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श्रम कानूनों में बदलाव के ख़िलाफ़ 10 ट्रेड यूनियनों का 22 मई को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन

श्रम कानूनों में मालिकों के हित में किए गए बदलावों के विरोध में दस प्रमुख ट्रेड यूनियंस 22 मई को देशभर में विरोध प्रदर्शन करेंगी। इसके साथ ही दिल्ली में राजघाट पर एक दिन की भूख हड़ताल भी की जाएगी।
labor law
प्रतीकात्मक तस्वीर

देश में कोरोना माहमारी के कारण हुए लॉकडाउन के दौरन कई राज्यों ने मज़दूरों के पक्ष में बने श्रम कानूनों को कमज़ोर किया है या फिर उन्हें कुछ समय के लिए सस्पेंड किया है। सरकारों के इस कदम का देश के सभी मज़दूर संगठनों और केंद्रीय ट्रेड यूनयनों ने विरोध किया है। इसी के ख़िलाफ़ दस सेंट्रल  ट्रेड यूनियनों ने 22 मई को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है। इसके साथ ही इस मामले को अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के सामने भी उठाने का निर्णय किया है।
 
सेंट्रल ट्रेड यूनियनों के नेता 22 मई को गांधी समाधि, राजघाट, नई दिल्ली में एक दिन की भूख हड़ताल पर भी बैठेंगे। जबकि राज्य और जिला स्तर पर भी संयुक्त रूप विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। ट्रेड यूनियनों के इस आह्वान का समर्थन करने के लिए कई कर्मचारी यूनियन जैसे बैंक ,बिजली और बिमा आदि के कर्मचारी भी काले फीते बांधकर अपने कार्यस्थल पर विरोध करेंगे।

ट्रेड यूनियनों ने श्रमिक विरोधी बदलाव को वापस लेने, प्रवासी मज़दूरों को सुरक्षित उनके गंतव्य स्थान तक मुफ़्त और सुरक्षित भेजे जाने के लिए, मुफ्त राशन, मुफ्त एलपीजी, असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए 7500 रुपये नगद संगठित क्षेत्र, ठेका कर्मचारियों, स्वरोजगार, दिहाड़ी मज़दूर आदि को लगातार तीन महीने तक काम की गारंटी, धनराशि आदि मांगों को उठाया जाएगा।

इस संयुक्त मंच में जो दस केंद्रीय ट्रेड यूनियन शामिल है उसमे इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, ऐक्टू, सेवा, टीयूसीसी, एआईयूटीयूसी, एलपीएफ और यूटीयूसी हैं। इस प्रदर्शन का आह्वान करते हुए सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने संयुक्त रूप से इस मंच की बैठक 14 मई को की। इसके बाद एक संयुक्त बयान जारी किया और देश के वर्किंग क्लास के  लोगों के लिए लॉकडाउन  के दौरान परेशानियों पर बातचीत की और एकजुट होकर प्रतिरोध करने पर जोर दिया। इसके बाद संयुक्त बयान जारी किया गया।

संयुक्त बयान में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रमुख श्रम कानूनों को निलंबित कर दिया है, मध्यप्रदेश सरकार ने भी कुछ नियमों को बदल दिया है। गुजरात, त्रिपुरा और कई अन्य राज्य भी इसी राह पर हैं। राज्य सरकारों का श्रम कानूनों को निलंबित करना श्रम मानकों के साथ ही मानवाधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता का भी उल्लंघन है।

आर्थिक गतिविधियों को आसान करने के नाम पर उत्तर प्रदेश सरकार ने 1000 दिनों के लिए भुगतान अधिनियम 1934, निर्माण श्रमिक अधिनियम 1996, मुआवजा अधिनियम1993 और बंधुआ मज़दूर अधिनियम 1976 की धारा 5 पर कुठाराघात किया है। इसके  साथ ही  ट्रेड यूनियन अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम, व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य अधिनियम, अनुबंध श्रम अधिनियम, अंतरराज्यीय प्रवासी श्रम अधिनियम, समान पारिश्रमिक अधिनियम, मातृत्व लाभ अधिनियम आदि भी निष्क्रिय किया गया है।

हालंकि उत्तर प्रदेश सरकार को मज़दूरों के विरोध बाद अपने उस निर्णय को वापस लेना पड़ा जिसमें उसने मज़दूरों के काम के घंटे आठ से बढ़कर 12 कर दिए गए थे।

लॉकडाउन का फायदा उठाकर गुजरात, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, ओडिशा, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार और पंजाब सरकार ने फैक्ट्री एक्ट 1948 में तब्दीली करके उसकी मूलभवना को ख़त्म करते हुए, काम के घंटों को बढ़ाकर 8 से 12 कर दिया। मज़दूर संगठनों ने कहा कि ये मज़दूर वर्ग को गुलाम बनाने का प्रयास है।

ट्रेड यूनियनों ने कहा कि इस से एक तरफ मज़दूरों की भारी छंटनी होगी वहीं दूसरी ओर कार्यरत मज़दूरों का शोषण तेज़ होगा। फैक्टरी की पूरी परिभाषा बदलकर लगभग दो तिहाई मज़दूरों को चौदह श्रम कानूनों के दायरे से बाहर कर दिया जाएगा।

आपको बता दे ठेका मज़दूर अधिनियम 1970 में भी बदलाव से हजारों ठेका मज़दूर श्रम कानूनों के दायरे से बाहर हो जाएंगे। औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 में परिवर्तन से जहां एक ओर अपनी मांगों को लेकर की जाने वाली मज़दूरों की हड़ताल पर अंकुश लगेगा वहीं दूसरी ओर मज़दूरों की छंटनी की प्रक्रिया आसान हो जाएगी व उन्हें छंटनी भत्ता से भी वंचित होना पड़ेगा। तालाबंदी, छंटनी व ले ऑफ की प्रक्रिया भी मालिकों के पक्ष में हो जाएगी।

हिमाचल प्रदेश के भी सभी ट्रेड यूनियन के नेताओं ने अपना संयुक्त बयान जारी कर कहा है कि कोरोना महामारी के इस संकट काल को भी शासक वर्ग व सरकारें मज़दूरों खून चूसने व उनके शोषण को तेज करने के लिए इस्तेमाल कर रही हैं। इन मज़दूर विरोधी कदमों को रोकने के लिए ट्रेड यूनियन संयुक्त मंच ने हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री को पत्र लिखा भी  है व श्रम कानूनों में बदलाव को रोकने की मांग की है।

हालांकि श्रम कानूनों में संशोधन किये जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच चुका है। झारखण्ड के सामाजिक कार्यकर्ता पंकज कुमार यादव ने जनहित याचिका दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से राज्य सरकारों द्वारा बनाए अध्यादेशों को रद्द करने की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकारें श्रम कानूनों में बदलाव कर उद्योग जगत को बढ़ावा दे रही हैं, ऐसे में मज़दूरों का शोषण बढ़ेगा।

यही नहीं सरकार और आरएसएस समर्थित भारतीय मज़दूर संघ ने भी श्रम कानूनों बदलावों को मज़दूर वर्ग के लिए खतरनाक बताया है। इसके विरोध में 20 मई को श्रम कानूनों के निलंबन के ख़िलाफ़ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया है।

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