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आयुध कारखानों के 82 हज़ार श्रमिक अनिश्चितकालीन हड़ताल के लिए तैयार

कर्मचारी यूनियनों का कहना है कि आयुध कारखानों के निगमीकरण से देश की सुरक्षा को खतरा है। देश की सुरक्षा का दावा करने वाली सरकार आयुध कारखाने की गोपनीय प्रणाली तक को दांव पर लगा रही है।
ordance worker

राष्ट्रवाद की लहर पर सवार हुई सरकार पर ही देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगते हुए सेना के लिए बम, गोला, बुलेट प्रूफ जैकेट बनाने वाले आयुध कारखानों यानि ऑर्डिनेंस फैक्ट्री के 80 हजार से अधिक कर्मचारियों ने 12 अक्टूबर से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने का फैसला किया है।

देश भर के सभी 41 आयुध कारखानों में यूनियनों द्वारा 4 अगस्त, मंगलवार को एक सांकेतिक प्रदर्शन के साथ ही हड़ताल के लिए नोटिस दिया गया था। इसके बाद से ही हड़ताल की तैयारी शुरू कर दी गई है। हालांकि ये कर्मचारी पिछले कई महीने से आन्दोलन के मूड में थे। नोटिस में सभी 82,000 कर्मचारियों के समर्थन का दावा किया है।

कर्मचारियों ने जो नोटिस दिया है उसमे उन्होंने आरोप लगाया है कि आयुध कारखानों के निगमीकरण से देश की सुरक्षा को खतरा है। देश की सुरक्षा का दावा करने वाली सरकार आयुध कारखाने की गोपनीय प्रणाली तक को दांव पर लगा रही है। इसके साथ ही उन्होंने सरकार पर वादा खिलाफी का भी आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि ये वो सभी वादों को भी तोड़ता है जो सरकार और रक्षा मंत्रियों द्वारा पूर्व में विभिन्न मंचों पर कर्मचारियों से किए गए थे। यही नहीं 23-8-2019 को रक्षा उत्पादन सचिव (डीपी) के साथ आयोजित बैठक में किये गए प्रतिबद्धताओं का भी उल्लंघन कर रहे हैं।

सभी यूनियनों ने सामूहिक रूप से सरकार की बेरुखी और बेपरवाही पर नाराजगी जाहिर की। इस नोटिस पर सभी तीन मान्यता प्राप्त रक्षा कर्मचारी संघों के अध्यक्षों यानी अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (AIDEF), भारतीय राष्ट्रीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (INDWF), के साथ-साथ आरएसएस से जुड़े भारतीय प्रतिहार मजदूर संघ (BPMS) ने हस्ताक्षर किए हैं। यहाँ तक कि कोआर्डिनेशन ऑफ डिफेंस रेकनाईजैड एसोसिएशन (CDRA) ने भी औद्योगिक कर्मचारियों को अपना समर्थन दिया है, जो की सेवा स्तर के कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करता है।

गौरतलब है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ओएफबी के निगमीकरण की घोषणा की थी, जो कि केंद्र के आत्मनिर्भार भारत कार्यक्रम के तहत पेश किए गए प्रमुख नीतिगत निर्णयों की एक श्रृंखला के भाग के रूप में है, जिसमें प्रमुख उद्योगों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए संरचनात्मक सुधार शामिल था।

इससे पहले पिछले साल अगस्त में एक सप्ताह तक चली हड़ताल के बाद रक्षा उत्पादन सचिव (डीपी) द्वारा आश्वासन दिया गया था कि अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। सरकार के इस कदम को श्रमिकों के संगठनों द्वारा एक 'विश्वासघात' के रूप में देखा गया था

मई में कोरोना महामारी के मद्देनजर निगमीकरण के इस निर्णय का विरोध करते हुए यूनियनों ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री के सामने 14 बार इस मामले पर पक्ष रखा, लेकिन उनकी ओर से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आई। इसलिए कर्मचारियों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल को अपना अंतिम उपाय बताया।

AIDEF के महासचिव सी श्रीकुमार ने कहा कि "इस बार, हम कोई आश्वासन नहीं चाहते, लेकिन निगमीकरण के प्रस्ताव को एक स्पष्ट रूप से वापस लेना होगा।"

ओएफबी के निगमीकरण का कर्मचारियों का विरोध क्यों है? उसको स्पष्ट करते हुए श्रीधर ने बतया मुख्य रूप से कारखानों को बाजार के भरोसे छोड़ने को लेकर चिंता है जो अपने लाभ के लिए काम करता है जैसा कि अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के भारतीय संचार निगम लिमिटेड (BSNL) सहित अन्य उपक्रम के साथ हुआ है।

सरकार के स्वामित्व वाली दूरसंचार कंपनी को वर्ष 2000 में निगमीकरण किया गया था, जिसे तब उसके कर्मचारी संघ ने हरी झंडी दिखाई थी। दो दशक बाद, बीएसएनएल एक वित्तीय संकट से गुजर रहा है और केंद्र द्वारा इसे पुनर्जीवित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है।

श्रीकुमार ने कहा कि यही कारण है कि रक्षा कर्मचारियों को ओएफबी के निगमीकरण का विरोध कर रहे है। उन्होंने कहा “कर्मचारी आयुध कारखानों में प्रतिस्पर्धा और आत्मनिर्भरता लाने के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन संगठन की स्थिति में बदलाव के खिलाफ है।”

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