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बीएसएनएल, एमटीएनएल के रिवाइवल पैकेज की घोषणा को 4 महीने बाद भी बॉन्ड्स पर चुप्पी

यदि दूरसंचार सचिव के संकेत पर कार्रवाई हो गई होती तो इन दो सार्वजनिक उपक्रमों को “प्रशासनिक तौर पर” पिछले साल नवंबर के अंत तक ही 4जी का आवंटन हो गया होता।
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चित्र सौजन्य: द न्यूज़ मिनट 

कोलकाता: केंद्रीय दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद की ओर से 23 अक्टूबर को भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) और महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (एमटीएनएल) के लिए पुनरुद्धार पैकेज की घोषणा किये चार महीने बीत चुके हैं, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। मंत्री की ओर से जिस पैकेज की घोषणा की गई थी, उसके केवल एक घटक - स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) को ही केंद्र के इशारे पर इन दोनों दूरसंचार कंपनियों की ओर से बेहद आक्रामक ढंग से लागू किया जा सका है।

स्वतंत्र भारत के इस सबसे व्यापक वीआरएस की प्रक्रिया ने एक ही झटके में 31 जनवरी के दिन कुल 92,000 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया था, जिनमें 78,000 से अधिक तो बीएसएनएल के कर्मचारी थे, और बाकी एमटीएनएल से संबद्ध थे।

जिन कर्मचारियों ने वीआरएस के विकल्प को अपनाया, उन्हें जनवरी की तनख्वाह अभी तक नहीं मिली है, जबकि वीआरएस से संबंधित बकाया तो वैसे भी अभी नहीं मिलने जा रहा। ना ही उन्हें आधिकारिक रूप से इस बात के संकेत मिले हैं कि उनके वेतन में से मई 2019 से, भविष्य निधि के खाते में जो कटौती की जा रही थी, वह राशि उनके व्यक्तिगत पीएफ खातों में कब जमा की जाने वाली है।

उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन को लेकर उन्हें अहसास नहीं था कि बीएसएनएल से जुड़े कई लोगों लिए यह गंभीर वित्तीय तनाव, एक दिन उनके ही जीवन को समाप्त करने के लिए मजबूर करने वाला साबित होगा। इनमें से जबलपुर में विभागीय समूह डी श्रेणी के एक कर्मचारी भी शामिल थे, जिन्होंने वीआरएस के लिए आवेदन नहीं किया था। इसके अलावा कई अन्य ठेके पर काम करने वाले लोग थे। ठेकेदारों की ओर से उन्हें पिछले कई महीनों से तनख्वाह नहीं मिली थी। इसकी वजह क्या रही? क्योंकि बीएसएनएल की ओर से ठेकेदारों का बकाया भुगतान नहीं किया गया था।

दूरसंचार विभाग (डीओटी) की ओर से वीआरएस के कड़ाई से कार्यान्वयन के साथ बेहद आक्रामक तरीके से लागू कराने सम्बन्धी गतिविधियों पर निगाह बनाए रखी गई। इतना ही नहीं, बीएसएनएल और एमटीएनएल को आदेश दिया गया कि बिना कोई समय गँवाए, वीआरएस-इच्छित लोगों द्वारा खाली हुए सभी 92,000 से अधिक पदों को तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया जाये। वीआरएस के बाद के हालात अब वहाँ कैसे बने हुए हैं, इस बाबत बीएसएनएल कर्मचारी संघ के अध्यक्ष अनिमेष मित्रा और इसके उप महासचिव स्वपन चक्रवर्ती ने न्यूज़क्लिक से इसकी जानकारी साझा की।

जिन लोगों ने वीआरएस के विकल्प को चुना था और जो बाकी बचे हुए 70,000 से अधिक कर्मचारी हैं, उनकी मुसीबतों और अनिश्चितता के प्रश्न को प्रकाश में लाने के उद्येश्य से 24 फरवरी को बीएसएनएल की सभी यूनियनों और एसोसिएशनों को एक छत के नीचे लाकर सामूहिक रूप से एक दिन के भूख हड़ताल का आयोजन किया गया।

जिस धूमधाम से 23 अक्टूबर, 2019 को मंत्री प्रसाद ने 69,000 करोड़ रुपये के पुनरुद्धार पैकेज की घोषणा की थी, उसके अन्य घटक क्या थे? और उस अवसर पर उन्होंने क्या घोषणा की थी?

