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चंद्रशेखर पर हमले और दो दलित लड़कों की जेल में संदिग्ध मौत की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए : पीयूसीएल

पीयूसीएल की उत्तर प्रदेश इकाई ने मांग की है कि चंद्रशेखर आज़ाद पर हुए हमले और सुल्तानपुर जेल में दलित लड़कों की संदिग्ध मौत के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ज़िम्मेदारी ले।
Chandrashekhar
फ़ोटो : PTI

उत्तर प्रदेश में सहारनपुर ज़िले के देवबंद में भीम आर्मी चीफ एवं आज़ाद समाज पार्टी कांशीराम के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर आज़ाद पर 29 जून को किए गए जानलेवा हमले की पीयूसीएल उत्तर प्रदेश इकाई ने कड़ी निंदा की है।

पीयूसीएल के उत्तर प्रदेश इकाई की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में संगठन की अध्यक्ष सीमा आजाद और महासचिव आलोक अग्निहोत्री ने कहा कि 'चंद्रशेखर आजाद पर जैसे हथियार और जिस तरीके से हमला किया गया उससे स्पष्ट होता है कि यह हमला उनकी हत्या करने के इरादे से की गई थी। प्रदेश के मुख्यमंत्री कहते हैं "प्रदेश माफिया और अपराध मुक्त हो गया है" जो पूरी तरह गलत है, उल्टा वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश में अपराधियों के मन से सरकार का डर पूरी तरह से खत्म हो चुका है। अभी ज्यादा समय नहीं बीता है जब अतीक अहमद और अशरफ को पुलिस हिरासत में अपराधियों ने सरेआम गोली मार कर हत्या कर दी। लखनऊ की भरी अदालत में पुलिस कस्टडी में लाए गए आरोपी जीवा की गोली मार कर हत्या कर दी गई। यह सब उत्तर प्रदेश की बदतर कानून व्यवस्था का नमूना है। इस तरह के अपराधों का बढ़ना सरकार के प्रशासन की विफलता का नमूना है।'

उन्होंने कहा कि चंद्रशेखर आजाद इस घटना में बाल बाल बच गए और उन्होंने स्वयं मीडिया प्रतिनिधियों से विस्तार से पूरे घटनाक्रम के बारे में बताया है। उनके ड्राइवर मनीष ने इस जानलेवा हमले की एफआईआर दर्ज कराई है।

सीमा ने आगे कहा कि चंद्रशेखर आजाद उत्तर प्रदेश के ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर वंचित और प्रगतिशील तबके के युवा नेता हैं। वे वंचित, शोषित, दलित, किसान, मेहनतकश और महिलाओं पर होने वाले दमन और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाते रहते हैं। करीब एक दशक से वो आम लोगों के संवैधानिक अधिकारों के पक्ष में जुझारू संघर्ष के पक्षधर हैं। चाहे वो हाथरस में दलित लड़की के बलात्कार और हत्या का मामला हो या हालिया महिला पहलवानों द्वारा यौन हिंसा का मामला हो, इन आंदोलनों के पक्ष में वे समाज के सामंती, ताकतवर और राजनीतिक नेताओं और सरकार के खिलाफ आवाज उठाते रहते हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता सीमा कहती हैं कि आजाद द्वारा अन्याय और अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने को लेकर ताकतवर आपराधिक तत्वों द्वारा उन्हें धमकियां भी मिलती रही हैं। सरकार से उनकी मांग के बावजूद उन्हें किसी तरह की सुरक्षा उपलब्ध नहीं कराई गई है।

ज्ञात हो कि इस घटना के पहले 28 जून को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के जेल में बंद दो दलित लड़कों की संदिग्ध मौत की भी खबर आई थी। जेल प्रशासन इन मौतों को आत्महत्या बता रहा है, लेकिन जेल के अंदर यानि न्यायिक हिरासत में हुई ये दो मौत सरकारी मशीनरी पर सवाल खड़े करता है। पीयूसीएल इस घटना की उच्च स्तरीय स्वतंत्र जांच की मांग करता है।

पीयूसीएल के महासचिव आलोक अग्निहोत्री ने कहा कि 28 जून को सुल्तानपुर जेल में बंद दो दलित लड़कों 19 वर्षीय मनोज रैदास और 20 वर्षीय विजय पासी उर्फ करिया की मौत की खबर सामने आई। जेल अधीक्षक का कहना है कि दिन में 12.30 बजे वे दोनों अपनी बैरक के पीछे पेड़ से लटकते हुए पाए गए और ये आत्महत्या का मामला है। लेकिन ये मौत चूंकि जेल में न्यायिक हिरासत में हुई हैं ऐसे में ये कई सवाल उठाती हैं। यह संदिग्ध मामला है इसलिए जेल प्रशासन को इसका जिम्मेदार मानते हुए इन मौतों की भी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए।

बता दें कि दोनों लड़के को 30 मई को अमेठी में हुई एक हत्या के मामले में हिरासत में लिया गया था। घर वालों ने यह भी बताया कि उन्हें पुलिस कस्टडी में काफी यातना दी गई थी।

पीयूसीएल ने कहा कि इस मामले में यह भी गैर कानूनी प्रक्रिया का नमूना है कि मनोज रैदास की मां को उसके जेल में होने की बात उसकी मौत की खबर के साथ मिली। कई कारणों से यह मौत आत्महत्या नहीं हत्या भी हो सकती है।

संगठन ने कहा कि न्यायिक हिरासत में हुई मौत किसी भी संवैधानिक लोकतांत्रिक समाज के लिए बेहद खतरनाक और लिटमस टेस्ट की तरह होती है। अफसोस है कि उत्तर प्रदेश इस टेस्ट में लगातार फेल हो रहा है। उत्तर प्रदेश में लगातार पुलिस कस्टडी और न्यायिक हिरासत में मौत हो रही है, जिसमें खुलेआम हत्या तक शामिल है।

इस घटना की जांच के लिए जल्द से जल्द जांच बिठाए जाने के साथ ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की जरूरत है।

संगठन की ओर से कहा गया कि उत्तर प्रदेश सरकार लगातार यह दावा करती रहती है कि प्रदेश की कानून व्यवस्था चाक चौबंद है और हर आम नागरिक महफूज़ है लेकिन आजाद पर दिनदहाड़े हुए जानलेवा हमले ने सरकार के दावे को खोखला साबित कर दिया है। साथ ही न्यायिक हिरासत में दो दलित लड़कों की मौतों ने सरकार की कानून व्यवस्था पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा दिया है।

पीयूसीएल इन दोनों घटनाओं की कड़ी निंदा करता है और इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए निम्न मांग करता है-

1- चंद्रशेखर आजाद पर हुए हमले की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए।

2- सुल्तानपुर जेल में बंद दलित लड़कों की मौत को न्यायिक हिरासत में हत्या का मामला मानते हुए इसकी उच्च स्तरीय जांच कराई जाए।

3- आरोपियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर कानूनी प्रक्रिया जल्द से जल्द चलाई जाए।

4- उत्तर प्रदेश में बढ़ती आपराधिक घटनाओं में चूंकि पुलिस कस्टडी और न्यायिक कस्टडी में हुई हत्या भी शामिल है, इसलिए सरकार को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

5- उत्तर प्रदेश में जेल के अंदर और बाहर नागरिकों की जान की सुरक्षा की जाए।

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