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2019 से पहले BJP के लिए बोझ साबित हो रहे योगीः कैराना और नूरपुर उपचुनाव में पार्टी का हुआ बड़ा नुकसान

गोरखपुर और फूलपुर में अपमानजनक हार के बाद हाल में हुए उपचुनाव में मिली हार से एक बार फिर साफ हो गया है कि मोदी और योगी सरकार से लोग नाख़ुश हैं।
योगी

उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर बीजेपी को झटका लगा है। हाल में हुए उपचुनाव में पार्टी ने कैराना लोकसभा सीट और नूरपुर विधानसभा सीट को गंवा दिया है। इसके नतीजे गत 30 मई को घोषित किए गए।

 

कैराना उपचुनाव में आरएलडी उम्मीदवार बेगम तबस्सुम हसन जिन्हें अन्य विपक्षी पार्टियों का समर्थन मिला उन्होंने बीजेपी की उम्मीदवार हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को हरा दिया। कैराना के पूर्व सांसद हुकुम सिंह की मृत्यु हो जाने से इस सीट पर उपचुनाव कराए गए थे। तबस्सुम हसन ने मृगांका सिंह को क़रीब 44681 मतों से हराया। इस तरह विपक्षी पार्टी ने बीजेपी से कैराना सीट छीन लिया।

 

पूर्व सांसद मनव्वर हसन की पत्नी तबस्सुम हसन की अपनी जीत के साथ उत्तर प्रदेश की एकमात्र मुस्लिम लोकसभा सांसद बन गई हैं। लेकिन वह पहली बार लोकसभा में नहीं पहुंची हैं। साल 2009 में हरियाणा में उनके पति मनव्वर हसन की कार दुर्घटना में मृत्यु के बाद वह बीएसपी की टिकट पर पहली बार इस सदन में चुनी गई थीं।

 

उधर समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार नईलुल हसन ने बिजनौर के नूरपुर सीट पर 6,211 मतों से जीत दर्ज कर लिया। उन्होंने लोकेंद्र सिंह की पत्नी अवानी सिंह को हराया। बीजेपी विधायक लोकेंद्र सिंह की सड़क दुर्घटना में हुई मौत के बाद ये सीट खाली हो गया था जिसके बाद यहां उपचुनाव कराए गए।

 

जो उल्लेखनीय है वह ये कि नेताओं की मौत के बाद मतदाताओं के बीच जो सहानुभूति होती है इसके बावजूद ऐसा लगता है कि सरकार के ख़िलाफ़ गुस्सा सहानुभूति वाले उन मतों को बर्बाद कर देता है।

 

कैराना लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में पांच विधानसभा सीटें हैं। ये हैं कैराना, शामली, थानाभावन, नकुड़ और गंगोह। अहम बात यह है कि यदि कोई इन विधानसभा सीटों के मुताबिक वोटों का विश्लेषण करे तो यह पता चलेगा कि बीजेपी ने मामूली अंतर के साथ केवल शामली और कैराना सीट पर जीत हासिल किया था। अन्य तीन विधानसभा सीटों पर भगवा पार्टी हार गई।

 

कैराना और नूरपुर में बीजेपी के नुकसान से न केवल पार्टी रणनीतिकार बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी चिंता होनी चाहिए जिनके शासन में बीजेपी को पहले गोरखपुर और फूलपुर में अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा था और फिर अब कैराना और नूरपुर में उसी हार का सामना करना पड़ है। बीजेपी ने 2014 में 2.5 लाख से ज्यादा मतों के अंतर से कैराना सीट पर जीत हासिल किया था, इस तरह मोदी सरकार में पिछले चार सालों में जो कुछ भी हुआ है वह बहुत बड़ा कारण है।

सत्तारूढ़ पार्टी की राज्य इकाई के कई वरिष्ठ नेता बीजेपी के इस नुकसान से बेहद परेशान थे क्योंकि उन्होंने कहा कि पार्टी ने अपनी सभी ताकतें उपचुनाव में लगा दी थी। उनमें से कई ने न्यूजक्लिक को बताया कि गोरखपुर और फूलपुर जैसे पुराने क़िले और कर्नाटक में होने वाले नुकसान के बाद कैराना में बीजेपी की हार सरकार को चेतावनी के संकेत भेजती है।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए शामली में बीजेपी के स्थानीय नेता ने नाम ने बताने की शर्त पर कहा, "देखिए, कैराना का नुकसान कोई एक उपचुनाव का नहीं है। ये उन लोगों के लिए है जो असहजता महसूस करते हैं। हमलोगों ने हर जगह बताने में कामयाब रहे थें कि लोग सरकार से खुशी महसूस कर रहे हैं और अधिकांश भारतीय अगले आम चुनावों में भी मोदी जी को ही वोट देंगे। यही मोदी सरकार की चौथी सालगिरह पर समाचार पत्रों ने भी प्रकाशित किया था।"

