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INDIA मुंबई बैठक की अहम चुनौती: मोदी सरकार के नैरेटिव की काट करते हुए पेश करना होगा ठोस रोडमैप

विपक्ष के लिए जरूरी है कि उसे देश की 140 करोड़ मेहनतकश जनता को अधिकार-सम्पन्न बनाने एवं जनगण की विराट सृजनात्मकता का सर्वोत्तम उपयोग करते हुए एक सशक्त, खुशहाल, न्यायपूर्ण महान भारत बनाने का Vision और उसका ठोस रोडमैप देश के सामने पेश करना होगा।
INDIA
Phoot :PTI

मोदी-शाह के Hidden cards जो भी हों, उनके हाल के भाषणों, सरकार के actions और संघ-भाजपा के political initiatives से 2024 के लिए उनका जो मुख्य नैरेटिव है, उसका खुलासा होता जा रहा है।
 
मोदी जी, दरअसल, 1000 साल की गुलामी की याद दिलाते हुए यह नैरेटिव गढ़ने की कोशिश में हैं कि उनके नेतृत्व में अगली सहस्राब्दी के लिए महान हिन्दूराष्ट्र की नींव डाली जा रही है। वे समझा रहे हैं कि 1000 साल पहले एक राजा की हार की इतिहास की महत्वहीन लगने वाली घटना ने जैसे 1000 साल की गुलामी ( मुस्लिम शासन ) की नींव रखी थी, वैसे ही उनकी 2024 की जीत की छोटी सी लगने वाली घटना अगले 1000 साल के नए भारत ( पढ़िए, हिन्दूराष्ट्र ) की नींव रख सकती है!

बेशक वे हिन्दू राज का यह सपना भारत को आज दुनिया की 5वीं, फिर अपने तीसरे कार्यकाल में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, अमृत काल में 1947 तक महान विकसित राष्ट्र और विश्वगुरु बनने के झूठे आश्वासन की चाशनी में लपेट कर sell कर रहे हैं !
 
अर्थात 1000 साल का "गुलामी" और "अंधकार" का मुस्लिम काल बनाम अगले 1000 साल का विश्वगुरु, महान हिन्दू राज !
 
इस नैरेटिव को स्थापित करने के लिए मोदी जी और उनके सिपहसालार गोदी मीडिया की मदद से लगातार polarising agenda  उछालने और उसे केंद्रीय discourse  बनाने में लगे हुए हैं, तो संघ-भाजपा के foot-soldiers रात-दिन जमीनी स्तर पर मुसलमानों को target करने और नफरत फैलाने की कार्रवाइयों में लिप्त हैं।
 
हाल के मोदी जी के सारे भाषण-विदेश यात्रा से लौटकर मध्यप्रदेश के कार्यकर्ताओं से संवाद, अविश्वास प्रस्ताव का जवाब और 15 अगस्त को लाल किले से सम्बोधन आदि-गवाह हैं कि वे ध्रुवीकरण के एजेंडा को चरम पर ले जाने में जी-जान से जुट गए हैं।
 
संघ के तीनों चर्चित रणनीतिक मुद्दों -राम मंदिर, धारा 370 और UCC- के नाम पर एक साथ वोट मांगा जा रहा है। राम-मंदिर का उद्घाटन चुनाव पूर्व करने की तैयारी है। कश्मीर में 370 खत्म करने के कारनामे को बार बार याद दिलाया जा रहा है। मोदी जी ने मध्यप्रदेश के कार्यकर्ताओं से संवाद करते हुए पिछले दिनों जोरशोर से UCC को भी उछाल दिया, हालांकि आदिवासियों तथा पूर्वोत्तर और पंजाब की तीखी प्रतिक्रिया के बाद लगता है उसे फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।
 
सर्जिकल स्ट्राइक, "आतंकवाद के खात्मे ", ट्रिपल तलाक कानून जैसे कारनामों की याद दिलाई जा रही है। मोदी जी जिस तिकड़ी को 2024 के चुनाव के लिए अपना मुख्य राजनीतिक निशाना बना रहे हैं, उसमें भ्रष्टाचार, वंशवाद के साथ तुष्टीकरण का विभाजनकारी एजेंडा सर्वप्रमुख है।
 
विभाजन की विभीषिका याद दिलाने के नाम पर मुसलमानों के खिलाफ साम्प्रदायिक नफरत को धार दी जा रही है। विडंबना है कि जिस RSS की बुनियाद ही सावरकर के द्विराष्ट्रवाद के विभाजनकारी सिद्धांत पर टिकी है और जिसने उस दौर में साम्प्रदायिक हिंसा में बढ़चढ़ कर भाग लिया, वह आज अपने को राष्ट्रीय एकता का अलम्बरदार बता रही है! सिर्फ़ राजनीति की रोटी सेंकने के लिए 75 साल पुरानी भयानक त्रासदी की याद को उभारकर, मनगढ़ंत नैरेटिव द्वारा मुसलमानों को villain के बतौर पेश कर उनके खिलाफ नफरत भड़काई जा रहा है, और समाज को बांटने की साजिश की जा रही है। सवाल है कि आप विभाजन की विभीषिका किसलिए याद दिलाना चाहते हैं ? आपका प्रस्थान-बिंदु क्या है, आप इससे हासिल क्या करना चाहते हैं ? गौर तलब है कि विभाजन की त्रासदी को ईमानदारी से याद करने वाले लोहिया या विनोमिश्र जैसे राजनेता भारत- पाक-बांग्लादेश के महासंघ के माध्यम से पूरे उपमहाद्वीप की जनता की एकता का स्वप्न देखते थे। आरएसएस का उद्देश्य इसका ठीक उल्टा है। वह साम्प्रदायिक विभाजन को तीखा करने और भारत में मुसलमानों को दोयम दर्जे का शहरी बनाने के अपने political project को justify करने और उसे आगे बढ़ाने के लिए विभाजन की याद दिला रही है।
 
