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राजनीति
2021 : जन प्रतिरोध और जीत का साल
पूरे साल के दौरान, औद्योगिक श्रमिकों, कर्मचारियों, किसानों, स्वरोज़गार श्रमिकों, बेरोज़गारों, पुरुष-महिलाओं, युवा-बूढ़ों – यानी कामकाजी लोगों के सभी तबक़ों ने साथ मिलकर अपनी आजीविका पर लगातार हो रहे हमलों का मुकाबला किया है।
सुबोध वर्मा
01 Jan 2022
Translated by महेश कुमार
2021 : जन प्रतिरोध और जीत का साल

बिगड़ती आर्थिक स्थिति और उसके प्रति सरकार की उदासीनता के खिलाफ देश के लोगों में गुस्सा और हताशा बढ़ रही थी, और खत्म होने वाले वर्ष में जैसे यह हताशा और गुस्सा सभी तबकों में फुट पड़ा। बढ़ती कीमतें, बढ़ती बेरोज़गारी, वेतन/मजदूरी में कटौती और रोज़गार की असुरक्षा, पहले से ही अधिकांश लोगों को नीचे खींच रही थी, बावजूद इसके सरकार ने इस बोझ को बढ़ाने के लिए कठोर कदम उठाकर इसे और बढ़ा दिया। इनमें पेट्रोल और डीजल के ऊंचे दाम बढ़ाना, नई नौकरियां न पैदा कर पाना, कॉर्पोरेट घरानों को भारी रियायतें देना, नए जनविरोधी कानून (जैसे की अब निरस्त किए गए तीन कृषि कानून, चार श्रम संहिता, बिजली बिल, आदि) शामिल हैं, जिससे कॉरपोरेट को फायदा हुआ है, इसके साथ ही सार्वजनिक संपत्ति और राष्ट्रीय संसाधनों को निजी हाथों में बेचना, विभिन्न क्षेत्रों को लूटने के लिए विदेशी पूंजी को निमंत्रण देना आदि शामिल है। यह सब पिछले दो वर्षों में भारत को तबाह करने वाली घातक महामारी के कारण भी हुआ है, विशेष रूप से 2021 में, इस वर्ष कोविड से 3.3 लाख मौतें हुईं (जबकि 2020 में, 1.49 लाख लोगों की इस बीमारी से मृत्यु हो गई थी)।

हालांकि, जैसा कि अक्सर होता है, लोगों ने इन विकट परिस्थितियों के बावजूद भी लड़ाई लड़ी - और सरकार को कई मुद्दों पर पीछे हटने के लिए मजबूर किया। सबसे बड़ी जीत में से एक  किसान आंदोलन, ट्रेड यूनियनों और समाज के अन्य वर्गों द्वारा समर्थित, जिद्दी नरेंद्र मोदी सरकार को कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए मजबूर करना था। यह संघर्ष एक साल तक चला और इसमें 700 से अधिक किसान मारे गए। यह पूरे देश में फैल गया था और इसके समर्थन में आम हड़तालें, जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन, महापंचायतों में लाखों लोगों ने भाग लिया लिया, और निश्चित रूप से, पड़ोसी राज्यों के साथ दिल्ली की पाँच सीमाओं पर धरने के रूप में मजबूत प्रतिरोध दर्ज़ किया गया।

सरकार अभी तक चार श्रम संहिताओं के नियमों को अधिसूचित नहीं कर पाई है क्योंकि कई राज्य सरकारों को केंद्र सरकार द्वारा थोपे जा रहे फ्रेमवर्क को स्वीकार करने में मुश्किल हो रही है। केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के नेतृत्व में श्रमिकों के निरंतर संघर्ष ने इस गतिरोध के प्रति यह  परिस्थितियाँ पैदा की हैं। इन बड़े देशव्यापी नीतिगत मुद्दों से लेकर प्लांट स्तर के विवादों तक में आम विरोध और संघर्ष में में वृद्धि देखी गई है। यही वजह है कि साल 2021 को याद किया रखा जाएगा।

पिछले एक साल में मजदूर वर्ग के आंदोलन और किसान आंदोलन के बीच बढ़ती एकजुटता और आपसी मदद भी देखी गई है। इसके बीज पिछले साल बोए गए थे, लेकिन इस साल एकजुटता और गहरी हो गई, केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने संयुक्त किसान मोर्चा (500 से अधिक किसान संगठनों का एक मंच) को लगातार समर्थन दिया, जो कि कुख्यात तीन कृषि कानूनों के माध्यम से कृषि निगमीकरण के खिलाफ किसानों के संघर्ष का नेतृत्व कर रहा था। 

इस पृष्ठभूमि में, सरकारी कर्मचारियों सहित औद्योगिक श्रमिकों और सेवा क्षेत्र के कर्मचारियों ने सरकार की कारपोरेट समर्थक नीतियों के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखा है।

