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दिल्ली सहित देश भर में तीस्ता की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ नागरिक समाज का साझा विरोध प्रदर्शन

सभी प्रदर्शनकारियों ने तीस्ता सेतलवाड़ और आरबी श्रीकुमार की गिरफ़्तारी पर सरकार की कड़ी निंदा करते हुए मांग उठाई कि उन्हें और अन्य राजनीतिक क़ैदियो को तुरंत रिहा किया जाए। 
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गुजरात पुलिस द्वारा शनिवार को सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सेतलवाड़ की गिरफ्तारी के बाद से ही देश भर में उनके साथ एकजुटता दिखाते हुए विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इसी कड़ी में आज यानी 27 जून को देश की राजधानी दिल्ली में भी नागरिक समाज द्वारा जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया गया।

इस प्रदर्शन में दिल्ली के शिक्षक, छात्र, महिला संगठन, सभ्य समाज के लोग और सामाजिक कार्यकर्ता अपनी एकजुटता ज़ाहिर करने के लिए एकत्रित हुए और अपनी आवाज़ बुलंद की।

सभी प्रदर्शनकारियों ने तीस्ता सेतलवाड़ और आरबी श्रीकुमार की गिरफ़्तारी पर सरकार की कड़ी निंदा करते हुए मांग उठाई कि उन्हें और अन्य राजनीतिक क़ैदियो को तुरंत रिहा किया जाए।

छात्र संगठन आईसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एन साईं बाला जी ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "तीस्ता सेतलवाड़ और आरबी कुमार जैसे लोगों की मेहनत की वजह से कई गुनहागारों को सज़ा मिली है लेकिन अब उन्हें ही दोषी ठहराया जा रहा है। आप मोदी या मोदी सरकार के ख़िलाफ़ कुछ बोल नहीं सकते हैं। जबकि तीस्ता तो उन्हीं के ख़िलाफ़ 20 सालों से लड़ रही थीं। अब भारत में इंसाफ़ मांगना भी गुनाह हो गया है।"

सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने न्यूजक्लिक से बात करते हुए कहा, "यह कोई अचानक नहीं हुआ है। इस सबकी तैयारी पहले से थी। जब से यह सरकार सत्ता में आई है तब से इसने सबसे पहले हमला इन्हीं सामाजिक कार्यकर्ता और कैंपसों पर किया जो न्याय के लिए आवाज़ बुलंद करते हैं।"

उन्होंने कोर्ट के इस फ़ैसले को भारतीय इतिहास के सबसे ख़राब फ़ैसलों में से एक बताया और कहा कि यह पहली बार हुआ है जब न्याय मांगने वाले को ही गुनाहगार बना दिया गया हो।

आपको बता दें कि देशभर में विरोध प्रदर्शन के बीच अहमदाबाद की एक अदालत ने रविवार को सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सेतलवाड़ और राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक आर बी श्रीकुमार को दो जुलाई तक पुलिस हिरासत में भेज दिया है। जबकि अभियोजन पक्ष ने इनकी 14 दिनों की हिरासत मांगी थी।

इनकी गिरफ्तारी से एक दिन पहले 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगों के मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 64 लोगों को विशेष जांच दल की क्लीन चिट को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। जिसमें उन्होंने एक निचली अदालत द्वारा एस आई टी की उस रिपोर्ट को स्वीकार करने को चुनौती दी थी जिसमें गुजरात में 2002 की मुस्लिम विरोधी हिंसा के लिए नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी गई है। इस याचिका के खारिज होने के बाद 24 घंटे भी नहीं बीते थे कि गुजरात एटीएस ने तीस्ता सीतलवाड़, एसबी श्रीकुमार व अन्यों के विरुद्ध दर्ज एफ़आईआर के तहत गिरफ्तार कर लिया। उनपर कथित तौर पर जालसाजी करने और सबूत गढ़ने के आरोप लगे हैं। यह याचिका ज़ाकिया जाफ़री ने दायर की थी जिनके पति कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफ़री की 2002 के गुजरात दंगों के दौरान हत्या कर दी गई थी। सेतलवाड़ ने प्रधानमंत्री मोदी के ख़िलाफ़ इस मामले को आगे बढ़ाया था।

