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तिरछी नज़र: मुझको सरकार-जी माफ़ करना, ग़लती म्हारे से हो गई

सचमुच, हमारी तो मति ही मारी गई थी कि सच को सच और झूठ को झूठ लिखते रहे। हम तो भूल ही गए थे कि एक आप हैं कि झूठ भी इसलिए बोलते हैं कि सच का महत्व बना रहे।
satire
साभार: कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य 

 

सरकार जी महान‌ हैं। सरकार जी महानतर हैं, पहले हुए किन्हीं भी सरकार जी से महानतर हैं। महानतर ही नहीं, महानतम हैं। सबसे महानतम हैं। जो अभी तक आए हैं, उनसे तो महानतम हैं ही, जो आने वाले हैं उनसे भी महानतम हैं। यह मुझे बस इन्हीं सरकार जी के बारे में कहना पड़ रहा है। इन सरकार जी से पहले किन्हीं और सरकार जी के बारे में ऐसा कहने की मजबूरी भी तो नहीं थी।

पहले के कोई भी सरकार जी इतने महान नहीं थे कि वे पत्रकारों को, लेखकों को, व्यंग्यकारों को मजबूर करें कि वे उनके बारे में, उनकी महानता के बारे में ही लिखें। हां, एक बार, सिर्फ एक बार, 1975-76 में, जब इंदिरा गांधी सरकार जी थीं, तब ऐसा मौका आया था कि पत्रकारों, लेखकों और व्यंग्यकारों को मजबूर किया गया था कि वे इंदिरा गांधी को महान लिखें, महान बताएं। 

पर इंदिरा गांधी भी इतनी महान नहीं थीं कि वे अपने को सर्वकालीन महान बता सकतीं। इसमें उनकी दो मजबूरियां थीं। पहली तो यह कि उनसे पहले मात्र दो सरकार जी ही हुए थे और दूसरी यह कि उनमें से एक तो स्वयं उनके पिता ही थे। इसके अलावा उनके संस्कार भी उन्हें अपने से पूर्ववर्तियों से महान बताने से रोक रहे थे। पर आज के सरकार जी के साथ ऐसी कोई मजबूरी नहीं है। 

ऐसा काम करने के लिए पहले आपातकाल लगाना पड़ता था। पर हमारे, हम सबके प्यारे सरकार जी तो इतने महान हैं कि यह काम, अरे यही अपने को महान कहलवाने का काम बिना एमरजेंसी लगाए ही करवाए जा रहे हैं। और हम भी इतने महान हैं कि यह कार्य अपने आप किए जा रहे हैं। आप स्वयं बताइये, क्या सरकार जी ने अपने को महान बताने के लिए एक भी बार कहा है? बताइये, क्या सरकार जी ने कभी इसके लिए मजबूर किया है? 

अंतर बस यह है कि पहले वाले सरकारजीयों के पास सिर्फ एक ही तोता था। और वह भी पिंजरे में बंद था। पर इन सरकार जी के पास तीन तीन तोते हैं। तीनों छुट्टा घूम रहे हैं। सूंघ रहे हैं और देख रहे हैं, कि कौन कौन सरकार जी के गुणगान कर रहा है और कौन नहीं कर रहा है? कौन सरकार जी को महान नहीं बता रहा है, महानतम नहीं बता रहा है? जो गुणगान नहीं कर रहा है, महान नहीं बता रहा है, बस वही देशद्रोही है। बस उस पर ये खूंखार तोते झपट पड़ते हैं। उस पर यूएपीए लगा देते हैं। उसे जेल में सड़ने के लिए छोड़ देते हैं।

सरकार जी तो बहुत ही महान हैं। पिछले सरकारजीयों ने देश को विज्ञान के संस्थान दिए होंगे पर नई थ्योरियां, नई खोजें नहीं दीं। वह कार्य उन्होंने वैज्ञानिकों पर ही छोड़ दिया। पर सरकार जी ने देश को, विज्ञान को नई थ्योरियां, नई खोजें दीं। एक तरफ से आलू डाल कर दूसरी ओर से सोना निकालने की खोज ओरिजनली सरकार जी की ही थी। उस खोज पर दूसरे का ठप्पा लग जाने के बाद सरकार जी ने ध्यान रखा कि उनकी किसी भी खोज पर दूसरे का ठप्पा न लगे। इसीलिए नाले की गैस से चाय बनाना, रेडार द्वारा बादलों की ओट में उड़ते विमानों को न पकड़ पाना जैसी अनेकों खोजें आज सरकार जी के ही नाम हैं। 

यही नहीं सरकार जी के नाम देश में बहुत सारे काम पहली बार करने का रिकार्ड भी है। सरकार जी ने डिजिटल कैमरे का इस्तेमाल और इमेल से फोटो भेजने का कार्य देश में तब ही कर लिया था जब वे देश में उपलब्ध ही नहीं थीं। लोगों को कपड़ों से पहचानने का हुनर भी सरकार जी ने ही लोगों को सिखाया। इसी तरह एंटायर पोलिटिकल साइंस की पढ़ाई करने वाले भी सरकार जी देश‌ के पहले और अंतिम व्यक्ति हैं। इतने महान व्यक्ति हैं हमारे सरकार जी।

सरकार जी तो इतने महान हैं। ये तो उनकी महानता की कुछ बानगियां हैं। गलती तो हमारी ही है कि इतने महान सरकार जी की महानता की बजाय हम बेकार में ही बेकार की चीजों पर लिखते रहे। बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, महिलाओं और दलितों पर अत्याचार, भुखमरी पर लिखते रहे। हमें धिक्कार है कि हम सरकार जी की बड़ी-बड़ी रैलियों पर न लिख कर सीएए के खिलाफ हुए आंदोलन, किसान आंदोलन, महिला पहलवानों के आंदोलन पर लिखते रहे। कोविड काल में बर्तन भांडे बजाने, दिया बाती जलाने और गौमूत्र गोबर की महिमा पर न लिख कर लॉकडाउन की कठिनाइयों, नदियों के किनारे पड़ी लाशों और ऑक्सीजन की कमी पर लिखते रहे। 

सचमुच, हमारी तो मति ही मारी गई थी कि सच को सच और झूठ को झूठ लिखते रहे। हम तो भूल ही गए थे कि एक आप हैं कि झूठ भी इसलिए बोलते हैं कि सच का महत्व बना रहे और एक हम हैं कि आप को समझ ही नहीं पाए। हमको सरकार जी माफ करना, गलती म्हारे से हो गई।
 
(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

 

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