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आख़िर कैसे काम करते हैं 'वैगनर' जैसे प्राइवेट मिलिटरी ग्रुप? क्यों हैं ख़तरनाक?

हक़ीक़त यह है कि न तो रूस में वैगनर ग्रुप अकेला इस तरह का मिलिटरी ग्रुप है और न ही रूस इस तरह की फ़ौजों को प्रश्रय देने वाला अकेला देश है। कई देश इस तरह के ग्रुप्स का इस्तेमाल करते रहे हैं।
Wagner Group
फ़ोटो साभार: रॉयटर्स

जिन लोगों ने इस साल आई शाहरुख खान की फिल्म ‘पठान’ देखी होगी, उन्हें ध्यान होगा कि उसमें एक पात्र है जिसे जॉन अब्राहम निभाते हैं। वह पात्र भाड़े का 'आतंकवादी' का है जिसके पास अपना पूरा एक दस्ता है, हथियार हैं और फाइनेंस है और वह किसी देश या मज़हब से नहीं जुड़ा, बल्कि केवल पैसे के लिए काम करता है। रूस में पुतिन के ख़िलाफ़ बग़ावत का ऐलान करके मॉस्को की तरफ कूच करने और फिर पीछे हट जाने वाले वैगनर ग्रुप के मुखिया येवगेनी प्रिगोझिन को ‘पठान’ के उस पात्र से समझा जा सकता है, हालांकि प्रिगोझिन उससे कहीं ज़्यादा आगे की, और कई गुना बड़ी हकीकत हैं।

आज के दौर में प्राइवेट आर्मी यानी निजी फ़ौज कई लोगों को काल्पनिक-सा ख्याल लग सकता है, लेकिन असलियत यह है कि यह वो ख़तरनाक ग्रुप है जो कई देश गाहे-बेगाहे खड़े करते रहते हैं- कहीं छोटे तो कहीं बड़े आकार में और, कहीं धर्म के लिए लड़ने के नाम पर तो कहीं धर्म को बचाने के नाम पर। यह हम अपने चारों ओर घटता देख सकते हैं। प्रिगोझिन इस समय रूस में प्राइवेट आर्मी के इस गेम के बॉस कहे जा सकते हैं।

दो महीने पहले तक यूक्रेन के बखमुत इलाके में रूस की तरफ़ से बैटिंग कर रहा वैगनर ग्रुप अचानक रूस का ही गेम ख़राब करने पर उतारू हो गया। इस ग्रुप में कितने लड़ाके हैं इसका ठीक-ठीक किसी को पता नहीं। हालांकि खुद प्रिगोझिन कहते हैं कि उनके पास 25 हज़ार लड़ाके हैं। जबकि ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय ने इसी साल थोड़ा पहले कहा था कि वैगनर के पास यूक्रेन में करीब 50 हज़ार लड़ाकों का नियंत्रण है। 

लेकिन सवाल यह है कि जब यह निजी सेना है, और इनका नियंत्रण प्रिगोझिन के हाथों में है तो इन हज़ारों लड़ाकों का खर्च कैसे उठता होगा? इस बात पर नज़र डालें तो दुनिया के तमाम अशांत इलाकों और गृहयुद्ध से जूझ रहे देशों के हालात की  एक बड़ी तस्वीर उभरकर सामने आती है। न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार अमेरिका व यूरोपीय देश सालों से वैगनर ग्रुप पर लगाम लगाने की कोशिश कर रहे हैं। अमेरिकी एफबीआई की मोस्ट वांटेड लिस्ट में शामिल वैगनर कभी राष्ट्रपति पुतिन के शेफ कहे जाते थे क्योंकि तमाम राजकीय भोज में कैटरिंग का काम वही संभालते थे। पुतिन की मदद से कैटरिंग और कंस्ट्रक्शन के कांट्रेक्ट हासिल कर उन्होंने अपना धंधा बढ़ाया। वैगनर ग्रुप उसी कमाई से चलता है।

2014 में क्रीमिया पर रूस के क़ब्ज़े के समय पहली बार वैगनर ग्रुप सामने आया। कहा यह जाता है कि वैगनर नाम से लड़ाकों के इस ग्रुप को रूसी सेना के एक पूर्व अधिकारी दिमित्री उतकिन ने खड़ा किया था। उतकिन ने तानाशाह हिटलर के सबसे पसंदीदा जर्मन संगीतकार रिचर्ड वैगनर की याद में ही इसका नाम वैगनर रखा था और इसके बाद से ही उनका समूह वैगनर समूह के तौर पर पहचाना जाने लगा। इसके पीछे पैसा प्रिगोझिन का था। दिमित्री उतकिन तब प्रिगोझिन के सुरक्षा प्रमुख के तौर पर काम कर रहे थे। उस समय वैगनर का चेहरा दिमित्री थे और प्रिगोझिन कोनकार्ड के नाम से कैटरिंग का धंधा संभालते थे। प्रिगोझिन ने बाद में इंटरनेट रिसर्च एजेंसी नाम से भी एक कपंनी खड़ी कर ली थी। अमेरिकी एजेंसियां आरोप लगाती रही हैं कि इस कंपनी ने 2016 के अमेरिकी चुनावों में सोशल मीडिया पर बड़ी भूमिका निभाई और उसके तैयार किए हुए ट्रोल्स पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों और वहां होने वाले चुनावों को निशाना बनाते रहे हैं।