श्रमिकों/कर्मचारियों के कुछ प्रमुख संघर्ष

2021 में संगठित क्षेत्र के विभिन्न क्षेत्रों के बीच कुछ सबसे बड़ी औद्योगिक कार्रवाइयाँ हुईं हैं। मुख्य रूप से, ये संघर्ष बेहतर वेतन और अन्य स्थानीय मुद्दों की माँग पर केन्द्रित थे और साथ ही विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के निजीकरण की सरकार की मंशा का मजबूत विरोध था। इनमें शामिल हैं:

रक्षा उत्पादन कर्मचारी: 2020 में कई संघर्ष की कार्रवाइयां करने के बाद, रक्षा उत्पादन क्षेत्र के कर्मचारियों ने इस रणनीतिक क्षेत्र के सरकार द्वारा निगमीकरण और अंततः निजीकरण के  खिलाफ लड़ाई जारी रखी। रक्षा क्षेत्र की यूनियनों के संयुक्त मंच ने इसके खिलाफ अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने का फैसला किया, लेकिन इंटक-संबद्ध महासंघ के आत्मसमर्पण और निगमीकरण को स्वीकार करने के बाद, मोदी सरकार ने रक्षा क्षेत्र में हड़ताल पर रोक लगाने के लिए आवश्यक रक्षा सेवा अध्यादेश (पुराना ईडीएस अधिनियम) लागू कर दिया था, और रक्षा क्षेत्र की उत्पादन गतिविधियों से जुड़े क्षेत्रों में हड़तालों को प्रतिबंधित करने के लिए सरकार को सशक्त बनाना दिया था। हालांकि, संयुक्त मंच ने अन्य रूपों में अपना आंदोलन जारी रखा है।

इस्पात श्रमिक: सार्वजनिक क्षेत्र के इस्पात उद्योग के श्रमिकों ने 30 जून, 2021 को अत्यधिक विलंबित वेतन संशोधन की मांग को लेकर बड़ी हड़ताल की। इसके अलावा, विजाग स्टील प्लांट के कर्मचारी सरकार के निजीकरण के कदम के खिलाफ 250 दिनों से अधिक समय से संघर्ष कर रहे हैं।

कोयला श्रमिक: 40,000 से अधिक कोयला श्रमिकों ने कोयला धारक भूमि (अधिग्रहण और विकास) अधिनियम, 1957 में प्रस्तावित संशोधन के खिलाफ अभियानों और विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया। यह परिवर्तन कोयला युक्त भूमि को निजी क्षेत्र को सौंपने के लिए किया जा रहा  है।

आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता: 24 मई, 2021 को आशा कार्यकर्ताओं की अखिल भारतीय समन्वय समिति ने लंबे समय से चली आ रही मांगों जैसे नियमितीकरण, वेतन में वृद्धि आदि के लिए दबाव बनाने के लिए अखिल भारतीय हड़ताल का आह्वान किया था। इस दौरान कई अखिल भारतीय विरोध भी किए गए। जिसमें 10 जून और 11 जुलाई को भी शामिल है। 24 सितंबर को, विभिन्न यूनियनों के संयुक्त आह्वान पर, स्कीम वर्कर्स की अखिल भारतीय हड़ताल थी, महामारी के दौरान दूसरी और सबसे बड़ी अखिल भारतीय हड़ताल थी। इस दौरान कई राज्यों में आंगनबाडी और मिड दे मिल वर्करस के कई संघर्ष भी हुए हैं। 

परिवहन कर्मचारी: लाखों ट्रक और बस चालकों, सहायकों, मैकेनिकों आदि ने मोटर वाहन अधिनियम में बड़े पूँजीपतियों के पक्ष में संसोधन करने और कर्मचारियों के शोषण को बढ़ाने के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया।

केंद्र और राज्य सरकार कर्मचारी: केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के कर्मचारियों ने अपनी-अपनी यूनियनों तथा फेडरेशनों की पहल पर, वेतन, नियुक्तियां करने और लाभ बढ़ाने और अनुबंध के खिलाफ अन्य वर्गों के साथ संघर्षरत मजदूरों और किसानों की एकजुटता से संबंधित मांगों पर कई विरोध आंदोलन किए हैं। 

रेलवे के निजीकरण के खिलाफ: भारतीय रेलवे को टुकड़ों-टुकड़ों में निजीकरण करने के सरकार के कदम के खिलाफ 16-17 जुलाई को कई रेलवे स्टेशनों के सामने देश भर में विरोध प्रदर्शन हुए। कई रेलवे स्टेशनों पर बड़ी संख्या में रेलवे कर्मचारी प्रदर्शन में शामिल हुए। 

