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जलविद्युत बांध जलवायु संकट का हल नहीं होने के 10 कारण 

जलविद्युत परियोजना विनाशकारी जलवायु परिवर्तन को रोकने में न केवल विफल है, बल्कि यह उन देशों में मीथेन गैस की खास मात्रा का उत्सर्जन करते हुए जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न संकट को बढ़ा देता है। 
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एक नदी एक शानदार जीवित गलियारा है, जो जंगलों को, मछलियों को, तटवर्ती पारिस्थितिक तंत्र को और खेतों को आहार देती; जीवन-निर्वाह से संबंधी कार्बनिक पदार्थ और पोषक तत्वों का परिवहन करती है; लोगों को पीने का पानी देती है; सांस्कृतिक जुड़ाव को बढ़ावा देती है; और कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल में प्रवेश करने से रोकती है। 

एक नदी आश्चर्यजनक रूप से एक समृद्ध जैव विविधता का समर्थन करती है। और हम नदियों पर बांध बनाकर उनके कई लाभों को नकार देते हैं। 

नदियों की शक्ति का दोहन करने के लिए एक नवीकरणीय तरीका माने जाने वाले जलविद्युत बांध अब अपने प्रतिकूल प्रभावों के लिए बेहतर जाने जाते हैं: वे एक नदी की जैव विविधता के पारिस्थितिक तंत्र को नष्ट करते हैं, खाद्य सुरक्षा और स्थानीय समुदायों की आजीविका को नष्ट करते हैं, और हानिकारक मीथेन गैस का उत्पादन करते हैं, जो जलवायु परिवर्तन के खतरे को और बढ़ा देता है। अव्वल तो बांध बनाना ही एक महंगा उपक्रम है, जबकि उसका रख-रखाव तो और भी मुश्किल है। इसके साथ ही,ये बांध सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा के प्रामाणिक विकल्पों के प्रति जलवायु परिवर्तन प्रतिरोधी अथवा प्रतिस्पर्धी नहीं हैं। बांधों के निर्माण के बारे में वर्ल्ड कमीशन ऑन डैम (WCD) की रिपोर्ट के 2000 में प्रकाशन होने के बाद तो कई देशों और फाइनेंसरों ने बांधों का प्रस्ताव करना और उनके लिए फंड देने से अपने हाथ खींच लिए हैं। लेकिन उनमें कुछ छीजते उद्योगों को बचाने के लिए जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का उपयोग के बहाने के रूप में कर रहे हैं, और इनको बनाए रखने के लिए दुर्लभ जलवायु डॉलर का उपयोग करने का आह्वान कर रहे हैं। बांध परियोजनाओं को अब तर्कसंगत रूप से सबसे खराब स्थान पर बनाई जा रही हैं: वे स्थान हैं जैव विविधता के हॉटस्पॉट और उष्णकटिबंधीय संरक्षित क्षेत्रों से बहने वाली नदियों पर। यह काम अपने निहित स्वार्थ की पूर्ति के साथ आने वाले दशकों में मौजूदा जल विद्युत क्षमता को दोगुना करने के आह्वान के साथ किया जा रहा है। यहां 10 प्रमुख कारण गिनाए जा सकते हैं कि ये बांध जलवायु संकट के लिए किस प्रकार एक गलत समाधान हैं। 

1.जलवायु परिवर्तन बांधों को अविश्वसनीय और जोखिम भरा बना रहा है।

बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हैं। सूखे ने दुनिया भर में जल विद्युत उत्पादन को अपंग कर दिया है, जिससे अमेरिका से लेकर चीन और ब्राजील से लेकर दक्षिणी अफ्रीका तक ऊर्जा की राशनिंग करनी पड़ रही है और वे देश ब्लैकआउट हो गए हैं। इस रुझान के वर्तमान में बदलते जलवायु परिदृश्य को देखते हुए और बढ़ने के साथ ही उसे वैश्विक हो जाने की उम्मीद की जा रही है। इस बीच, तेजी से चरम मौसम की आम घटनाएं अनुप्रवाह (डाउनस्ट्रीम) रहने वाले लोगों के लिए बड़े बांध को खतरनाक बनाती हैं, क्योंकि वे बांध की विफलताओं से असुरक्षित हो जाते हैं।

2. बांध मीथेन की महत्त्वपूर्ण मात्रा का उत्पादन करते हैं।

आज 25 फीसदी ग्लोबल वार्मिंग मीथेन उत्सर्जन की वजह होता है, जिसके "वातावरण में पहुंचने के पहले 20 सालों में कार्बन डाइऑक्साइड की वार्मिंग शक्ति से 80 गुनी अधिक है।" यह जानकारी पर्यावरण रक्षा कोष (ईडीएफ) से एक प्रेस विज्ञप्ति में दी गई है। 