मज़ेदार बात यह है कि वैगनर ग्रुप पूरी दुनिया में कहीं भी किसी वैधानिक स्वरूप में रजिस्टर्ड नहीं है। रूसी कानून में इस तरह के निजी लड़ाके ग़ैरक़ानूनी हैं, लेकिन इन लड़ाकों का इस्तेमाल रूस करता भी रहा है। बताया जाता है कि यूक्रेन से पहले सीरिया व लीबिया में भी रूस वैगनर के लड़ाकों का इस्तेमाल करता रहा है। वैगनर ग्रुप के लड़ाके तमाम देशों में जाकर युद्ध लड़ते हैं और स्थानीय लड़ाकों को ट्रेनिंग भी देते हैं।

अभी जब कुछ हफ्तों पहले सूडान में अशांति की वजह से दुनियाभर में हलचल मची थी, तब भी वैगनर ग्रुप का ज़िक्र वहां के संदर्भ में आया था। अफ्रीका में सूडान के अलावा सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक, माली व मोजाम्बिक के साथ-साथ लैटिन अमेरिका में भी वैगनर ग्रुप सक्रिय रहा है। इस बहाने वे इन सब जगहों पर रूसी दखल व प्रभाव बढ़ाते रहे हैं, तेल व गैस क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल करते रहे हैं। अफ्रीकी देशों में प्रिगोझिन का ज़ोर माइनिंग कांट्रेक्ट हासिल करने पर भी रहता है। बाकी देशों में अपनी ‘सेवाओं’ के लिए वैगनर ग्रुप सोने, हीरे व तेल व गैस के रूप में भुगतान लेता है। इस तरह उसने प्राकृतिक संसाधनों के रूप में अच्छी खासी संपत्ति खड़ी कर ली है। 

लेकिन यहां ध्यान देने की बात यह है कि न तो रूस में वैगनर ग्रुप अकेली इस तरह की निजी फ़ौज है और न ही रूस इस तरह की फ़ौजों को प्रश्रय देने वाला अकेला देश है। अपनी सेनाओं को नुकसान से बचाने के लिए और अपनी करतूतों की पहचान छिपाने के लिए और भी कई देश इस तरह की निजी सेनाओं को मदद व प्रश्रय देते रहे हैं। हम लोगों ने देखा है कि लैटिन अमेरिका, एशिया व अफ्रीका के गरीब मुल्कों में अशांति के ज़्यादातर दौर प्राकृतिक संसाधनों पर क़ब्ज़े के छिपे मकसद को लेकर आते हैं और इनमें ताकतवर पश्चिमी देशों की पर्दे के पीछे बड़ी भूमिका होती है। इसके अलावा छोटे तौर पर निजी फ़ौजें तमाम कांट्रेक्टरों द्वारा पाली जाती हैं ताकि उन्हें अपने कामकाज में किसी रुकावट का सामना न करना पड़े। विडंबना यह है कि ये प्राइवेट आर्मीज़ ज़्यादातर आम, निहत्थे लोगों को शिकार बनाने के लिए खड़ी की जाती हैं।

कुछ जानकारों का कहना है कि अकेले रूस में ही 50 से ज़्यादा प्राइवेट आर्मी हैं। वैसे कई विश्लेषक 'अमेरिकी ब्लैकवाटर' को दुनिया में निजी लड़ाकों की सबसे बड़ी फ़ौज मानते रहे हैं। इस समय यह इराक में सक्रिय है। वैसे आधुनिक इतिहास में 1965 में खड़ी की गई ब्रिटेन की 'वॉचडॉग इंटरनेशनल' को सबसे शुरुआती पीएमसी यानी प्राइवेट मिलिटरी कंपनी माना जाता है जो एशिया व अफ्रीका में काफ़ी सक्रिय रही। खुद अमेरिका इराक व अफगानिस्तान में, बड़े पैमाने पर निजी मिलिटरी कांट्रेक्टरों का इस्तेमाल करता रहा है और कर रहा है।

(उपेंद्र स्वतंत्र लेखक हैं। विचार निजी हैं।)

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