दिवंगत हुकुम सिंह का दोस्त बताते हुए इस नेता ने आगे कहा कि "लेकिन पार्टी की बार-बार हुई हानि केवल यह साबित करेगी कि खुशी और समर्थन जिसका मोदी सरकार आनंद लेती है चुनावी नतीजों से समर्थित नहीं है। इस तरह बार-बार हारने से विरोधी लहर भी तैयार हो जाएगा, अगर पार्टी और सरकार इसके लिए कुछ भी नहीं करती है तो यह बढ़ता जाएगा।"

कैराना की विधायक तबस्सुम हसन के बेटे नाहिद हसन ने न्यूज़़क्लिक को बताया कि बीजेपी विरोधी लहर, किसानों और जनता को बड़े पैमाने पर किए गए वादे को पूरा करने में विफलता के कारण यह उपचुनाव हार गई है।

विपक्षी एकजुटता के चलते आरएलडी उम्मीदवार के विजयी होने की घोषणा की बात एक रिपोर्ट द्वारा कहे जाने पर उन्होने मीडिया से बात करते हुए कहा कि "देखिए, इस जीत को केवल विपक्षी दलों की एकजुटता को ज़िम्मेदार बताना लोगों के ज़ेहन को गलत तरीके से पढ़ने जैसा होगा। बेशक, वोटों के विभाजन की अनुपस्थिति का इसमें योगदान रहा था, लेकिन लोकसभा सीट हारने वाली उसी पार्टी ने इसे 2014 में 2.5 लाख वोटों के अंतर से जीता था। पिछले चार सालों में इतना बदलाव आया कि 2.5 लाख का अंतर कम होकर 55000हज़ार हो गया जिससे नुकसान हुआ?”

एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से संबंध रखने वाली हसन कहती हैं कि कैराना में बीजेपी को हराकर विपक्ष ने "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अहंकार को दफ़न कर दिया।"

सहारनपुर के जेबीएस कन्या इंटर कॉलेज से मैट्रिक स्तर तक की पढ़ाई कर चुकी हसन ने अपनी जीत के मीडिया से कहा, "मुझे यह कहते हुए खुशी हो रही है कि हमलोगों ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के अहंकार को मिट्टी में दफ़ना दिया है। मैं आत्मविश्वास से कह रही हूं कि अगले आम चुनावों में बीजेपी को केवल 3 सीट ही मिलेगी।"

मुजफ्फरनगर के बीजेपी सांसद संजीव बालियान जो कि पांच बीजेपी चुनाव पर्यवेक्षकों में से एक थे उन्होंने हार मान लिया और कहा, "बेशक, हमने विकास कार्यों के बारे में प्रचार करने की कोशिश की जो प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने लोगों के लिए किया था। लेकिन मुझे लगता है कि कभी-कभी जाति और धर्म की राजनीति प्रतिकूल रूप से काम करती है। हम परिणामों का विश्लेषण करेंगे और पता लगाएंगे कि क्या ग़लत हुआ।"

आरएलडी के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने मीडिया को बताया कि यह "गन्ना किसानों की जीत" थी।

एक वरिष्ठ एसपी नेता सुधीर पंवार ने न्यूज़़क्लिक को बताया कि "धरातल पर मोदी और योगी सरकारों के खिलाफ विरोधी लहर काफी स्पष्ट था। ये सत्तारूढ़ पार्टी किसानों,मजदूर वर्ग, जनता के क्रोध को नहीं भांप सकी।"

यूपी योजना आयोग के पूर्व सदस्य पंवार ने न्यूज़़क्लिक को बताया, "मैंने पहले न्यूज़क्लिक को बताया था कि एसपी, बीएसपी और कांग्रेस द्वारा समर्थित आरएलडी उम्मीदवार की जीत लगभग निश्चित थी। मैंने यह भी कहा था कि परिणाम दिखाएंगे कि बीजेपी की हिंदुत्व राजनीति काम नहीं करेगी। जो हुआ वह ठीक है।"

उन्होने कहा, "जिस तरह से योगी आदित्यनाथ ने अपने सभी चुनाव रैलियों में मुजफ्फरनगर दंगों के मुद्दे उठाए उन्हें देखिए। उन्होंने जिन्ना विवाद को उछालकर ध्रुवीकरण करने की भी कोशिश की और कहा कि वह राज्य में कहीं भी उनके चित्र को नहीं रखने देंगे।”

पंवार ने कहा कि कैराना उपचुनाव मज़बूत विपक्ष के लिए रास्ता तैयार कर दिया है। उन्होंने कहा कि "प्रधानमंत्री ने प्रॉक्सी के माध्यम से उपचुनाव के लिए प्रचार किया और चुनाव से कुछ ही घंटे पहले बागपत में एक सभा को संबोधित किया था। मुख्यमंत्री से लेकर पीएम तक पूरी पार्टी ने अपनी ताक़त झोंक दी थी। लेकिन वे हार गए। यह साफ दिखाता है कि उनकी सांप्रदायिक राजनीति अब और काम नहीं करेगी। एक मुस्लिम उम्मीदवार के लिए मतदान करके जाटों ने दिखाया है कि उन्हें अब फिर बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है।"

 

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