इस बात की गहरी आशंका मौजूद है कि इस  विभाजनकारी अभियान की चरम परिणति चुनाव आते आते किसी भयानक polarising action में हो सकती है। 
 
अमृतकाल (वे कहना चाहते हैं-हिंदूकाल!) में मोदी जी के नेतृत्व में भारत के महान विकसित राष्ट्र बन जाने का myth गढ़ने के लिए वैज्ञानिक-मेधा की उपलब्धि चंद्रयान की सफल लैंडिंग और G20 की rotational अध्यक्षता का श्रेय भी मोदी को देने की हास्यास्पद कोशिश पूरी बेशर्मी से की जा रही है।
 
मोदी काल में भारत के 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाने और तीसरे कार्यकाल में तीसरे स्थान पर पहुँच जाने का जो लॉलीपॉप दिया जा रहा है, उस पर स्तम्भकार शरद राघवन लिखते हैं-
 
" अगली बार जब कोई, यहां तक कि प्रधानमंत्री भी, यह दावा करें कि भारत सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है या यह दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, तो उनसे इसे साबित करने के लिए कहें। मोदी भी यह नहीं कर पाएंगे। सरकारी आंकड़ें जो आप पर फेंके जाएंगे, वह लगभग सभी गलत होंगे, और उन पर किया गया विश्लेषण सिर्फ एक अनुमान होगा। इसका कारण कोई जटिल सांख्यिकीय तर्क नहीं है। यह बहुत सरल है: डेटा पुराना है और काफी हद तक अर्थहीन है। आर्थिक जनगणना नौ साल पुरानी है, रोजगार सर्वेक्षण 12 साल पुराना है, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक भी 12 साल पुराना है।"
 
"हमारे पास भारतीय अर्थव्यवस्था का नया वास्तविक डेटा लगभग 12 साल पुराना है। इसलिए, अमृत काल का लक्ष्य जो भी घोषित कर दीजिए, हमें अपनी शुरुआत करने का बिंदु भी नहीं पता है।" 
 
जाहिर है मोदी के अमृत काल की गौरवगाथा की इमारत कपोल कल्पना, झूठ और मनगढ़ंत मिथकों की बुनियाद पर खड़ी की जा रही है।
 
एक पिछड़े, वंचित, विकास के आकांक्षी (aspirational) समाज में जहाँ rational thought-process का अभाव है तथा समाज में ऐतिहासिक कारणों से सामुदायिक विभाजन की गहरी fault-lines मौजूद हैं, ऐसे प्रोपेगंडा के प्रति vulnerability और सहज आकर्षण स्वाभाविक है। 
 
इस खतरनाक नैरेटिव की कारगर काट किये बिना विपक्षी गठबंधन महज कुछ अर्थवादी चुनावी वायदों और अपने सामाजिक आधारों के गणितीय योग द्वारा मोदी-भाजपा के प्रचण्ड चुनावी रथ को नहीं रोक सकता।
 
ठोस तथ्यों और तर्कों द्वारा विपक्ष की ताकतों को मोदी द्वारा गढ़े जा रहे मायावी नैरेटिव को ध्वस्त करना होगा, और उससे भी जरूरी यह कि उन्हें देश की 140 करोड़ मेहनतकश जनता को अधिकार-सम्पन्न बनाने एवं जनगण की विराट सृजनात्मकता का सर्वोत्तम उपयोग करते हुए एक सशक्त, खुशहाल, न्यायपूर्ण महान भारत बनाने का Vision और उसका ठोस रोडमैप देश के सामने पेश करना होगा और इसे लेकर राष्ट्रीय अभियान में उतरना होगा।
 
चुनाव समय से पहले होने की संभावनाओं के बीच विपक्ष अब इस task को address करने में और विलम्ब नहीं कर सकता। इसके मद्देनजर INDIA की 31 अगस्त-1 सितंबर की बैठक का महत्व बहुत अधिक बढ़ गया है।
 
यह स्वागतयोग्य है कि ट्रेड-यूनियनों तथा संयुक्त किसान मोर्चा ने भी 23 अगस्त को मेहनतकश जनता के ज्वलंत व बुनियादी सवालों पर राजधानी दिल्ली में विराट कन्वेंशन करके जनविरोधी मोदी सरकार के खिलाफ आरपार की लड़ाई में उतरने का ऐलान कर दिया है।
 
आशा की जानी चाहिए कि एकताबद्ध विपक्ष तथा जनान्दोलन की ताकतें मिलकर मोदी-संघ के 1000 साल राज करने के हिटलरी स्वप्न को चकनाचूर करेंगी और 2024 में एक नए लोकतान्त्रिक भारत का  सूर्योदय होगा।
 
 (लेखक इलाहाबाद विश्ववविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)
 

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