इसमें यह तय पाया गया था कि दोनों कंपनियों को "प्रशासनिक रूप से" 4 जी स्पेक्ट्रम आवंटित किया जाएगा। पीटीआई ने दूरसंचार सचिव अंशु प्रकाश के हवाले से सूचित किया था कि एक महीने के भीतर स्पेक्ट्रम आवंटित कर दिया जाएगा। केंद्र की ओर से बांड जारी कर 15,000 करोड़ रुपये का कर्ज जुटाने के लिए कंपनियों को संप्रभु गारंटी दी जानी थी। इस राशि का उपयोग मौजूदा ऋणों की भरपाई और अन्य खर्चों को पूरा करने के लिए होना था। वीआरएस और सेवानिवृत्ति की देयता को चुकाने के लिए अनुमान लगाया गया था कि केंद्र की ओर से क्रमशः 17,160 करोड़ रुपये और 12, 768 करोड़ रुपये प्रदान किये जायेंगे।

इस पैकेज को एक निर्धारित समय में सम्पन्न किये जाने को लेकर ये कदम उठाये जाने थे। और मंत्री प्रसाद ने क्या घोषणा की थी?  उन्होंने घोषणा की थी कि “न तो बीएसएनएल/एमटीएनएल को बंद किया जा रहा है, और न ही उनका विनिवेश किया जा रहा है और न ही उन्हें किसी तीसरे पक्ष को एकमुश्त भेंट किया जा रहा है। [...] इन सभी (उपायों) को किये जाने के साथ, मुझे पूर्ण विश्वास है कि अगले दो वर्षों में बीएसएनएल ईबीआईटीडीए के लिए सकारात्मक बना दिया जायेगा"।

अगले दो वर्षों में बीएसएनएल एक बार फिर से अपनी पटरी पर आ जायेगा, बीएसएनएल के साथ एमटीएनएल के विलय के निर्णय की पृष्ठभूमि में मंत्री की इसी आशावादिता के मद्देनजर देखा जा रहा था। और जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक एमटीएनएल को बीएसएनएल की सहायक कंपनी के रूप में बने रहना था।

ये दोनों कम्पनियाँ करीब दो साल से अधिक समय से “बाजार में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए” 4 जी स्पेक्ट्रम की गुहार लगा रही थीं। निजी क्षेत्र की इनकी प्रतिद्वंदी कंपनियों के पास समय रहते 4 जी की उपलब्धतता हो चुकी थी, और आज हालत यह है कि वे खुद को 5 जी से मिलने वाले लाभ को भुनाने के लिए तैयार कर रही हैं। यदि दूरसंचार सचिव ने जिस बात के संकेत दिए थे, उस पर "प्रशासनिक रूप से" कोई ठोस कदम उठाये गए होते तो अधिक से अधिक नवंबर माह के अंत तक 4 जी का आवंटन हो जाना चाहिए था।

मित्रा और चक्रवर्ती का कहना है कि “शुरू में हमें यह बताया गया कि मार्च 2020 तक हर हाल में इसका हो जाना तय है। फिर हमें इस बाबत जुलाई तक कार्रवाई किये जाने के संकेत मिले। और अब जाकर हम समझ पा रहे हैं कि इस आवंटन के अक्टूबर तक के लिए टल जाने की संभावना है। कुलमिलाकर स्थिति बेहद निराशाजनक है, और इसको लेकर मंत्री और डीओटी की चुप्पी रहस्यमयी बनी हुई है।“

चक्रवर्ती आगे कहते हैं कि इतना ही नहीं बल्कि दिक्कत ये है कि रणनीतिक रूप से संवेदनशील पूर्वोत्तर में कुछ निविदाओं की शर्तों में भाग लेने वाली सभी कम्पनियों को 4 जी स्पेक्ट्रम से लैस होने की शर्त को आवश्यक बना दिया गया है। यदि प्राधिकारी वर्ग नियमों में ही उलझा रहा तो बीएसएनएल खुद-ब-खुद इस प्रकिया में भाग लेने के अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा। “हमने अपनी चिंताओं को सही जगह पर पहुँचा दिया है, लेकिन हम नहीं जानते कि इसका क्या असर होने जा रहा है”, वे कहते हैं।

इस बीच 15,000 करोड़ रूपये जुटाने के सम्बंध में संप्रभु गारंटी के साथ बॉन्ड जारी करने की सुविधा को लेकर अब तक कोई कदम नहीं उठाये गए हैं। वित्त मंत्रालय को जिसे इस संबंध में कार्रवाई करनी चाहिए थी, उसने चुप्पी साध रखी है। ऐसा जान पड़ता है कि इस वित्तीय वर्ष के लिए संप्रभु गारंटी प्रदान करने की अपनी सीमा तक सरकार पहुँच चुकी है। 13-14 फरवरी को नई दिल्ली में मंडल प्रमुखों (मुख्य महाप्रबंधकों) की एक बैठक हुई है। इस बैठक को मंत्री और अन्य डीओटी के उच्च पदाधिकारियों द्वारा संबोधित किया। लेकिन उस दौरान भी 4जी आवंटन और संप्रभु गारंटी के बारे में कोई संकेत नहीं दिए गए।

