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कटाक्ष: आलोचक नियरे राखते आंगन कुटी छवाए!

लेक्स फ्रीडमैन की मोदी जी के साथ तीन-सवा तीन घंटे लंबी बातचीत ने विरोधियों की भी आंखें खोल दी हैं!
PM Modi Podcst

अब तो मोदी जी के पक्के से पक्के विरोधियों को भी मानना पड़ेगा कि मोदी जी ऊंचे विचारों वाले व्यक्ति हैं। लेक्स फ्रीडमैन की मोदी जी के साथ तीन-सवा तीन घंटे लंबी बातचीत ने विरोधियों की भी आंखें खोल दी हैं और उन्हें भी मोदी जी के विचारों का कद साफ-साफ दिखाई दे रहा है। 

वैसे मोदी जी ऊंचे विचारों वाले ही नहीं, सादा जीवन वाले व्यक्ति भी हैं। इतने सादा जीवन वाले कि बहुत दिनों तक तो स्कूल भी नंगे पांव ही चले जाया करते थे। वह तो मामा ने कैनवास के जूते दिला दिए और वह भी सफेद रंग के, वर्ना कौन कह सकता है कि दुनिया नंगे पांव रहने वाले विश्व गुरु के ही चरणों में नहीं झुक रही होती। 

प्रसून जोशी ने गलत थोड़े ही पकड़ा था। एक फकीरी तो मोदी जी में बचपन से ही थी। अब प्लीज कोई यह मत गिनाने लगना कि मोदी जी की घड़ी कितने की है, मोदी जी का चश्मा कितने का है, मोदी जी का जूता कितने का है, मोदी जी की जेब में टंगा कलम कितने का है, अपने ही नाम की लिखाई वाला सूट कितने का था, वगैरह, वगैरह।

सादा जीवन को फकीरी से कन्फ्यूज नहीं करना चाहिए। अक्सर लोग उन्हें आपस में कन्फ्यूज कर देते हैं, पर यह गलत है। गरीबी कुछ और चीज है, फकीरी कुछ और ही चीज है। फकीर के लिए गरीब होना जरूरी नहीं है। उसके लिए गरीबी और अमीरी, दोनों से ऊपर उठना जरूरी होता है। 

फकीर किसी चीज से नहीं चिपकता है, न गरीबी से और न अमीरी से। और गरीबी को तो फकीर अपने साथ कभी भी चिपकने नहीं देता है क्योंकि गरीबी, मजबूरी वाली चीज होती है। और फकीर के पास मजबूरी का क्या काम? फकीर वो है जो करोड़ों की घड़ी, लाखों का चश्मा ऐसे लगाए, जैसे करोलबाग के फुटपाथ का सामान हो। और यह फकीरी, मोदी जी से बढ़कर किस में मिलेगी। गरीबों के देश में महंगी से महंगी चीजों को ऐसे उदासीनता से बरतते हैं, जैसे कोई गरीब अपनी दो-कौड़ी की चीजों को भी क्या बरतेगा। ऐसी फकीरी है, तभी तो मोदी जी गरीबी से नफरत करते हैं; गरीबों से नहीं सिर्फ गरीबी से। 

गरीबी मजबूरी का नाम जो है। उन्हें हर्गिज मंजूर नहीं है कि उनकी प्रजा मजबूर हो। इसीलिए तो, वह रात दिन गरीबी मिटाने में और गरीबों को गरीबी से ऊपर उठाने में लगे रहते हैं। गरीबी वास्तव में मिट जाए तब भी ठीक और आंकड़ों में ही मिट जाए, तब भी ठीक। आंकड़ों में गरीबी तो मोदी जी ने करीब-करीब मिटा ही दी है। जान-बूझकर दो-चार फीसद को छोड़ दिया है, क्योंकि सौ फीसद मिटाने में प्राब्लम यह है कि उसके बाद लोग एक-एक को पकड़-पकड़ कर दिखाने लगते हैं कि मिटा दिया, तो ये क्या है, वो क्या है? गिनती में घटाना हमेशा मिटाने से सुरक्षित होता है, कितना ही बचा रह जाए, कोई हाथ नहीं पकड़ सकता कि ये क्या है? और मोदी जी को यह मंजूर नहीं है कि कोई उनका हाथ पकड़े।