वैज्ञानिक और शायर गौहर रजा ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "सेतलवाड़ की गिरफ़्तारी से सरकार ने कई संदेश एक साथ दिए हैं। पहला कि अगर आप इंसाफ की मांग को लेकर कोर्ट जाएंगे तो आपको ही जेल में बंद कर दिया जाएगा। दूसरा कि देश में अगर किसी मुसलमान के साथ अन्याय और जुल्म हुआ और उसके खिलाफ वो कोर्ट जा रहा है और आपने उसका साथ दिया तो आपकी जान को खतरा है। तीसरा कि देश में सत्ता में बैठे किसी भी ताकतवर व्यक्ति के खिलाफ कोई भी कोर्ट कुछ नहीं कहेगा। चौथा कोई भी सीएम या सत्ताधारी दल देश में दंगा करा सकता है, उसे कुछ नहीं कहा जाएगा। जबकि पहले यही कोर्ट इसी मामले में सीएम और सरकार की तुलना नीरो से कर चुका है। ये एक बंडल भर संदेश एक साथ दिए गए हैं। यह साफ दर्शाता है कि देश में लोकतंत्र को वो (बीजेपी) अपने जूते के तले रौंद रहे हैं।"

रज़ा ने आगे कहा कि मैंने तीस्ता को दंगे पीड़ितों के लिए दिन रात बिना सो काम करते हुए देखा है। जब तक देश में उनके जैसे शेर और शेरनियां है तब तक ये कोर्ट और सरकार हमारी आवाज़ दबा नही सकेंगे। वो आज भी हमारे देश में कई नौजवानों के लिए आदर्श हैं और रहेंगी।

डेमोक्रेटिक टीचर फ्रंट की नेता और पूर्व डूटा अध्यक्ष नंदिता नारायण भी जंतर मंतर पर प्रदर्शन का हिस्सा थीं। उन्होंने न्यायालय की भूमिका पर सवाल उठाए और कहा कि यह नया ट्रेंड शुरू हो गया है कि जजमेंट पर किसी भी जज के हस्ताक्षर नहीं होते हैं। "यह पता नहीं चलता कि यह फ़ैसले लिख कौन रहा है? यह कहाँ और कौन फ़ैसले लिख रहा है यह जानने का हक़ हमें है और हम ये पूछेंगे भी ज़रूर।"

देशभर के अलग अलग संगठनों से मिला रहा है समर्थन

सेतलवाड़ की गिरफ्तारी की निंदा करते हुए, भारत की जनवादी महिला समिति (एडवा) ने एक बयान जारी कर मांग की है कि "उनके ख़िराज झूठे मामले को तुरंत वापस लिया जाए और उत्पीड़न बंद किया जाए।" 

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के पोलित ब्यूरो ने गुजरात पुलिस की कार्रवाई को "सभी लोकतांत्रिक विचारधारा वाले नागरिकों के लिए खतरा" बताते हुए एक बयान में कहा है, "उनकी गिरफ्तारी में गुजरात प्रशासन की कार्रवाई को सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ के संदिग्ध फैसले से सक्षम बनाया गया है [...]। इस फैसले के अनुसार, किसी भी एसआईटी द्वारा स्थापित किया गया था। अदालत को न्यायिक अपील के दायरे से बाहर माना जाना चाहिए और अगर कोई इसके खिलाफ अपील करता है, जैसा कि वर्तमान मामले में जकिया जाफरी और तीस्ता सेतलवाड़ ने किया था, तो उन पर "प्रक्रिया के दुरुपयोग" का आरोप लगाया जाएगा है।"

बयान में यह भी कहा गया है कि इससे पहले अप्रैल 2004 में, सुप्रीम कोर्ट ने खुद तत्कालीन सरकार के नेताओं को "आधुनिक-दिन के नीरोस" के रूप में वर्णित किया था।

मानवाधिकार रक्षकों पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत ने अब सेतलवाड़ की रिहाई की मांग करते हुए कहा है, "तीस्ता नफरत और भेदभाव के खिलाफ एक मजबूत आवाज हैं। मानवाधिकारों की रक्षा करना कोई अपराध नहीं है।"