निर्माण श्रमिक: बेहतर काम करने की स्थिति को लेकर किए गए कई आंदोलन के बाद और नए सामाजिक सुरक्षा कोड में विलय के माध्यम से निर्माण श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा योजना को कमज़ोर करने का विरोध करने के बाद, 2-3 दिसंबर, 2021 को देशव्यापी हड़ताल की गई थी।

बिजली कर्मचारी: विभिन्न यूनियनों और फेडरेशनों के संयुक्त मंच ने बिजली संशोधन विधेयक 2021 को पारित करने के सरकार के कदम के खिलाफ संसद के पिछले सत्र के दौरान देशव्यापी हड़ताल पर जाने का फैसला किया था। बाद में हड़ताल को तब स्थगित कर दिया गया था जब  विधेयक को लागू करने के लिए लाया नहीं गया। 

बैंक और बीमा कर्मचारी: वित्तीय क्षेत्र के और अधिक निजीकरण करने की कोशिशों के खिलाफ,  बैंक और बीमा कर्मचारियों ने संघर्ष की तीव्रता को बढ़ा दिया है। सबसे पहले, बैंक कर्मचारियों ने 15-16 मार्च, 2021 को निजीकरण के खिलाफ सफल हड़ताल की। हालांकि, कुछ बैंकों के निजीकरण की सरकार की घोषणा के साथ, वे फिर से 16-17 दिसंबर को दो दिवसीय हड़ताल पर चले गए।

इस बीच, जनरल बीमा कर्मचारियों ने 17 मार्च को एक सफल संयुक्त हड़ताल की, जबकि जीवन बीमा निगम के कर्मचारियों ने 18 मार्च को लगभग पूर्ण हड़ताल का आयोजन किया था। वित्तीय क्षेत्र के कर्मचारियों द्वारा बड़े पैमाने पर की गई हड़तालों को व्यापक जन समर्थन मिला है।

बीएसएनएल के दूरसंचार कर्मचारी: ये कर्मचारी, सरकार द्वारा निजी दूरसंचार मगरमच्छों का पक्ष लेने और सार्वजनिक क्षेत्र के बीएसएनएल का जानबूझकर विनाश करने के खिलाफ बहादुरी से विरोध कर रहे हैं।

सेल्स एंड मेडिकल प्रतिनिधि यानी एम॰आर॰: वे राष्ट्रीय स्तर और कंपनी स्तरों पर उत्पीड़न, वेतन कटौती, काम करने की परिस्थितियों में प्रतिकूल बदलाव और अन्य प्रतिशोधात्मक उपायों के खिलाफ लगातार लड़ रहे हैं।

इसके अलावा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, दिल्ली, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों में विभिन्न निजी क्षेत्र के उद्योगों के कर्मचारी भी वेतन समझौते, आठ घंटे के कार्य दिवस का बचाव करने और अपने सभी संबंधित मुद्दों जैसे कि छँटनी और वेतन कटौती आदि के खिलाफ  संघर्ष में शामिल थे। 

नए साल में और अधिक संघर्ष

यह तय है कि नया साल अधिक से अधिक संघर्षों का साल होगा। हालांकि, हालात ज्यादा नहीं बदले हैं, महामारी जारी है, नए ओमाइक्रोन वेरिएंट ने स्थिती को गंभीर बना दिया है। पिछले दो वर्षों के दौरान उभरे कुछ प्रमुख मुद्दे महामारी से संबंधित हैं और आने वाले दिनों में संघर्षों के केंद्र में बने रहेंगे।

23-24 फरवरी को केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने दो दिवसीय विशाल हड़ताल का आह्वान किया है। इसके लिए तैयारी पहले से ही चल रही है और किसान संगठनों के भी समर्थन देने का वादा किया है, यह हड़ताल एक मील का पत्थर साबित होगी। मांगों में चार श्रम संहिताओं को निरस्त करना, सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण को समाप्त करना, न्यूनतम वेतन में वृद्धि, सभी के लिए सामाजिक सुरक्षा आदि शामिल हैं। मांग के चार्टर में शामिल महामारी के कारण होने वाले संकट से तत्काल राहत के लिए महत्वपूर्ण मांगें भी हैं। इनमें टैक्स न देने वाले  वाले हर एक परिवार को 7500 रुपये का अनुदान देना, बीमा कवर और फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं के लिए अन्य सुरक्षा के इंतजाम करना तथा सभी को सुलभ टीकाकरण और स्वास्थ्य सेवा आदि के लाभ देने के मांग शामिल हैं।

महत्वपूर्ण बात यह है कि ट्रेड यूनियनों और किसान संगठनों ने भी फैसला किया है कि वे उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में आगामी विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी या भाजपा की हार के लिए सक्रिय रूप से काम करेंगे। नया साल निश्चित रूप से प्रधानमंत्री मोदी और उनकी भाजपा के लिए आसान नहीं होने वाला है।

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