बेशक, मोदी जी आलोचना से बहुत प्यार करते हैं। मोदी जी अपने मुंह से बोले हैं कि आलोचना, जनतंत्र की आत्मा है। उनकी तरह लोकतंत्र जिसके दिल में है, वह आलोचना को गले लगाए बिना रह ही नहीं सकता है। फिर हमारे संस्कार में तो आलोचक को सदा संग रखने की बात है। आलोचक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाए। आलोचना कम नहीं, ज्यादा होनी चाहिए। और आलोचना भी नरम नहीं, तीखी होनी चाहिए। 

मक्खी की तरह आस-पास भिनभिनाने वाली आलोचना मोदी जी को नहीं भाती है। वह तो बस हर तरफ गंदगी फैलाती है। मोदी जी को मधु मक्खी जैसी आलोचना पसंद है। जो शहद भी देती है और ऐसा डंक भी मार सकती है कि बंदा तिलमिलाता रह जाए। पर अफसोस, मोदी जी को सच्ची आलोचना मिली ही नहीं है। दस साल से ज्यादा तो पीएम बनने के बाद ही हो गये। उससे पहले सीएम बनने के बाद के बारह-तेरह साल और जोड़ लो। करीब चौथाई सदी हो गयी खोजते-खोजते, पर अपने मोदी जी को सच्ची आलोचना नहीं मिली तो नहीं ही मिली।

मोदी जी ने सच्ची आलोचना की खोज के लिए क्या-क्या नहीं किया? सच्ची आलोचना की खोज के लिए पुलिस लगायी। सच्ची आलोचना की खोज के लिए सीबीआई, ईडी लगायी। सच्ची आलोचना की खोज के लिए, नक्काल आलोचकों के खिलाफ यूएपीए लगवाया, राजद्रोह कानून लगवाया, राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगवाया। एनजीओ संगठनों पर ताले लगवाए। समाजिक कार्यकर्ताओं पर डंडे चलवाए। पढ़े-लिखे सब शहरी नक्सल कहलवाए। कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में पुलिस थाने बनवाए। राष्ट्र प्रेम जगाने के लिए टैंक खड़े करवाए। हर संस्था में अपने वफादार बैठाए। मीडिया को अपनी गोदी में बैठाया। चुनाव आयोग से लेकर अदालतों तक, सब में अपने यस मैन भरवाए। संसद-वंसद के भी मुंह बंद कराए। हर कोशिश की कि कोई सच्चा आलोचक शोर-शराबे की वजह से प्रधानमंत्री की नजरों से छूट न जाए। पर नतीजा वही सिफर का सिफर। एक सच्चा आलोचक नहीं मिला, जिसकी आलोचना में गहरा अध्ययन हो, शोध हो और सावधानीपूर्ण विश्लेषण हो; जिसकी आलोचना सत्य और असत्य के बीच फर्क कर सकती हो। सारी दुनिया में  खोजे पर सच्चा आलोचक नहीं मिला। उल्टे मोदी जी  पर इसी का दबाव डाला जाता रहा कि नकली आलोचकों को ही आलोचक मान कर गले से लगा लें। गले से न भी लगाएं तब भी कम से कम उन्हें विरोधियों की तरह तो काम करने दें। पर मोदी जी ने भी कह दिया कि एक सौ चालीस करोड़ का यह देश सच्चे आलोचक जरूर डिजर्व करता है। नकली आलोचक मंजूर नहीं होंगे, जेल के बाहर तो बिल्कुल नहीं।

और थैंक यू मोदी जी, जीवन और मृत्यु तक, और भी तमाम चीजों पर अपने ऊंचे विचारों की थाह देने के लिए। थैंक यू फ्रीडमैन साहब, भक्ति भाव ने सवा तीन घंटे मोदी जी से मन की बात करवाने के लिए। अमरीकी दक्षिणपंथ के ठप्पे के बिना कोई दूसरा यह नहीं कर के दिखा सकता था।आलोचक नियरे राखते आंगन कुटी छवाए!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और लोक लहर के संपादक हैं)

 

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