जैसा कि जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की 2021 की रिपोर्ट से पता चला है, ग्लोबल वार्मिंग की दर को तुरंत धीमा करने के लिए मीथेन उत्सर्जन में कटौती सबसे जरूरी कदम हैं। प्रकृति में भी एक अवलोकन किया गया। बांध मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड गैसों को उत्पन्न करते हैं, जब जलाशयों में वनस्पति और कार्बनिक पदार्थ भर जाते हैं और वे पानी के भीतर सड़ने लगते हैं, और जब इमारत निर्माण के लिए रास्ता बनाने के लिए वनों की कटाई की जाती है। बांध जलाशय विश्व स्तर पर मीथेन का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो कनाडा के ग्रीनहाउस गैस फुटप्रिंट के बराबर है। वैज्ञानिकों ने कुछ मामलों में पाया है कि बांध जलाशय कोयले पर आधारित बिजली संयंत्रों की तुलना में अधिक वार्मिंग के कारण बन सकते हैं। 

3. जलविद्युत जलवायु गणना नहीं जोड़ता है।

बांध क्षेत्र के उद्योग समूह, अंतर्राष्ट्रीय जलविद्युत संघ (आईएचए) अन्य निहित हितों के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए पिछले 100 वर्षों में स्थापित जलविद्युत की पूरी राशि (850 गीगावाट) से भी दोगुनी परियोजना की स्थापना पर जोर दे रहे हैं। आइए अब जरा इन संख्याओं को देखें: बांध बनाने में लगने वाला औसत समय लगभग 10 वर्ष है, और बांध निर्माण स्वयं में ही गंभीर उत्सर्जन का कारण (उदाहरण के लिए, सीमेंट उत्पादन) है। 

आईपीसीसी की रिपोर्ट हम सभी को याद दिलाती है कि अगर हम जलवायु परिवर्तन के सबसे खराब प्रभावों से बचना चाहते हैं तो ग्रीन गैस के उत्सर्जन में भारी कटौती करने के लिए हमारे पास अब 10 साल से भी कम समय रह गया है। 

यहां तक कि अगर एक बांध नियत अवधि से भी कम समय में बनाया गया था, तो एक नया बांध जलाशय सुचारु होने के पहले दशक में अधिकांश मीथेन और सीओ2 का उत्सर्जन कर वास्तव में जलवायु संकट में अपना योगदान देता है। उदाहरण के लिए, ब्राजील में, शोधकर्ताओं ने पाया कि बेलो मोंटे बांध तो केवल दो साल के ऑपरेशन के बाद ही ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में तीन गुनी वृद्धि का कारण बन गया है। ऐसे में बांधों के एक विशाल नए बेड़े का निर्माण करने से, जैसा कि आईएचए कहता है, मीथेन गैस का उत्सर्जन ठीक उसी समय अधिक होगा, जब हमें उन्हें कम करने की आवश्यकता होगी। 

4. 'सतत' जलवायु समाधान के रूप में जलविद्युत बांध के पक्ष में मार्केटिंग गलत है।

जलवायु संकट को कम करने के लिए पनबिजली परियोजनाओं को एक व्यावहारिक समाधान के रूप में पेश कर आईएचए अपना दुष्प्रचार करना जारी रखे हुए है, जो तथ्यों या नवीनतम वैज्ञानिक सबूतों पर विचार करने में विफल है। 

सितंबर 2021 में, आईएचए ने यह प्रतिज्ञा करते हुए कि सभी नई जलविद्युत परियोजनाओं को अपने स्वयं के "जलविद्युत स्थिरता मानक" को पूरा करना होगा, उसने पनबिजली जलविद्युत उद्योग को दुर्लभ जलवायु डॉलर की सब्सिडी देने के लिए एक पिच बनाई थी। 

पनबिजली परियोजनाओं को जलविद्युत बांध परियोजनाओं के लिए स्थिरता सुनिश्चित करने की यह प्रतिबद्धता, हालांकि, तब धराशायी हो जाती है, जब कोई इस तथ्य पर विचार करता है कि 2020 में आईएचए सदस्यों द्वारा शुरू की गईं सभी ‘टिकाऊ' जलविद्युत परियोजनाओं ने भी परिभाषित स्थिरता के मानकों को पूरा नहीं किया है। वर्ष 2020 के लिए “जल वर्ष पुस्तिका” रिपोर्ट में कहा गया है कि “दुनिया में अधिकांश जल विद्युत परियोजनाओं का विकास अस्थिर है और इससे होने वाली आय सतत विकास के मुख्य उद्देश्यों की कीमत पर होती है।”

