीं?

क्योंकि हमारे पास पिछले संघर्षों का अनुभव हैं। हमने कई आंदोलनों में भाग लिया है इसलिए हम जानते हैं कि आंदोलनों को कैसे सफल बनाया जाता है।

बीकेयू (एकता उग्रहान) किस तरह से इन विरोधों में शामिल अन्य यूनियनों से अलग है?

हमारे बीच वैचारिक मतभेद हो सकते हैं, लेकिन सभी यूनियनें दिल्ली केवल एक एजेंडा लेकर आए हैं: हमें किसी भी कीमत पर इन काले कानूनों को रद्द कराना हैं। इस बुनियादी मांग पर कोई असहमति नहीं है और सब एक हैं।

यहां कितनी महिलाएं आई हैं?

हमारी यूनियन 1,500 महिलाओं को साथ लाई है; कभी-कभी ज्यादा भी मौजूद होती हैं। महिलाएं आती-जाती रहती हैं, हालांकि कई लोग यहां स्थायी रूप से रह रहे हैं।

क्या पहले भी ऐसा कोई आंदोलन हुआ है?

यह पहला अनुभव है जिसमें महिलाएं अपने घरों के बाहर इतनी बड़ी संख्या में और इतने समय तक घर से दूर रह रही हैं।

यहां महिलाओं को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है?

पहले काफी समस्याएं थीं; सोने से लेकर शौचालय आदि की समस्या। लेकिन हरियाणा के लोगों ने जबरदस्त मदद की है। उन्होंने मॉल, पेट्रोल पंप और मैरिज पैलेसों को खोल दिया हैं। शहरी क्षेत्रों में, मोबाइल शौचालयों आदि की व्यवस्था की गई है। कुछ परिवारों ने हमारे लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं और कपड़े, दवा, गर्म पानी की सुविधा मुहैया करा रहे है, और यहाँ तक कि पैसा भी देने को तैयार हैं। वे कपड़े धोने और इस्त्री करने की व्यवस्था भी कर रहे हैं। हां, ठंड है, लेकिन महिलाएं तैयार हो गई हैं। ठंड का सामना करने के लिए वे अब मानसिक रूप से तैयार है और हमने ऐसा कर दिखाया है।

आप विरोध कर रहे किसानों को अलगाववादी, खालिस्तानी कहे जाने पर क्या प्रतिक्रिया देंगी?

जब पंजाब में खालिस्तान आंदोलन चल रहा था और हिंदुओं पर हमले हो रहे थे, उस समय एक सांप्रदायिकता-विरोधी मोर्चा शुरू किया गया था। उन दिनों, सरकार दमनकारी थी और आतंकवादी भी लोगों को मार रहे थे। हमारा संगठन सरकार और उग्रवादियों दोनों का विरोध कर रहा था और वास्तविक मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ा रहा था; कि अगर आपकी कोई मांगें हैं तो उन्हें सरकार के साथ उठाओ- आप [आतंकवादी] लोगों को क्यों मार रहे हैं? 9 अप्रैल, 1991 को, मेरे पिता, मेघराज भगतुआना और उनके कई दोस्तों और सहयोगियों को इस तरह का काम करने के लिए खालिस्तानियों ने मार डाला था।

याद रखें कि उन दिनों भी, महिलाएं खालिस्तानियों के खिलाफ आंदोलन में शामिल होती थी। माता सदा कौर ऐसी ही एक महिला थीं, जिन्होंने उग्रवादियों से कहा था कि आप केवल पुरुषों क्यों को क्यों मार रहे हो, मुझे भी मार दो, मैं उनके साथ आई हूं। उन दिनों कांग्रेस सत्ता में थी। हम हिंदू-सिख विभाजन को दूर करने के लिए लोगों को इकट्ठा कर रहे थे। हम इस तथ्य को जनता के सामने ला रहे थे कि सरकार और खालिस्तानी दोनों ही गलत हैं और असली मुद्दा  बेरोजगारी था। सरकार ने इस मुद्दे को हल नहीं किया, इसके बजाय इसने भावनात्मक विषयों को उठाया ताकि लोग बटे रहें। आज किसानों के आंदोलन को तोड़ने के लिए सरकार फिर से इसी तरह के [भावनात्मक] मुद्दों को उठा रही है। हम जानते हैं कि सत्ता में रहने वाले लोग हमारे बारे में तरह-तरह की चीजें कहेंगे। उन्होंने शाहीन बाग के बारे में भी ये बातें कहीं थी।

लेकिन शाहीन बाग के लोगों ने आपका समर्थन किया है। आप इस बारे में कैसा महसूस करती हैं?

बहुत अच्छा लगा। जब सीएए (नागरिकता संशोधन विधेयक) के खिलाफ शाहीन बाग में बैठक हुई थी, तो हम भी दो बार वहां गए थे।

लेकिन बहुत से लोग महसूस करते हैं कि अगर मुसलमानों को आपका समर्थन करते देखा जाता है, तो यह सरकार और लोगों के एक वर्ग को आपसे दूर कर देगा। क्या आपको इसकी चिंता नहीं थी?

बिलकुल नहीं। 

क्या कृषि विरोधी कानून के विरोध में महिलाएं शाहीन बाग को एक प्रेरणा के रूप में देखती हैं?

जी हाँ, जरूर प्रेरणा के रूप में देखते हैं। 

किस तरह की प्रेरणा?

जैसे आज पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे अन्य राज्यों को प्रेरित कर रहा है [ताकि कृषि- कानूनों का विरोध तेज़ हो], वैसे ही उन दिनों [दिसंबर 2019] में, शाहीन बाग ने हम महिलाओं को आंदोलन के लिए प्रेरित किया था। हमने पंजाब में सीएए के खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन किए। शाहीन बाग सीएए के खिलाफ महिलाओं को एक साथ लाया, और अब यह किसानों के आंदोलन के लिए भी रोशनी का काम कर रहा है। हम-महिलाएं, कार्यकर्ता, किसान-जनवरी और फरवरी 2020 में कुछ दिनों के लिए शाहीन बाग में रहे थे। ऐसा तब है जब योगी आदित्यनाथ [उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री] और अन्य नेताओं ने कहा था कि शाहीन बाग में मौजूद जनता 'टुकड़े-टुकड़े गैंग ' का हिस्सा है और पाकिस्तानी एजेंट्स हैं और आंदोलन के खिलाफ उससे भी बदतर शब्दों का इस्तेमाल किया गया था। 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करे

Women Aren’t Just Giving ‘Bhagidari ‘ but ‘Aguvaai ‘ to Farmers’ Struggle: Harinder Kaur Bindu

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