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ओएफ़बी: अनिश्चितकालीन हड़ताल से पहले, केंद्र ने ख़ुद को 'आवश्यक रक्षा सेवाओं' के श्रमिकों को दंडित करने का अधिकार दिया

रक्षा फ़ेडरेशन्स ने अध्यादेश को - एस्मा की तर्ज पर बनाया 'क्रूर' और 'कठोर' क़ानून बताया है; उन्होंने इस संबंध में भविष्य की कार्रवाई पर चर्चा करने के लिए गुरुवार शाम को बैठक की।
ओएफ़बी:

आयुध निर्माण बोर्ड (ओएफबी) को भंग करने के खिलाफ रक्षा फेडरेशनों द्वारा की जाने वाली अनिश्चितकालीन हड़ताल के पहले केंद्र सरकार ने की "कठोर" प्रतिक्रिया के रूप में बुधवार को एक अध्यादेश जारी किया, जिसमें उसने खुद को यह अधिकार दे दिया ताकि वह आवश्यक रक्षा सेवाओं में कार्यरत कर्मचारियों को आंदोलन और हड़ताल पर जाने से रोक लगा सके।  

'द एसेंशियल डिफेंस सर्विसेज ऑर्डिनेंस, 2021' शीर्षक से लाए गए इस अध्यादेश को भारत के राष्ट्रपति ने गजट अधिसूचना के माध्यम से लागू कर दिया है और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार को सेना से संबंधित रक्षा उपकरण, सेवाओं और संचालन या रखरखाव की सामग्री के उत्पादन में शामिल कर्मचारियों द्वारा की जाने वाली हड़ताल को प्रतिबंधित करने के खिलाफ आदेश जारी करने का अधिकार दे दिया है, इस अध्यादेश को रक्षा उत्पादों की मरम्मत और रखरखाव में कार्यरत किसी भी औद्योगिक प्रतिष्ठान में लागू माना जाएगा।

अधिसूचना के अनुसार, आदेश छह महीने तक लागू रहेगा, लेकिन केंद्र सरकार इसे "जनहित में" जरूरी होने पर आगे भी बढ़ा सकती है।

"अध्यादेश, जिसे एस्मा 1968 के तर्ज़ पर लाया गया है, जिसकी गजट अधिसूचना में कहा गया है कि यदि कोई भी व्यक्ति अवैध हड़ताल करता है या उसमें शामिल होता है, या ऐसी किसी भी हड़ताल में भाग लेता है, उसे एक वर्ष तक का कारावास दिया जा सकता है या दस हजार रुपये जुर्माना या फिर दोनों के माध्यम से दंडित किया जा सकता है। इस अध्यादेश के तहत अवैध घोषित हड़ताल में भाग लेने वाले, या इस तरह के कार्यों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने वाले, और उकसाने वालों को भी दंडित किया जाएगा।

"आवश्यक रक्षा सेवाओं के कामकाज, सुरक्षा या रखरखाव" को सुनिश्चित रूप से चलाने के लिए अध्यादेश, पुलिस बल के इस्तेमाल की अनुमति देने के साथ-साथ प्रबंधन को बिना किसी जांच के हड़ताल की कार्रवाई में भाग लेने वाले कर्मचारियों को सीधे बर्खास्त करने का अधिकार भी देता है।

रक्षा फ़ेडरेशन के मुताबिक़ अध्यादेश 'बेरहम' और 'क्रूर'

केंद्र के ताजा कदम को मान्यता प्राप्त रक्षा फेडरेशन्स ने 26 जुलाई से अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा की पृष्ठभूमि में देखा जा रहा है। इस संबंध में एक हड़ताल का नोटिस 8 जुलाई को जमा किया जाना था।

मोदी सरकार द्वारा ओएफबी को भंग करने और सात सरकारी स्वामित्व वाली कॉर्पोरेट संस्थाओं को निगम में बदलने के फैसले के कुछ दिनों बाद, तीन मान्यता प्राप्त फेडरेशन्स - अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी संघ (एआईडीईएफ), भारतीय राष्ट्रीय रक्षा श्रमिक संघ (आईएनडीडब्ल्यूएफ), और आरएसएस से संबद्ध भारतीय प्रतिरोध मजदूर संघ (BPMS) - ने एक संयुक्त बयान में केंद्र के निगमीकरण के कदम के प्रति अपना विरोध दर्ज किया था।

रक्षा उपकरण निर्माण में संलग्न, ओएफबी वर्तमान में डीडीपी के नियंत्रण में एक सरकारी विभाग के रूप में कार्य करता है, जिसे रक्षा मंत्रालय (एमओडी) द्वारा प्रशासित किया जाता है। बोर्ड देश भर में 41 आयुध कारखानों के कामकाज की देखरेख करता है, जिसमें लगभग 80,000 कर्मचारी कार्यरत हैं।

एआईडीईएफ के महासचिव सी. श्रीकुमार ने गुरुवार को फोन पर न्यूज़क्लिक को बताया, "यह मोदी सरकार का एक कठोर और क्रूर कदम है।" उन्होंने कहा कि रक्षा कर्मचारी "आत्मसमर्पण" नहीं करेंगे, लेकिन फेडरेशन्स को "संघर्ष के स्वरूप" पर "निश्चित रूप से चर्चा" करनी होगी।

