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अपडेट: CAB के खिलाफ आसू भी सुप्रीम कोर्ट में, अमित शाह का दौरा रद्द

असम समेत पूर्वोत्तर के कई हिस्सों में तीखा विरोध जारी, बंगाल में मुर्शिदाबाद में भी उग्र प्रदर्शन, राजधानी दिल्ली में प्रदर्शनकारी छात्रों पर लाठीचार्ज।
CAB protest
Image courtesy: Google

नए नागरिकता कानून का देश के अलग-अलग हिस्सों ख़ासकर पूर्वोत्तर में विरोध जारी है। गृह मंत्री का मेघालय और अरूणाचल दौरा रद्द हो गया है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में प्रदर्शनकारियों ने एक रेलवे स्टेशन पर आग लगा दी है। दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे जामिया के छात्र-छात्राओं पर पुलिस ने बल प्रयोग किया है। इस सबके बीच आसू और अन्य संगठनों ने इस बिल जो अब कानून बन गया है के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।  

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार और सोमवार को पूर्वोत्तर के दो राज्यों मेघालय और अरूणाचल प्रदेश का अपना दौरा रद्द कर दिया है। अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।

शाह का यह दौरा ऐसे समय रद्द किया गया है जब मेघालय और असम में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन जारी है।

गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि गृह मंत्री का पूर्वोत्तर का दौरा रद्द कर दिया गया है । उन्होंने इसकी कोई वजह नहीं बताई।

इसी तरह जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे का भारत दौरा रद्द हो गया है। भारत के विदेश मंत्रालय ने दौरा रद्द होने की पुष्टि की है, हालांकि इसकी वजह असम या देश के हालात हैं, इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है।

इसे पढ़ें : CAB इफेक्ट : जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे का भारत दौरा रद्द

मुर्शिदाबाद में रेलवे स्टेशन को प्रदर्शनकारियों ने फूंका

उधर पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में संशोधित नागरिकता कानून का विरोध कर रहे हजारों प्रदर्शनकारियों ने शुक्रवार को बेलडांगा स्टेशन में आग लगा दी और वहां तैनात आरपीएफ कर्मियों के साथ मारपीट की।

एक वरिष्ठ आरपीएफ अधिकारी ने कहा, ‘‘ प्रदर्शनकारी अचानक रेलवे स्टेशन के परिसर में आ घुसे और उन्होंने प्लेटफार्म, दो तीन मंजिले भवनों और रेलवे कार्यालयों में आग लगा दी। जब आरपीएफ कर्मियों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया तब उन्हें बुरी तरह पीटा गया।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ ट्रेन सेवाएं थम गयी हैं।’’मुस्लिम बहुल मुर्शिदाबाद बांग्लादेश से सटा जिला है।

इधर देश की राजधानी दिल्ली में सीएबी और एनआरसी के खिलाफ जामिया मिलिया इस्लामिया में पढ़ने वाले छात्रों के एक समूह ने मार्च निकाला, जिसपर दिल्ली पुलिस ने बल प्रयोग किया है, जिसमें कई छात्रों को चोटें पहुंची हैं।

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उधर, नागरिकता संशोधन विधयेक को चुनौती देने वाली ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू) की अर्जी उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को सूचीबद्ध की।  

टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने भी नागरिकता संशोधन कानून को न्यायालय में चुनौती दी है।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष मोइत्रा के वकील ने इस याचिका का उल्लेख कर इसे शीघ्र सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया। पीठ ने वकील से कहा कि वह शीघ्र सूचीबद्ध करने के लिये उल्लेख करने संबंधी आवेदन देखने वाले अधिकारी के पास जायें।

आपको बता दें कि राष्ट्रपति राम नाथ काविंद ने संसद से मंजूर नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 को बृहस्पतिवार की रात में संस्तुति प्रदान कर दी और इस तरह यह विधेयक अब कानून बन गया है।

संशोधित कानून के अनुसार 31 दिसंबर, 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ्गानिस्तान से आने वाले हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के सदस्यों को अवैध शरणार्थी नहीं माना जायेगा बल्कि उन्हे भारत की नागरिकता प्रदान की जायेगी।

इससे पहले, बृहस्पतिवार को इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने भी इस कानून को चुनौती दी थी। मुस्लिम लीग ने अपनी याचिका मे कहा है कि यह संशोधन संविधान में प्रदत्त समता के मौलिक अधिकार का हनन करता है और इसका मकसद धार्मिक आधार पर अवैध शरणार्थियों के एक वर्ग को अलग करना है।

इस याचिका में नागरिकता संशोधन विधेयक और विदेशी नागरिक संशोधन (आदेश) 2015 तथा पासपोर्ट (नियमों में प्रवेश), संशोधन नियम 2015 के अमल पर अंतरिम रोक लगाने का अनुरोध किया गया है।

याचिका में आरोप लगाया गया है कि यह विधेयक संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ है और इसका स्पष्ट मकसद मुसलमानों के साथ भेदभाव करना है क्योंकि प्रस्तावित कानून का लाभ सिर्फ हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के सदस्यों को ही मिलेगा।

याचिका में कहा गया है, ‘‘याचिकाकर्ताओं को शरणार्थियों को नागरिकता दिये जाने के बारे में कोई शिकायत नहीं है लेकिन याचिकाकर्ता की शिकायत धर्म के आधार पर भेदभाव और अनुचित वर्गीकरण को लेकर है।’’

याचिका में कहा गया है, ‘‘गैरकानूनी शरणार्थी अपने आप में ही एक वर्ग है और इसलिए उनके धर्म, जाति या राष्ट्रीयता के आधार के बगैर ही उन पर कोई कानून लागू किया जाना चाहिए।’’

याचिका में आरोप लगाया गया है कि सरकार ने अहमदिया, शिया और हजारा जैसे अल्पसंख्यकों को इस विधेयक के दायरे से बाहर रखने के बारे में कोई स्पष्टीरण नहीं दिया है। इन अल्पसंख्यकों का लंबे समय से अफगानिस्तान और पाकिस्तान में उत्पीड़न हो रहा है।

याचिका में यह भी कहा गया है कि कानून में इन तीन पड़ोसी देशों का चयन करने के पीछे किसी मानक सिद्धांत या पैमाने का जिक्र नहीं है जबकि यही लाभ श्रीलंका, म्यामां, नेपाल और भूटान जैसे पड़ोसी देशों में रहने वाले धार्मिक अल्पसंख्यकों को नहीं दिया गया है।

याचिका में तर्क दिया गया है कि यह विधेयक सुनिश्चित करेगा कि राष्ट्रीय नागरिक पंजी कवायद के बाद इससे बाहर रखे गये अवैध मुस्लिम शरणार्थियों पर मुकदमा चलाया जायेगा और हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदाय के सदस्यों को भारतीय नागरिक के रूप में देशीकरण का लाभ दिया जायेगा।

याचिका में कहा गया है कि इस तरह से राष्ट्रीय नागरिक पंजी से बाहर रखे गये मुस्लिम समुदाय के लोगों को विदेशी नागरिक न्यायाधिकरण के समक्ष अपनी नागरिकता साबित करनी होगी क्योंकि वे हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख, पारसी और ईसाई नहीं बल्कि मुस्लिम हैं।

याचिका में कहा गया है कि इसलिए यह स्पष्ट रूप से भेदभाव है और नागरिकता संशोधन कानून असंवैधानिक ही नहीं बल्कि हमारे राष्ट्र के मूलभूत सिद्धांत के भी खिलाफ है।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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