5. बांध परियोजनाएं अक्सर मानवाधिकारों का उल्लंघन करती हैं। 

बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं का स्थानीय समुदायों के अधिकारों पर गंभीर दुष्प्रभाव पड़ता है। 2000 की डब्ल्यूसीडी रिपोर्ट के अनुसार, बांधों ने कम से कम 40-80 मिलियन लोगों को विस्थापित कर दिया है और अनुप्रवाह में वर्षों से रहने वाले अनुमानित 472 मिलियन लोगों को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। जलविद्युत कंपनियां अक्सर अपनी भूमि, क्षेत्रों, संसाधनों, शासन, सांस्कृतिक अखंडता और स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति (एफपीआईसी) के अधिकार का उल्लंघन करती हैं।

पिछले साल, होंडुरास में स्वदेशी नेता बर्टा कासेरेसु की हत्या में बांध बनाने वाली कंपनी के एक पूर्व प्रमुख को दोषी करार दिए जाने के बाद से जलविद्युत बांधों का विरोध करने वाले लोगों के सामने आने वाले खतरे की भयावहता उजागर कर दिया है। वैश्विक जैव विविधता के 80 प्रतिशत की रक्षा करने और अपने क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन को रोकने में दुनिया का नेतृत्व करने में स्वदेशी लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका के बावजूद स्वदेशी आबादी पर बांधों का प्रभाव अबाधित है। 

6. ऊर्जा तक लोगों की पहुंच बनाने के लिहाज नई पनबिजली महंगी और रुग्ण

बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं के खिलाफ एक और महत्त्वपूर्ण बात जाती है, वह है उनका बेहद खर्चीली होना। योजनागत त्रुटियों, तकनीकी समस्याओं और भ्रष्टाचार के कारण, 44 प्रतिशत बांध औसत देरी के शिकार हो जाते हैं और इस तरह उनकी लागत में 96 प्रतिशत तक की वृद्धि हो जाती है। देर-सबेर, जलाशयों में गाद बनने लगता है, और उसकी साफ-सफाई से लेकर बांधों के रख-रखाव की लागत उनके लाभों से कहीं अधिक बैठ जाता है। इस बीच, बड़े बांधों द्वारा उत्पादित ऊर्जा आमतौर पर स्थानीय समुदायों के लिए दुर्गम होती है। या तो इसलिए कि यह उनके हिसाब से बहुत महंगी होती है, इस वजह से उस उद्योग का एकाधिकार हो जाता है, या दूरदराज के शहरों या पड़ोसी देशों को निर्यात किया जाता है। 

7. बांध नहीं, मुक्त बहने वाली नदियां जलवायु, जैव विविधता और जल संकट को कम करने में मदद करती हैं। 

नदियां, जब अबाधित और स्वस्थ रहती हैं, तो वे हर साल अनुमानित 200 मिलियन टन कार्बन वायुमंडल से खींचकर तेजी से अस्थिर होते वैश्विक कार्बन चक्र को विनियमित करने में मदद करती हैं। यह मुफ्त बहने वाले ताजे पानी के पारिस्थितिक तंत्र द्वारा प्रदान की जाने वाली दर्जनों आवश्यक सेवाओं में से एक है, जिसमें भोजन के प्रावधान से लेकर बाढ़ के शमन और फिर जल आपूर्ति तक पहुंच शामिल है। डायचे वेले के एक लेख के अनुसार डैम पानी के भंडारण का काम खराब करते हैं; "यह अनुमान लगाया गया है कि मानव गतिविधियों के लिए आवश्यक ताजा पानी की कुल मात्रा का कम से कम 7 प्रतिशत हर साल दुनिया के जलाशयों से वाष्पित होता है।" 

8. पनबिजली के विकल्प अधिक किफायती हैं और वे ऊर्जा क्रांति को बढ़ावा दे रहे हैं। 

वास्तव में नवीकरणीय, स्वच्छ ऊर्जा स्रोत आसानी से उपलब्ध हैं और वे वित्तीय रूप से प्रतिस्पर्धी हैं और ऊर्जा उत्पादन और पहुंच के पसंदीदा विकल्प के रूप में बड़ी-बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं से आगे निकल गए हैं। पवन, सौर और भूतापीय जैसी उपयोगिता-स्तरीय नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में पर्यावरणीय और सामाजिक रूप से टिकाऊ ऊर्जा को तेजी से प्रदान करने की क्षमता है और यह उपभोक्ताओं के लिए भी लागत के नजरिए से प्रभावी हैं।

वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों और बेहतर भंडारण प्रौद्योगिकियों की बढ़ती लागत के साथ-साथ ऊर्जा दक्षता और ग्रिड प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण प्रगति को देखते हुए-अब ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को काफी कम करना और मुक्त बहने वाली नदियों का संरक्षण करते हुए ऊर्जा उत्पादन का विस्तार करना संभव है। 