न्यूजक्लिक को पता चला है कि मान्यता प्राप्त रक्षा फेडरेशन्स के प्रतिनिधियों और अन्य के बीच गुरुवार शाम को एक बैठक होनी है, जहां बुधवार के घटनाक्रम की रोशनी में भविष्य की कार्रवाई पर चर्चा की जाएगी।

गुरुवार को जारी एक बयान में, सीटू ने अध्यादेश की "जल्दबाजी में की गई घोषणा" की कड़ी निंदा की है, और कहा कि सरकार "निगमीकरण के माध्यम से आयुध निर्माण के नेटवर्क का निजीकरण करने चाह रही है और इसके खिलाफ रक्षा उत्पादन कर्मचारियों और श्रमिकों के एकजुट संघर्ष पर अंकुश लगाने" का प्रयास भी कर रही है।"

उन्होने कहा है कि यह निर्णय पिछले साल अक्टूबर में केंद्र सरकार द्वारा "रक्षा कर्मचारी की फेडरेशन्स के संयुक्त मंच को दिए गए आश्वासन का पूर्ण उल्लंघन" है और यह "रक्षा कर्मचारियों के संयुक्त संघर्ष को रोकने की एक संदिग्ध चाल थी" ऐसा राष्ट्रीय हितों की रक्षा के नाम पर उत्पादन कर्मियों पर हड़ताल पाबंदी पूरी तरह से निंदनीय है ”

बीपीएमएस के महासचिव मुकेश सिंह ने कहा, "केंद्र सरकार का अध्यादेश आंदोलनकारी रक्षा क्षेत्र के कर्मचारियों को डराने-धमकाने का एक प्रयास है।" उन्होंने जोर देकर कहा कि अतीत में भी रक्षा फेडरेशन्स ने कुछ भी "अवैध" नहीं किया है, और विश्वास दिलाया कि अपने संघर्ष को "कानूनी तरीके से" जारी रखेंगे।

सिंह ने कहा, "सबसे बढ़कर, हम मानते हैं कि देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था के भीतर, केंद्र सरकार के नीतिगत फैसलों के खिलाफ अपनी चिंताओं को आवाज उठाने का समान मौका देना होगा।"

अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) ने गुरुवार को जारी एक बयान में इसी तरह की भावना को साझा करते हुए अध्यादेश को वापस लेने की मांग की है। “रक्षा कर्मचारियों की रक्षा उत्पादन को बाधित करने में कोई दिलचस्पी नहीं है। वास्तव में वे सिर्फ इतना आग्रह कर रहे हैं कि राष्ट्रीय रक्षा उत्पादन क्षमता को राष्ट्रीय सुरक्षा के एवज़ में लाभ कमाने वाले कॉरपोरेट्स से से मुक्त रखा जाए,”।

'एस्मा का गलत तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है'

बुधवार की गजट अधिसूचना 1968 के उस कानून की तर्ज पर थी जिसे "कुछ आवश्यक सेवाओं और समुदाय के सामान्य जीवन" को बनाए रखने के लिए लागू किया गया था। जिसे एस्मा के रूप में जाना जाता है, अधिनियम में अपने चार्टर में "आवश्यक सेवाओं" की एक लंबी फेहरिस्त शामिल की है, जिसमें रेलवे से लेकर डाक संचालन तक शामिल है, जिसमें कर्मचारियों को हड़ताल करने या उसमें शामिल होने से प्रतिबंधित किया जाता है।

एक वरिष्ठ अधिवक्ता/वकील संजय सिंघवी ने न्यूज़क्लिक को बताया, "इस अधिनियम को तब लागू किया गया था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कुछ सेवाएं, जिन्हें आवश्यक समझा जाता है, हर समय जनता के लिए उपलब्ध कराई जा सके।" हालांकि, उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में जो देखा गया है, वह यह कि "मजदूरों के हड़ताल के अधिकार को छीनने के लिए अधिनियम का गलत तरीके से उपयोग किया जाता रहा है।"

हाल के वर्षों में, कई राज्य सरकारों ने कोविड-19 की छाया में एस्मा को भी लागू किया था।  उदाहरण के लिए, पिछले साल मई से, उत्तर प्रदेश राज्य में एस्मा के प्रावधानों को लागू किया गया था, जिसमें सभी राज्य विभागों और निगमों में छह महीने तक हड़ताल पर रोक लगाई गई थी - इस साल मई में इस अवधि को तीसरी बार बढ़ाया गया है।

मध्य प्रदेश में भी ऐसा ही मामला था, जब राज्यव्यापी विरोध के तहत सरकारी मेडिकल कॉलेजों में काम कर रहे जूनियर डॉक्टरों ने सामूहिक इस्तीफे की धमकी दी थी, तब भी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं पर एस्मा लगा दिया था।

"आवश्यक रक्षा सेवाओं" में हड़तालों पर रोक लगाने वाले नवीनतम अध्यादेश पर, सिंघवी ने तर्क दिया कि इसे "कानूनी रूप से अदालत में" चुनौती दी जानी चाहिए।

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