पुनरुद्धार पैकेज में तीन वर्षों की अवधि के दौरान बीएसएनएल और एमटीएनएल संपत्ति के 37,500 करोड़ रुपये की मौद्रीकरण की परिकल्पना की गई है। इसको लेकर अधिकारियों ने प्रारंभिक कार्य भी चालू कर दिए हैं। महानगरों में 8-10 अंतरराष्ट्रीय संपत्ति सलाहकारों (आईपीसी) के साथ चर्चा शुरू हो चुकी है। वित्त मंत्रालय के सार्वजनिक निवेश प्रबंधन विभाग की निगरानी में इस कार्यवाही को सम्पन्न किया जाना है।

कलकत्ता टेलीफोन के सीजीएम बिस्वजीत पॉल ने हाल ही में आधिकारिक तौर पर कहा है कि उन्होंने 18 अलग-अलग टेलीफोन एक्सचेंज की लोकेशन को पट्टे पर देने और भूमि खण्डों को बेचने का फैसला लिया है। आईपीसी नाइट फ्रैंक के क्षेत्रीय प्रमुख स्वपन दत्ता ने न्यूज़क्लिक से इस बारे में पूछे जाने पर पुष्टि की है कि उन्हें पट्टे पर देने के लिए शहर के विभिन्न स्थानों में परिसरों की एक सूची प्राप्त हुई है।

दिलचस्प बात यह है कि डलहौजी चौराहे पर स्थित कलकत्ता टेलीफोन के मुख्यालय के टेलीफोन भवन में अच्छी खासी जगह को पट्टे पर दिया जाना भी प्रस्तावित है। दत्ता के विचार में, एक बार जब अधिकारियों की ओर से इस बाबत संविदा सम्बंधी सूचना जारी की जाएँगी, तब जाकर शायद उनकी योजनाओं, आकांक्षाओं पर कुछ रौशनी पड़े। अन्य महानगरों में भी इसी प्रकार की कवायद चल रही है।

इसी बीच बीएसएनएल ने रखरखाव के सम्बंध में अपनी आउटसोर्सिंग नीति को अंतिम रूप दे दिया है, और इसे शहरी क्षेत्रों में बाहरी स्रोतों से कॉपर नेटवर्क के जरिये लैंडलाइन और ब्रॉडबैंड के प्रावधान के रूप में वर्णित किया है। जो दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं उसमें कर्मचारियों के पोस्ट-वीआरएस के कारण आई कमी बताकर शहरी क्षेत्रों में क्लस्टर्स और चुनिन्दा एक्सचेंजों में आउटसोर्सिंग किये जाने की जरुरत की बात को स्वीकार किया है।

आउटसोर्सिंग के अनुबंध को विशिष्ट कार्य सम्पादन के लिए और इसके लिए वित्तीय शर्तों को शुरू-शुरू में दो सालों के लिए किया जाना बताया गया है, साथ ही इसे एक साल के लिए बढ़ाये जाने के प्रावधान भी डाले गए हैं। इस नीति में नई स्थिति में कंपनी के अपने कर्मचारियों के लिए, जो समूह सी और डी कैडर में कार्यरत हैं, की जिम्मेदारियों को स्पष्ट किया गया है। रोचक तथ्य ये है कि इसका जोर मौजूदा फिक्स्ड लाइन ग्राहकों को बेहतर सेवाएं दे पाने पर है, और नई लैंडलाइन और ब्रॉडबैंड कनेक्शन को समायोजित करने के लिए क्षमता उपयोग को बढाने तक सीमित है।

रिकॉर्ड के लिए बताते चलें कि इस बात का उल्लेख किया जा सकता है कि पुनरुद्धार पैकेज ने स्पष्ट किया है कि बॉन्ड की सर्विसिंग का जिम्मा कंपनी के (बीएसएनएल की, क्योंकि एमटीएनएल इसकी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी बन जाएगी) पर होगा। 4G के आवंटन को ध्यान में रखते हुए कंपनी की ओर से देश भर में बीएसएनएल द्वारा 4जी आवंटन के बाद 12-15 महीनों की अवधि में 7,200 करोड़ रुपयों की अनुमानित लागत से देश भर में 60,000 मोबाइल साइटों की रूपरेखा तैयार की गई है। वहीँ एमटीएनएल की योजना में नई दिल्ली और मुंबई के लिए, जिन दो महानगरों में यह अपनी सेवाएं प्रदान करता है, के लिए 1,100 करोड़ रुपयों की अनुमानित लागत के साथ 9,750 मोबाइल साइटों के निर्माण का प्रस्ताव रखा गया है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

4 Months after BSNL, MTNL Revival Package Announcement, Silence over 4G, Sovereign Guarantee for Bonds

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