9. जैव विविधता पर उभरते संकट का हल करने के प्रयासों के साथ जलविद्युत का विस्तार एकदम असंगत। 

जबकि वे पृथ्वी की सतह के 1 फीसदी से भी कम जगह छेकती हैं, ताजा पानी के पारिस्थितिकी तंत्र में 10 फीसदी से भी अधिक प्रजातियों का निवास है। जलविद्युत बांध ताजा पानी में रहने वाली प्रजातियों की आबादी में 1970 के बाद से तेजी से हो रही 84 प्रतिशत गिरावट के मुख्य दोषी हैं। 

इस वर्ष, जैविक विविधता पर 15 वें सम्मेलन (सीबीडी) का दूसरा चरण अगस्त में शुरू होने की उम्मीद है, और सम्मेलन के प्रतिभागी संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता ढांचे और ताजे पानी के पारिस्थितिक तंत्र जो "दुनिया में सबसे ह्रासमान पारिस्थितिक तंत्र," है, उस पर चर्चा करेंगे और उस पर सहमत होंगे, इन मसलों पर तत्काल वैश्विक कार्रवाई करने की आवश्यकता है। 

10. प्रकृति का विनाश कई संकटों का मूल कारण है। 

हम आज कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं: जलवायु परिवर्तन, बड़े पैमाने पर जैव विविधता का नुकसान, और एक वैश्विक महामारी, मानव अधिकार, इक्विटी और गरीबी समेत अन्य चुनौतियां हैं। हमें अपनी प्रमुख वैश्विक चुनौतियों के मूल सिस्टम और उनके प्रेरक तत्वों से निपटना चाहिए। यह हम पर निर्भर है कि हम इस महत्त्वपूर्ण क्षण में भविष्य के बारे में कोई सही फैसला करें।

यह बात झूठ है कि जलविद्युत बांध जलवायु संकट का समाधान है। इसलिए भविष्य की ऊर्जा या जलवायु योजनाओं में इसको प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिए। विशेष रूप से कोविड-19 के मद्देनजर, जीवन और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए अपरिहार्य जल स्रोतों की रक्षा करने के लिए, देशों को आपदापूर्ण नए ऋण लेने से रोकने में मदद करने के लिए, लोगों एवं उनके मानवाधिकार को केंद्र में रखते हुए ऊर्जा प्रवाह सुनिश्चित करने तथा प्रभावी रूप से हमारे जलवायु एवं जल संकट और जैव विविधता के नुकसान का सामना करने के लिए ऐसा करना जरूरी है। 

हमारे पास विनाशकारी जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए 10 साल से भी कम समय है, और हम पानी एवं जैव विविधता से जुड़े संकटों का भी हल करना चाहिए। आईपीसीसी एवं इंटरगवर्नमेंटल साइंस-पॉलिसी प्लेटफार्म ऑन बायोडायवर्सिटी इकोसिस्टम सर्विस के पूर्व अध्यक्ष बॉब वाटसन ने कहा, "अगर हम अब भी यह काम करने में विफल रहते हैं, तो भविष्य की पीढ़ियां पूछेंगी कि  हमने पृथ्वी को बचाने का काम क्यों नहीं किया जबकि हमें सभी वैज्ञानिक सबूत दिए गए थे?” यह एक स्थायी जलवायु समाधान होने के नाते पनबिजली की इन झूठी धारणाओं को त्याग देने का समय है और इसकी बजाय ऊर्जा मार्गों में निवेश करना है, जो दोनों हितों को साध सकते हैं, एक तो जलवायु परिवर्तन के मसले का हल कर सकते हैं और दूसरे, उन लोगों को बिजली दे सकते हैं जिनके पास इसकी कमी है। 

जोश क्लेम अंतर्राष्ट्रीय नदियों के सह-कार्यकारी निदेशक हैं, जो नदियों और उन पर निर्भर समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए वैश्विक संघर्ष के लिए मुख्य रूप से एक गैर-लाभकारी संगठन है। इससे पहले वे बैंक सूचना केंद्र में अफ्रीका कार्यक्रम का नेतृत्व कर चुके हैं। उनसे @ JoshKlemm पर ट्विटर किया जा सकता है। 

यूजीन सिमोनोव (Eugene Simonov) रिवर्स विदाउट बाउंडरिज कोलिएशन (आरडब्ल्यूबी) के अंतर्राष्ट्रीय समन्वयक हैं, जो यूरेशियन महाद्वीप की सीमावर्ती नदियों की रक्षा के लिए स्थानीय समुदायों और कार्यकर्ताओं को एकजुट करता है। 

यह लेख दि इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टियूट के एक प्रोजेक्ट अर्थ। फूड। लाइफ द्वारा प्रस्तुत किया गया था।

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें 

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