इसी तरह भाकपा माले ने भी सीतलवाड़ की गिरफ़्तारी निंदा की और कोर्ट के निर्णय और पुलिस की भूमिका सवाल उठाए। उन्होंने कहा “क्रोनोलोजी” स्पष्ट है: सर्वोच्च न्यायालय ने न सिर्फ़ साम्प्रदायिक हिंसा पीड़ितों के न्याय पाने के सपने को ठुकरा दिया बल्कि उनका साथ देने वाले “न्याय के हिमायतियों” को कठघरे में खड़ा करने के लिए उकसाने वाली भाषा का इस्तेमाल किया. और 24 घंटे के अंदर ही गुजरात एटीएस ने तीस्ता सेतलवाद व अन्य के खिलाफ दर्ज एफआईआर में सर्वोच्च न्यायालय की ही भाषा का इस्तेमाल किया।"

दिल्ली के अलावा बिहार की राजधानी पटना में भी सोमवार को ऐपवा के नेतृत्व में कई महिला संगठनों प्रदर्शन किया और उन्हें रिहा करने की मांग की। इस दौरान बड़ी संख्या में ऐपवा की नेता व कार्यकर्ता शामिल हुईं।

ऐपवा बिहार की प्रदेश सचिव शशि यादव ने प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार तीस्ता सितलवाड़ की गिरफ्तारी को लेकर न्यूजक्लिक से बात करते हुए कहा कि, "ये तानाशाही है। जो न्याय मांग रहे हैं उन्हीं को कटघरे में ये सरकार आज खड़ा कर रही है। जो दो जांच हुए हैं वह एक तरह से संदेह के घेरे में है। इस पर फिर से सरकार को एक निष्पक्ष जांच करवानी चाहिए थी और जो भी दोषी पाया जाता उसको सजा देनी चाहिए।"

इसके अलावा वाराणसी में भी सोमवार को आराजीलाईन ब्लाक के समक्ष स्थित मनरेगा मज़दूर यूनियन के सभागार में कार्यकर्ताओं ने हाथों में सितलवाड़ के समर्थन में तख़्तियाँ लेकर इस मनमानी के खिलाफ नारेबाज़ी की इस दौरान एनएपीएम राज्य समन्वयक सुरेश राठौर ने कहा कि तीस्ता को तुरंत रिहा करो और भारतीय नागरिक समाज और मानवाधिकार रक्षकों के उत्पीड़न को समाप्त करने की मांग की है।

मनरेगा मज़दूर यूनियन की सह संयोजिका रेनू पटेल ने आरोप लगाया कि सेतलवाड़ की गिरफ्तारी सभी लोकतांत्रिक विचारधारा वाले नागरिकों के लिए यह ‘‘अशुभ खतरा’’ है कि वे किसी राज्य या सरकार की भूमिका पर सवाल उठाने की हिमाकत न करें, जिसके कार्यकाल में साम्प्रदायिक हिंसा हुई हो।

सेतलवाड़ ने कहा उन्हें है अपनी जान का डर

सेतलवाड़ का कहना है कि उनके साथ धक्का-मुक्की की गई क्योंकि उन्हें उनके मुंबई स्थित घर से उठाया गया और सांताक्रूज पुलिस स्टेशन ले जाया गया, जहां उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें सड़क मार्ग से अहमदाबाद क्राइम ब्रांच ले जाया जा रहा था।

अहमदाबाद ले जाने से ठीक पहले, सेतलवाड़ ने सांताक्रूज़ पुलिस स्टेशन में एक हस्तलिखित शिकायत दर्ज कराई, जिसमें कहा गया था, "मुझे अपनी जान का डर लग रहा है।" सेतलवाड़ ने अपनी शिकायत में एटीएस अहमदाबाद के पुलिस इंस्पेक्टर जेएच पटेल का नाम लिया और कहा कि वह और एक महिला अधिकारी सिविल कपड़ों में उसके बेडरूम में आए और जब उसने अपने वकील से बात करने की मांग की तो उसके साथ मारपीट की गई ।उन्होंने यह भी कहा है कि हमले से उसके बाएं हाथ पर चोट के निशान थे और उनके वकील के आने तक उसे प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) या वारंट नहीं दिखाया गया था।

उनकी शिकायत की एक प्रति यहां पढ़ी जा सकती है।

लखनऊ में भी प्रदर्शन

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